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Sonbhadra News: मकर संक्रांति पर कर्मनाशा नदी को शापित होने का टूटेगा मिथक, स्नान-यज्ञ कर बनाएंगे नई परंपरा

Sonbhadra News: सोनभद्र और बिहार की सीमा पर स्थित कैमूर श्रृंखला के बीच से निकली एक ऐसी नदी, जिसका पानी पीना तो दूर लोग छूने से भी डरते हैं। गंगापुत्र कहे जाने वाले निलेश की अगुवाई में स्नान-यज्ञ कर नई परंपरा की शुरुआत करेंगे।

Kaushlendra Pandey
Published on: 13 Jan 2022 8:27 PM IST
Sonbhadra News
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सोनभद्र: लेखक निलय उपाध्याय, स्नान- यज्ञ कर शुरू करेंगे नई परंपरा  

Sonbhadra News: सोनभद्र और बिहार की सीमा (Sonbhadra and Bihar border) पर स्थित कैमूर श्रृंखला के बीच से निकली एक ऐसी नदी, जिसका पानी पीना तो दूर लोग छूने से भी डरते हैं। मकर संक्रांति के अवसर पर शुक्रवार को देवाधिदेव महादेव सहित कई फिल्मों और धारावाहिकों के लेखक निलय उपाध्याय (Writer Nilay Upadhyay) इस मिथक को तोड़ने के लिए आगे तो आएंगे ही, उनके साथ सोनभद्र के कई लोग भी इस मिथक को तोड़ने में अहम भूमिका निभाएंगे। हम बात कर रहे हैं पौराणिक समय से शापित बताई जाने वाली नदी 'कर्मनाशा' (River 'Karmanasha') की, जिसके रामगढ़ इलाके में नल-दमयंती मंदिर के पास स्थित तट पर स्नान और यज्ञ के जरिए शापित नदी के मिथक को तोड़कर नई परंपरा की शुरुआत की जाएगी।

बताते चलें कि मकर संक्रांति का पर्व स्नान दान और यज्ञ के लिए विशेष पहचान रखता है। इस दिन गंगा सहित अन्य नदियों में स्नान के लिए अल सुबह ही भीड़ उमड़ पड़ती है लेकिन सोनभद्र से गुजरने वाली कर्मनाशा एक ऐसी नदी है, जिसमें स्नान दूर, मकर संक्रांति के दिन उसकी तरफ देखना भी सही नहीं मानते। गंगोत्री से गंगा सागर तक की यात्रा कर उस पर पुस्तकें और कई संस्मरण लिखने वाले निलय उपाध्याय NEWSTRACK से हुई वार्ता में कहते हैं कि कर्मनाशा को शापित बताना एक सांस्कृतिक साजिश है। वह नदी जो विश्व की सबसे पवित्र नदी गंगा की सहायक है और पुरातन काल में देवताओं और ऋषियों की तपोस्थली रही सोनभद्र की धरा से गुजरती है, उसे शापित भला कैसे ठहराया जा सकता है।

कर्मनाशा नदी

नदी पंच तत्व में जल तत्व की प्रतिनिधि है जो शापित हो ही नहीं सकती

कहते हैं कि नदी पंच तत्व में जल तत्व की प्रतिनिधि है जो शापित हो ही नहीं सकती। अगस्त ऋषि द्वारा विंध्य को पद दलित करने, अथर्ववेद में विंध्य क्षेत्र का जिक्र होने, पुरातन काल में पाताल लोक से सीधा जुड़ाव रखने वाले तथ्यों का उल्लेख करते हुए निलय उपाध्याय कहते हैं कि कनहर को शापित बताना महज एक रूढ़िवादिता है। वह इस मिथक को तोड़ने आए हैं। शुक्रवार की सुबह इसकी शुरुआत होगी।

बताया कि उनकी इस मुहिम में नदियों पर कार्य करने वाले विजय शंकर चतुर्वेदी और विजय विनीत भी साथ हैं, जिनके जरिए भी इस मिथक को तोड़ने की अलख जगाई जाएगी। बता दें कि गंगा पर कार्यों की वजह से निलय उपाध्याय को कई राष्ट्रीय स्तर के सम्मानों से विभूषित किया जा चुका है। 'संकट में नदियां' पुस्तक का विमोचन करने वाले पत्रकार एवं सामाजिक कार्यकर्ता विजय शंकर चतुर्वेदी बताते हैं कि नदी पर दूसरी पुस्तक 'सोनभद्र की नदियां' प्रकाशनाधीन है, जिसमें सोनभद्र की तीन प्रमुख नदियों (सोन, बेलन और कर्मनाशा) और उससे जुड़े तथ्यों का विस्तृत उल्लेख है।

कर्मनाशा का गाजीपुर में होता है गंगा से मिलन

कर्मनाशा नदी (Karmanasa River) बिहार और उत्तर प्रदेश में बहने वाली एक नदी है। यह गंगा नदी की एक उपनदी है। इसकी उत्पत्ति सोनभद्र से सटे बिहार के कैमूर जिले से हुई है। कैमूर से निकलने के बाद सोनभद्र-चंदौली होते हुए गाज़ीपुर ज़िले के बाड़ा गाँव और बिहार के बक्सर ज़िले के चौसा गांव के समीप गंगा में विलीन हो जाती है। नदी की लंबाई 192 किमी है।

कर्मनाशा नदी

कर्मनाशा नदी के बारे में प्रचलित हैं कई कथाएं

कर्मनाशा नदी के बारे में कई कथाएं प्रचलित हैं। इसके नाम के संधि विच्छेद 'कर्म' और 'नाश' के आधार पर कहा जाता है कि यह नदी सभी अच्छे कर्मों का नाश कर देती है। सबसे महत्वपूर्ण कथा राजा हरिश्चंद्र के पिता सत्यव्रत से जुड़ी हुई है। पौराणिक आख्यानों के मुताबिक एक बार सत्यव्रत ने अपने गुरु वशिष्ठ से सशरीर स्वर्ग जाने की इच्छा जताई, लेकिन उन्होंने इसे प्रकृति के नियमों के विरुद्ध बताते हुए ऐसा करने से इंकार कर दिया। इससे नाराज होकर वह विश्वामित्र के पास पहुंचे।

ऋषि विश्वामित्र और वशिष्ठ के बीच शत्रुता होने के कारण, उन्होंने सत्यव्रत की इच्छा पूरी करने की हामी भर दी और कठोर तप करते हुए सत्यव्रत को शरीर सहित स्वर्ग भेज दिया लेकिन वहां से धकेले जाने के बाद, वह धरती और स्वर्ग के बीच में ही अटक गए और त्रिशंकु कहलाए। मान्यता है कि उनके मुंह से निकली लार से जहां कर्मनाशा नदी निकली। वहीं महर्षि वशिष्ठ ने भी त्रिशंकु को चांडाल हो जाने का श्राप दे दिया। इसी कथानक को आधार मानकर कर्मनाशा नदी को शापित माना जाता है और इस नदी में विशेष पर्व या सामान्य दिनों में स्नान करना दूर, इसका पानी छूने से भी डरते हैं।

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