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निशीथ राय वाइस चांसलर के पद पर अंतरिम रूप से हुए बहाल
लखनऊ : इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने डा. शकुन्तला मिश्रा राष्ट्रीय पुनर्वास विश्वविद्यालय के वाइस चांसलर डा. निशीथ राय को राहत देते हुए दौरान जांच उन्हें पद पर कार्य करते रहने की अनुमति दे दी है। कोर्ट ने अतंरिम आदेश पारित करते हुए मामले की सुनवाई 23 अगस्त को नियत की है।
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यह आदेश न्यायमूर्ति एस एन शुक्ला व न्यायमूर्ति वीरेंद्र कुमार की खंडपीठ ने डा. निशीथ राय की ओर से दायर रिट याचिका पर पारित किया। याचिका सोमवार को दाखिल की गयी और कोर्ट से मामले पर यह कहते हुए याचिका पर तत्काल सुनवायी की गुजारिश की गयी कि बिना उन्हें सुनवाई का कोई मौका दिये गलत तथ्येां और आधारहीन आरोपों के आधार पर दुर्भावनावश उनके पद पर कार्य करने पर रोक लगा दी गयी है।
खंडपीठ ने याचिका पर सुनवायी की अनुमति दे दी जिसके बाद अपरान्ह सुनवायी हुए। याची की ओर से वरिष्ठ वकील डा. एलपी मिश्रा व वकील गौरव मेहरेात्रा ने राय के खिलाफ बिठायी गयी जांच और उस दौरान उनको कार्य से विरत करने के बावत पारित 16 अगस्त 2017 के तीन आदेशों केा चुनौती दी थी।
याची के वकीलों का तर्क था, याचिका में जो आरेाप लगाये गये हैं वे बिल्कुल निराधार हैं व कानून सम्मत नहीं हैं। याची की नियुक्ति बिना पैनल बनाये पिछली सरकार द्वारा किये जाने के आरोपों पर निशीथ की ओर से याचिका में कहा गया कि विश्वविद्यालय गठन के लिए 2009 में बने अधिनियम के तहत नियमानुसार पहला वाइस चासंलर सरकार अपनी इच्छानुसार करने को स्वतंत्र है और वे डा. शकुंतला विश्वविद्यालय के पहले वाइस चासंलर बनाये गये थे।
वाइस चासंलर के साथ साथ लखनऊ विश्वविद्यालय स्थित क्षेत्रीय नगर एंव पर्यावरण अध्ययन केंद्र के निदेशक के पद का अतिरिक्त कार्यभार देखने के आरोपों पर याची की ओर से तर्क था कि इसके लिए केंद्र की गवर्निंग काउन्सिल के चेयरमैन जोकि लखनऊ विश्वविद्यालय को वाइस चासंलर होता है उससे अनुमति ली गयी थी।
2014 में विश्वविद्यालय में की गयी नियुक्तियेां में गड़बड़ी करने के आरेापों के बावत कहा गया कि इस संबध में पहले भी राज्यपाल को शिकायत की गयी थी और उनसे पूरी भर्तिया रद्द करने की मांग की गयी थी जिस पर राज्यपाल ने हाईकेार्ट के आदेश पर जांच करने के बाद 11 मार्च 2016 को अपने निर्णय में पाया कि भर्तियेां में गड़बड़ी के आरेाप गलत हैं। राज्यपाल के इस आदेश के खिलाफ मामला हाईकोर्ट में विचाराधीन है ऐसे में दुबारा से उसी बिंदु पर जाँच कराना अवैध है।
लखनऊ विश्वविद्यालय से छुटटी लिये बिना निदेशक व डा. शकुतला विश्वविद्यालय का वाइस चांसलर बने रहने के आरोपों पर राय की ओर से तर्क था कि 25 नवंबर 2014 से ही उनका विश्वविद्यालय से लियन यानि सेवा समाप्त हो चुकी है तो वे वहां के कर्मचारी नही रहे तो ऐसे में लखनऊ विश्वविद्यालय से छुटटी लेने का केाई औचित्य नही हैं। इसके अलावा शैक्षिक संस्थाओं की संस्थाओं की संबद्धता हेतु अनापत्ति हेतु नियमों का पालन न किये जाने के आरेापों पर निशीथ का तर्क था कि संबद्धता के प्रकरण से नियमानुसार वाइस चासंलर का कोई लेना देना नही होता तो उनके उपर आरेाप निराधार है।
मामले पर सुनवाई प्रारम्भ होते ही राज्य सरकार की ओर से मुख्य स्थायी अधिवक्ता रमेश पांडे ने कहा कि इस याचिका पर महाधिवक्ता राघवेंद्र सिंह बहस करेंगे लिहाजा प्रकरण पर सुनवाई 23 अगस्त तक के लिए टाल दी जाये। इस पर कोर्ट ने कहा कि मामला अर्जेंट मैटर की श्रेणी मे आता है जिसके चलते ही आज ही सुनवाई के लिए मंगाया गया है तो ऐसे में सरकार की ओर से तैयार होकर आना चाहिए था। हांलाकि बाद मे कोर्ट ने मामले को 23 अगस्त को लगा दिया। इस पर निशिथ के वकीलों ने मांग की कि तब तक उनको पद पर कार्य करते रहने दिया जाये क्येाकि पूरे आरोपों को देखने से स्पष्ट है कि डा. शकुंतला विश्वविद्यालय की गवर्निग काउसिल के चेयरमैन जो कि मुख्यमंत्री होता है को अंधेरे में रखकर आदेश करा लिया गया है और उन्हें न तो राज्यपाल के पूर्व आदेश की जानकारी दी गयी और न ही उनके सामने सही तथ्य रखे गये।
समस्त परिस्थितियेां पर गौर करने के बाद कोर्ट ने अंतरिम आदेश के तहत अग्रिम आदेशों तक वाइस चासंलर निशीथ राय को पद पर कार्य करते रहने की अनुमति दे दी।