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Varanasi News: नवरात्रि के चौथे दिन मां कुष्मांडा की हो रही पूजा, माता की मंद मुस्कान से हुआ था सृष्टि का निर्माण

Varanasi News: मां कुष्मांडा का वाहन सिंह है। जिनकी साधना करने पर साधक के जीवन से जुड़े सभी कष्ट दूर और कामनाएं पूरी होती हैं। इनका निवास सूर्य मंडल के भीतर के लोक में स्थित है।

Purushottam Singh
Published on: 18 Oct 2023 3:00 AM GMT
maa Kushmanda
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मां कुष्मांडा (फोटो: सोशल मीडिया )

Varanasi News: भगवान शिव की नगरी काशी में नवरात्रि के चौथे दिन माता के कुष्मांडा स्वरूप की पूजा हो रही है।माता कुष्मांडा को अष्टभुजा भी कहा जाता है।माता कुष्मांडा के आठ हाथों में कमंडल, धनुष, बाण, कमल-पुष्प अमृतपूर्ण कलश, चक्र, गदा और माला है। मां कुष्मांडा का वाहन सिंह है। जिनकी साधना करने पर साधक के जीवन से जुड़े सभी कष्ट दूर और कामनाएं पूरी होती हैं। इनका निवास सूर्य मंडल के भीतर के लोक में स्थित है। सूर्य लोक में निवास कर सकने की क्षमता और शक्ति केवल इन्हीं में है।

हास्य से की ब्रह्माण्ड की रचना

माँ कुष्मांडा सृष्टि की आदि-स्वरूपा, आदि शक्ति हैं। अपनी मंद, हल्की हंसी द्वारा ब्रह्माण्ड को उत्पन्न करने के कारण इन्हें कुष्मांडा देवी के नाम से सुशोभित किया गया है। जब सृष्टि का अस्तित्व नहीं था,चारों ओर अन्धकार ही अन्धकार था, तब इन्हीं देवी ने अपने हास्य से ब्रह्माण्ड की रचना की थी। इनके पूर्व ब्रह्माण्ड का अस्तित्व नहीं था।


माता कुष्मांडा के तेज नहीं कर सकता कोई सामाना

इनके शरीर की कांति और प्रभा भी सूर्य के समान ही है, इनके तेज की तुलना इन्हीं से की जा सकती है। अन्य कोई भी देवी-देवता इनके तेज़ और प्रभाव की सामना नहीं कर सकते। इन्हीं के तेज़ और प्रकाश से दशों दिशाएं प्रकाशित हो रहीं हैं। ब्रह्माण्ड की सभी वस्तुओं और प्राणियों में स्थित तेज़ इन्हीं की छाया है। इनकी आठ भुजाएं हैं,अतः ये अष्टभुजा देवी के नाम से भी जानी जाती हैं। इनके सात हाथों में क्रमशः कमंडल,धनुष,बाण,कमलपुष्प,अमृतपूर्ण कलश ,चक्र तथा गदा हैं। आठवें हाथ में सभी सिद्धियों और निधियों को देने वाली जपमाला है एवं इनका वाहन सिंह है।


दुर्गाकुंड में स्थित है मंदिर

नवरात्रि के चौथे दिन देवी कुष्मांडा की पूजा की जाती है। देश में देवी के इस रूप में कुछ ही मंदिर हैं। जिनमें कानपुर, वाराणसी और उत्तराखंड के कुष्मांडा देवी मंदिर प्रसिद्ध हैं। इनमें भी वाराणसी में मौजूद मंदिर बहुत पुराना माना जाता है और उसका महत्व भी बहुत है। इसे दुर्गा मंदिर कहा जाता है और इसमें देवी के कुष्मांडा स्वरूप की पूजा की जाती है। देवी भागवत ग्रंथ में भी इसका उल्लेख है।

मान्यताओं के अनुसार देवी कुष्मांडा के दर्शन से शत्रुओं का विनाश होता है। सुख शांति और धन एवं वैभव की प्राप्ति होती है। वाराणसी के दक्षिण क्षेत्र के भव्य मंदिर में देवी दुर्गा कुष्मांडा रूप में विराजमान हैं। मंदिर से लगे कुंड को दुर्गा कुंड कहा जाता है।

यह भी कथा है कि शुम्भ-निशुम्भ के वध के बाद थकी देवी ने इस स्थान पर ही शयन किया था। उनके हाथ से उनकी असि जिस स्थान पर खिसकी, वह स्थान असि नदी के रूप में विख्यात हुआ। लिंग पुराण के अनुसार दक्षिण में दुर्गा देवी काशी क्षेत्र की रक्षा करती हैं।


स्वंकय प्रकट हुई थी देवी की मूर्ति

पौराणिक मान्य्ता के अनुसार, इस मंदिर में स्था पित मूर्ति को मनुष्यों द्वारा नहीं बनाया गया है बल्कि यह मूर्ति स्वियं प्रकट हुई थी, जो लोगों की बुरी ताकतों से रक्षा करने आई थी। नवरात्रि और अन्य त्यौ हारों के दौरान इस मंदिर में हजारों भक्ततगण श्रद्धापूर्वक आते है। गैर - हिंदू लोगों को मंदिर के आंगन और गर्भगृह में प्रवेश करने की अनुमति नहीं है। इस मंदिर को बंदर मंदिर भी कहा जाता है क्यों कि इस मंदिर के परिसर में काफी संख्याभ में बंदर उपस्थित रहते है।

18 वीं सदी से पहले नाटौर की रानी भवानी ने बनवाया था मुख्य मंदिर

माना जाता है कि 18 वीं सदी से पहले मुख्य मंदिर नाटौर की रानी भवानी ने बनवाया है। चारों ओर के बरामदे बाद में पेशवा बाजीराव द्वितीय ने बनवाए हैं। चारों ओर से पत्थर की सीढि़यों से युक्त दुर्गाकुंड पहले भूमिगत नाले के जरिए गंगा से जुड़ा हुआ था। बाद में इसी रास्ते गंगा का पानी भी बढ़ जाने के कारण बंद कर दिया गया।

मां कुष्मांडा की पूजा विधि

देवी कुष्मांडा की पूजा में कुमकुम, मौली, अक्षत, पान के पत्ते, केसर और शृंगार आदि श्रद्धा पूर्वक चढ़ाएं। सफेद कुम्हड़ा या कुम्हड़ा है तो उसे मातारानी को अर्पित कर दें, फिर दुर्गा चालीसा का पाठ करें और अंत में घी के दीप या कपूर से मां कूष्मांडा की आरती करें। आरती के बाद उस दीपक को पूरे घर में दिखा दें ऐसा करने से घर की नकारात्मकता दूर होती है। अब मां कूष्मांडा से अपने परिवार के सुख-समृद्धि और संकटों से रक्षा का आशीर्वाद लें। देवी कुष्मांडा की पूजा अविवाहित लड़कियां करती हैं, तो उन्हें मनचाहे वर की प्राप्ती होती है। सुहागिन स्त्रियां को अखंड सौभाग्य मिलता है।

मां कुष्मांडा को लगता है मालपुआ का भोग

मां कुष्मांडा को पूजा के समय हलवा, मीठा दही या मालपुए का प्रसाद चढ़ाना चाहिए और इस भोग को खुद तो ग्रहण करें ही साथ ही ब्राह्मणों को भी दान देना चाहिए।मां कुष्मांडा को लाल रंग प्रिय है, इसलिए पूजा में उनको लाल रंग के फूल जैसे गुड़हल, लाल गुलाब आदि अर्पित कर सकते हैं, इससे देवी प्रसन्न होती हैं।

देवी को प्रसन्न करने का मंत्र

सुरासम्पूर्णकलशं रुधिराप्लुतमेव च।

दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तु मे॥

देवी कूष्माण्डा का बीज मंत्र-

ऐं ह्री देव्यै नम:

Monika

Monika

Content Writer

पत्रकारिता के क्षेत्र में मुझे 4 सालों का अनुभव हैं. जिसमें मैंने मनोरंजन, लाइफस्टाइल से लेकर नेशनल और इंटरनेशनल ख़बरें लिखी. साथ ही साथ वायस ओवर का भी काम किया. मैंने बीए जर्नलिज्म के बाद MJMC किया है

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