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मां कूष्माण्डा की उपासना से भक्तों के मिट जाते समस्त रोग-शोक, दर्शन मात्र से होता नई ऊर्जा का संचार

मां कूष्माण्डा अत्यल्प सेवा और भक्ति से प्रसन्न होने वाली हैं। यदि मनुष्य सच्चे हृदय से इनका शरणागत बन जाए तो फिर उसे अत्यन्त सुगमता से परम पद की प्राप्ति हो सकती है।

Brijendra Dubey
Report Brijendra DubeyPublished By Vidushi Mishra
Published on: 5 April 2022 10:02 AM IST
maa kushmanda
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मां कुष्मांडा (फोटो-सोशल मीडिया)

या देवी सर्वभूतेषु मां कूष्माण्डा रूपेण संस्थिता।नमस्तस्यै

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।

जब सृष्टि का अस्तित्व नहीं था, तब इन्हीं देवी ने ब्रह्मांड की रचना की थी। अत: ये ही सृष्टि की आदि-स्वरूपा, आदिशक्ति हैं। इनका निवास सूर्यमंडल के भीतर के लोक में है। वहां निवास कर सकने की क्षमता और शक्ति केवल इन्हीं में है। इनके शरीर की कांति और प्रभा भी सूर्य के समान ही दैदीप्यमान हैं। इनके तेज और प्रकाश से दसों-दिशाएं प्रकाशित हो रही हैं। ब्रह्मांड की सभी वस्तुओं और प्राणियों में अवस्थित तेज इन्हीं की छाया है। मां की आठ भुजाएं हैं। अत: ये अष्टभुजा देवी के नाम से भी विख्यात हैं।

इनके सात हाथों में क्रमश: कमंडल, धनुष, बाण, कमल-पुष्प, अमृतपूर्ण कलश, चक्त्र तथा गदा है। आठवें हाथ में सभी सिद्धियों और निधियों को देने वाली जपमाला है, इनका वाहन सिंह है। मां कूष्माण्डा की उपासना से भक्तों के समस्त रोग-शोक मिट जाते हैं। इनकी भक्ति से आयु, यश, बल और आरोग्य की वृद्धि होती है।

मां कूष्माण्डा अत्यल्प सेवा और भक्ति से प्रसन्न होने वाली हैं। यदि मनुष्य सच्चे हृदय से इनका शरणागत बन जाए तो फिर उसे अत्यन्त सुगमता से परम पद की प्राप्ति हो सकती है। इनकी उपासना मनुष्य को सहज भाव से भवसागर से पार उतारने के लिए सर्वाधिक सुगम और श्रेयस्कर मार्ग है। मां कूष्माण्डा की उपासना मनुष्य को आधियों- व्याधियों से सर्वथा विमुक्त करके उसे सुख, समृद्धि और उन्नति की ओर ले जाने वाली है। एक रिपोर्ट...

Mirzapur: "विन्ध्य स्थान विन्ध्य नीलयाम विन्ध पर्वत वासिनी, योगनी योगमाया त्वाम चंदिकाम प्राणमाम्यहम" आदि काल से आस्था का केंद्र रहे विन्ध्याचल धाम शक्ति स्वरूपा माता ध्यवासिनी के जयकारे से गुंजायमान है। मूल रूप में विन्ध्य पर्वत व पतित पावनी माँ भागीरथी के संगम तट पर श्रीयंत्र पर विराजमान माँ विंध्यवासिनी को चौथे दिन "कुष्मांडा" के रूप में पूजन व अर्चन किया जाता है।

प्रत्येक प्राणी को सदमार्ग पर प्रेरित वाली माँ कुष्मांडा सभी के लिए आराध्य है। माँ सभी भक्तों के मनोकामना को पूरा कर उनके सारे संताप का हरण कर करती है गृहस्थ जीवन में रहकर माता रानी की आराधना करने वाले भक्त को जिस जिस वस्तुओं की जरूरत प्राणी को होता है वह सभी प्रदान करती है । विद्वान आचार्य बताते है कि माँ हल्की सी मुस्कान के साथ सृष्टि की रचना की थीं । भक्तों की समस्त मनोकामना को माँ केवल अपना ध्यान करने से पूरा कर देती हैं -

नवरात्र के में माँ के अलग अलग रूपों की पूजा कर भक्त सभी कष्टों से छुटकारा पाते हैं । माता के किसी भी रूप का दर्शन करने मात्र से प्राणी के शरीर में नयी उर्जा, नया उत्साह व सदविचार का संचार होता है। अत: अपनी लौकिक, पारलौकिक उन्नति चाहने वालों को इनकी उपासना में सदैव तत्पर रहना चाहिए ।



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Vidushi Mishra

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