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Gandhi Jayanti 2 October: कैद में गांधी, सोनभद्र में जयंती पर ही खुली हवा नसीब हो पाती है प्रतिमाओं को, फिर एक साल की कैद

चंद दिन बाद ही दो अक्टूबर को हम सब गांधी जयंती मना रहे होंगे। पूरे साल चमक-दमक वाले कपड़ों में लदे रहने वाले उस दिन गांधी पहनावे और गांधी छाप झोले के साथ लोगों को ग्राम स्वराज की सीख देते भी नजर आएंगे, लेकिन हकीकत पर नजर डालेंगे तो पता चलेगा कि अगले दिन ही आदर्शवाद भरे विचार गोष्ठियों की समाप्ति के साथ ही एक वर्ष तक के लिए गांधी एक बार फिर तालों में कैद हो जाएंगे।

Kaushlendra Pandey
Report Kaushlendra PandeyPublished By Ashiki
Published on: 12 Sep 2021 10:19 AM GMT (Updated on: 12 Sep 2021 12:45 PM GMT)
statue of Gandhi ji
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सोनभद्र में ताले में बंद गांधी जी की प्रतिमा

सोनभद्र: चंद दिन बाद ही दो अक्टूबर को हम सब गांधी जयंती मना रहे होंगे। उनके नाम पर आयोजित गोष्ठियों, कार्यक्रमों में सादा जीवन-उच्च विचार के संदेश किए जा रहे होंगे। पूरे साल चमक-दमक वाले कपड़ों में लदे-फदे रहने वाले उस दिन गांधी पहनावे और गांधी छाप झोले के साथ लोगों को ग्राम स्वराज की सीख देते भी नजर आएंगे, लेकिन हकीकत पर नजर डालेंगे तो पता चलेगा कि अगले दिन ही आदर्शवाद भरे विचार गोष्ठियों की समाप्ति के साथ ही एक वर्ष तक के लिए नेपथ्य में चले जाएंगे।

स्थिति यह है कि चाहे कलेक्ट्रेट स्थित गांधी उद्यान का मामला हो या फिर ओबरा में पूरे वर्ष तक ताले में कैद रहने वाली गांधी की प्रतिमा का मामला हो, गांधीजी याद तभी आते हैं जब उनकी जयंती मनानी होती है। आवाज उठाते-उठाते थक चुके ओबरा के बाशिंदे भी अब इस बात को स्वीकार कर चुके हैं कि गांधी मैदान में साल भर कैद रहने वाली गांधी की प्रतिमा को दो अक्टूबर को ही आजादी मिलेगी। इसके बाद फिर से ताले और लोहे के जाली के घेरे में उसे कैद कर दिया जाएगा।

महात्मा गांधी से जुड़े एक कार्यक्रम में उनके विचारों को करीब से देखता आदिवासी

ओबरा परियोजना के स्वामित्व वाले गांधी मैदान की इस प्रतिमा के पीछे जिम्मेदारों का तर्क होता है कि सुरक्षा की दृष्टि से ऐसा किया जाता है। सवाल उठता है कि जब गांधी जी की प्रतिमा सुरक्षित नहीं है तो फिर उनके सपने, उनके विचार या फिर उनके सपनों को जिंदा रखने का माध्यम गांवों की संस्कृति कितनी सुरक्षित है?

सोनभद्र में कलेक्ट्रेट स्थित गांधी उद्यान में स्थापित महात्मा गांधी की प्रतिमा

लोढ़ी स्थित कलेक्ट्रेट परिसर में कुछ वर्ष पहले ही गांधी उद्यान का निर्माण कर उनकी प्रतिमा स्थापित की गई है। उद्यान के उद्घाटन के बाद कुछ माह तक गांधी जी को नियमित माला भी चढ़ती रही, लेकिन गुजरते समय के साथ गांधी की प्रतिमा को दो अक्टूबर के दिन के अलावा, शेष दिनों के लिए उनके हाल पर छोड़ दिया गया।

सोनभद्र के अनपरा में पार्क में स्थापित गांधी जी की प्रतिमा जहां तक लोगों की पहुंच आसान नहीं

इसी तरह राज्य सेक्टर की सबसे बड़ी बिजली परियोजना अनपरा की तरफ से हाथी पार्क में महात्मा गांधी की प्रतिमा स्थापित की गई है। प्रतिमा को सुरक्षित रखने के लिए उनके ऊपर छाजन किया गया है लेकिन उन तक पहुंचने वाले रास्ते पर इस वक्त ताला बंद कर दिए जाने के कारण सामान्य व्यक्तियों की नजर उन तक पहुंचना संभव नहीं हो पा रहा। इसी तरह ओबरा में गांधी के नाम पर गांधी मैदान के नाम से स्टेडियम का निर्माण किया गया है। पूरे वर्ष यहां विविध आयोजन होते रहते हैं, लेकिन इसे सुरक्षा का मसला कहें या कुछ और वर्षों पूर्व यहां स्थित गांधी प्रतिमा को दो अक्टूबर के अलावा के दिनों में ताले और लोहे के जाली के घेरा से बांधकर रखने की परंपरा सी बन गई है।

सोनभद्र में ताले में बंद गांधी जी की प्रतिमा

गांधीवादी संस्थाओं के सामने सरकारी तंत्र की उदासीनता और आर्थिक संकट बड़ी चुनौती

जिले में गांधीवादी विचारधारा वाली संस्था गांधी स्मारक निधि की तरफ से राबर्ट्सगंज, शक्तिनगर, दुद्धी सहित अन्य जगहों पर खादी की दुकान संचालित है। खादी के प्रति लोगों के कम होते मोह को जिम्मेदार मानें या दिन-ब-दिन संस्था की खराब होती स्थिति को जिम्मेदार ठहराएं। कुछ वर्ष पूर्व तक कपड़ों और ग्राहकों से भरी रहने वाली दुकान इन दिनों अस्तित्व के संकट से गुजर रही हैं। काम करने वाले कर्मचारियों को समय से वेतन मिल जाए यही बहुत है।

गांधीवादी विचारक पंडित अजयशेखर

गांधी स्मारक निधि संचालक मंडल के सदस्य, बनवासी सेवा आश्रम के अध्यक्ष एवं गांधीवादी विचारक पंडित अजय शेखर कहते है,"वर्तमान परिदृश्य में गांधीवादी संस्थाएं और गांधीवादी विचारधारा वाले लोग सुरक्षित हैं। यहीं बहुत बड़ी बात है। अब गांधीवादी संस्थाओं पर भी सत्तापक्ष से जुड़े लोग अपने लोगों को बैठाने और उन्हें कब्जे में लेने की कोशिश में जुटे हुए हैं। सरकारी नुमाइंदों की तरफ से भी परोक्ष रूप से उन्हें बढ़ावा दिया जा रहा है। अगर कोई इसका विरोध कर रहा है तो उसे डराया-धमकाया जा रहा है।" हाफिज बताते हैं,"गांधी जी के सपनों को साकार करने के लिए जहां व्यापक जनजागरूकता की जरूरत है। वहीं लोगों को भी यह समझना पड़ेगा कि आधुनिकता की चकाचौंध कुछ दिन के लिए आकर्षण का केंद्र जरूर बन सकती है। लेकिन हर किसी को खुशहाली का जीवन नहीं दे सकती । यह तभी संभव है जब गांधी के सादा जीवन उच्च विचारवाले सिद्धांत को जीवन में उतारा जाए। सीमित आवश्यकता में जीवन जीने की आदत डालने के साथ ही गांव स्तर पर ही अपने कौशल को निखारने रोजगार का जरिया बनाया जाए। सरकारों को भी चाहिए कि वह इसके लिए व्यापक कार्ययोजना बनाएं और युवाओं को गांवस्तर पर ही रोजगार की व्यवस्था देने में मदद करें।"

ग्रामीण स्तर पर विभिन्न उत्पादों को तैयार कर उसे बाजार से जोड़ने की कोशिश

ग्राम स्वराज के लिए ग्राम स्तर पर योजनाओं के क्रियान्वयन और गांवों में रोजगार का अवसर पैदा करना जरूरी

महात्मा गांधी के ग्राम स्वराज के सपनों को साकार करने में लगी बनवासी सेवा आश्रम की संचालिका शुभा बहन कहती हैं, "बदलते परिवेश में सादा जीवन उच्च विचार से जुड़ी नैतिकता के मूल्य का क्षरण हो रहा है। लोगों को इससे जुड़े संदेश सुनने में भी अच्छे लगते हैं, लेकिन आधुनिकता की चकाचौंध के आगे इसे अपने रोजमर्रा के जीवन में अंगीकार करने से हिचक रहे हैं। जिस दिन लोग अपनी आवश्यकताएं सीमित रखने और गांधीजी के ग्राम स्वराज के सपने को साकार करने वाले विचारों पर अमल करना शुरू कर देंगे। उस दिन कई समस्याएं खुद-ब-खुद खत्म हो जाएंगी।"

बनवासी सेवा आश्रम की संचालिका शुभा बहन

उन्होंने गांव में बढ़ते आधुनिक बाजारवाद के प्रवेश पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि गांवों को खुद का बाजार विकसित करने के लिए प्रेरित करना होगा। सोनभद्र में एक बड़ी आबादी वनों के उपज पर निर्भर थी, लेकिन विकास की अंधाधुंध दौड़ के चलते पड़े प्रदूषण की मारने लाह जैसी नकदी आय देने वाली कई प्रमुख फसलों को नष्ट कर दिया।

सोलर ड्रायर तकनीक से महिलाओं को ग्राम स्तर पर उत्पाद तैयार करने का दिया जाता प्रशिक्षण

प्रदूषण का असर गांव के ऊपर पर भी पड़ रहा है। गांव के हुनर को गांव स्तर पर ही विकसित कर बाजार उपलब्ध कराने को लेकर भी संजीदगी नहीं दिखाई जा रही है। इसके चलते बेरोजगारी एकबड़ी समस्या बनी हुई हैं।

बनवासी सेवा आश्रम में मशीन से काता जा रहा खादी का सूत

यह कटु सत्य है कि अवसर सीमित हैं, लेकिन उसकी लालसा करने वाले बहुतेरे। इसी का परिणाम है कि भ्रष्टाचार थमने की बजाय लगातार बढ़ रहा है। युवा पीढ़ी को यह समझना होगा कि उसे अपनी संस्कृति, पुराने नैतिक मूल्य और गवाही हुनर को तराशने की तरफ ध्यान दिया जाना चाहिए। सरकार को भी चाहिए कि योजनाओं के केंद्रीयकरण की बजाय उसे गांव स्तर पर विकेंद्रित कर गांव के लोगों का जीवन स्तर सुधारने पर ध्यान दें। ताकि चंद रुपयों के रोजगार की तलाश में लोगों को गांव से पलायन न करना पड़े।

बनवासी सेवा आश्रम में चरखा चलाकर सूत काता एक स्वयंसेवक

बता दें कि बनवासी सेवा आश्रम मैं जहां अभी भी चरखों से सूत काते जाते हैं। वही यहां उत्पादित होने वाले खादी के कपड़े आधुनिकता के चकाचौंध में भी एक बड़ी तादाद के लोगों की पहली पसंद बने हुए हैं। ग्रामोद्योग के जरिए लोगों को शुद्ध खानपान और गंवई हुनर को तराशकर गांव स्तर पर ही आय का बेहतर जरिया पैदा करने के लिए प्रेरित किया जा रहा है।

ग्राम स्वराज के परिकल्पना के तहत ग्रामीण महिलाओं को दी जाती ग्रामीण उत्पादों को तैयार करने की ट्रेनिंग

यह आश्रम इलाके के लोगों को खासकर आदिवासी तबके की महिलाओं को लगातार स्वावलंबी बनाने में लगा हुआ है। इसके लिए उन्हें गांव स्तर पर विभिन्न उत्पादों के उत्पादन की ट्रेनिंग देकर, उनके उत्पाद को बाजार उपलब्ध कराने के प्रयास में जुटा हुआ है।

Ashiki

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