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Sonbhadra News: रहस्य, रोमांच और आस्था का संगम है ओंकारेश्वर घाटी, नाग पंचमी पर महा मंगलेश्वर धाम में लगता है भक्तों का तांता
Sonbhadra News: 10 किलोमीटर तक पहाड़ और जंगल से होकर गुजरने वाला दुर्गम पथ होने के बावजूद नाग पंचमी और श्रावण सोमवार को यहां श्रद्धालुओं की अपार भीड़ उमड़ती है।
Sonbhadra News: सोनभद्र में महा मंगलेश्वर धाम की बड़ी मान्यता है। वैसे तो यहां हर समय दर्शन के लिए लोग आत रहते हैं लेकिन सावन के महीने में यहां पैर रखने की जगह तक नहीं होती। 10 किलोमीटर तक पहाड़ और जंगल से होकर गुजरने वाला दुर्गम पथ होने के बावजूद नाग पंचमी और श्रावण सोमवार को यहां श्रद्धालुओं की अपार भीड़ उमड़ती है। जानते हैं कुछ रोचक तथ्य-
गुप्तकाशी का दर्जा रखने वाले सोनभद्र के शिव-शक्ति धामों की महिमा अद्भुत है। इन्हीं धामों में एक है ओमकारेश्वर घाटी (कैमूर पर्वत श्रृंखला के पश्चिमी छोर पर पूर्ण एवं विशाल रुप में मौजूद ओम की आकृति, आम बोलचाल में खोड़वा पहाड़) स्थित महा मंगलेश्वर धाम जो रहस्य रोमांच और श्रद्धालुओं के आस्था का केंद्र तो है ही, शिव भक्त स्थल को सृष्टि के उद्गम से भी जोड़कर देखते हैं। 10 किलोमीटर तक पहाड़ और जंगल से होकर गुजरने वाला दुर्गम पथ होने के बावजूद नाग पंचमी और श्रावण सोमवार को यहां श्रद्धालुओं की अपार भीड़ उमड़ती है।
मारकण्डेय ऋषि और भगवान अवधूत राम के साधना स्थली की है मान्यता
महामंगलेश्वर धाम को अष्ट चिरंजीवियों में एक मारकण्डेय ऋषि के मारकुंडी घाटी में तप के समय विश्राम स्थल और उनकी साधना स्थली होने की मान्यता है। लोकोक्ति है कि ऋषि मारकण्डेय मारकुंडी पर्वत पर तप के समय विश्राम के लिए यहीं आते थे। यहां स्थापित शिवलिंग को उसी समय का माना जाता है। मान्यता यह भी है कि दक्षिण की यात्रा के समय यहां भगवान अवधूत राम ने भी कई दिन तक पड़ाव डाला था और यहां भगवान शिव की आराधना की थी।
इसके अलावा स्थानीय स्तर पर कई किवदंतिया और चमत्कार इस स्थल से जुड़े हुए हैं। यहां दर्शन के लिए रोजाना आने वाले एक व्यक्ति द्वारा जंगल में खोई गायों को काफी प्रयास के बाद भी ना मिलने पर लाठी से शिवलिंग पर प्रहार और उसके बाद अचानक से गायों का पहाड़ी पर नजर आने का किस्सा खासा चर्चित है। वही श्रावण में कई बार नाग नागिन के जोड़े को भी यहां देखने का दावा किया जा चुका है। कुछ वर्ष पूर्व तक मंदिर के पास पहाड़ी में दो छिद्र थे। एक में नाग, दूसरे में नागिन के वास की मान्यता थी लेकिन श्रद्धालुओं की बढ़ती भीड़ को देखते हुए यहां दुकान लगाने वालों ने उसे बंद कर दिया।
जीते जागते आश्चर्य के रूप में है ओमकारेश्वर घाटी
भगवान ब्रह्मा की तपोस्थली, भगवान राम के बनवास, भगवान शिव के अज्ञातवास, मार्कण्डेय, कण्व, च्यवन जैसे ऋषियों की साधना का केंद्र, अज्ञातवास के दौरान पांडवों की मां कुंती की प्यास बुझाने वाली सोनभद्र की धरा पर जीते-जागते आश्चर्य के रूप में मौजूद है ओमकारेश्वर घाटी। पूरे देश में ओंकारेश्वर घाटी ही एक ऐसा स्थल है जहां पहाड़ का पूरा का पूरा छोर ही ऊँ के आकार में बना हुआ है। विंध्य और कैमूर पर्वत श्रृंखला के बीच लंबा समतल क्षेत्र, इसके बाद अचानक 1500 से 2000 फीट की ऊंची चढाई और सामने दिखता ऊँ का आकार, लगता है जैसे हम किसी अजूबे को देख रहे हों। यहीं कारण है कि कैैमूूूर पर्वत श्रृंखला के पश्चिमी और विंध्य पर्वत श्रृंखला के पश्चिमी छोर के बीच का नजारा रहस्य, रोमांच और आस्था की दृष्टि से महत्वपूर्ण तो है ही, सृष्टि के उद्गम को लेकर भी यहां का परिदृश्य काफी कुछ कहता नजर आता है।
गुप्तकाशी का केंद्र बिंदु होने की है मान्यता
ब्रह्मपुत्र शोणनद (सोननदी) किनारे स्थित इस स्थल को यूं ही सृष्टि के उद्गम से जोड़कर नहीं देखा जाता। बल्कि प्राचीन काल में कई बड़े ऋषि-मुनियों, देवताओं की तपस्थली रह चुकी गुप्तकाशी का यह केंद्र बिंदु भी है। इसके पश्चिम पौराणिक नदियों का संगम, सोमनाथ महादेव, अघोरपीठ (मौजूदा अगोरी दुर्ग), लोरिक को विजय का वरदान देने वाली वंशरा देवी, पश्चिम-उत्तर में देवी शक्तिपीठ मां कुंडवासिनी, ऐतिहासिक धाम शिवद्वार, उत्तरी छोर पर कर्क रेखा के ठीक नीचे स्थित पंचमुखी महादेव, त्रिकूट पर्वत स्थित कंडाकोट महादेव, उत्तर-पूर्व में तिलस्मि का संसार समेटे विजयगढ़ दुर्ग, नलराजा महादेव, पूरब में अमिला धाम, गुप्ताधाम, मुंडेश्वरी देवी, पूरब-दक्षिण में तारा चंडी शक्तिपीठ, दक्षिण में विश्व प्रसिद्ध भगवान वंशीधर का प्राकट्य स्थल और दक्षिण-पश्चिम में अमरकंटक का परिदृश्य दिखाने वाली दुअरा घाटी की अमर गुफा स्थित है।
मनमोहक है पहाड़ी
मध्यप्रदेश के ओंकारेश्वर में नर्मदा नदी के दोनों तट मिलकर ऊँ का आकार बनाते हैं लेकिन चोपन और राबर्ट्सगंज के बीच स्थित इस स्थल पर ऊँ के आकार में दिखती पूरी पहाड़ी एकबारगी किसी को बिस्मित कर देती है। सूर्याेदय के समय भगवान सूर्य के किरणों के साथ प्रकृति की अठखेलियां, सूर्यास्त के समय पहाड़ी पर से आकाश और क्षितिज के मिलन, बारिश के समय बादलों की प्रकृति के साथ अठखेलियां, सामने स्थित पौराणिक नदी सोन, रेणुका, बिजुल का संगम, पहाड़ी पर भारत के नक्शे जैसी दिखती आकृति ऐसा अलौकिक दृश्य उपस्थित करती है कि इसे देखने वाला, कुछ देर के लिए स्वयं को ही भूल जाता है।
नक्षत्रों के अनुसार सूरज और चंद्रमा को देखने का किया जाता है दावा
दावों पर यकीन करें तो यहां पर नक्षत्रों के अनुसार सूरज व चंद्रमा को देखा जा सकता है। आस्था के केंद्र इस घाटी में रोमांच की दृष्टि से प्रकृति ने काफी कुछ दे रखा है। कई किमी पहाड़ी, जंगली रास्ते, कदम-कदम पर जोखिम के साथ रोमांच भरा सफर यहां आने वाले को ऊर्जा से भर देता है। यहां महामंगलेश्वर के रूप में स्थापित प्राचीन शिवलिंग के दर्शन के लिए श्रावण में पूरे माह भक्तों का रेला लगा रहता है। मेले का भी आयोजन होता है। अगर यहां पर सोलर लाइट, बिजली, पानी, सड़क की व्यवस्था के साथ ही रोमांच से भरे खेलों की व्यवस्था कर दी जाए तो यह स्थल बड़े पर्यटक स्थल के रूप में विकसित नजर आ सकता है।
विस्तृत शोध और पर्यटन की दृष्टि से संवारने की है जरूरत
धार्मिक, पर्यटन और रोमांच तीनों की दृष्टि से महत्वपूर्ण इस स्थल को पर्यटन की दृष्टि से संवारने के लिए कई बार आवाज उठी है। गुप्तकाशी ट्रस्ट के जरिए इस स्थल के संवर्धन-संरक्षण की मुहिम चलाने वाले रविप्रकाश चौबे जिले के आला अधिकारियों से लेकर पर्यटन मंत्री तक गुहार लगा चुके हैं।लेकिन अभी तक काफी कुछ रहस्यों को समेटे इस स्थल को लेकर न तो शोध की जरूरत समझी जा सकी है, न ही पर्यटन या धार्मिक दृष्टि से ही इस स्थल को संवारने की कोई पहल सामने आ सकी है।
बाइक या बड़े चक्के वाले वाहन से ही कर सकते हैं यहां का सफर
यहां पहुंचने के लिए निजी साधन का सहारा लेना पड़ेगा। सबसे पहले वाराणसी-शक्तिनगर मार्ग स्थित मारकुंडी पहुंचेंगे। इसके बाद गुरमा कस्बे से चेरुई गांव, इसके बाद दस किमी तक जंगल और पहाड़ से होकर गुजरने वाले दुर्गम रास्ता पार कर यहां पहुंचना होगा। यहां पहुंचने के लिए कार की बजाय, मोटर साइकल या बड़े चक्के वाले वाहनों का प्रयोग ही उपयुक्त है। ओमकारेश्वर घाटी का सफर काफी चुनौती भरा है। पहाड़ी और जंगली रास्ता होने के कारण छोटे चक्के वाले वाहन यहां नहीं पहुंच पाते।