Varanasi News: विश्वविद्यालयों और कॉलेजों के द्वार आम जनता के लिए बंद, कुलपति प्राचार्य के 'मनमाने फरमान', आखिर कहां जाएं टहलने

Varanasi News:मॉर्निंग वॉक केवल चहलकदमी नहीं, यह एक जीवनशैली है। यह शारीरिक ही नहीं, मानसिक स्वास्थ्य का भी सवाल है। शहरवासियों को खुली हवा में सांस लेने का हक़ है।

Ajit Kumar Pandey
Published on: 11 April 2025 6:02 PM IST
Vice Chancellor Principal banned morning walk of public in universities and colleges Varanasi News in Hindi
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विश्वविद्यालयों और कॉलेजों के द्वार आम जनता के लिए बंद, कुलपति प्राचार्य के 'मनमाने फरमान', आखिर कहां जाएं टहलने (Photo- Social Media)

Varanasi News: मोदी की संसदीय क्षेत्र वाराणसी में जहां मोदी के द्वारा फिट इंडिया का नारा दिया जा रहा है यानी कि शरीर फिट तो सब कुछ फिट फिर भी यहां के स्थानिय कुलपति और प्राचार्य अपने अपने मनमाना फरमान से स्थानीय लोगों के शारीरिक फिटनेस से खिलवाड़ कर रहे हैं आपको बता दें कि इनका अनर्गल फरमान काशी वासियों के स्वास्थ्य को नुकसान कर रहा है।

कभी विश्वविद्यालयों और कॉलेज परिसरों को शहर की शुद्ध हवा के फेफड़े कहा जाता था। हरे-भरे पेड़, शांत वातावरण और सुरक्षित परिसर- ये सब मिलकर आम नागरिकों के लिए एक आदर्श मॉर्निंग वॉक स्थल बन जाते थे। लेकिन आज स्थिति बिल्कुल उलट है एक-एक कर विश्वविद्यालयों और कॉलेजों के द्वार आम जनता के लिए बंद होते जा रहे हैं।

यद्यपि कुछ परिसर में व्यावसायिक गतिविधियां निरंतर चलता रहता है। कुलपति हों या प्राचार्य, अपने-अपने अधिकार क्षेत्र में एक के बाद एक 'मनमाने फरमान' जारी कर रहे हैं। कोई सुरक्षा का हवाला दे रहा है, कोई अनुशासन का, और कोई तो बस ‘यह शैक्षणिक परिसर है’ कहकर टाल देता है।

सवाल ये है कि क्या शहर के हर नागरिक के लिए पार्क उपलब्ध हैं? क्या हर गली-मोहल्ले में वॉकिंग ट्रैक हैं? और अगर हैं भी, तो क्या वे उतने सुरक्षित और स्वच्छ हैं जितना एक विश्वविद्यालय परिसर होता है?

उस पर बनारस प्रशासन की अनफिट सोच – फिट इंडिया मुहिम को कर रहा बेअसर

शहर के मध्य स्थित स्टेडियम, जो दो वर्षों तक आम जनता के लिए बंद पड़ा था, अब जाकर खुला है-तो लगा कि चलो, अब टहलने वालों को फिर से राहत मिलेगी। लेकिन जो हुआ, वह चौंकाने वाला है।

जहाँ पहले घास और मिट्टी के ट्रैक पर लोग आराम से टहलते थे, अब वहाँ सीमेंट और पक्के रोड बना दिए गए हैं। डॉक्टर्स और फिटनेस एक्सपर्ट्स वर्षों से कहते आ रहे हैं कि ऐसे कठोर सतह पर टहलना घुटनों, एड़ियों और रीढ़ की हड्डी के लिए बेहद नुकसानदायक है। मगर प्रशासन को न तो विशेषज्ञों की सुननी, न आम जनता की।


350 रुपये की मॉर्निंग वॉक फीस – फिट इंडिया को ठेंगा!

बनारस प्रशासन का यह फैसला न सिर्फ आम जनता की जेब पर बोझ है, बल्कि प्रधानमंत्री मोदी जी के फिट इंडिया अभियान के मुंह पर तमाचा है।

स्टेडियम जनता का है, और सुबह की सैर पर टैक्स लगाना,स्वस्थ भारत के सपने को पलिता लगाने जैसा है।

मॉर्निंग वॉक केवल चहलकदमी नहीं, यह एक जीवनशैली है। यह शारीरिक ही नहीं, मानसिक स्वास्थ्य का भी सवाल है। शहरवासियों को खुली हवा में सांस लेने का हक़ है। प्रशासन और संस्थानों को चाहिए कि वो संवाद करें, सहयोग करें, और एक ऐसा मॉडल बनाएं जहाँ सुरक्षा, अनुशासन और नागरिकों का स्वास्थ्य- तीनों का संतुलन बना रहे।

बंदिश नहीं, समाधान चाहिए।

Shashi kant gautam

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