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Sonbhadra News: आकाशीय बिजली गिरने के बावजूद मंदिर सुरक्षित, 1500 वर्ष पुराना है इतिहास
108 शक्तिपीठों में एक की मान्यता रखने वाले सोन नदी तट स्थित मां कुंडवासिनी मंदिर पर आकाशी बिजली गिरने का मामला सामने आया है।
Sonbhadra News: 108 शक्तिपीठों में एक की मान्यता रखने वाले सोन नदी तट स्थित मां कुंडवासिनी मंदिर पर आकाशीय बिजली गिरने का मामला सामने आया है। इससे मंदिर का छोटा गुंबद क्षतिग्रस्त हो गया है। मुख्य गुंबद या शेष मंदिर को कोई नुकसान नहीं पहुंचा है। श्रद्धालु जहां इसे मां का चमत्कार मान रहे हैं। वहीं उनका यह भी मानना है कि क्षेत्र में कोई बड़ी विपदा आने वाली थी जिसे मां ने अपने उपर ले लिया।
पंद्रह सौ वर्ष से भी प्राचीन मां कुंडवासिनी मंदिर पर पहली बार ऐसा हुआ है। जब वहां आकाशीय बिजली गिरने का मामला सामने आया है। बताते हैं कि शनिवार की शाम जब लोग मां के पूजन-अर्चन के तैयारी में जुटे हुए थे तभी गरज-तरज के साथ बूंदाबांदी शुरू हो गई। उसी दौरान कड़क आवाज के साथ मंदिर पर आकाशीय बिजली गिर पड़ी। इससे यकायक मंदिर और आसपास मौजूद लोग सहम से गए लेकिन जब बिजली गिरने वाली जगह पर जाकर देखा तो मंदिर का छोटा गुंबद टूट कर नीचे गिरा था।
लेकिन मंदिर के मुख्य गुंबद या मंदिर के किसी हिस्से को कोई क्षति नहीं पहुंची थी। जिस तरह से मंदिर पर आकाशी बिजली का सीधा वार आया था उससे मंदिर में दरार पड़ जानी चाहिए थी लेकिन सब कुछ सुरक्षित देख जहां लोग इसे मां का चमत्कार मान रहे हैं। वहीं श्रद्धालुओं का यह भी कहना है कि यह विपदा कहीं और गिरने थी लेकिन मां ने उसे अपने ऊपर ले लिया। बता दें कि मंदिर से सटे कई दुकाने स्थित है।
बगल में पूरा गांव स्थित है। देर रात तक कई लोगों का मंदिर पर बने रहना होता है। ऐसे में यह बिजली मंदिर की बजाय मंदिर से सटी दुकान या नजदीक के घरों पर गिरती तो बड़े जानमाल के नुकसान का सबब बन सकती थी। पुजारी संतोष गिरी ने घटना की पुष्टि करते हुए बताया कि उनकी भी जानकारी में पहली बार इस तरह की घटना सामने आई है। लेकिन सीधी बिजली गिरने के बावजूद मंदिर पूरी तरह सुरक्षित रहने से भक्तों की आस्था और मजबूत हुई है।
लाखों श्रद्धालुओं की आस्था के केंद्र मां कुंड वासिनी धाम की महिमा अद्भुत है
बताते चलें कि लाखों श्रद्धालुओं की आस्था के केंद्र मां कुंड वासिनी धाम की महिमा अद्भुत है। युवा साहित्यकार डॉ जितेंद्र सिंह संजय द्वारा रचित मां कुंड वासिनी पुस्तक में इस स्थल का जुड़ाव, मां जगदंबा के ज्योतिस्वरूप के दर्शन के लिए सृष्टि के रचयिता परमपिता ब्रह्मदेव द्वारा एक हजार वर्ष तक तप करने के आख्यान से जुड़े होने का उल्लेख है। मान्यता है कि मां कुंडवासिनी धाम से कुछ किमी दूर स्थित कुंडवा नाले के उत्पत्ति स्थल पर ब्रह्मदेव ने एक हजार वर्ष तक तपस्या की थी।
मां ने ज्योति स्वरूप में प्रकट होकर उन्हें दर्शन दिए थे। जिस कुंड से मां ज्योति स्वरूप में उत्पन्न हुई थी, उसी से आगे चलकर कुंडवा नाले की उत्पत्ति हुई जो कुछ किमी चलकर सोन नदी में समाहित हो जाता है। मान्यता है कि करीब 1500 साल पूर्व अगोरी रियासत के तत्कालीन राजा बालेंदु शाह जो मां के अनन्य भक्त थे, को मां ने कुंडवा नाला के उत्पत्ति स्थल यानी ब्रह्मकुंड में स्वयं का विग्रह होने का स्वप्न दिया। इसी स्वप्न में आदेश दिया कि मूर्ति को हाथी पर लेकर चलें। जहां हाथी रूक जाए, वहीं उसे स्थापित कर दें।
बताते हैं कि स्वप्न में दिखी जगह पर राजा बालेंदु शाह दल-बल के साथ पहुंचे और वहां मिट्टी की खुदाई का कार्य शुरू करवाया। मान्यता है कि थोड़ी सी मिट्टी हटाने के बाद ही माता का काले पत्थर का आदमकद विग्रह सामने आ गया। इसके बाद सभी लोग मां का जयकारा लगाते हुए विग्रह को हाथी पर रखकर वहां से चल दिए। हाथी जैसे ही कुंडवासिनी धाम वाली जगह पर पहुंचा, रूक गया। काफी प्रयास के बाद भी वह आगे नहीं बढ़ा, तब इसे मां की इच्छा मानते हुए मूर्ति वहीं स्थापित कर दी गई।
धर्माधिकारी गुजरी के निर्देशन में भव्य मंदिर का निर्माण कराया गया
राज्य की धर्माधिकारी गुजरी के निर्देशन में भव्य मंदिर का निर्माण कराया गया। वर्तमान में मां का यह स्थल उत्तर प्रदेश के साथ ही मध्य प्रदेश बिहार झारखंड और छत्तीसगढ़ के श्रद्धालुओं के लिए आस्था का केंद्र बना हुआ है। चैत्र नवरात्रि के समय यहां नौ दिनी विशाल मेला का काफी आयोजन होता है जिसमें प्रतिभाग करने और खरीदारी के लिए भी उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश दोनों राज्यों से लोग पहुंचते हैं। नवमी तिथि को भक्ति में डूबे आदिवासियों का हैरतंगेज प्रदर्शन रोंगटे खड़े कर देता है।
मां के इस स्थल को शक्तिपीठ मानने के पीछे देवी भागवत का प्रमाण माना जाता है। चूंकि मां का यह स्वरूप कुंड से प्रकट हुआ और मध्यप्रदेश से सटे कुड़ारी गांव में आकर विराजमान हुआ। इस कारण इस धाम की प्रसिद्धि मां कुंडवासिनी और मां कुड़ारी धाम के रूप में बनी हुई है। वहीं देवी भागवत में देवी के इस स्वरूप का वर्णन सुभद्रा और लोला के रूप में किया गया है।
मां सती के अंग गिरे होने की मान्यता है
कुछ लोग मां के सुभद्रा स्वरूप को गोठानी में सोन तट स्थित वंशरा देवी से जोड़कर देखते हैं लेकिन कुंड से मां के विग्रह की उत्पत्ति और कुंडवसिनी धाम वाली जगह पर मां सती के अंग गिरे होने की मान्यता को देखते हुए मां कुंडवासिनी धाम को ही मां सुभद्रा रूपी शक्तिपीठ माना जाता है। देवी भागवत के पेज नंबर 401 पर देवी के सभी 108 शक्तिपीठों का सिद्धपीठ के रूप में वर्णन अंकित है।
मां कुंडवासिनी की जितनी महिमा अद्भुत है, उतना ही इस स्थल के महात्म्य की भी महिमा वर्णित है। काले पत्थर की मां के नयनाभिराम मूर्ति की दिन में तीन बार सुबह, दोपहर, शाम अलग-अलग दिखती भावभंगिमा यहां आने वाले भक्तों को आह्लादित करके रख देती है। उधर, साहित्यकार डॉ जितेंद्र सिंह संजय मैं मंदिर के प्राचीनता के बारे में बताया कि 1000 वर्ष पूर्व तक अघोरी रियासत पर चंदेल वंश का शासन रहा है। इससे करीब 500 वर्ष पूर्व बालेंदु शाह का शासनकाल रहा है। इससे यह बात प्रमाणित है के मंदिर का निर्माणकाल 15 सौ वर्ष पूर्व से भी प्राचीन है। उन्होंने भी कहा कि उनकी जानकारी में पहली बार मंदिर पर आकाशी बिजली गिरने की बात सामने आई है।