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Sonbhadra Crime News: लाठी व पत्थरों से घंटों चला संघर्ष, उपद्रवियों को खदेड़ने के लिए पंहुची थी भारी पुलिस फोर्स

Sonbhadra: नगवां ब्लाक प्रमुख चुनाव को लेकर तनातनी की स्थिति बहुत ही भयावह नजर आई।

Kaushlendra Pandey
Published on: 11 July 2021 4:20 AM GMT
Sonbhadra Crime News: लाठी व पत्थरों से घंटों चला संघर्ष, उपद्रवियों को खदेड़ने के लिए पंहुची थी भारी पुलिस फोर्स
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Sonbhadra: नगवां ब्लाक प्रमुख चुनाव को लेकर तनातनी की स्थिति पिछले कई चुनाव से देखने को मिल रही थी लेकिन शनिवार को जो परिदृश्य दिखा, उसने बिहार सीमा एरिया में नक्सलियों और अपराधियों को लेकर किए जाने वाले सुरक्षा इंतजामों के दावों की पोल खोल कर रख दी।

प्रत्यक्षदर्शियों की मानें तो तनातनी की स्थिति बनने पर जवाब देने के लिए सपा प्रत्याशी के समर्थकों की तरफ से कुछ लोगों ने पहले से ही पलटवार की तैयारी कर रखी थी। मतगणना के समय दूध वाले बाल्टे में भरकर लाए गए पत्थर और पिकअप में भर कर रखी लाठी पर जैसे ही कुछ लोगों की नजर पड़ी स्थिति को भांपते हुए वहां से खिसक लिए।

कुछ लोगों के पास असलहे की मौजूदगी के भी दावे किए गए। भाजपा के कई लोग बवाल की आशंका में वहां से परिणाम की जानकारी मिलते ही चलते बने। कुछ तो मतदान पूर्ण होते ही वहां से निकल लिए। आसपास के लोग भी स्थिति को लेकर सशंकित थे।

प्रदेश के सबसे संवेदनशील इलाकों में शामिल

लोगों की बातों पर यकीन करें, तो उन लोगों ने पुलिस और प्रशासन के कुछ लोगों से इसे शेयर भी किया। लेकिन अपनी हनक से जिला पंचायत चुनाव से लेकर अब तक सपा समर्थकों को पीछे धकेलती आई पुलिस यह समझ ही नहीं पाई कि 2006 में नक्सलियों के ट्रेनिंग कैंप का गवाह रह चुका नगवां इलाका नक्सलवाद के मामले में जनपद ही नहीं प्रदेश का सबसे संवेदनशील इलाकों में शामिल है।

2012 तक पुलिस के जांबाज भी इस इलाके में शाम ढलने के बाद चलने से दस बार सोचते रहे हैं। स्थिति को नियंत्रित करने के लिए पिछले वर्ष तक यहां सीआरपीएफ को कैंप करना पड़ा है।बावजूद पुलिस के अति आत्मविश्वास का परिणाम कहें या कुछ और...।

वहींं हुआ जिसकी लोगों को आशंका थी और चुनाव के मामले में शांतिपूर्ण रहा नगवां जनपद के अब तक के इतिहास में सबसे बड़े उपद्रव का साक्षी बन गया।

देर तक असहाय बनी रही पुलिस, रुक रुक कर चलता रहा बवाल

फोटो- सोशल मीडिया

नक्सलियों, आपराधिक गतिविधि प्रभावित इलाके में उपद्रव की आशंका के बावजूद पुख्ता तैयारी ना होने का परिणाम यह था कि रुक-रुक कर ढाई घंटे तक बवाल चलता रहा। पहले सीधी भिड़ंत हुई, पुलिस ने हवाई फायरिंग की आंसू गैस के गोले छोड़े तो जवाब में उपद्रवियों ने भी एक दो गोले फोड़ पुलिस को हैरत में डाल दिया।

प्रत्याशी के समर्थक 19 बीडीसी और सैकड़ों समर्थक ब्लाक पर धरने पर बैठकर भी माहौल को गरम कर दिए। उन्हें हटाने के लिए पुलिस को लाठियां भांंजनी पड़ी। हालांकि धरने पर बैठे लोगों का आरोप था कि सपा प्रत्याशी को प्रशासन ने धांधली कर हराया है। उनकी मांग थी कि पूरी चुनावी प्रक्रिया रद्द करते हुए फिर से चुनाव कराया जाए।

हालत यह थी कि जिला पंचायत अध्यक्ष के चुनाव के दौरान आक्रामक अंदाज में दिखने वाली पुलिस यहां देर तक रक्षात्मक लड़ाई ही लड़ती नजर आई। एक सीओ, एक इंस्पेक्टर और दो पुलिसकर्मी घायल हो गए। भाजपा के जिला महामंत्री के वाहन के शीशे तोड़ दिए गए। उन्हें पत्थर मारे गए।

उनके साथ मौजूद भाजपा पदाधिकारी संजय जायसवाल को जख्मी कर दिया गया लेकिन चोपन में दलित प्रत्याशी का पर्चा छीनने की कोशिश कर सत्ता का दम दिखाने वाले भाजपा के लोग यहां जान की सलामती में ही भलाई समझते रहि। कई थानों की पुलिस फोर्स पहुंची। डीएम-एसपी ने मार्च कर मैदान संभाला, तब जाकर स्थिति नियंत्रित हुई।

नक्सलवाद की आग में वर्षों तक झुलसते रहे नगवां अंचल को लेकर दिखानी होगी संजीदगी:

फोटो- सोशल मीडिया

सवाल उठता है कि नक्सल और आपराधिक गतिविधि प्रभावित इलाका होने के बावजूद मतगणना केंद्र तक पत्थर और लाठी लेकर पहुंचने की छूट कैसे मिल गई? बवाल की आशंका और धारा 144 लागू होने के बावजूद लोगों के बड़ी संख्या में जमावड़े पर ध्यान क्यूं नहीं दिया गया?

चर्चाओं पर यकीन करें तो सत्ता साथ थी, सत्ता का तंत्र साथ था, फिर नगवां में ऐसी कौन सी परिस्थिति आ गई कि बीडीसी सदस्यों का बहुमत जुटाने के लिए आपराधिक छवि वालों का साथ लेने की जरूरत पड़ गई?

यह सवाल ऐसे हैं जिसका जवाब शायद ही मिले लेकिन वर्षों तक नक्सलवाद की आग में झुलसने वाले नगवां अंचल में नौ साल से बह रही सुकून की बयार फिर से आपराधिक गतिविधियों की संरक्षक न बन जाए? हुक्मरानों को इस पर न केवल सोचना होगा बल्कि इस पर ध्यान देने और इसको दृष्टिगत रखते हुए संजीदगी पूर्ण कदम उठाना होगा।

यादवों-खरवारों के बीच वर्षों तक चलती रही है वर्चस्व की जंग, भेंट चढ़ी पूर्व विधायक की जिंदगी

नक्सलवाद के लिए पूरे देश में चर्चित नगवां के जंगल कई सालों तक दस्यु व्यवस्था के भी पोषक रहे हैं। यादवों और खरवारों के बीच वर्चस्व की लड़ाई के चलते पनपी यह व्यवस्था वर्षों तक इस इलाके के लोगों के लिए खौफ का पर्याय बनी रही।

घमड़ी सिंह खरवार के आत्मसमर्पण और विधायक बनने के बाद, दस्यु आतंक तो थम गया लेकिन वर्चस्व की लड़ाई में पहले रामबचन यादव, बाद में घमड़ी सिंह खरवार की जिंदगी असमय खत्म हो गई।

एएसपी की अगुवाई में पुलिस टीम कर रही कैंप, इलाका छावनी में तब्दील

पुलिस प्रवक्ता का दावा है कि सपा प्रत्याशी के हारने के बाद समर्थकों ने राबर्ट्सगंज-खलियारी मार्ग जाम कर दिया। पुलिस ने उन्हें समझा-बुझाकर हटाने का प्रयास किया तो पथराव शुरू कर दिया गया, जिसमें सीओ आशीष मिश्रा, इंस्पेक्टर विश्वज्योति राय और दो पुलिसकर्मी घायल हो गए।

मजबूरन पुलिस को न्यूनतम बल प्रयोग करना पड़ा। 16 लोग हिरासत में लिए जा चुके हैं। एएसपी नक्सल राजीव कुमार सिंह की अगुवाई में पुलिस टीम मौके पर कैंप कर रही है।

Vidushi Mishra

Vidushi Mishra

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