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Ramleela in Ram nagar: रामायण के कालातीत आकर्षण का जीवित प्रमाण राम नगर की विश्व विख्यात रामलीला

Ramleela in Ram nagar: अनंत चतुर्दशी से आरंभ होकर लगभग एक माह तक मंचित होने वाली राम नगर की रामलीला आज भी इस आधुनिक व भौतिकतावादी दुनिया से इतनी अनछुई है कि इसे सन 2008 में यूनेस्को द्वारा मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत की श्रेणी में चयनित किया गया।

Nirala Tripathi
Written By Nirala Tripathi
Published on: 1 Oct 2023 6:02 PM IST
Ramleela in Ram nagar: रामायण के कालातीत आकर्षण का जीवित प्रमाण राम नगर की विश्व विख्यात रामलीला
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Ramleela in Ram nagar: विश्व के सबसे प्राचीन और जीवित नगर वाराणसी या काशी को संसार की सांस्कृतिक राजधानी भी कहा जा सकता है। भले ही काशी का भौतिक स्वरूप आज थोड़ा परिवर्तित हो लेकिन पूरे वर्ष आयोजित होने वाले विविध धार्मिक व सांस्कृतिक महोत्सवों का मूल स्वरूप, भाव व आस्थावानों की श्रद्धा आज भी वही है।

उन लोकोत्सवों में से प्रमुख है-“राम नगर की रामलीला।” इसकी जड़ें दो शताब्दियों से ज्यादा पुरानी हैं। माना जाता है लीला का आरंभ काशी राज महाराजा उदित नारायण सिंह (1796 से 1835 ईस्वी) के शासन काल में प्रारंभ हुआ । बाद में इनके उत्तराधिकारी ईश्वरी प्रसाद नारायण सिंह के समय लीला का मंचन महल से बाहर विविध पवित्र स्थलों पर किया जाने लगा। अनंत चतुर्दशी से आरंभ होकर लगभग एक माह तक मंचित होने वाली राम नगर की रामलीला आज भी इस आधुनिक व भौतिकतावादी दुनिया से इतनी अनछुई है कि इसे सन 2008 में यूनेस्को द्वारा मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत की श्रेणी में चयनित किया गया।



इस लीला का मंचन गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित राम चरित मानस की चौपाइयों वा नेमियों के करतल पर होता है। यह प्राचीन महाकाव्य लगभग 300 पात्रों के साथ , जो कि पीढ़ियों से इस परंपरा में अपनी भूमिकाओं का निर्वहन कर रहे हैं, महीनों पहले शुरू की गयी चयन प्रक्रिया व कठोर प्रशिक्षण के साथ होता है। इस दौरान चयनित प्रतिभागियों को उनके चरित्र के नामों से ही संबोधित किया जाता है।

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस लीला के प्रमुख दर्शक देवाधिदेव भगवान शिव खुद हैं। इसी मान्यता के चलते काशी नरेश लीला के प्रारंभ से अंत तक स्वयं उपस्थित रहते है । लीला का मंचन लगभग 5वर्ग किलोमीटर की परिधि में बिना किसी स्पीकर , माइक या आधुनिक रोशनी के होता है। आज भी लीलाओं के मंचन में प्रकाश श्रोत के रूप में मशालों , दियों व परंपरागत पेट्रोमैक्स का प्रयोग होता है। हालांकि लीला के मंचन स्थल रोज बदलते रहते हैं। पात्रों को लाने ले जाने के लिए मानव निर्मित रथों का प्रयोग किया जाता है। राम लीला में प्रयुक्त वेशभूषा, मुखौटे, प्राचीन आभूषण, अस्त्र शस्त्र विस्मयकारी प्रदर्शन को दर्शाते हैं। वहीं इस लीला को लेकर हजारों भक्तों का ऐसा मानना है कि उन्हें यहां साक्षात प्रभु श्री राम के दर्शन होते हैं।



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Snigdha Singh

Snigdha Singh

Leader – Content Generation Team

Hi! I am Snigdha Singh from Kanpur. I Started career with Jagran Prakashan and then joined Hindustan and Rajasthan Patrika Group. During my career in journalism, worked in Kanpur, Lucknow, Noida and Delhi.

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