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Sonbhadra News: हाइवे से सटे जंगल में काट डाले गए कई बेशकीमती पेड़, जांच की उठी मांग
Sonbhadra News: सोनभद्र में लगातार बेशकीमती लकड़ियों की कटान जारी है। ऐसा ही मामला डाला रेंज के गुरमुरा इलाके में सामने आया है। हाइवे से सटे जंगल में चंद किमी अंदर कुछ दिनों में ही कई इमारती पेड़ काट डाले गए हैं। काटी गई कुछ लकड़ियों को सूचना मिलने पर वन विभाग कार्यालय लाए जाने की भी बात प्रकाश में आई है।
Sonbhadra News: जहां एक तरफ योगी सरकार (Yogi Government) उत्तर प्रदेश को हरित प्रदेश बनाने की कवायद में जुटी हुई है। वहीं, 33 प्रतिशत से अधिक वनों से आच्छादित सोनभद्र में लगातार बेशकीमती लकड़ियों की कटान जारी है। ऐसा ही मामला डाला रेंज के गुरमुरा इलाके में सामने आया है। हाइवे से सटे जंगल में चंद किमी अंदर कुछ दिनों में ही कई इमारती पेड़ काट डाले गए हैं। काटी गई कुछ लकड़ियों को सूचना मिलने पर वन विभाग कार्यालय लाए जाने की भी बात प्रकाश में आई है। उसके बाद भी पेड़ों की कटान जारी रहने को लेकर तरह-तरह के सवाल उठाए जा रहे हैं।
डाला रेंज (Dala Range) के गुरमुरा सेक्शन (Gurmura Section of Dala Range) स्थित गौरी गांव और आसपास के ग्रामीण बताते हैं कि गत 30 दिसंबर की रात्रि में कुछ लोगों ने टीपर लेकर जंगल मे प्रवेश किया। कुछ देर बाद भी खाली टीपर वापस हो गई। अगले दिन सुबह गांव के लोगों ने जाकर देखा तो जंगल में साखू के तीन चार पेड़ कटे पड़े थे। 31 दिसंबर को वन विभाग (Forest department) के लोग पहुंचे और ट्रैक्टर पर लकड़ियां लादकर वन रेंज कार्यालय ले आए।
चर्चाओं पर भरोसा करें तो ट्रैक्टर पर पांच पड़े बोटे लादे गए थे लेकिन रेंज कार्यालय चार ही बोटे पहुंचे। चर्चाओं में रास्ते में उतारे गए बोटे की लंबाई आठ फीट और चौड़ाई तीन फिट होने का दावा किया जा रहा है। लकड़ियां लाए जाने के बाद सोमवार को मौके पर जाकर कुछ लोगों ने देखा तो आधा दर्जन से अधिक पेड़ काट कर गिराए जा चुके थे। कुछ पेड़ों की कटान तत्काल हुई मिली। नाम प्रकाशित न करने की शर्त पर कई ग्रामीणों ने बताया कि इस इलाके में इसी तरह, जब-तब पेड़ों की कटान होती रहती है।
बताते हैं कि जंगल का यह इलाका हाईवे से जरूर सटा हुआ है लेकिन जिस जगह कटान हुई है वह हाइवे से छह से सात किमी अंदर है। इस कारण इस इलाके में होने वाली कटान पर आसानी से किसी की नजर भी नहीं पड़ पाती। क्योंकि जंगल से सटी एरिया में अधिकांश आबादी ग्राम समाज या वन विभाग (Forest department) की जमीनों पर निवास करती है। इस कारण व कटान का विरोध भी नहीं कर पाते। कई बार लकड़ी तस्कर पेड़ों के कटान में स्थानीय ग्रामीणों को भी शामिल कर लेते हैं। इस कारण, जंगल के भीतर होने वाली कटान की जानकारी बाहर के लोगों को मालूम नहीं हो पाती।
विभाग (Forest department) से जुड़े कुछ सूत्रों का यहां तक दावा है कि जो लकड़ियां रेंज कार्यालय ले आई गईं, उसे आरा मशीन पर ले जाने की तैयारी थी लेकिन पर लौटने के बाद कटान की जानकारी सार्वजनिक होने के कारण मौके पर कटी पड़ी लकड़ियों को रेंज कार्यालय लाने का निर्णय लिया गया।
वन क्षेत्राधिकारी ने कही ये बात
उधर, सेल फोन पर हुई वार्ता में वन क्षेत्राधिकारी डाला राजेश कुमार सोनकर (Forest Officer Dala Rajesh Kumar Sonkar) का कहना था कि उन्हें लकड़ियां गिरी होने की सूचना मिली थी। बताया गया था कि कुछ लोग उसे ले जाने के फिराक में हैं। इसलिए टीपर भेजा गया था। रास्ता खराब होने के कारण टीपर मौके पर नहीं पहुंच पाया तो अगले दिन ट्रैक्टर भेजकर लकड़ियां मंगाई गई। कटान की बात से उन्होंने इनकार किया लेकिन लकड़ियां लाने के बाद भी कटान और मौके पर कटे हुए हरे पेड़ होने की तस्वीर उन्हें उनके व्हाट्सएप पर भेजी गईं तो उसका कोई जवाब नहीं मिल सका। इस बारे में वार्ता के लिए प्रभागीय वन अधिकारी प्रखर मिश्रा (Forest Officer Prakhar Mishra) से भी सेल फोन पर संपर्क का प्रयास किया गया लेकिन वह व्यस्त मिले।
कई इलाके लकड़ियों के कटान के मामले में संवेदनशील
बताते चलें कि लकड़ियों के कटान के मामले में रामगढ़, मांची, गुरमुरा, म्योरपुर, बभनी, जुगैल, कोन का तराई इलाका, रेणुकूट का भाठ इलाका संवेदनशील जगहों में शामिल है। विभागीय कर्मियों से सांठगांठ कर लकड़ी तस्कर पूर्व के वर्षों में भी इस एरिया में पेड़ों की कटान करवाते रहे हैं।
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