×

Culture Parliament: बोले स्वामी विशोकानंद- इजरायल की तरह समर्थ व सतर्क बने सनातन हिन्दू समाज

Culture Parliament: संस्कृति संसद के उद्घाटन सत्र में बोले स्वामी विशोकानन्द-समर्थ और सतर्क होने के कारण 90 लाख इजरायली दुनिया में अपनी पहचान रखते हैं, लेकिन उदासीनता के कारण 90 करोड़ सनातन हिन्दू हाशिये पर हैं।

Purushottam Singh
Published on: 3 Nov 2023 10:51 PM IST
Varanasi News
X

Varanasi News (Pic: Newstrack)

Varanasi News: सनातन हिन्दू को वर्तमान समय में समर्थ और सतर्क बनने की आवश्यकता है। समर्थ और सतर्क होने के कारण 90 लाख इजरायली दुनिया में अपनी पहचान रखते हैं, परन्तु उदासीनता के कारण 90 करोड़ सनातन हिन्दू हाशिये पर हैं। यह विचार महामण्डलेश्वर स्वामी विशोकानन्द ने यहां रुद्राक्ष कन्वेंशन सेंटर में शुक्रवार को आयोजित संस्कृति संसद के उद्घाटन सत्र में अपने अध्यक्षीय सम्बोधन में व्यक्त किया। संस्कृति संसद का आयोजन गंगा महासभा द्वारा किया गया है। यह आयोजन अखिल भारतीय सन्त समिति, अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद, श्रीकाशी विद्वत परिषद् के सहयोग से आयोजित है।


सनातन विरोधियों का विनाश सुनिश्चित है

उन्होंने कहा कि सनातन परमात्मा और भगवती का नाम सनातनी है। भगवती सनातनी ने सतानत धर्म की रक्षा के लिए मधु-कैटभ, शुम्भ, निशुम्भ तथा महिषासुर का वध किया। भगवान श्रीराम ने सनातन विरोधी रावण का वध किया। इसी तरह द्वापर में श्रीकृृष्ण ने शिशु पाल जैस सतानत विरोधियों का संहार किया। इसी तरह वर्तमान समय में भी सनातन विरोधियों का विनाश सुनिश्चित है, क्योंकि सनातन का विरोध करने वालों का विनाश ईश्वर ने सदा ही किया हैै। इसके उदाहरण पुराणों, रामायण एवं महाभारत में है।

इसलिए हुई सनातन धर्म की क्षति

स्वामी विशोकानन्द ने हिन्दू सनातनियों से आह्वान करते हुए कहा कि सनातन धर्म की क्षति इसलिए हुई कि सनातन धर्मावलम्बी उदारता के साथ उदासीन रहे। किन्तु हिंसा के खिलाफ अति उदारता विनाशक होती है। इसलिए हमें सजग होकर सनातन के विरोध का प्रतिकार करना चाहिए। इसी क्रम में उन्होंने कहा कि इजरायलियों की संख्या 90 लाख है जो विश्व मंे अपनी एक पहचान भी रखते हैं। वहीं, सनातनियों की संख्या 90 करोड़ होते हुए भी वह अपने बीच ‘भेदियों’ के कारण आज भी हाशिए पर हैं और इसी स्थित से सनातन हिन्दूओं को उबरना जरूरी है। इसके लिये सनातन हिन्दू को सर्तक और संगठित होना आवश्यकता है।


उद्घाटन सत्र की विषय प्रस्तावना करते हुए गंगा महासभा एवं अखिल भारतीय सन्त समिति के राष्ट्रीय महामंत्री स्वामी जीतेन्द्रानन्द सरस्वती ने कहा कि जाॅर्ज सोरोस जैसे पश्चिमी पूँजीपतियों ने अपने धन-बल से पूरी दुनिया मंे सनातन हिन्दू विरोधी वातावरण बनाया तथा भारत देश में सनातन विरोधी कई समूह भी खड़े किए। जो लोग दक्षिण भारत में हजारों मन्दिरों पर कब्जा किए हैं, वही लोग भारत में सेक्युलरिज्म की बात करते हैं। यह बड़ा और गम्भीर प्रश्न है, इसका भी उत्तर इस संस्कृति संसद से दिया जायेगा।

कहा कि इस कार्यक्रम में सनातन विरोधी सभी प्रश्नों का उत्तर देश के विभिन्न भागों से आए सन्तों द्वारा दिया जाएगा। उन्होंने कहा कि बाइबिल एवं कुरान में भारत का भूगोल दर्ज नहीं है, लेकिन हमारे वेदों, पुराणों आदि ग्रन्थों में भारत की नदियों, पर्वतों, वनों तीर्थों आदि का स्पष्ट उल्लेख है। इसलिये यह भारत सनातनियों का ही है।

आज हम सनातन संस्कृति की रक्षा के लिए एकत्र हुए हैं

उद्घाटन सत्र में आए सन्तों एवं अतिथियों का स्वागत करते हुए दैनिक जागरण के समूह सम्पादक संजय गुप्त ने कहा कि आज हम संस्कृति संसद में सनातन संस्कृति की रक्षा के लिए एकत्र हुए हैं। चूँकि सनातन संस्कृति पर निरंतर हमला हो रहा हैै, इसलिये इस तरह के आयोजन हमारे लिये आवश्यक हैं। भगवान श्रीराम एवं हमारे पूर्वजों की कृपा से विभिन्न हमलों के बाद सनातन संस्कृति आज भी अक्षुण्ण है। सनातन संस्कृति का मुख्य लक्ष्य विश्व शान्ति है। सनातन संस्कृति के धरोहर हमें संस्कार के रूप में प्राप्त हैं। यह संस्कार जन्म, परिवार, गुरु से मिलते हैं। आज यह आवश्यक है कि संस्कृति वेद, धर्म के साथ-साथ संस्कारों को प्रमुखता देें।

संस्कृति संसद में आए सन्तों का माल्यार्पण और स्वागत विश्व हिन्दू परिषद के कार्यकारी अध्यक्ष आलोक कुमार, श्रीरामजन्मभूमि ट्रस्ट के महासचिव चम्पत राय, विश्व हिन्दू परिषद के संरक्षक दिनेश जी, श्रीविश्वनाथमन्दिर ट्रस्ट के अध्यक्ष प्रो. नागेन्द्र पांडेय, विश्व हिन्दू परिषद के केन्द्रीय मंत्री अशोक तिवारी एवं विधायक कैलाश खैरवार, गंगा महासभा के राष्ट्रीय महामन्त्री (संगठन) गोविन्द शर्मा एवं आयोजन सचिव सिद्धार्थ सिंह ने किया।

उद्घाटन सत्र समारोह का शुभारम्भ माँ गंगा, महामना मदनमोहन मालवीय, नरेन्द्र मोहन गुप्त एवं डाॅ. जीडी अग्रवाल के चित्र पर माल्यार्पण एवं दीप प्रज्ज्वलन के साथ शुरू हुआ। इस अवसर पर वैदिक बटुकों ने मंगलाचरण किया तथा महिलाओं के समूह ने संतों का स्वागत किया। समारोह मेें मंच पर मुनिजी महाराज, गोपाल चैतन्य, हरिहरानन्द सरस्वती, शाश्वतानन्द, स्वामी प्रखर महाराज, महामंडलेश्वर अभयानन्द महाराज, युधिष्ठुर लालजी, गिरीश ब्रह्मचारी महाराज, बालकानन्द सरस्वती महाराज आदि लोगों की उपस्थिति रही। इसके अतिरिक्त देशभर से आये विभिन्न 127 सम्प्रदायों के संत सभागार में उपस्थित थे।


अयोध्या में श्रीरामजन्मभूमि मन्दिर निर्माण हिन्दू एकता का प्रतीक

श्रीरामजन्मभूमि मन्दिर निर्माण एवं हिन्दू पुनर्जागरण विषयक सत्र के अध्यक्ष कैवल्य पीठाधीश्वर अविचल दास ने श्रीरामजन्मभूमि मंन्दिर निर्माण विषय पर अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में कहा कि राम नाम से ही गाँधीजी ने अपने आन्दोलन को प्रारम्भ किया था, राम नाम से ही भारत को सांस्कृतिक आजादी मिली। उन्होंने कहा कि कुछ विधर्मी कहते हैं कि तुम मन्दिर बनाओ, जब हम आएँगे तो उसे फिर तोड़ेंगे, पर ऐसा सम्भव नहीं है। आज स्वाभिमान जागरण की बात आ गई है और हमें सचेत होने की आवश्यकता है। मन्दिर का निर्माण तो हो ही रहा है पर भविष्य में सनातन का अपमान न हो, यह ध्यान रखना होगा।

यह केवल मंदिर की लड़ाई नहीं है-चम्पत राय

इस अवसर पर चम्पत राय ने कहा कि यह केवल मंन्दिर की लड़ाई नहीं है, बल्कि हमारे धर्म व स्वाभिमान की लड़ाई है। राम मन्दिर हमारे हिम्मत न हारने और हजारों साल की लड़ाई का प्रतीक है। उन्होंने बताया कि मन्दिर एक नया संदेश और धार्मिक अनुभव का प्रतीक लेकर उभर रहा है, जिसमें भगवान श्रीराम की बाल्यकाल की मूर्ति बनाई गई है। यह मन्दिर नए दृष्टिकोण और डिजाइन के साथ निर्मित हो रहा है। मन्दिर के एक हिस्से में पाँच देवों की कल्पना की गई है। मन्दिर के बीच में भगवान विष्णु की मूर्ति होगी।

आज भारत न दबाव में जीता है और न अभाव मेेें

चिदानन्दमुनी महाराज ने राम मन्दिर आन्दोलन में महत्वपूर्ण योगदान देने वाले अशोक सिंघल को याद और नमन करते हुए कहा कि आज सबसे ज्यादा प्रसन्नता उन्हें ही हो रही होगी। ऐसे आयोजन होते रहने होने चाहिए कि संस्कृति पर संवाद ही देश के सभी समस्याओं का समाधान है। यह 21वीं सदी का भारत है, जो महाभारत की ही नहीं ‘महान भारत’ का संदेश देता है। आज भारत न दबाव में जीता है और न अभाव मेेें। हमास, हिजब्बुला और हूती इन सबके लिए हमारा एक ही संदेश है, भारत आतंकवाद से नहीं डरता। भारत न केवल फिलिस्तीन के पीड़ितों बल्कि इजरायल के साथ भी खड़ा है। 2024 या भविष्य में कभी भी भारत ही नहीं, वरन् पूरे विश्व में शान्ति व्यवस्था के लिए हमें आध्यात्मिक शान्ति, सुरक्षा और संस्कारों की गंगा के बहाव की आवश्यकता है। इसके लिए अगले चुनाव में प्रधानमन्त्री मोदी का पुनः जीतना महत्वपूर्ण है।

मन्दिर की स्थापना हमारे धर्म, राष्ट्र और स्वाभिमान का प्रतीक है-

स्वामी जितेन्द्रानाथ ने कहा कि कार्यक्रम में बैठा हुआ भारत का हर सपूत वर्तमान में हनुमानजी की भूमिका निभा रहा है। श्रीराममन्दिर की स्थापना हमारे धर्म, राष्ट्र और स्वाभिमान का प्रतीक है। ज्योतिर्मया महाराज ने कहा कि 21वीं सदी में रामलला की मूर्ति की स्थापना होना अत्यंत गर्व एवं खुशी का विषय है। यह हम सभी सनातनियों के स्वाभिमान का प्रतीक है। सत्र का संचालन विश्व हिन्दू परिषद् के केन्द्रीय मंत्री अशोक तिवारी ने किया।


राजनेता वोट के लिए सनातन पर अपमानजनक टिप्पणी बंद करें

सनातन हिन्दू संस्कृति के विरूद्ध बाह्य एवं आन्तरिक षडयंत्र विषय पर अपने विचार रखते हुए आचार्य महामण्डलेश्वर स्वामी विशोकानन्द भारती महाराज ने कहा कि राजनीतिक दल अपनी तुष्टीकरण की राजनीति छोड़कर जनहित में कार्य करें। वोट के लिए सनातन धर्म पर मनमानी टिप्पणी बंद करें।

इस सत्र के वक्ता रामदास महाराज ने कहा कि प्रभु श्रीरामजी सनातन हैं तथा श्रीराम जी ही सत्य हैं। बंगाल से आए स्वामी परमानंद महाराज ने राम मंदिर की स्थापना के बारे में और विश्व चेतना की उद्घोषणा की। इसी कड़ी में स्वामी गीता मनीषी ने कहा कि सनातन मूल्यों को अपने जीवन, परिवार एवं स्वयं में प्रतिस्थापित करना वर्तमान में बहुत बड़ी चुनौती है। स्वामी नरेंद्रानंद महाराज ने कहा कि विधर्मी अपनी चालें चल चुके हैं। सनातनियों पर खतरे के बादल छाए हैं और हम सनातनी अल्पसंख्यक हो चुके हैं। हमें पुनर्जागरण की आवश्यकता है। कहा कि जो जैसी भाषा बोले उससे उसी की भाषा में जवाब देना होगा। इसी क्रम में स्वामी विश्वात्मा महाराज ने कहा कि जो देश अपनी संस्कृति भूलने लगता है वह देश समाप्त हो जाता है। सत्र का संचालन स्वामी चिदम्बरानन्द महाराज ने किया।

सनातन धर्म का लक्ष्य है विश्व कल्याण-

सनातन धर्म के समक्ष उपस्थित सामायिक प्रश्न विषयक सत्र के अध्यक्ष स्वामी बालकानंद सरस्वती महाराज ने कहा कि सनातन को एकजुट करना और मजबूत करना हम सभी का प्रथम कर्तव्य होना चाहिए, क्योंकि सनातन है तो हम हैं। साथ ही हमें अपने युवा पीढ़ी में अपने धर्म एवं संस्कृति के प्रति जागरूक करने की आवश्यकता है। हमें पहले की भांति गुरुकुल पद्धति को अपनाने की जरूरत है, जिससे कि सभी बच्चों को उनके धर्म एवं संस्कृति की की जानकारी मिल सके।

सत्र के वक्ता स्वामी हरिहरानंद सरस्वती महाराज ने कहा कि हम सभी सनातन के सिपाही एवं रक्षक हैं। सनातन परम्परा को जानना है तो हमें पहले श्रीराम को जानना होगा। प्रभु श्रीराम के चरित्र को अपने जीवन में उतारने की आवश्यकता है। सनातन अब एक नई दिशा में करवट ले रहा है, जो हम सभी सनातनियों के लिए उत्साहित होने का विषय है। शाश्वतानन्द महाराज ने कहा कि संस्कृति संसद पूरे भारतवर्ष को एक नई दिशा और दशा देने का काम कर रहा है, जो हम सभी के लिए गौरव का विषय है। भारतीय संस्कृति एवं सभ्यता ऐतिहासिक का दूसरा रुप भी होना चाहिए। पूरे विश्व में सनातन ही एक ऐसा धर्म है जो सिर्फ अपना ही कल्याण नहीं, बल्कि विश्व कल्याण की बात करता है। साथ ही विश्व की रक्षा हेतु सदैव तत्पर रहता है।

धर्म के प्रति जागरूक करने का काम करें

गोपाल चैतन्य महाराज ने कहा कि आज हमारा सनातन बहुत सारे समस्याओं से जूझ रहा है, जो चिंता का विषय है। आप सभी सन्त-महात्माओं से मेरी प्रार्थना है कि आप सभी अपने गाँव, घर, कस्बे, मुहल्ले में सभी सनातनियों के घर-घर जाकर उनको अपने धर्म के प्रति जागरूक करने का काम करें। स्वामी प्रखर महाराज ने कहा कि आज हमारा सनातन पूरे विश्व को एक नई दिशा और दशा देने का काम कर रही है, जो हम सभी सनातन सिपाहियों के लिए अत्यंत खुशी का विषय है। 21वीं सदी में रामलला के मन्दिर की स्थापना ने सभी को एकजुट कर दिया है।

महामंडलेश्वर अभयानंद सरस्वती ने कहा कि भारतीय सनातन सभ्यता में जो समस्याएं आ रही हैं, वह कहीं ना कहीं चिंता का विषय है। हमें अपने समाज को एक बार पुनः नई दिशा देने की जरूरत है। खासकर हमें अपने युवा पीढ़ी को धर्म एवं संस्कृति के प्रति जागरूक करना होगा। स्वामी युधिष्ठुर लाल ने कहा कि यह संस्कृति संसद का आयोजन हम सभी सनातन प्रेमियों को एक नई सकारात्मक दिशा देने का काम कर रहा है। आने वाले 22 जनवरी 2024 को श्रीरामलला की मूर्ति की स्थापना ऐतिहासिक होने वाला है। इस दिन पूरे विश्व में एक भारतीय संस्कृति, परंपरा और संस्कारों का विस्तार होगा।

सनातन धर्म में है मंन्दिर केन्द्रित व्यवस्था

सनातन हिन्दू धर्म की मंन्दिर केन्द्रित व्यवस्था एवं हिन्दू होलोकाॅस्ट विषयक सत्र के अध्यक्षीय उद्बोधन में आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी बालकानन्द गिरी जी महाराज ने कहा कि भारत में अपने धर्म के लिए अपने ही घर में लड़ना पड़ता है, जो दुर्भाग्यपूर्ण है। सनातनियों की आत्मा मंदिर है। हमारे मनीषियों ने हमे हमारे संस्कारों में अपमान और तुष्टिकरण करना नहीं सिखाया हमें जागना भी होगा और जगाना भी होगा। हमारा संगठित होना आवश्यक है। संतों को मंदिरों के माध्यम से हिन्दू जागरण की मुहिम चलानी चाहिए। कहा कि विधर्मियों ने सनातन हिन्दुओं की अतीत में बड़ी मात्रा में धर्म के आधार पर हत्या किया, जो निन्दनीय है, लेकिन सेकुलरवादी हिन्दुओं की हत्या पर मौन रहते हैं, यह चिन्ता का विषय है।

जमीनी स्तर पर काम करने की आवश्यकता है

महामंडलेश्वर स्वामी श्रद्धानंद सरस्वती ने कहा कि मन्दिरों के माध्यम से संस्कृति को संजीवित किया जा सकता है। संत समाज को जमीनी स्तर पर काम करने की आवश्यकता है। मंदिरों का संचालन सरकार से नहीं वरन् सन्तों को करना चाहिए। सन्तों को मंदिरों के माध्यम से हिन्दू जागरण की मुहिम चलानी चाहिए जिससे संसद तक सनातन को आगे बढ़ाने वाले संसद तक पहुंचाने चाहिए। पटना से आए जत्थेदार ज्ञानी इकबाल सिंह ने कहा कि जब हिन्दू जागेगा तभी सारे द्वंदकारी भागेंगे। अध्यात्म की रक्षा के लिए शस्त्र रखना आवश्यक है। बताया कि गुरु गोविंद सिंह ने कहा था कि हमें अपने साथ तलवार रखनी चाहिए, जिससे हम अपनी आत्मरक्षा कर सकें। भारत विश्व गुरु है और विश्व गुरु रहे, इसके लिए हमें सचेत होना होगा।

महंत रूपेंद्र प्रकाश ने कहा कि राज्य सरकारों ने मंदिरों पर कब्जा कर इसके संपत्ति का गलत उपयोग किया गया। ये सनातनियों का देश है और यहां सनातन धर्म के विरुद्ध टिप्पणियां की जाती हैं। हमारा यह प्रयास होना चाहिए कि कोई भी सनातन धर्म पर हमला करे तो उसका विरोध करना चाहिए।

पूज्य स्वामी सर्वानंद महाराज ने कहा कि सनातन संस्कृति में मंदिर का अर्थ है उल्लास। माता-पिता के सम्मान की पद्धति हमें मंदिरों से प्राप्त होती है। उल्लास के लिए बच्चों का सत्संग में आना आवश्यक होना चाहिए। विधर्मियों ने सनातन के बीच दूरी पैदा करने का काम किया है।

हमें जातिवाद से बचना होगा

स्वामी वैदेही वल्लभाचार्य ने कहा कि भिक्षा से धर्म की रक्षा नहीं होती है। हमें जातिवाद से बचना होगा। धर्म की रक्षा के लिए वैदिक पद्धति को शिक्षा व्यवस्था में लाना होगा। धर्म की रक्षा के लिए हमें स्वयं अग्रेषित होना होगा। आश्रमों में बटुकों का पोषण कर जाति व्यवस्था को खत्म करते हुए सनातन रक्षा की आवश्यकता है। जगद्गुरु रामनन्दाचार्य स्वामी राजराजेश्वरार्य महाराज ने कहा कि मंदिर का अर्थ घर होता है, लेकिन आज हमें अपने ही घर से पराया किया जा रहा है। कितने वर्षों से तपस्या करके हमने यह घर पाया है। सेक्युलरिज्म के नाम पर तुष्टिकरण किया जा रहा है। इस सत्र का संचालन प्रो. रामनारायण द्विवेदी ने किया।

सनातन धर्म की निरन्तरता के लिए युगानुरूप आचार संहिता जरूरी

युगानुकूल आचार संहिता एवं हिन्दुओं के धार्मिक निर्णय विषयक सत्र के अध्यक्ष जगद्गुरु शंकराचार्य ज्ञानानन्द तीर्थ महाराज ने कहा कि भारत की धरती पर पहले धर्म का बहुत ही क्षय हुआ था, लेकिन वर्तमान समय में तेजी से वृद्धि हो रही है। इसके लिए वर्तमान सरकार का भी हृदय से आभार। अब हमारा पूजा-पाठ प्रारंभ हो चुका है। सनातन धर्म की निरन्तरता के लिए रुढ़िवादिता त्याग कर युगानुरूप आचार संहिता अपनाने की आवश्यकता है। विश्व हिन्दू परिषद के केन्द्रीय मंत्री अशोक तिवारी ने कहा कि हिन्दू समाज को एक नई दिशा, दशा के साथ-साथ आचार संहिता देने की आवश्यकता है। साथ ही समाज में जो विकृतियां फैली हैं, उसको नष्ट कर नवीन कार्ययोजना को लाने की जरूरत है। इसके बिना अच्छे सतनान समाज की कल्पना कर पाना असंभव है।

हमें ऐसा कवच प्राप्त है जिसे कोई भी शक्ति भेद नहीं सकती है

श्री गिरिश ब्रह्मचारी योगी ने कहा कि प्रभु रामलला का क्षेत्र पूरे भारतवर्ष में हैं, सिर्फ अयोध्या ही नहीं। अयोध्या जन्मभूमि का विस्तार अत्यंत प्रसंशनीय एवं खुशी का विषय है। कुछ तथाकथित लोगों के द्वारा सनातन धर्म एवं संस्कृति का विरोध किया जा रहा है, लेकिन हमें इससे डरने की कोई आवश्यकता नहीं है। हमें उन चुनौतियां का सामना एकजुट होकर करने की आवश्यकता है। ईश्वर की कृपा से हमें ऐसा कवच प्राप्त है जिसे कोई भी शक्ति भेद नहीं सकती है।

विश्वेश्वरानंद महाराज ने कहा कि जबसे भारत की स्वतंत्रता प्राप्त हुई तब से ही हमें तोड़ने कोशिश की जा रही है। हमारी संस्कृति एवं सभ्यता हिमालय की तरह अडिग है। सनातन को हमेशा बंधन में रखने की कोशिश की गई है। हमें अपने धर्म के प्रति सनातनप्रेमियों को जागरूक करने की आवश्यकता है। चाहे जितनी भी बाधाएं आएँ, सबका सामना करते हुए निरंतर आगे बढ़ने की जरूरत है। ब्रह्मस्वरूप श्री गरीबदास महाराज ने कहा कि पूरे भारतवर्ष में सनातन का डंका बज रहा है, जो अत्यंत हर्षोल्लास का विषय है। हमें ऐसे ही सनातन संस्कृति एवं सभ्यता को निरंतर आगे बढ़ाते रहने की आवश्यकता है। संचालन प्रो. रामनारायण द्विवेदी ने किया।

आयुर्वेद और ज्योतिष भारत की देन

आयुर्वेद, योग ज्योतिष आदि विश्व समुदाय को भारत की देन विषयक सत्र में अध्यक्षीय उद्बोधन देते हुए स्वामी ज्ञानदेवा महाराज ने कहा कि विश्व को जब चिकित्सा का ज्ञान नहीं था तब आयुर्वेद का ज्ञान भारत ने ही दिया। योग के पितामह हम शिवजी को मानते हैं, उसके बाद यह ज्ञान पतंजलि को मिला। भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में कर्म योग धर्म योग जैसे कई योग बताएं हैं। भारतीयों को योग विरासत में मिला है, जिसका विस्तार इस समय पूरी दुनिया में है।

स्वामी दिनेश भारती महाराज ने कहा, भारत के सन्तों की भूमिका राष्ट्र निर्माण में है। महात्माओं को अखंड भारत चाहिए। देश के राष्ट्रवादी समाज को संकल्प लेने की आवश्यकता है। स्वामी विश्वेश्वरानंद महाराज ने कहा कि सनातन की रक्षा के लिए सन्तों को तटस्थ होना होगा।


टेक्नोलॉजी का विकास आयुर्वेद के लिए वरदान है

स्वामी ब्रह्मानंद महाराज ने कहा कि भारत विश्व की सबसे बड़ी अर्थव्यस्था बनने की ओर अग्रसर हो रहा है। टेक्नोलॉजी का विकास आयुर्वेद के लिए वरदान है। उन्होंने कहा कि भारत को नेतृत्वकर्ता बनाने में सन्तों को अपना योगदान देना चाहिए। स्वामी देवेन्द्रानन्द जी सरस्वती ने कहा कि संस्कृत भाषा समस्त भाषाओं की जननी है और आयुर्वेद इसका अमृत है। महामंडलेश्वर रामचंद्र महाराज ने कहा कि हमारा देश एक स्वर्णिम युग की तरफ बढ़ रहा है। आज पूरा विश्व भारत की ओर देख रहा है। स्वामी दिनेश्वरानंद जी महाराज ने कहा धर्म की इस नगरी काशी में जब-जब महापुरुषों ने समस्याओं का हल निकालने की कोशिश की है, वह सफल हुए हैं। आयुर्वेद एवं स्थानीय चिकित्सा पद्धति के कारण हम कोरोनाकाल में भी विजयी रहे। कार्यक्रम का संचालन चिदम्बरानंद जी महाराज ने किया।

जनसंख्या नियन्त्रण कानून बनना देश के हित में

सर्वोच्च न्यायालय के अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने हिन्दू समाज को आठवें और सोलहवें दर्जे का समूह बताया है। वक्फ बोर्ड पर आज तक कोई टिप्पणी नहीं की गई। उन्होंने कहा कि वर्तमान में हिन्दुओं को एकत्रित होना चाहिए ताकि उन्हें अपना अधिकार मिल सके। सर्वोच्च न्यायालय अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय ने कहा कि जनसंख्या नियन्त्रण कानून पर हम सभी को बात करने की आवश्यकता है। जनसंख्या विस्फोट से देश को खतरा है। धर्मान्तरण पर सख्त कानून बनाए जाने की आवश्यकता है। हिन्दुओं के क्षरण के लिए मुगलों ने तलवार का उपयोग किया ठीक वैसा ही काम अंग्रेजों ने हमारे खिलाफ कानून बनाकर किया। हमारी शिक्षा व्यवस्था भी गुलामी की मानसिकता को बढ़ावा देने वाली है। न्यायालय की ओर से मठ और मन्दिरों के लिए तमाम तरह के नियम-कानून बनाए जा रहे हैं वहीं, मस्जिदों और दरगाह को आजाद रखा गया है। कहा कि भारतीय कानून को पढ़ने के लिए भारतीय चश्में की आवश्यकता है।

इस सत्र के अध्यक्षता करते हुए जनार्दन हरि ने कहा कि वर्तमान समय में सरकारों द्वारा सनातन धर्म के अलावा अन्य धर्मों की परिधि समातामूलक परिवर्तन नहीं किए जाते जो कि आवश्यक है। संचालन तुषार गोस्वामी ने किया।


पश्चिमी इतिहासकारों ने भारत के इतिहास का किया उपहास

पश्चिमी इतिहासकारों ने भारतीय इतिहास को बनाया उपहास विषयक सत्र पर श्रीकाशीविश्वनाथ न्यास ट्रस्ट के अध्यक्ष नागेंद्र पांडेय ने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में कहा कि गुरुत्वाकर्षण बल की खोज का क्रेडिट न्यूटन को दिया जाता है, जबकि भास्कराचार्य ने 1150 ईस्वीं में गुरुत्वाकर्षण सिद्धांत के नियम को खोज लिया था। इसी प्रकार सूर्यग्रहण तथा चंद्रग्रहण जैसे जटिल विज्ञान को भी भारतीय गणितज्ञों ने समझ लिया था। इसी प्रकार त्रिभुज के प्रमेय की खोज का श्रेय पैथागोरस को दिया जाता है, जबकि लीलावत्यम में इस विषद वर्णन है। इस प्रकार के भ्रमित इतिहास को बदलना जरूरी है।

हिन्दू मान्यता में जो सनातन है वही धर्म है

पंडित विनय झा ने कहा कि पश्चिम में इतिहास की सर्वमान्य परिभाषा नहीं है, जबकि प्राचीन भारत में धर्म की स्पष्ट अवधारणा है। उन्होंने कहा कि रामायण और महाभारत इतिहास के ग्रंथ है, और इनकी व्यवस्था प्रमाणित है। पश्चिम का इतिहास, जो कुछ सौ वर्षों का है के विपरित भारतीय इतिहास करोड़ों वर्षों का है। इसलिए भारतीय इतिहास में पश्चिम की तरह कालकणना खोलना अवैज्ञानिक है। हमारी अवधारणा युगों की है। इसी क्रम में उन्होंने कहा कि हिन्दू मान्यता में जो सनातन है वही धर्म है। धर्म का आधार वैदिक यज्ञ है। यज्ञ का अर्थ सत्य मार्ग पर चलना है। डाॅ. त्रिभुवन सिंह ने इतिहास के आर्थिक परिदृश्य पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि जो इतिहास अंग्रेजों ने लिखा वामपंथियों ने स्वतन्त्र भारत में उसे जारी रखा और वही आज भी पढ़ाया जा रहा है। हम जो इतिहास पढ़ रहे है वो तथ्य नहीं कल्पना है। सही इतिहास पढ़ाया जाना आवश्यक है। कार्यक्रम का संचालन प्रो. ओम प्रकाश ने किया।

Ashish Kumar Pandey

Ashish Kumar Pandey

Senior Content Writer

I have 17 years of work experience in the field of Journalism (Newspaper & Digital). Started my journalism career on 1 April 2005 as a sub-editor from Dainik Bhaskar Jaipur. After that, on January 1, 2008, I worked as a sub editor in I- Next News Paper (Hindi Daily) till July 31, 2009. During this I handled the responsibility of the National Desk. From August 1, 2009 to September 13, 2010, worked in Amar Ujala on National Desk and City Desk in Bareilly and Moradabad as Senior Sub Editor. From 15 September 2010 to 31 October 2011, worked as Senior Sub Editor/Senior Reporter in Hindustan newspaper Bareilly. From November 1, 2011, worked in Gwalior on the post of Chief Sub Editor in Rajasthan Patrika Hindi daily newspaper. From July 1, 2017 to January 31, 2019, worked in Patrika Dotcom Hindi Web portal, Lucknow. Worked as News Editor in Amrit Prabhat from 1 February 2019 till 31 January 2021. During my career I got opportunity to work at General Desk, Sports, City Desk and have vast experience of journalism business. Whatever responsibilities were given, I accepted it with a challenge and performed it well. My Qualifications : - ‌MA Political Science from Gorakhpur University, Gorakhpur ‌PG Diploma in Mass Communication - Guru Jamveshwar University Hisar, Haryana My Interests: Reading, writing, playing, traveling. Interest in Media: Special interest in political news and also in the field of sports, crime, health etc.

Next Story