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Mirzapur News: मिर्जापुर की पांचों विधानसभा सीटों पर इस बार कांटे की लड़ाई

Mirzapur News: मिर्जापुर में कुल 5 विधानसभा और एक लोकसभा सीट है। मिर्जापुर लोकसभा सीट से अनुप्रिया पटेल सांसद हैं, जो वर्तमान की केंद्र सरकार में मंत्री हैं।

Vikrant Nirmala Singh
Report Vikrant Nirmala SinghPublished By Monika
Published on: 28 Jan 2022 1:47 PM IST (Updated on: 28 Jan 2022 5:14 PM IST)
Mirzapur 5 assembly seats
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मिर्जापुर की पांचों विधानसभा सीट पर कांटे की लड़ाई (फोटो :सोशल मीडिया )

Mirzapur News: उत्तर प्रदेश का एक चर्चित जिला है मिर्जापुर (Mirzapur)। हाल ही में एक चर्चित वेब सीरीज की वजह से यह नाम अधिक जाना जाने लगा है। लेकिन मिर्जापुर की पहचान किसी वेब सीरीज (web series) से नहीं है। मिर्जापुर पीतल उद्योग और विंध्य की पहाड़ियों के लिए प्रसिद्ध है। गंगा नदी के किनारे बसा यह जिला मुख्य रूप से मां विंध्यवासिनी मंदिर, कालीन उद्योग और अपनी प्राकृतिक सौंदर्य के लिए जाना जाता है। मिर्जापुर में कुल 5 विधानसभा और एक लोकसभा सीट है। मिर्जापुर लोकसभा सीट से अनुप्रिया पटेल सांसद हैं, जो वर्तमान की केंद्र सरकार में मंत्री हैं। वहीं मिर्जापुर में 5 विधानसभा सीटें (Mirzapur 5 assembly seats) हैं- 395 (छानवे विधानसभा),396 (मिर्ज़ापुर नगर),397 (मझवां )398(चुनार) और 399(मड़िहान)। 2012 के परिसीमन में मडिहान विधानसभा सीट का गठन हुआ था।

1. छानवे विधानसभा (Chhanbey Assembly)

इस सीट से वर्तमान में राहुल कोल विधायक हैं, जो 2017 में भाजपा और अपना दल गठबंधन से विधायक हैं। राहुल कोल, सांसद पकौड़ी कोल के बेटे हैं जो वर्तमान में रॉबर्ट्सगंज लोकसभा के सांसद हैं और हाल ही में ब्राह्मण समाज पर अपने विवादित बयान देने के कारण यह मीडिया में काफी चर्चित हुए हैं। विधानसभा में यह सीट अनुसूचित जाति एवं जनजाति के लिए आरक्षित है। यह सीट उत्तर प्रदेश के पिछड़े इलाकों में गिनी जाती है। आजादी के बाद से यह सीट आरक्षित रही है। बीच में सन 1962 से लेकर 1974 तक इसे सामान्य घोषित किया गया था। 2017 के चुनाव में राहुल गोयल ने बसपा के धनेश्वर को 60000 वोट से चुनाव हरा दिया था। लेकिन इस बार इस सीट का माहौल बदला हुआ है। इस सीट पर स्थानीय लोगों को राहुल कोल से काफी शिकायतें हैं। जनता का कहना है कि वह उन से संवाद नहीं करते हैं, उनके बीच में नहीं जाते हैं और ना ही कोई विशेष कार्य किया है। प्रत्याशी ना बदलने की स्थिति में और अपना दल के लड़ने पर यह सीट कड़े मुकाबले में रहेगी। ऐसी स्थिति में बसपा और समाजवादी पार्टी को बढ़त मुमकिन है। इस सीट पर कोल बिरादरी का दबदबा है। यहां इनकी आबादी 57000 बताई जाती है। इसके बाद तकरीबन पचास हजार हरिजन भी मौजूद है। इसलिए यहां मुकाबला त्रिकोण होने वाला है।

2. मिर्ज़ापुर नगर विधानसभा (Mirzapur Municipal Assembly)

मिर्जापुर मुख्य शहर की यह सीट राजनीतिक जगत में काफी चर्चित है। ऐसा इसलिए क्योंकि यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री और वर्तमान रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह (Defense Minister Rajnath Singh)ने यहां से चुनाव लड़ा था। वह पहली बार विधायक यहीं से बने थे। यह सीट जनसंघ के जमाने से ही भाजपा की मजबूत गढ़ मानी जाती है। यहां से डॉ सुजीत सिंह डंग (1991 से 2002 तक) चार बार विधायक रहे। वर्ष 2002 में कैलाश चौरसिया यहां से जीते थे और फिर तीन बार यहां से विधायक बने। 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा के टिकट पर रत्नाकर मिश्रा ने कैलाश चौरसिया को मात दी थी। इस सीट पर ब्राह्मण,वैश्य, मुस्लिम और क्षत्रिय जातियों का बहुमत है। सबसे बड़ी आबादी वैश्य मतदाताओं की है जो तकरीबन 60 हजार के करीब है। साथ ही यहां मुस्लिम लगभग 40,000, ब्राह्मण 30,000, छत्रिय 22000 और यादव 20000 के आस-पास है। स्थानीय विधायक रत्नाकर मिश्रा इस समय विन्ध्य काॅरिडोर के कारण काफी चर्चा में हैं। इसके अलावा वह मां विंध्यवासिनी मंदिर के मुख्य पंडा भी हैं। स्थानीय लोगों की नाराजगी के अतिरिक्त पंडा समाज भी रत्नाकर मिश्र से उदासीन दिखाई पड़ता है। कॉरिडोर के निर्माण में जो प्रक्रिया अपनाई गई है उससे स्थानीय पंडा समाज नाखुश है। उनका यह भी कहना है कि विधायक जी स्वयं पंडा समाज से होते हुए भी अपने समाज की बात नहीं उठाए और सरकार एवं पार्टी के समक्ष झुक गए। अगर भाजपा रत्नाकर मिश्रा को आगामी चुनाव में यहां से टिकट देती है तो कैलाश चौरसिया से तगड़ी लड़ाई होगी क्योंकि कैलाश चौरसिया की वैश्य समाज में पकड़ अच्छी है। इससे भाजपा को यह सीट गंवानी पड़ सकती है। वैसे स्थानीय स्तर पर रत्नाकर मिश्रा के टिकट कटने की चर्चा आम हैं। एक प्रसिद्ध कथावाचक की पत्नी का लगभग भाजपा से टिकट पक्का है। भाजपा यहां से ब्राह्मण प्रत्याशी पर ही विचार कर रही है।

3. मझवां विधानसभा (Majhwan Assembly)

यह विधानसभा सीट 1960 में अस्तित्व में आई थी। इसके पूर्व यह मिर्ज़ापुर नगर विधानसभा का हिस्सा थी। 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा के टिकट पर शुचिस्मिता मौर्या ने बसपा के रमेश बिंद को 41 हजार के बड़े अंतर से चुनाव हराया था। रमेश बिंद के लिए यह सीट बहुत मजबूत हुआ करती थी। वह यहां से 3 दफे लगातार विधायक रहे हैं। वर्तमान में रमेश बिंद भदोही से भाजपा के सांसद है। इस क्षेत्र में विंध्य समाज और ब्राह्मण समाज की आबादी बहुतायत है। विंध्य समाज की अधिकता के कारण ही यहां से पार्टी अधिकांश विंध्य समाज के लोगों को ही टिकट देती रही हैं। वर्तमान में यदि समाजवादी पार्टी किसी बिंद समाज के व्यक्ति को टिकट देती है तो राजनीतिक समीकरण बदल सकते हैं और स्मिता मौर्या को तगड़ी चुनौती मिल सकती है। स्थानीय नाराज़गी की वज़ह से भाजपा यह सीट गंवा भी सकती है। मझंवा विधानसभा में जीत और हार प्रत्याशियों के चयन पर निर्भर करेगा। कई दफे बसपा ने भी यहां से चुनाव जीता है। अगर बहुजन समाज पार्टी बिंद समाज से प्रत्याशी उतारती है तो यहां मुकाबला त्रिकोण में बदल जाएगा क्योंकि दलित मतदाता ही सीट पर निर्णायक भूमिका में मौजूद हैं।

4. चुनार विधानसभा (chunar assembly)

यह इलाका चुनार किले की वजह से ज्यादा जाता है। प्रसिद्ध उपन्यासकार देवकीनंदन खत्री ने अपने उपन्यास चंद्रकांता में इसी जगह को केंद्र में रखा था। पत्थर और पॉटरी उद्योग के लिए चर्चित मिर्जापुर की यह सीट कुर्मी जाति बाहुल्य है। इसके अलावा दलित समाज की भी ठीक-ठाक आबादी है। यहां से भी कुर्मी समाज की अधिकता के कारण पूर्व में प्रत्याशी भी इसी समाज से जीतते रहे हैं। यह सीट एक परिवार की गढ़ मानी जाती है। इस परिवार के मुखिया हैं ओमप्रकाश सिंह। ये भाजपा की सरकार में सिंचाई मंत्री भी रहे हैं और 7 बार इस सीट से विधायक रहे हैं। 2017 में भाजपा ने यह सीट उनके सुपुत्र अनुराग सिंह को दी थी और उन्होंने सपा के जगदंबा सिंह पटेल को चुनाव हराया था। इस सीट पर कुर्मी समाज के 1,20,000 मतदाता बताए जाते हैं। साथी दलित और मुस्लिम समुदाय भी 35 से 40 हजार की संख्या में मौजूद है। अनुराग सिंह के लिए स्थानीय स्तर पर समीकरण मजबूत दिखाई पड़ते हैं। बसपा के टिकट पर यहां से विजय कुमार सिंह चुनाव लड़ रहे हैं जो पूर्व में कांग्रेस से भी टिकट मांग रहे थे। बिहार में भाजपा के साथ सरकार चला रही जदयू ने इस सीट पर संजय सिंह पटेल को मैदान में उतारा है। फिलहाल वर्तमान परिस्थितियों में यहां चुनावी लड़ाई भाजपा बनाम सपा ही रहने वाली है।

5. मड़िहान विधानसभा (madihan assembly)

इस सीट का अस्तित्व 2012 विधानसभा में परिसीमन के पश्चात आया था। इसके पूर्व में यह राजगढ़ विधानसभा का हिस्सा हुआ करती थी। यह सीट सोनभद्र जिले और मध्य प्रदेश की सीमा से लगती है। 2012 में यहां से ललितेश मणि त्रिपाठी विजयी हुए थे। ललितेश उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री पंडित कमलापति त्रिपाठी के परिवार से आते हैं। वर्तमान समय में इस सीट पर इनकी सक्रियता लगभग शून्य हैं। 2017 कि विधानसभा चुनाव में भाजपा से रमाशंकर सिंह पटेल नहीं कांग्रेस के ललितेश पति त्रिपाठी को 46 हजार के अधिक मार्जिन से चुनाव हराया था। रामाशंकर सिंह पटेल योगी सरकार में ऊर्जा राज्यमंत्री भी रहे हैं। एक वक्त में भारतीय जनता पार्टी रामाशंकर सिंह पटेल को मिर्जापुर में अनुप्रिया पटेल के बराबर खड़ा कर रही थी। तब अपना दल और भाजपा के रिश्तो में थोड़ी सी दूरी भी आई थी। लेकिन रामाशंकर सिंह पटेल बहुत सफल नहीं हुए हैं और वर्तमान समय में अपना दल खुद यहां से गठबंधन की सीट चाहती है। इससे अपना दल को 2 फायदे हैं। एक तो यह सीट आर्थिक रूप से मजबूत है और दूसरा अपना दल इस सीट को हासिल करते ही रमाशंकर सिंह पटेल को राजनीतिक रूप से कमजोर कर देगी। लेकिन स्थानीय स्तर पर तमाम नाराजगी के बावजूद रमाशंकर सिंह पटेल गांव के चौक चौराहों तक पहुंचने वाले नेता है। साथ ही किसी भी हाल में बीजेपी यह सीट अपना दल को नहीं देना चाहेगी। इसका सबसे बड़ा कारण है कि रामाशंकर सिंह पटेल की भाजपा के महासचिव और राज्यसभा सांसद अरुण सिंह से बेहद करीबी नजदीकियां है। रामाशंकर सिंह को विधायक और मंत्री बनाने में अरुण सिंह का बहुत बड़ा योगदान माना जाता है।



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पत्रकारिता के क्षेत्र में मुझे 4 सालों का अनुभव हैं. जिसमें मैंने मनोरंजन, लाइफस्टाइल से लेकर नेशनल और इंटरनेशनल ख़बरें लिखी. साथ ही साथ वायस ओवर का भी काम किया. मैंने बीए जर्नलिज्म के बाद MJMC किया है

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