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मौतों से थर्राया यूपी का ये जिला : बुखार ढा रहा भयंकर कहर, दम तोड़ते मासूम

Sonbhadra : सोनभद्र में म्योरपुर ब्लॉक के मकरा (सेंदुरा) गांव में शनिवार की रात 11 वर्षीय मासूम ने दम तोड़ दिया। यह 35 दिन में 15वीं मौत है।

Kaushlendra Pandey
Published on: 21 Nov 2021 10:06 PM IST (Updated on: 21 Nov 2021 10:18 PM IST)
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सांकेतिक तस्वीर 

Sonbhadra : जिस आदिवासी बाहुल्य सोनभद्र में सरकारें विकास की गंगा बहाने का दावा करती हैं। आदिवासी सम्मेलनों के जरिए वोटरों को रिझाने की कोशिश होती हैं। आदिवासियों और उनके बच्चों की होती मौत न तो सरकारी तंत्र के लिए बड़ी बात है, न ही सत्ता के बड़े सियासतदारों के लिए कोई मुद्दा।

म्योरपुर ब्लॉक के मकरा (सेंदुरा) गांव में शनिवार की रात 11 वर्षीय मासूम ने दम तोड़ दिया। यह 35 दिन में 15वीं मौत है। एक और मासूम की हालत गंभीर होने पर जिला अस्पताल रेफर कर दिया गया है।


बताते चलें कि इससे पहले बारिश के सीजन में इसी ब्लॉक के बेलहत्थी ग्राम पंचायत में दो महीने के भीतर 23 जिंदगियां बुखार की भेंट चढ़ चुकी है। ज्यादातर संख्या मासूमों की है। एक निजी पैथोलॉजी की रिपोर्ट पर गौर करें तो शनिवार की रात हुई मासूम की मौत मलेरिया से हुई है लेकिन स्वास्थ्य महकमा अभी भी इसको नकारने में लगा हुआ है।

हालात कितने गंभीर हैं, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि मौतों की सूचना पर पहुंची स्वास्थ्य विभाग की टीम ने दो हजार की आबादी वाले इस गांव में 3 दिन में 135 बुखार पीड़ितों का ब्लड सैंपल लिया।

सूत्रों पर भरोसा करें तो इसमें 22 पैल्सीफोरम मलेरिया (मलेरिया का सबसे खतरनाक स्वरूप) और 39 टायफाइड पीड़ित पाए गए हैं। शेष सर्दी, जुकाम, खांसी और मौसमी बुखार की चपेट में हैं। इसमें रानी (3) पुत्री बहादुर अगरिया को सीएचसी म्योरपुर से जिला अस्पताल रेफर कर दिया गया है। शांति (24) पत्नी रामप्रसाद गोंड़ का इलाज पीएचसी मकरा में चल रहा है। स्वास्थ्य विभाग स्थिति सामान्य होने का दावा कर रहा है लेकिन ब्लड सैंपलिंग की जो रिपोर्ट आई है, वह कुछ और ही कहानी बयां कर रही है।


मौतों के बाद जगते हैं जिम्मेदार

पूर्व प्रधान रामभगत यादव, जगधारी, अक्षय, राम नारायण, हरि प्रसाद आदि कहते हैं कि बीमारी शुरू होने पर स्वास्थ्य महकमे को सूचना दी जाती है लेकिन न तो सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र के लोग इसे गंभीरता से लेते हैं, न ही जिले के लोग संजीदगी दिखाते हैं। मौतें जब मीडिया की सुर्खियां बनती है, तब स्वास्थ्य टीम गांव में कैंप करना शुरु करती है। स्थिति नियंत्रित होने के बाद पूर्व की तरह उदासीन हो जाते हैं। मकरा में समय रहते मलेरियारोधी दवा का छिड़काव हो गया होता तो शायद यह स्थिति न आती।

लापरवाही का लिया जाएगा संज्ञान

एसडीएम दुद्धी रमेश कुमार ने कहा कि स्थिति पर लगातार नजर रखी जा रही है। स्वास्थ्य टीम के जरिए प्रभावितों की जांच और उपचार कराया जा रहा है। इतनी ज्यादा मौतें क्यों हो रही हैं? किस स्तर से लापरवाही बरती गई है। इसका भी संज्ञान लिया जाएगा। मलेरिया निरीक्षक के अक्सर गायब होने की वजह भी जांची जाएगी। इस मसले पर सीएमओ डॉक्टर नेम सिंह से भी संपर्क का प्रयास किया गया लेकिन उनका सेलफोन नाट रिचेबल मिलता रहा।


जहरीले पानी को पीकर मर रहे ग्रामीण, आइपीएफ की मांग

मकरा में हुई मौतों को लेकर आल इंडिया पीपुल्स फ्रंट ने सीधा हमला बोला है। मौतों के लिए जहरीले (प्रदूषित) पानी के सेवन को जिम्मेदार बताया गया और प्रशासन से इसकी जांच की मांग की गई। आइपीएफ जिला संयोजक कृपा शंकर पनिका, मजदूर किसान मंच जिलाध्यक्ष राजेन्द्र प्रसाद गोंड़, मंगरू प्रसाद गोंड़, मनोहर गोंड़, ज्ञानदास गोंड़, बिरझन गोंड़, रामचंदर गोंड़, रामसुभग गोंड़, जयपत गोंड़, जगमोहन गोंड़ आदि ने कहा कि एक तरफ जिले में आजादी का अमृत महोत्सव मनाया जा रहा है।

वहीं आदिवासी, ग्रामीण जहरीले पानी को पीकर बेमौत मर रहे है। मकरा में लोग इसी जहरीले पानी को पीकर असमय मृत्यु का शिकार हुए। इससे पहले बेलहत्थी के रजनीटोला में ऐसी ही मौतें हुई। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने संज्ञान लिया, तब भी वहां एक हैंडपंप तक नहीं लगा।

मानवाधिकार आयोग और एनजीटी ने ग्रामीणों को शुद्ध पेयजल उपलब्ध कराने के लिए कई दिशा-निर्देश दिए। करोड़ों रुपये के कारपोरेट सोशल रिस्पांसबिलटी फंड और डीएमएफ का फंड होने के बाद भी उदासीनता बनी हुई है।



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Vidushi Mishra

Vidushi Mishra

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