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UP Election 2022: यूपी की एक ऐसी सीट जहां हर बार बदल जाता है सियासी समीकरण, कांग्रेस की मजबूत पैठ के समय भी होता रहा उलटफेर
UP Election 2022: घोरावल विधानसभा सीट को पहले राजगढ़ विधानसभा क्षेत्र के रूप में जाना जाता था। 1985 तक यह इलाका कांग्रेस का गढ़ माना जाता था लेकिन उस समय भी उलटफेर का क्रम सियासी पंडितों को चौंकाता रहा।
Sonbhadra News: घोरावल विधानसभा क्षेत्र (2012 से पहले राजगढ़ क्षे़त्र की एरिया) (Ghorawal Assembly Constituency) एक ऐसा विधानसभा क्षेत्र है, जहां हर विधानसभा चुनाव (Vidhan Sabha Chunav) में एक अलग ही सियासी समीकरण बना नजर आता है। इस बार भी यहां का माहौल कुछ बदला-बदला सा है। सियासी रणनीतिकारों का दावा है कि इस बार सीधी नहीं, चतुष्कोणीय लड़ाई (quadrangular battle) है। वहीं जो आंकड़े हैं और जो हालात दिख रहे हैं, वह भी यह बयां कर रहे हैं कि इस बार यहां के समीकरण खासे उलझे हुए हैं।
वैसे तो घोरावल विधानसभा सीट 2012 में अस्तित्व में आई लेकिन इससे पहले इस क्षेत्र को राजगढ़ विधानसभा क्षेत्र के रूप में जाना जाता था। 1985 तक यह इलाका कांग्रेस का गढ़ माना जाता था लेकिन उस समय भी उलटफेर का क्रम सियासी पंडितों को चौंकाता रहा। वर्ष 2012 के बाद से अब तक के परिणाम भी यहां हर चुनाव में सियासी समीकरण बदलने की बात पर मुहर लगाते आ रहे हैं। इस बार का समीकरण क्या गुल खिलाएगा? यह तो मतगणना का परिणाम बताएगा? लेकिन इस बार यहां आए दिन बनते-बिगड़ते समीकरणों ने सियासतदारों को भी उलझाकर रख दिया है।
प्रत्येक चुनाव के साथ बदलती गई जीत की तस्वीर
बताते चलें कि वर्ष 1976 में यहां कांग्रेस के लोकपति त्रिपाठी को जीत मिली थी। वहीं 1977 में जनता पार्टी के राजनारायण ने लोकपति को हराकर कांग्रेस से यह सीट हथिया ली थी। वर्ष 1980 में एक बार फिर से यह सीट कांग्रेस के खाते में आई और रामचरन ने जनता पार्टी सेक्युलर के हरिहर को दोगुने से भी अधिक मत पाकर शिकस्त दी। 1985 में कांग्रेस के नरेंद्र रेव ने जीत दर्ज की लेकिन इसके बाद 1989 में भाजपा के गुलाब सिंह यहां काबिज हो गए। 1991 में जनता दल के राजेंद्र ने कांटे के संघर्ष में भाजपा के गुलाब सिंह को हराकर सीट हथिया ली।
1993 में इस सीट पर बसपा के रामलोटन को जीत मिली लेकिन 1996 में कांग्रेस के लोकपति त्रिपाठी ने एक बार फिर से इस सीट पर धमाकेदार जीत दर्ज कर कांग्रेस का परचम लहरा दिया लेकिन इस जीत में बसपा के समर्थन की भी अहम भूमिका रही। वर्ष 2002 और 2007 दोनों में बसपा के अनिल कुमार मौर्या विधायक निर्वाचित हुए लेकिन 2012 में घोरावल सीट के अस्तित्व में आने के साथ ही सपा के रमेशचंद्र दूबे ने बसपा के विजयरथ को यहीं रोक दिया। 2017 में एक बार फिर से अनिल मौर्य निर्वाचित हुए लेकिन इस बार वह भाजपा उम्मीदवार के रूप में सामने आए।
राजपरिवार की इंट्री कांग्रेस (Congress Party) को दिला पाएगी जीत? टिकी सभी की निगाहें
2022 के विधानसभा चुनाव (UP Election 2022) में भी अनिल मौर्य भाजपा से और रमेशचंद्र दूबे सपा से चुनावी मैदान में है, लेकिन कांग्रेस की तरफ से इस बार, इस सीट पर राजपरिवार के बहू की हुई इंट्री और बसपा की तरफ से मौर्य बिरादरी के मोहन कुशवाहा को चुनावी मैदान में उतारकर यहां का चुनावी समीकरण दिलचस्प बना दिया है। वहीं भाजपा, सपा और बसपा की तरफ से एक दूसरे के परंपरागत वोटरों में सेंधमारी की होती कोशिश और आए दिन बनते-बिगड़ते माहौल ने भी यहां के सियासी समीकरण को उलझा कर रख दिया है।
ऐसे में राजपरिवार की इंट्री क्या कांग्रेस को जीत दिला पाएगी? या अनिल मौर्या, हर चुनाव में सियासी समीकरण बदलने के मिथक को तोड़कर एक बार फिर से इस सीट पर भाजपा को जीत दिलाने में कामयाब होंगे? इसको लेकर जहां चर्चाओं का बाजार गर्म है। वहीं सपा को इं. रमेशचंद्र दूबे की मजबूत दावेदारी और बसपा के मोहन कुशवाहा की भाजपा के मजबूत वोटबैंक में सेंधमारी की कोशिश को लेकर भी जीत की अटकलें लगाई जा रही हैं।
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