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Varanasi News: मन्दिरों से हटे सरकार का नियन्त्रण- आलोक कुमार

Varanasi News: महामंडलेश्वर आशुतोष जी महाराज ने कहा कि सन्त समाज को भारतीय समाज में एकता बढ़ाने के लिए घर-घर, गांव-गांव जाना होगा। तभी भारतीय समाज की विकृतियां खत्म होंगी।

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Newstrack Network
Published on: 4 Nov 2023 10:31 PM IST (Updated on: 4 Nov 2023 10:31 PM IST)
Vishwa Hindu Parishad working president Alok Kumar
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Vishwa Hindu Parishad working president Alok Kumar (Photo-Social Media)

Varanasi News: विश्व हिन्दू परिषद् के कार्यकारी अध्यक्ष आलोक कुमार ने कहा कि इस समय लगभग साढ़े सात हजार से अधिक मन्दिर सरकार के नियन्त्रण में है। दक्षिण भारतीय सरकारें इन मन्दिरों की आय से चर्च भी बनाती हैं और सरकारी कर्मचारियों का वेतन भी देती हैं, जिसे रूकना चाहिए। हम लोग वक्फ कानून बदलने, अल्पसंख्यक संस्था कानून बदलने एवं मन्दिरों से सरकारी नियन्त्रण हटाने की मांग कर रहे हैं और आशा है कि निकट भविष्य में यह तीनों कानून बदलेंगे।

नेपाल राजघराने के जंगबहादुर राणा ने नेपाल में आये भूकम्प में जान गंवाने वाले लोगों के प्रति शोक संवेदना प्रकट की। इसके बाद उन्होंने कहा कि सनातन एक नैतिक ज्ञान का कुण्ड और पूर्वी सभ्यता की नींव है। धर्म की परिभाषा अलग है। धर्म कोई रिलीजन नहीं है। धर्म का अर्थ नैतिकता है और नैतिकता इसका तात्पर्य अनुशासन से है। धर्म की परिभाषा ही सभी कर्मों के आचरण को धारण करना है। उन्होंने कहा कि सनातन हिन्दू धर्म का सबसे बड़ा संरक्षक है। इसलिए हिंदुओं को आगे बढ़ने की जरूरत है।

इसी क्रम में वरिष्ठ अधिवक्ता हरिशंकर जैन ने कहा कि हिंदू संस्कृति बचाने के लिए सनातनियों भी कट्टर बनना पड़ेगा। उन्होंने कहा कि मन्दिर एवं मूर्ति, संस्कृति के प्रतीक हैं। इसे बचाने से सनातन संस्कृति स्वयं बच जाएगी।

सर्वोच्च न्यायालय के अधिवक्ता अश्वनी उपाध्याय ने कहा कि राम मंदिर तो बस एक शुरुआत है अभी तो राम राज्य लाना है। जिसके लिए हमें अभी से ही प्रयास करना चाहिए। उन्होंने कहा कि शासक कितना भी अच्छा हो लेकिन गलत कानून से देश का विकास नहीं हो सकता है, जोकि देश की स्वतन्त्रता के बाद हो रहा था।

विश्व हिंदू परिषद के संरक्षक दिनेश चंद्र ने कहा कि समाज को संगठित बनाने के लिए मंदिरों का निर्माण जरूरी है, मंदिरों में ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए जिससे लोग बार-बार यहां आएं। मन्दिरों को आकर्षक और स्वच्छ बनाने है, जिससे वहां आने पर लोगों को आनंद की अनुभूति हो।

सनातन हिन्दू धर्म की मातृ केन्द्रित व्यवस्था विषयक सत्र की अध्यक्षता करते हुए प्रो. वशिष्ठ त्रिपाठी ने कहा कि भारतीय संस्कृति अनादिकाल से जीवंत है। आज भी भारत पूरी दुनिया को जीवन जीना सीखा रही है। अपनी सुदृढ़ता के कारण ही सनातन का कानून आज भी बना हुआ है। सनातन धर्म की उत्पत्ति के कालचक्र का किसी के पास प्रमाण नहीं है। यह अनंतकाल से विद्यमान है।

सर्वोच्च न्यायालय के अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन ने कहा कि अयोध्या तो मिल गई, अब काशी और मथुरा की बारी है। अधिवक्ता अतुलेश त्रिपाठी ने कहा कि मंदिरों की चित्रकारी हमारी संस्कृति है, जिसको बचाने का कार्य हिन्दू धर्म समिति का है, जब तक संस्कृति है तब तक आस है, बिना संस्कृति मानवता का विनाश है।

बैडमिंटन कोच पुलेला गोपीचंद ने कहा कि भारत देश की अक्षुण्णता बरकरार है तो सिर्फ सन्तों के कारण। सन्त समाज अगर नहीं होता तो हमारा देश टूटकर बिखर गया होता। उन्होंने प्रकृति की रक्षा करने के लिए लोगों से पेड़, पौधों और पक्षियों की रक्षा करने का आह्वान किया। संचालन गंगा महासभा और अखिल भारतीय सन्त समिति के राष्ट्रीय महामंत्री स्वामी जीतेन्द्रानन्द सरस्वती एवं मधुसूदन उपाध्याय ने किया।

पीएम मोदी ने भारतीय संस्कृति को गुलामी के प्रतीकों से मुक्त किया-सुनील देवधर

सांस्कृतिक मूल्यों का अगली पीढ़ी में स्थानानांतरण और कला-संस्कृति के नाम पर परोसी जा रही विकृति विषयक सत्र में के मुख्य वक्ता सुनील देवधर ने कहा कि संस्कृति संसद भारतीय संस्कृति एवं सभ्यता की बात करता है। गर्व की बात यह है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नौ वर्ष के कार्यकाल में ही भारतीय संस्कृति, सभ्यता एवं परंपरा का डंका पूरे विश्व में बज रहा है, जो काफी हर्षोल्लास एवं खुशी का विषय है। इनके कार्यकाल में रामलला का भव्य मंदिर की स्थापना होने जा रही है, जो पूरे राष्ट्र का मंदिर है। आज हम अपनी सभी खोई हुई परम्परा को एक नई दिशा एवं दशा दे रहे हैं।

धारावाहिक महाभारत के प्रसिद्ध अभिनेता गजेन्द्र सिंह चैहान ने कहा कि भारतीय संस्कृति एवं सभ्यता को निरंतर आगे बढ़ाने का काम संतों के द्वारा किया जा रहा है, जो काफी गर्व एवं खुशी का विषय है। साथ ही हमारी संस्कृति एवं सभ्यता को पहचान देने में महाभारत एवं रामायण का भी महत्वपूर्ण भूमिका हैं। आज विदेशों में रह रहे लोग भी धारावाहिक महाभारत एवं रामायण को पसंद कर रहे हैं। ये सभी चीजें सिर्फ देखने की नहीं, बल्कि अपने जीवन में उतारने एवं अनुकरणीय करने योग्य भी हैं। हमें विशेष कर अपने युवा पीढ़ी को भी भारतीय संस्कृति एवं सभ्यता के बारे में जागरूक करने की आवश्यकता है।

संगीतज्ञ पद्मश्री राजेश्वर आचार्य ने कहा कि हमें सजगता के साथ कार्य करना चाहिए और हमेशा विवके और तर्कसम्मत कार्य को प्राथमिकता देनी चाहिए। संस्कृति के आवश्वक तत्वों और मूल्यों को ध्यान में रखते हुए आगे बढ़ना चाहिए। उन्होंने कहा कि भाषा महत्वपूर्ण नहीं है, बल्कि भाषा का ज्ञान महत्वपूर्ण है।

इसी क्रम में मीनाक्षी दीक्षित ने कहा कि मनुष्य का जीवन विचारों, विवके, संस्कार, मर्यादा और संस्कृति से बना हुआ है। इस संस्कृति संसद की हमें आज जरूरत है और यह जरूरत तब तक बनी रहेगी जब तक हम अपने भारत के मूल तत्वों को जान नहीं जाएंगे और अमल नहीं करेंगे। उन्होंने कहा कि हमारे यशस्वी प्रधानमंत्री की वजह से आज मंदिरों का जीर्णोद्धार हो रहा है, लेकिन अपने संस्कारों का जीर्णोद्धार हमें खुद ही करना होगा।

महामंडलेश्वर आशुतोष जी महाराज ने कहा कि सन्त समाज को भारतीय समाज में एकता बढ़ाने के लिए घर-घर, गांव-गांव जाना होगा। तभी भारतीय समाज की विकृतियां खत्म होंगी।

इस सत्र की अध्यक्षता करते हुए आचार्य धर्मदेव ने कहा कि भारत ने पूरी दुनिया को जीना सिखाया लेकिन फिर भी विदेशी और पुराने कानून हमारे देश में चल रहे हैं, जिसे खत्म करना चाहिए।

भारत भूमि के कुछ राज्यों में हिंदू का अल्पसंख्यक होना चिंता का विषय

संस्कृति, समाज और संस्कार का शत्रु सेंसर बोर्ड विषयक सत्र की वक्ता काजल हिंदुस्तानी ने कहा कि हमारा सीधा संघर्ष जिहादियों से है। उन्होंने कहा कि 2030 तक भारत को लव जिहाद मुक्त करके ही मानेंगे। कहा कि इस देश को बर्बाद करने में बॉलीवुड की फिल्मों का बड़ा योगदान है। भारत भूमि पर कुछ राज्यों में हिंदू का अल्पसंख्यक होना चिंता का विषय है। उन्होंने कहा कि इस्लाम और ईसाई आक्रांताओं ने हमेशा सनातन धर्म पर हमला किया है, इसलिए हमें धर्म की रक्षा के लिए योगदान देना होगा। उन्होंने कहा कि धर्म बचेगा तभी देश बचेगा। एकता कपूर जैसे फिल्मकार टीवी सीरियल के माध्यम से महिलाओं के ऊपर बुरा प्रभाव डाल रही हैं। कुछ फिल्मों और टीवी सीरियल्स के माध्यम से छद्म नारीवाद का झंडा दिखाकर स्त्रियों को भ्रमित किया जा रहा है।

सत्र की अध्यक्ष ज्योत्सना गर्ग ने कहा कि कुछ फिल्म मेकर सनातन के असली शत्रु हैं। कुछ भारतीय फिल्ममेकर वामपंथी एवं विदेशी दबाव में ऐसी विदेशी फिल्मों को प्रदर्शित कर रहे हैं, जिसमे हिंदू देवी-देवताओं का अपमान किया गया है। खेद का विषय है कि कुछ हिंदू फिल्ममेकर भी संतान को नीचा दिखाने वाली फिल्में बना रहे हैं। देश में मोदी सरकार आने के बाद धर्म और महिलाओं को लेकर सेंसर बोर्ड सजग है।

इसी क्रम में वक्ता सर्वेश तिवारी श्रीमुख ने सेंसर बोर्ड के सबसे हास्यास्पद स्थिति की चर्चा की। उन्होंने कहा कि जो फिल्म डायरेक्टर्स अश्लील फिल्में बनाते हैं, वही लोग सेंसर बोर्ड के अध्यक्ष बनते आ रहे हैं। उन्होंने बॉलीवुड के फिल्मों की चर्चा करते हुए कहा कि सनातन का अपमान करने वाले लोग जब सेंसर बोर्ड के शीर्ष नेतृत्व में होंगे तो इससे कुछ जड़ा उम्मीद की अपेक्षा भी नही होती। वर्तमान सरकार के समय में इसमें धीरे-धीरे परिवर्तन हो रहा है।

मार्क्सवादियों ने अर्धसत्य के द्वारा भारतीय समाज को भ्रमित किया

मार्क्सवाद का अर्धसत्य विषयक सत्र के मुख्य वक्ता एवं दैनिक जागरण के एसोसिएट संपादक अनंत विजय ने कहा कि मार्क्सवादी अर्धसत्य लेखनी में माहिर हैं। वे निरन्तर भारत की गिरावट और विकृति में प्रसन्न होते हैं तथा भारत की प्रतिष्ठा और विकास से दुखी होते हैं। मार्क्सवादियों ने साहित्य के क्षेत्र में वास्तविक सत्य को विकृत करके परोसा। उन्होंने कहा कि 2007 में एनसीईआरटी से वैदिक साहित्य हटाया गया। इतना ही नहीं एनसीईआरटी की पुस्तकों में माक्र्सवादियों ने लिखवाया कि गांधी का हत्यारा ब्राह्मण था, जबकि गणेश शंकर विद्यार्थी की हत्या में लिखा गया कि उनकी हत्या उन्मादी भीड़ ने की। वास्तविकता यह है कि गणेश शंकर विद्यार्थी की हत्या तीन मुस्लिमों ने की थी। इसी तरह मार्क्सवादियों ने प्रेमचंद और राज कपूर जैसे लेखक, फिल्मकार एवं अभिनेता को मार्क्सवादी घोषित किया, जबकि वे मार्क्सवादी नहीं थे, यह एक षड्यन्त्र था। उन्होंने कहा कि मार्क्सवादियों के षड्यंत्र से वर्तमान समय में साहित्य के माध्यम से भारत विरोध परोसा जा रहा है। तथा भारत विरोधी फिल्में बनाई जा रही हैं। इस तरह मार्क्सवादियों ने अर्धसत्य प्रस्तुत कर भारतीय समाज को क्षति पहुंचाई। इसके समाधान के लिए राष्ट्रीय संस्कृति नीति बनना आवश्यक है।

सत्र के अध्यक्ष महामंडलेश्वर स्वामी परमात्मानंद गिरी ने कहा कि मार्क्सवादियों ने जानबूझकर भारतीय संस्कृति को मिटाने का प्रयास किया लेकिन वह मिटा नहीं पाए, बल्कि खुद ही हाशिए पर चले गए।

पूर्ण आरोग्य भारतीय चिकित्सा पद्धति से ही सम्भव

भारतीय स्वास्थ्य संस्कृति और आधुनिक चिकित्सा पद्धतियाँ विषयक सत्र के अध्यक्ष डॉ. कमलाकर त्रिपाठी ने कहा कि हमारे सारे संस्कार नेताओं से आते हैं, क्योंकि बच्चों को सबसे अधिक माता ही समझती है, इसलिए हमारी पहली गुरु माँ ही होती है। उन्होंने आगे कहा कि व्याकरण में औषधि और औषधि, दो शब्द होते हैं। जिनका तात्पर्य अन्न और औषधि से है इसलिए अन्न की शुचिता होनी चाहिए। ये शुचिता होटल के अन्न में नहीं मिलती। शुचिता माँ के हाथों के अन्न में ही मिलेगी। उन्होंने आगे कहा कि आज का उद्देश्य ही सांसारिक मूल्यों की रक्षा करते हुए शुचिता को बनाये रखना है।

उन्होंने इसके भाषाई महत्व पर बात करते हुए कहा कि लोक भाषा में स्वास्थ्य के बहुत महत्वपूर्ण संदर्भ है, जिनका उपयोग करना चाहिए।इस क्रम में शल्य चिकित्सक डॉ. अंशुमान कुमार ने कहा कि हम बीमार होते ही दवाई खाते हैं, वो समाज का सबसे बड़ा जहर है। हमारा शरीर उस समय बैक्टेरिया से लड़ाई के लिए तैयार हो रहा होता है, परन्तु हम दवाई खा कर उसे दबा देते हैं। आगे उन्होंने चिकित्सा के अलग-अलग पद्धति के बारे में बात करते हुए कहा कि हम किसी भी पद्धति से किसी को स्वस्थ कर देते हैं तो हमें चरक और सुश्रुत के ही वंशज के रूप में माना जाना चाहिए। स्वास्थ्य की परिभाषा है सम अवस्था को बनाए रखना।

सम्पूर्ण विश्व के कल्याण की कामना भारतीय संस्कृति का ध्येय: प्रो. रविन्द्र पाठक

पंच महाभूत विज्ञान और विकल्प वृत्ति विषयक सत्र के अध्यक्ष प्रो. रविंद्र पाठक ने कहा कि सभी शास्त्रों का तकनीकी अर्थ होता है। हम केवल सामान्य ज्ञान से अपनी परंपरा को ठीक से नही समझ सकते हैं, क्योंकि शब्दों का वास्तविक अर्थ ही गायब हो गया है। उन्होंने आगे कहा कि विज्ञान हमारा पारम्परिक शब्द है। यह मन की एक सूक्ष्म अवस्था है, जिनके द्वारा पंचभूतों की सूक्ष्मतम स्थिति का बोध होता है। उन्होंने आगे कहा कि अंतरिक्ष का मतलब सामान्य तौर पर ग्रह, नक्षत्र आदि होता है। लेकिन शब्द का व्याकरणीय अर्थ अगर हम समझें तो इस शब्द का अर्थ होता है दो के बीच में देखना या अपने भीतर देखना।

इस सत्र की वक्ता साध्वी दिव्यप्रभा ने कहा कि हमारे जीवन का लक्षण आध्यात्म से जुड़ा है। जबकि विदेश में जीवन का लक्ष्य सम्पत्ति एकत्र करना एवं अच्छा जीवन जीना है। परन्तु हमारा लक्ष्य माया से मुक्ति है। हमलोग समग्र विश्व के कल्याण की कामना करते हैं परन्तु विदेशों में लक्ष्य अलग है।

Anant kumar shukla

Anant kumar shukla

Content Writer

अनंत कुमार शुक्ल - मूल रूप से जौनपुर से हूं। लेकिन विगत 20 सालों से लखनऊ में रह रहा हूं। BBAU से पत्रकारिता में पोस्ट ग्रेजुएशन (MJMC) की पढ़ाई। UNI (यूनिवार्ता) से शुरू हुआ सफर शुरू हुआ। राजनीति, शिक्षा, हेल्थ व समसामयिक घटनाओं से संबंधित ख़बरों में बेहद रुचि। लखनऊ में न्यूज़ एजेंसी, टीवी और पोर्टल में रिपोर्टिंग और डेस्क अनुभव है। प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक और डिजिटल मीडिया प्लेटफॉर्म पर काम किया। रिपोर्टिंग और नई चीजों को जानना और उजागर करने का शौक।

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