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गन्ने के रस से बनने वाली गुड़ की मिठास से दूर कर हो रही बेरोजगारी

Newstrack
Published on: 25 Jan 2018 9:55 PM IST
गन्ने के रस से बनने वाली गुड़ की मिठास से दूर कर हो रही बेरोजगारी
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पूर्णिमा श्रीवास्तव

गोरखपुर: गांव के युवा अब मुश्किलों से लडक़र गांव में ही रोजगार की राह निकाल रहे हैं। गन्ने के रस से बनने वाली गुड़ की मिठास गांव में ही रोजगार के द्वार खोल रही है। युवा जहां गुड़ का उत्पादन कर रहे हैं, वहीं उसे दूसरे प्रदेशों में बेचकर मोटी कमाई भी कर रहे हैं। उधर, योगी सरकार के बस्ती की मुंडेरवा और गोरखपुर की पिपराइच चीनी मिलों को शुरू करने के ऐलान ने गन्ना किसानों में नई उम्मीद जगा दी है।

पूर्वांचल की चीनी मिलें कभी यहां की आर्थिक धुरी हुआ करती थीं। गोरखपुर-बस्ती मंडल में तीन दर्जन चीनी मिलें थीं, लेकिन एक-एक कर चीनी मिलें बंद होने लगीं तो रोजगार की तलाश में गांव के युवा पलायन करने लगे। गन्ने के विकल्प के रूप में कुशीनगर और महराजगंज के किसानों ने केला व शकरकंद जैसी नकदी फसल की तरफ रुख किया, लेकिन एक बार फिर इन इलाकों में गन्ने की मिठास बढऩे लगी है। कुशीनगर, गोरखपुर, महराजगंज में 700 से अधिक क्रशर रोजगार सृजन के जरिया बन गए हैं। तमाम युवा ऐसे हैं जिन्होंने दूर प्रदेश जाकर मजदूरी करने के बजाय गांव के क्रशर से ही रोजगार की डोर बांध ली है। कुशीनगर में 7000 से अधिक बेरोजगारों की चौखट पर खुशहाली दस्तक दे रही है। कुशीनगर के धरनी पट्टी के जितेन्द्र, मनोज आदि का कहना है कि पंजाब, लुधियाना की फैक्ट्रियों में कड़ी मशक्कत के बाद महीने के पांच से छह हजार की कमाई कर पाते थे। क्रशर उद्योग के गुलजार होने से गांव में ही रोजगार का सृजन हो रहा है।

> मिल रहा सात महीने का रोजगार

क्रशर सात महीने का रोजगार दे रहा है। अक्टूबर से लेकर अप्रैल महीने तक क्रशर के माध्यम से रोजगार मिल रहा है। प्रतिदिन 16 घंटा गन्ना क्रशिंग, गुड़ व चाकी बनाने, खोइयां सुखाने, गन्ना लोड करने में हजारों लोगों की रोजी-रोटी चल रही है। कुशीनगर के धरनी पट्टी, जटहां बाजार, परसौनी कला, बतरौली, बसहिया, सपहां, खिरकिया, बसंतपुर, सुकरौली आदि क्षेत्र में अक्टूबर से ही गन्ने की क्रशिंग हो रही है। वहीं गोरखपुर में कुस्मही, जगदीशपुर और महराजगंज के सिसवां, निचलौल, ठूठीबारी आदि क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर क्रशर से गुड़ बनाने का कार्य चल रहा है। क्रशरों पर काम करने के लिए आठ घंटे व 12 घंटे की अलग-अलग शिफ्ट निर्धारित की गयी है। तय शिफ्ट से अधिक काम करने पर ओवरटाइम भी दिया जाता है।

सात माह तक रोजगार का सृजन तथा हर रोज नकदी का जतन होने से किसानों को राहत मिल रही है। तमाम क्रशर तो ऐसे भी हैं जहां पति, पत्नी व जवान बेटे एक साथ रोजगार के प्रबंध में जुटे दिख रहे हैं। सुकरौली के दो दर्जन से अधिक युवा लुधियाना, पंजाब और बंगलुरु से लौट आए हैं। 25 वर्ष के संतोष निषाद का कहना है कि गांव में ही रोजगार मिल जाने से घर के बुजुर्गों व पत्नी की देखभाल व दवाई तथा बच्चों की पढ़ाई ठीक से हो जाती है। हर रोज नकद आय से परिवार खुशहाल है। वहीं जितेन्द्र का कहना है कि महानगरों में मजदूरी करने से भले ही कमाई अधिक हो जाती है, लेकिन पारिवारिक जिम्मेदारियों को निभाने में दिक्कत होती है।

> बढ़ रहा गन्ने का उत्पादन

क्रशर के साथ ही चीनी मिलों के फिर गुलजार होने की उम्मीदों के बीच गोरखपुर मंडल के किसान गन्ना उत्पादन को लेकर सक्रिय हो गए हैं। कुशीनगर में कभी आठ चीनी मिलें थीं, लेकिन आज सिर्फ चार चल रही हैं। चार चीनी मिलों के बंद होने के बाद भी उत्पादन में खास गिरावट नहीं आई है। गोरखपुर मंडल के करीब 700 क्रशर पर करीब 7000 टन गन्ने की खपत हो जा रही है। क्रशर मालिक विवेक राय का कहना है कि एक क्रशर पर 150 क्विंटल गन्ने की खपत आसानी से हो जाती है। किसानों को भी गन्ने की नकद कीमत मिल जाती है। चीनी मिल मालिक जहां 325 रुपये कुंतल की दर से गन्ना खरीद रहे हैं तो वहीं क्रशर मालिक भी गन्ने की 250 रुपये तक कीमत दे दे रहे हैं। नकदी के चलते किसान भी क्रशर मालिकों को ही गन्ना बेचना पसंद कर रहे हैं।

> चीनी मिलें भी करेंगीं गुड़ का उत्पादन

नई गन्ना नीति में उत्पादन के लिहाज से कमजोर चीनी मिलों में चीनी के अलावा गुड़ का भी उत्पादन होगा। कम पेराई क्षमता वाली चीनी मिलों में ऑटोमेटिक गुड़ प्लांट लगाए जाएंगे। चीनी उत्पादन से जो गन्ना बचेगा, उसे सरकारी दाम पर खरीदकर गुड़ बनाया जाएगा। ऐसा होने पर किसानों को बेहतर दाम मिलेगा। चीनी मिलों में गुड़ प्लांट लगाने पर गन्ना विभाग के आला अफसर मंथन करने में जुटे हैं। अफसरों का दावा है कि चीनी मिल को गुड़ प्लांट में बदलने के लिए टरबाइन व बॉयलर नहीं बदलने पड़ेंगे। ऑटोमेटिक गुड़ प्लांट कम पूंजी में लग सकता है। चीनी मिलों में कोल्हू-क्रशरों के मुकाबले ज्यादा अच्छी क्वालिटी का गुड़ बनेगा। कोल्हू-क्रशरों में गन्ना पेराई से पूरा रस नहीं निकल पाता, लेकिन चीनी मिलों में पेराई से शत-प्रतिशत रस निकलेगा। गुड़ का दाम चीनी से ज्यादा रहता है।नेपाल से लेकर कोलकाता तक गुड़ की डिमांड

कुशीनगर, गोरखपुर और महराजगंज में तैयार गुड़ की दूर प्रदेशों में खूब डिमांड है। यहां के गुड़ की मिठास के नेपाल, कोलकाता, बिहार से लेकर उड़ीसा तक के लोग दीवाने हैं। पिछले एक दशक से क्रशर संचालित कर रहे रामजीत कुशवाहा कहते हैं कि कुशीनगर का गुड़ स्वादिष्ट व स्वास्थ्य के लिहाज से बेहद उपयोगी है। यहां के गुड़ की खपत यूपी के बनारस, बलिया, जौनपुर, गाजीपुर तथा बिहार में सर्वाधिक होती है। कोलकाता, उड़ीसा के साथ ही नेपाल के व्यापारी गुड़ खरीदने आते हैं। कोलकाता के गुड़ व्यापारी रंजीत घोष का कहना है कि कुशीनगर में 3500 रुपये कुंतल की दर से गुड़ मिल जाता है, कोलकाता पहुंचने तक इसका दाम दोगुना हो जाता है।

वहीं गोरखपुर के महेवा थोक मंडी के कारोबारी मदन जलान का कहना है कि पहले अमरोहा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बने गुड़ की ही मांग रहती थी, लेकिन पिछले कुछ साल में गोरखपुर मंडल खासकर कुशीनगर के गुड़ ने मजबूत दस्तक दी है। गुड़ खुद में एक संपूर्ण आहार है। प्रगतिशील किसान और क्रशर मालिक संतोष जायसवाल का कहना है कि आंवला, अजवाइन और सोंठ के स्वाद में भी गुड़ का उत्पादन किया जा रहा है। इसकी कीमत 100 रुपये प्रति किग्रा तक है। उनका कहना है कि कुछ लोग गुड़ की आइसक्रीम और खीर भी लाने की तैयारी कर रहे हैं। वहीं डाइटीशियन डॉ.सुनीता का कहना है कि गुड़ औषधीय गुणों के साथ यह ऊर्जा का भी स्रोत है। इसमें शरीर के लिए जरूरी कई पोषक तत्व (आयरन, कैल्शियम, फास्फोरस, विटामिन ए और बी) भरपूर मात्रा में मिलते हैं।

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