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Varanasi News: तमिल लोकनृत्य व गायन से गुंजायमान हुआ काशी तमिल संगमम का आयोजन स्थल
Varanasi News: काशी तमिल संगमम के अंतर्गत आयोजित सांस्कृतिक संध्या में तमिलनाडु से पधारे गुणी अतिथि कलाकारो के समूह द्वारा गायन, वादन एवं नृत्य की अद्भुत प्रस्तुतियां दी गईं।
Varanasi News: एम्फीथिएटर मैदान, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, में आयोजित काशी तमिल संगमम के अंतर्गत आयोजित सांस्कृतिक संध्या में तमिलनाडु से पधारे गुणी अतिथि कलाकारो के समूह द्वारा गायन, वादन एवं नृत्य की अद्भुत प्रस्तुतियां दी गईं। मुख्य अतिथि वी. शनमुगनाथन, पूर्व राज्यपाल, मेघालय, ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का इस आयोजन के लिए धन्यवाद जताया। विशिष्ट अतिथि गायक और तमिलनाडु चिकित्सा महाविद्यालय में प्रोफेसर डॉ. वी. शिवचिदंबरम ने गीत के माध्यम से सुब्रह्मण्य भारती के काशी व कांची के विद्वानो, पंडितों और कवियों के आदान-प्रदान के सपने को उद्घाटित किया। उन्होंने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय की मेज़बानी की भी भूरि-भूरि प्रशंसा की।
कार्यक्रम में काशी की प्रसिद्ध कलाकार विदुषी डॉ कमला शंकर ने शंकर वीणा पर राग शुद्ध सारंग का वादन किया। इसके बाद प्रस्तुति गायन की रही जिसमें व्यास मौर्य ने शिव भजन का गायन किया।
कार्यक्रम की अगली कड़ी में डा. ओमकार ने गणेश वन्दना से प्रस्तुति को आरंभ कर शिव भजन हर हर महादेव शंभो काशी विश्वनाथ गंगे गा कर प्रस्तुति का समापन किया।
चौथी प्रस्तुति बनारस घराने के युवा कलाकार अमृत मिश्रा ने की जिन्होंने कथक नृत्य के माध्यम से शिव वन्दना की प्रस्तुति की। इसके बाद तमिलनाडु के कलाकार कार्तिकेयन के निर्देशन में नादस्वरम् वादन विविध राग ताल में अत्यंत भावपूर्ण रही।
छठी प्रस्तुति तमिलनाडु के लोक कलाकार राजीव गांधी एवं समूह की रही जिसमें तमिल का लोक गायन व करगम नृत्य का मंचन किया गया। ऐसा माना जाता है कि करगम की उत्पत्ति तमिलनाडु के तंजावुर में हुई है।
ग्रामीण इस नृत्य को वर्षा देवी "मारी अम्मन" और नदी देवी "गंगई अम्मान" की पूजा में अपने अनुष्ठान के एक भाग के रूप में करते हैं।
सातवीं प्रस्तुति के. पार्तिबन के संचालन में थेरुकुथु लोकनाट्य की रही जिसमें पारम्परिक शैली में महाभारत की द्रौपदी चीर हरण समेत अन्य कथाओं को प्रस्तुत किया गया।
कार्यक्रम के अगले क्रम में एम गुरूमुर्ति के निर्देशन में डमी हॉर्स, और बुल डांस व मयूर नृत्य की प्रस्तुति ने दर्शकों का मन मोह लिया| कार्यक्रम के अंत में जे चंद्रू के नेतृत्व में लोक नृत्य और सिलंबट्टम अकादमी के कलाकारों ने तप्पत्तम और सिलंबट्टम की प्रस्तुति दी गयी।
सिलंबट्टम दक्षिण भारत में उत्पन्न होने वाली एक भारतीय मार्शल आर्ट है। इस शैली का उल्लेख तमिल संगम साहित्य में मिलता है। मदुरै का प्राचीन शहर सिलंबट्टम के प्रसार के केंद्र बिंदु के रूप में माना जाता है।
आपको बता दें शिक्षा मंत्रालय, भारत सरकार, उत्तर मध्य क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र, प्रयागराज, एवं दक्षिण क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र, संस्कृति मंत्रालय, द्वारा सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जा रहा है।