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जातीय वोटबैंक से सियासी सौदेबाजी में जुटे छोटे दल
पूर्णिमा श्रीवास्तव
गोरखपुर: कहते हैं कि सियासत और अदावत में वार की टाइमिंग ठीक नहीं हो तो तीर तुक्का बनकर रह जाता है। यही वजह है कि अपने-अपने प्रभाव वाले इलाकों में वोटबैंक को लेकर मजबूत दिख रहे छोटे दल लोकसभा चुनाव से ऐन पहले राष्ट्रीय राजनीतिक दलों से सियासी सौदेबाजी करते दिख रहे हैं। कहीं खुल्लमखुल्ला ताल ठोंक कर चुनौती दी जा रही है तो कहीं बंद कमरे में रूठने-मनाने का दौर चल रहा है। नेताओं के बयानों में दिख रही तल्खी के पीछे छुपी अपनी-अपनी चाहतें हैं जिसकी असल तस्वीर आम अवाम के सामने सीट बंटवारे के बाद ही दिखेगी।
लोकसभा चुनाव की तारीखों के ऐलान से पहले जातिगत समीकरणों से अपने-अपने पाले में मजबूत दिख रहे छोटे दल तोलमोल की सियासत में जुटे हुए हैं। इन दलों का प्रयास है कि दबाव के जरिये अधिक से अधिक सीटें हासिल की जा सकें। इनमें सत्ता का सुख भोग रहे दल भी हैं और विपक्ष में बैठकर खम ठोकने वाले भी। रोज-रोज की पैतरेबाजी के चलते भाजपा, कांग्रेस, सपा-बसपा गठबंधन यह साफ करने की स्थिति में नहीं दिख रहे हैं कि किस लोकसभा सीट पर कौन उम्मीदवार कौन होगा। यही वजह है कि पूर्वांचल में प्रभावी आधा दर्जन राजनीतिक दल खुद को मजबूत बताकर अधिक से अधिक सीटें हथियाने की जुगत में हैं।
जातीय आधार पर खुद को प्रभावशाली बता रहे छोटे दलों के मुखिया बड़े चेहरों को अपने पाले में करने का प्रयास भी कर रहे हैं। पूर्वांचल की सीटों पर प्रभावी निषाद पार्टी, पीस पार्टी, अपना दल, उलेमा काउंसिल, भीम आर्मी, प्रगतिशील समाजवादी पार्टी लोहिया जैसे कई दलों के मुखियाओं की सक्रियता बढ़ गई है। खुद को मजबूत बताने वाले इन दलों के मुखियाओं ने सभी दलों के लिए अपने दरवाजे खोल रखे हैं।
दिलचस्प यह है कि छोटे दलों के वोट बैंक को देखकर राष्ट्रीय पार्टियां भी इनके नखरे सहने को विवश दिख रही हैं। सत्ताधारी भाजपा के सहयोगी भासपा और अपना दल के नेता रोज शगूफा छोड़ रहे हैं। भासपा के ओमप्रकाश राजभर पिछले दो महीने से गोरखपुर-बस्ती मंडल की सभी 9 सीटों को मथने के बाद आग उगल रहे हैं।
निषाद पार्टी ने सपा बसपा पर दबाव बढ़ाया
गोरखपुर उपचुनाव में निषाद पार्टी के अध्यक्ष संजय निषाद के पुत्र प्रवीण निषाद ने सपा के सिंबल पर चुनाव में जीत हासिल की थी। निषाद पार्टी गोरखपुर से अपनी सीट तो पक्का मान ही रही है, महराजगंज सीट पर भी उसने दावेदारी ठोंक दी है। दिलचस्प यह है कि निषाद पार्टी के मुखिया डॉ. संजय निषाद खुद मीडिया तक पहुंचकर यह दावा कर रहे हैं कि सपा-बसपा गठबंधन में उनकी पार्टी को दो सीटें मिल रही हैं। निर्बल इंडियन शोषित हमारा आम दल (निषाद पार्टी) के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. संजय निषाद समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव से हुई मुलाकात का हवाला देते हुए गोरखपुर सदर और महराजगंज की सीट पर दावेदारी ठोंक रहे हैं। डॉ. संजय निषाद का दावा है कि महराजगंज सीट पर चुनाव चिन्ह को लेकर भी चर्चा हुई। निषाद पार्टी इस सीट पर अपने सिंबल पर चुनाव लड़ेगी। वहीं गोरखपुर सदर में सपा के चुनाव चिन्ह पर ही चुनाव लड़ेगी। इसके साथ ही डॉ.संजय बसपा कोटे से भी दो सीटें मांग रहे हैं।
उनका कहना है कि राज्यसभा और विधानपरिषद के चुनाव में पार्टी ने बसपा के उम्मीदवार का समर्थन किया था। इस दौरान पार्टी के एक विधायक ने बगावत की जिसे बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। अब हाथ बढ़ाने की बारी बसपा की है। हमने जौनपुर, बिजनौर समेत पांच सीटों के लिए उम्मीदवारों के नाम बसपा सुप्रीमो को दे दिए हैं। वहीं पीस पार्टी के मुखिया और पूर्व विधायक डॉ. अयूब भी गठबंधन में सीट को लेकर हसीन सपने पाले हुए हैं। डॉ. अयूब का दावा है कि गोरखपुर और फूलपुर उपचुनाव को लेकर गठबंधन का फार्मूला मैंने ही दिया था। इन सबसे ऊपर वह यह दावा भी कर रहे हैं कि गठबंधन ने पीएम का नाम भी तय कर लिया है। सही समय पर हम अपनी रणनीति का खुलासा करेंगे।
जातीय वोटों से कर रहे तोलमोल
पूर्वांचल के कई सीटों पर प्रभावी ऑल इंडिया उलेमा काउंसिल, कौमी एकता दल भी तोलमोल की सियासत में जुटी है। सपा से अलग होकर प्रगतिशील समाजवादी पार्टी लोहिया का गठन करने वाले शिवपाल यादव के अलावा रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया की पार्टी भी लोकसभा चुनावों में अपनी किस्मत आजमाने की पूरी तैयारी कर चुकी है। पूर्वांचल की 28 सीटों पर कमोवेश सभी दलों के दिग्गज शिवपाल के संपर्क में हैं ताकि पत्ता साफ होने के बाद शिवपाल का दामन थामा जा सके। शिवपाल यादव की सभा में जुट रही भीड़ और जिलों में देखते ही देखते संगठन खड़ा होता देख यह तय है कि कोई भी दल प्रगतिशील समाजवादी पार्टी लोहिया को हल्के में नहीं ले रहा है। अपना दल और भासपा के नेताओं के रोज नये-नये बयानों से सहयोगी दल परेशान हैं। भाजपा अच्छी तरह समझ रही है कि दोनों दलों ने अपने-अपने उम्मीदवार उतारे तो पार्टी को नुकसान होना तय है। ऐसा हुआ तो पटेल और राजभर के अलावा निषाद समाज बीजेपी से छिटक सकता है। जबकि पीस पार्टी, उलेमा काउंसिल और कौमी एकता दल मुस्लिम वोटों में सेंधमारी कर समाजवादी पार्टी को नुकसान पहुंचा सकते हैं।
सूबे के मुस्लिम वोटर सपा के साथ ही बड़ी संख्या में बसपा और कांग्रेस के पक्ष में वोटिंग करते रहे हैं। हवा का रुख देखकर अंत समय ये पक्ष चुनते हैं। शिवपाल यादव की पार्टी यादव वोट में सेंधमारी कर सपा को काफी नुकसान पहुंचा सकती है जबकि चंद्रशेखर आजाद की अगुवाई में पूर्वांचल में भी तेजी से पांव पसार रहीं भीम आर्मी सियासी बढ़त बसपा के नजरिए से काफी अहम है। भीम आर्मी कांग्रेस के करीब बताई जा रही है,ऐसा हुआ तो गठबंधन को नुकसान होना तय है। ओमप्रकाश राजभर की पार्टी भासपा का कुशीनगर, देवरिया से लेकर बलिया, आजमगढ़ और बनारस में व्यापक असर है। यही वजह है कि राजभर की रोज चेतावनी के बाद भी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ सिर्फ इतना कह रहे हैं कि जहां अधिक बर्तन होते हैं, वह खटकते ही हैं। दूसरी तरफ माफिया डॉन मुख्तार अंसारी के कौमी एकता दल के साथ गठबंधन की अटकलें गठबंधन की परेशानियां बढ़ाने का काम कर रही हैं। इत्तेहाद मिल्लत भी पूर्वांचल के इस इलाके में प्रभावी है। बहरहाल, सभी छोटे दल सधे हुए कदमों से आगे बढ़ रहे हैं, वहीं राष्ट्रीय पार्टियां भी इनके संग आने और दूर रहने के नफा नुकसान का आंकलन करने में जुटी हैं। कोई जल्दबाजी में या यूं कहें आसानी से अपने पत्ते नहीं खोलेगा। ऐसे में वोटरों को सहेजने से पहले वोट के सौदागरों के बीच रोचक जंग का आनंद मिलना तय है।