Sonbhadra News: सर्दी की आहट के बीच डराने लगे प्रदूषण के आंकड़े, लगातार जहरीली हो रही आबोहवा

Sonbhadra News: सोनभद्र सिंगरौली की हवा में बढ़ी प्रदूषक तत्वों की मात्रा ने दिल्ली को भी पीछे छोड़ दिया है।

Shraddha
Published By Shraddha
Published on: 26 Oct 2021 10:17 AM GMT (Updated on: 26 Oct 2021 12:05 PM GMT)
सोनभद्र में लगातार जहरीली हो रही हवा
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सोनभद्र में लगातार जहरीली हो रही हवा (कॉन्सेप्ट फोटो - सोशल मीडिया)

Sonbhadra News : सर्दी की आहट के साथ डराने लगे प्रदूषण के आंकड़े (pradushan ke ankade) , मानक से 16 गुना अधिक हुआ रिकॉर्ड, दिल्ली से भी ज्यादा जहरीली हुई सोनांचल की आबोहवा, NCAP की निकल रही हवा। लेकिन जिले में प्रदूषण नियंत्रण के नाम पर दौड़ाये जा रहे हैं ज्यादातर कागजी घोड़े। इसके चलते सोनभद्र में राष्ट्रीय वायु स्वच्छता कार्यक्रम (National Clean air Programme) की हवा भी निकल रही है। पिछले तीन दिन से सोनभद्र-सिंगरौली (Sonbhadra-Singrauli) की हवा में बढ़ी प्रदूषक तत्वों की मात्रा ने दिल्ली को भी पीछे छोड़ दिया है। वहीं दो दिन से यहां के प्रदूषण का आंकड़ा टॉप पर बना हुआ है। हालत यह है कि मौसम में जरा सा उतार-चढ़ाव सर्दी खांसी के मरीजों में इजाफा तो कर ही रहा है। सांस के रोगी और लंग कैंसर (lung cancer) के मरीज भी तेजी से बढ़ने लगे हैं।

देश के तीसरे सर्वाधिक प्रदूषित क्षेत्र में शुमार सोनभद्र-सिंगरौली एरिया पिछले 30 साल से गहरे प्रदूषण का दंश झेल रहा है इसके चलते जहां 30 से अधिक गांवों की तीन पीढ़ियां दिव्यांगता का दंश झेल रही हैं। वहीं कैंसर, बांझपन, त्वचा रोग, घटती रोग प्रतिरोधक क्षमता, नर्वस सिस्टम पर असर पड़ने वाले असर के कारण खुदकुशी करने वालों की बढ़ती संख्या ने सोनांचल को रोगियों और मौतों का एरिया बना कर रख दिया है।

एनजीटी (National green tribunal) की सख्ती के बाद कागजों पर प्रदूषण नियंत्रण के प्रयास तो खूब हुए लेकिन हकीकत यह है कि वर्तमान में ऊर्जांचल की सड़कों पर पानी छिड़काव बंद हो चुका है। अस्पतालों से प्रदूषण जनित रोगों के विशेषज्ञ डॉक्टर नदारद हैं। मरकरी के मानव जीवन पर पड़ रहे असर के अध्ययन के लिए एक अदद लैब की स्थापना नहीं हो सकी है।



सर्दी की आहट के बीच डराने लगे प्रदूषण के आंकड़े

सोनभद्र के पर्यावरण में प्रदूषण झेलने की क्षमता कितनी रह गई है? एनजीटी के निर्देश के बावजूद सरकारी तंत्र इसके अध्ययन की जरूरत अब तक नहीं समझ सका है। फेफड़ों में हवा भरने की छमता लगातार घट रही है। बनवासी सेवा आश्रम गोविंदपुर एवं एक अन्य संस्था के अध्ययन के अनुसार ऊर्जांचल की आधे से अधिक आबादी के फेफड़े प्रदूषण से किसी न किसी रूप में प्रभावित हो चुके हैं। कोरोना काल में सबसे ज्यादा केस भी इसी एरिया से आए। बावजूद सड़कों पर उड़ती कोयले की धूल, धूप के बावजूद हवा में छाए कोहरे जैसी धुंध, कोयला परिवहन नियंत्रण के नाम पर चल रही कवायदों की हवा निकाल रही है। यह स्थिति तब है जब राष्ट्रीय वायु स्वच्छता कार्यक्रम के तहत देश भर के 101 शहरों की सूची में यूपी के पावर कैपिटल अनपरा का भी नाम शामिल है। प्रोग्राम में प्रतिवर्ष 30 से 35% प्रदूषण घटाने का लक्ष्य रखा गया है लेकिन जो ताजा आंकड़े बता रहे हैं उसके मुताबिक सोनभद्र की हवा में बढ़ते प्रदूषण के शहर में दिल्ली जैसे संवेदनशील जगह को भी पीछे छोड़ कर रख दिया है।

@246 तक पहुंचा वायु गुणवत्ता सूचकांक, डब्ल्यूएचओ का मानक है महज 15 का। प्रदूषण नियंत्रण को लेकर भारत जैसे देशों में बरती जा रही लापरवाही को लेकर विश्व स्वास्थ्य संगठन की तरफ से अक्टूबर माह के पहले सप्ताह में हवा में प्रदूषक तत्वों के मानक को और कड़ा कर दिया गया है। पहले जो मानक (वायु गुणवत्ता सूचकांक) 25 तय किया गया था। उसे घटाकर 15 कर दिया गया है। इस मानक पर ध्यान दें तो सोनभद्र की हवा में शादी की आहट के साथ ही, प्रदूषण का जहर मानक (15) के 16 गुना से भी अधिक (246) फैल गया है।

सोनभद्र के प्रदूषण ने दिल्ली को छोड़ा काफी पीछे

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की तरफ से प्रति 24 घंटे पर जारी किए जाने वाले आंकड़े बताते हैं कि 23 अक्टूबर को दिल्ली में वायु गुणवत्ता सूचकांक 173 था वहीं सिंगरौली एरिया (सोनभद्र शामिल) में इससे 237 दर्ज किया गया। 24 अक्टूबर को दिल्ली में सूचकांक 160, सोनभद्र में 246, 25 अक्टूबर को दिल्ली में सूचकांक 82 और सोनभद्र में 215 रिकॉर्ड किया गया। आंकड़े यह बताने के लिए काफी हैं कि सोनभद्र में प्रदूषण नियंत्रण के नाम पर चल रही कवायदें कितनी जिम्मेदारी से परवान चढ़ाई जा रही हैं।

सरकारी तंत्र की उदासीनता है बड़ा कारण


एनजीटी के याचिकाकर्ता जगत नारायण, सिंगरौली प्रदूषण मुक्ति वाहिनी के संयोजक रामेश्वर भाई कहते हैं कि सरकारी तंत्र की उदासीनता प्रदूषण पर लगाम न लगने का एक बड़ा कारण है। कई गांवों में लोगों को शुद्ध पेयजल उपलब्ध कराने के लिए स्थापित आरओ प्लांट बंद पड़े हैं। धूल से राहत के लिए सड़कों पर होने वाला पानी का छिड़काव भी लंबे समय से बंद पड़ा है। एनजीटी में प्रति तीन माह पर दी जाने वाली स्टेटस रिपोर्ट में सरकारी तंत्र की तरफ से किए जाने वाले उपायों को लेकर बेहतरी के दावे तो किए जाते हैं लेकिन हकीकत में काफी कुछ उसके उलट रहता है।


अब भी नहीं चेते तो होंगे गंभीर प्रणाम

पर्यावरण वैज्ञानिक डॉ. एके गौतम और पर्यावरण विशेषज्ञ डॉ. सीमा का कहना है कि सरकारी तंत्र के लोग अगर अब भी नहीं चेते तो आने वाले समय में सोनभद्र सिंगरौली के बाशिंदों को काफी गंभीर परिणाम भुगतने पड़ेंगे। कहा कि प्रदूषण के चलते यहां के लोगों को लंग कैंसर और सांस की बीमारी तेजी से चपेट में तो ले ही रही है। लोगों के कार्य करने की क्षमता भी घटती जा रही है। उधर इस बारे में क्षेत्रीय पर प्रदूषण नियंत्रण अधिकारी टीएन सिंह से पक्ष जानने की कोशिश की गई लेकिन वह देर तक व्यस्त मिले।


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