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आज़म के जुर्म की दास्तां: जिसने पूरे परिवार को पहुंचा दिया जेल

इन वक्फ संपत्तियों के लिए जिन्हे इनका काम देखने के लिए मुतवल्ली यानी प्रबंधक बनाया गया लेकिन ज्यादातर मामलों में इन मुतवल्लियों ने ही इन वक्फ संपत्तियों पर बुरी नजर रखी। जबकि वक्फ अधिनियम 1995 के तहत वक्फ संपत्तियों खरीद-फरोख्त प्रतिबंधित है।

SK Gautam
Published on: 26 Feb 2020 3:11 PM IST
आज़म के जुर्म की दास्तां: जिसने पूरे परिवार को पहुंचा दिया जेल
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लखनऊ: अजीब दास्ता है यह, इसमे चालबाजियां है, धोखेबाजी है और तमाम तरह के ऐसे हैरतअंगेज कारनामें है जिन्हे सरेआम अंजाम दिया गया बरसों-बरस लूट का यह सिलसिला चलता रहा लेकिन रियाया से हुकूमत तक सभी खामोशी अख्तियार किए रहे। बात हो रही है यूपी में वक्फ की संपत्तियों को बेंचने की। इसमें खास बात यह है कि इन वक्फ संपत्तियों के लिए जिन्हे इनका काम देखने के लिए मुतवल्ली यानी प्रबंधक बनाया गया लेकिन ज्यादातर मामलों में इन मुतवल्लियों ने ही इन वक्फ संपत्तियों पर बुरी नजर रखी। जबकि वक्फ अधिनियम 1995 के तहत वक्फ संपत्तियों खरीद-फरोख्त प्रतिबंधित है।

वक्फ माफिया को उद्योगपतियों और दिग्गज राजनेताओं का संरक्षण

इसके बावजूद पूरे प्रदेश में यह ‘खेल’ हो रहा है। वक्फ की संपत्तियों में चल रहे इन खेलों में वक्फ माफिया को बड़े उद्योगपति और देश के दिग्गज राजनेताओं का संरक्षण भी मिलता है। इसकी बानगी मिलती है मेरठ के अब्दुलापुर में सैययद मोहम्मद वक्फ की करीब 10 बीघा जमीन देश के बडे़ शराब निर्माता विजय माल्या की कंपनी यूनाईटेड स्प्रिटस प्रा. लि. ने खरीद ली अपनी शराब फैक्टरी लगा दी। जब शिया वक्फ बोर्ड को इसकी जानकारी हुई तो उन्होंने कंपनी को नोटिस भेज दिया।

कंपनी के वकील ने नोटिस का जवाब देने के लिए कुछ दिन की मोहलत मांगी। इसी बीच शिया वक्फ बोर्ड यूपी के चेयरमैन वसीम रिजवी के पास कांग्रेस के दिग्गज नेता गुलाम नबी आजाद के फोन से राहुल गांधी ने रिजवी से बात की और उन पर विजय माल्या के मामले में विरोध न करने का दबाव बनाया। जिस पर 22 फरवरी 2016 को वसीम रिजवी ने राज्यपाल राम नाईक से एक पत्र के माध्यम से इस मामले में शिकायत की थी कि इस मामले में पुलिस कोई कार्रवाई नहीं कर रही है और उन पर बड़े नेताओं द्वारा दबाव भी बनाया जा रहा है।

अवैध कब्जे हटाने के लिए वक्फ अधिनियम की धारा 54 और 55 में व्यवस्था

उत्तर प्रदेश में कुल 1,22,839 वक्फ संपत्तियां हैं। इनमें ज्यादातर पर अवैध कब्जे बढ़ते ही जा रहे हैं। ज्यादातर पर तो वक्फ संपत्तियों के प्रबंधक (मुतवल्ली) ही जमीनों को बेचकर अवैध कब्जे करवा रहे हैं और वक्फ माफिया बन गये है। वक्फ संपत्तियों के अवैध कब्जे हटाने के लिए वक्फ अधिनियम की धारा 54, 55 में व्यवस्था दी गई है। इनमें अस्थाई प्रकृति के अतिक्रमण ही जिला प्रशासन हटवाता है। अधिनियम में व्यवस्था न होने के कारण स्थायी अतिक्रमण करने वालों पर कोई कार्रवाई नहीं हो पाती।

इसे देखते हुए ही सरकार वक्फ कानून में बड़ा परिवर्तन करने जा रही है। इसके तहत वक्फ संपत्तियों के कब्जे को दंडनीय अपराध की श्रेणी में लाने की तैयारी है। प्रत्येक जिले के डीएम व एसएसपी को कब्जा हटवाने की जिम्मेदारी दी जाएगी। डीएम वैसे भी वक्फ संपत्तियों के अपर सर्वेक्षण आयुक्त होते हैं। वहीं कब्जे हटाने के लिए पुलिस बल मुहैया कराने की जिम्मेदारी एसएसपी की होगी। वक्फ की संपत्तियों पर स्थाई प्रकृति के अवैध निर्माण को लेकर भी वक्फ कानून में संशोधन किया जा रहा है। इसके तहत स्थाई अवैध निर्माण जैसे भवन, मकान या दुकानों को अब तोड़ा नहीं जाएगा, बल्कि सरकार इन इमारतों को मय जमीन वक्फ बोर्ड के हवाले कर देगी। वक्फ बोर्ड किसी दूसरे काम में इनका उपयोग कर सकेगा।

क्या होता है वक्फ

वक्फ एक्ट 1954 के मुताबिक वक्फ का मतलब है कि इस्लाम मानने वाला कोई शख्स चल या अचल संपत्ति का किसी मकसद से इस्तेमाल कर रहा हो, जिसे मुस्लिम कानूनों के तहत धार्मिक, पवित्र या चैरिटेबल संस्थान की मान्यता मिली हुई हो। वक्फ के स्वामित्व में एक अहम बात यह भी है कि उससे होने वाले मुनाफे या अच्छी चीजों उत्पाद को गरीबों में दान करना होता है।

कब बना वक्फ बोर्ड

वक्फ बोर्ड एक कानूनी निकाय है, जिसका गठन साल 1964 में भारत सरकार ने वक्फ कानून 1954 के तहत किया था। इसका मकसद भारत में इस्लामिक इमारतों, संस्थानों और जमीनों के सही रखरखाव और इस्तेमाल को देखना था। इस संस्था में एक अध्यक्ष और बतौर सदस्य 20 लोग होते हैं। इन लोगों की केंद्र सरकार नियुक्त करती है। जबकि अलग-अलग राज्यों के अपने वक्फ बोर्ड भी होते हैं।

कौन सी संपत्तियां होती है वक्फ में

-वक्फ में चल और अचल दोनों ही संपत्तियां शामिल होती हैं। इसमें कंपनियों के शेयर, अचल संपत्तियों के सामान, किताबें और पैसा होता है।

-वक्फ का विषय इस्लाम को समर्पित शख्स के स्वामित्व में होना चाहिए। कोई किसी दूसरे की संपत्ति को समर्पित नहीं कर सकता।

-ऐसी व्यवस्था में समर्पण स्थायी है।

-वक्फ सिर्फ एक मुस्लिम शख्स द्वारा ही बनाया जा सकता है। वह व्यस्क होना चाहिए साथ ही दिमागी तौर पर स्वस्थ भी।

कैसे बनता है वक्फ

मुस्लिम कानूनों में वक्फ बनाने का कोई खास तरीका नहीं लिखा है, फिर भी इसे इस तरह बनाया जाता है।

-जब कोई शख्स अपनी प्रॉपर्टी के समर्पण की घोषणा करता है तो उसे वक्फ के बराबर माना जाता है। यह उस वक्त भी हो सकता है, जब कोई मृत्यु शैया पर हो। हालांकि ऐसे मामलों में वह इंसान वक्फ के लिए अपनी संपत्ति का एक तिहाई से अधिक समर्पित नहीं कर सकता।

-कोई भी मुस्लिम शख्स वसीयत बनाकर भी अपनी संपत्ति को समर्पित कर सकता है।

-जब संपत्ति को किसी अनिश्चित अवधि के लिए चैरिटेबल या धार्मिक मकसद के लिए इस्तेमाल किया जाता है, तो इसे वक्फ से संबंधित माना जाता है। ऐसी संपत्तियों को वक्फ को देने के लिए किसी तरह की घोषणा की जरूरत नहीं है।

इतने तरह के होते हैं वक्फ

वक्फ संपत्तियां दो तरह की होती है, वक्फ अलल खैर तथा वक्फ अलल औलाद। वक्फ अलल खैर में ऐसी संपत्तियां आती हैं जिनमें मुस्लिम समुदाय के लोग अलग-अलग तरह से इबादत करते हैं। जैसे, मस्जिद, इमामबाड़ा, ईदगाह, दरगाह व कब्रिस्तान आदि। यूपी में इस श्रेणी की कुल 1,17,056 वक्फ संपत्तियां हैं। जबकि वक्फ अलल औलाद में ऐसी संपत्तियां होती हैं जिनमें एक हिस्से को वक्फ के लिए दे दिया जाता है, जबकि बाकी हिस्सा अपनी औलाद के लिए रख लिया जाता है। इन संपत्तियों का प्रबंधन दान करने वाले की औलादों के हाथ में होता है। सूबे में इस श्रेणी की कुल 5,783 वक्फ संपत्तियां हैं।

शिया वक्फ बोर्ड हो या सुन्नी वक्फ बोर्ड दोनों ही अपने सरपरस्तों के हाथो ही लूटे गये। वक्फ संपत्तियों को अपनी मिल्कीयत की तरह बेंचने के आरोपों से मंत्री से लेकर वक्फ बोर्ड के चेयरमैन तक के दामन दागदार है। हालांकि यह खेल बरसों से चल रहा है लेकिन हमारे देश में मुस्लिम समुदाय से जुड़े मुददों पर सियासत और प्रशासन दोनों ही खामोश रहना पसंद करते थे।

आजम खां और वक्फ

देश और प्रदेश में भाजपा की सरकार बनने के बाद वक्फ संपत्तियों को बेंचने के गड़े मुर्दे उखड़ने शुरू हुए तो मामला गूंजा रामपुर में वक्फ संपत्तियों पर सपा सरकार के ताकतवर मंत्री आजम खां द्वारा कब्जा किए जाने की खबरों से। आजम खान पर इल्जाम है कि उन्होंने वक्फ बोर्ड की लगभग 500 करोड़ रुपये कीमत की संपत्तियों पर कब्जा किया। रामपुर के अजीम नगर थाने में आजम खान, उनकी पत्नी तंजीन फातिमा, बेटे अब्दुल्लाह और वक्फ बोर्ड के अधिकारियों सहित नौ लोगों के खिलाफ केस दर्ज है, इन सभी पर वक्फ संपत्ति को हड़पने का आरोप है।

25 मार्च 2017 को रामपुर में वक्फ संपत्तियों पर कब्जे की शिकायतों की जांच करने गये सेंट्रल वक्फ बोर्ड के सदस्य और उत्तर प्रदेश प्रभारी डॉ. सैयद एजाज अब्बास नकवी ने पूर्व नगर विकास मंत्री आजम खां को वक्फ माफिया करार देते हुए कहा कि आजम खां ने बड़े पैमाने पर वक्फ की संपत्तियों पर कब्जा किया है। नकवी ने बताया कि आजम खां ने सत्ता का दुरुपयोग कर नियम विरुद्ध जमीनों पर कब्जा कर निर्माण कराया है। विकास भवन के पास हुसैनी सराय वक्फ की जमीन पर बनी मार्केट को सत्ता का दुरुपयोग करके गिरा दिया गया। उन्होंने इसके लिए शिया वक्फ बोर्ड के चेयरमैन वसीम रिजवी को भी दोषी बताया हैं।

भूमाफिया घोषित किए जा चुके हैं सांसद आजम खान

मुहल्ला घोसियान के पास वक्फ की जमीन पर बने आजम के रामपुर पब्लिक स्कूल की इमारत भी नियम विरुद्ध है। यह नवाब की खानदानी जगह है। इसे जालसाजी से पब्लिक ट्रस्ट में बदलकर स्कूल की इमारत खड़ी कर दी गई। मुहल्ला मदरसा कोहना का मदरसा तुड़वा दिया। वहां के कब्रिस्तान की मिट्टी आजम ने जौहर यूनिवर्सिटी में डलवा दी। इतना ही नहीं अब भूमाफिया घोषित किए जा चुके सांसद आजम खान पर जमीन हड़पने, आलिया मदरसा से किताबें चुराने और रामपुर क्लब से शेर की मूर्तियां चुराने के भी आरोप हैं। सत्ता के रहते ताकतवर मंत्री आजम खां के कारनामों का कच्चा चिटठा उनकी सत्ता जाने के बाद ही शुरू हो गया।

रामपुर के स्थानीय कांग्रेसी नेता ने यूपी के हज व वक्फ राज्यमंत्री मोहसिन रजा को शिकायत भेजते हुए कहा है कि आजम खान ने तहसील सदर यूसुफ गार्डन में वक्फबोर्ड की साढ़े तीन एकड़ की एक प्रॉपर्टी को गैर कानूनी तरीके से अपने करीबी सहयोगी शाहजेब खां और उनकी पत्नी के नाम करवा दिया। आरोप ये भी है कि आजम खान ने इस प्रॉपर्टी में अपने बेटे को सीक्रेट पार्टनर बनवाकर उसे दोबारा बेच दिया और करोड़ों का मुनाफा कमाया। आजम खान पर यह भी आरोप है कि उन्होंने वक्फ बोर्डों के चेयरमैन की नियुक्ति नियम कायदों को ताक पर रखकर अपने मनमाफिक चेयरमैन बनवाए, फिर इन चेयरमैनों के जरिए वक्फ बोर्ड की बेशकीमती कीमती सम्पत्तियों की खरीद-फरोख्त करवाई। आजम पर आरोप है कि इन सम्पत्तियों को उन्होंने अपने करीबियों के नाम करवाया।

शिया वक्फ बोर्ड चेयरमैन भी है आरोपों के घेरे में

आजम खां के साथ ही शिया वक्फ बोर्ड के चेयरमैन वसीम रिजवी का नाम भी वक्फ संपत्तियों को नुकसान पहुंचाने वालों में उछल चुका है। वर्ष 2015 में आजम खां की सरपरस्ती से शिया वक्फ बोर्ड के चेयरमैन बने वसीम रिजवी पर आजम खां के कारनामों पर चुप्पी साधने के आरोप के साथ ही प्रयागराज के इमामबाड़ा गुलाम हैदर त्रिपोलिया, पुरानी जीटी रोड पर अवैध रूप से दुकानों का निर्माण का आरोप भी है। इस मामले में रिजवी के खिलाफ प्रयागराज के कोतवाली थाना क्षेत्र में एफआईआर भी दर्ज है। इलाहाबाद विकास प्राधिकरण के अवर अभियंता सुधाकर मिश्रा ने रिजवी द्वारा कराये जा रहे अवैध निर्माण को रोकने के लिए कई पत्र लिखे लेकिन निर्माण कार्य जारी रहा। 07 मई 2016 को अवर अभियंता ने इस जगह को सील करा दिया लेकिन इसके बाद भी निर्माण कार्य नही रूका तो सुधाकर मिश्रा ने शिया सेंट्रल वक्फ बोर्ड के चेयरमैन वसीम रिजवी को नामजद करते हुए 26 अगस्त 2016 को आईपीसी की धारा 447 और 441 के तहत मुकदमा दर्ज करा दिया।

विवेचना के दौरान नामजद आरोपी वसीम रिजवी को क्लीन चिट देकर खानापूरी

शिकायतकर्ताओं का आरोप है कि इस मामले में जितने दोषी इमामबाड़े में अवैध निर्माण करने वाले हैं, उससे कहीं ज्यादा दोष पुलिस, प्रशासन व एडीए के उन तत्कालीन अफसरों का है, जो सब कुछ देखते व जानते हुए भी चुपचाप बैठे रहे। शिकायतों पर बहुत दबाव पड़ने पर भी उनकी कार्रवाई महज खानापूरी तक ही सीमित रही। इस मामले में पुलिस की भूमिका चैंकाने वाली रही। पहले तो तमाम सबूत होने के बावजूद उचित धाराओं में मामला नहीं दर्ज किया गया। इसके बाद विवेचना के दौरान नामजद आरोपी वसीम रिजवी को क्लीन चिट देकर खानापूरी करते हुए महज इमामबाड़े के मुतवल्ली के ही खिलाफ न्यायालय में आरोपपत्र दाखिल किया। विवेचना में पुलिस की भूमिका इससे साफ जाहिर होती है जब अल्पसंख्यक आयोग के आदेश के बाद हुई इस मामले की पुनर्विवेचना के दौरान पर्याप्त साक्ष्य पाए जाने पर वसीम रिजवी का नाम फिर सामने आया और दर्ज मामले में कई और धाराए जोड़ने के लिए शासन से अनुमति मांगी गयी।

इस मामले में तत्कालीन प्रशासनिक अफसरों की कार्यप्रणाली पर भी कई तरह के सवाल खड़े हुए। दरअसल शिकायतकर्ताओं ने बताया कि इमामबाड़े मेें अवैध निर्माण की शिकायत अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री के साथ ही जिला प्रशासन के तत्कालीन अफसरों से भी की गई थी। जिसके बाद तत्कालीन जिलाधिकारी की ओर से मामले की जांच के लिए एडीएम सिटी की अध्यक्षता में छह सदस्यीय कमेटी गठित की गई थी। इनमेें तत्कालीन एसपी सिटी, एडीए सचिव, अपर नगर आयुक्त, नगर मजिस्ट्रेट व सीओ कोतवाली भी शामिल थे।

कमेटी ने जांच रिपोर्ट में अपने अंतिम व अतिमहत्वपूर्ण बिंदु में यह माना था कि ‘अध्यक्ष शिया सेंट्रल वक्फ बोर्ड से स्वीकृत मानचित्र के आधार पर हुए निर्माण में इमामबाड़े की लगभग 80 फीसदी जमीन पर दुकानें बनी हैं जबकि महज 15-20 प्रतिशत जमीन ही धार्मिक कार्य के लिए शेष है, जिससे पुराने इमामबाड़े का अस्तित्व समाप्त हो गया है।’ इसके बावजूद रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि मामले में प्रशासनिक स्तर पर कोई अन्य कार्रवाई प्रथम दृष्टया आवश्यक नहीं है। इस मामले में एक और शिकायतकर्ता असर फाउंडेशन के अध्यक्ष एसएस शौकत आब्दी ने प्रधानमंत्री कार्यालय में इसकी शिकायत कर दी। शौकत की शिकायत के बाद 21 अगस्त 2016 को प्रधानमंत्री कार्यालय की ओर से प्रयाागराज प्रकरण समेत यूपी की सभी वक्फ संपत्तियों की जांच करायी गयी। वसीम रिजवी के खिलाफ लखनऊ, मेरठ, इलाहाबाद और बरेली में कई दर्जन मुकदमे दर्ज है।

वक्फ राज्यमंत्री के खिलाफ भी है मुकदमा

इधर, वसीम रिजवी योगी सरकार के अल्पसंख्यक कल्याण, हज व वक्फ राज्यमंत्री मोहसिन रजा पर भी वक्फ संपत्तियों को बेंचने का आरोप लगाते है। वसीम रिजवी ने मोहसिन रजा पर उन्नाव के पास शफीपुर में उस वक्फ संपत्ति को बेंचने का आरोप लगाया है, जिसमे मोहसिन मुतवल्ली है। वसीम कहते है कि शिया वक्फ बोर्ड ने मोहसिन रजा को तलब भी किया था और उनके खिलाफ वर्ष 2016 में मुकदमा भी दर्ज कराया था। वसीम रिजवी का यह भी आरोप है कि मोहसिन रजा की मां और मामू ने वर्ष 2006 में कब्रिस्तान की जमीन भी बेंची है। इस संबंध में राज्यमंत्री मोहसिन रजा का कहना है कि वसीम रिजवी अपने पर लगे आरोपों में पूरी तरह से फंस चुके है, लिहाजा वह अपने बचाव के लिए ऊल-जलूल बाते कर रहे है।

प्रयागराज और लखनऊ में दर्ज मुकदमों को इसका आधार बनाया गया

फिलहाल अब इस खेल के खिलाड़ी ही आपस में लड़ रहे है और एक-दूसरे पर आरोप लगा रहे है। इस बीच उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने शिया और सुन्नी वक्फ बोर्ड की जांच सीबीआई से कराने की सिफारिश की है। प्रयागराज और लखनऊ में दर्ज मुकदमों को इसका आधार बनाया गया है। अपर मुख्य सचिव गृह अवनीश कुमार अवस्थी ने बताया कि यूपी शिया सेंट्रल वक्फ बोर्ड और यूपी सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड द्वारा अनियमित रूप से क्रय विक्रय और स्थानांतरित की गई वक्फ संपत्तियों की जांच और विवेचना सीबीआई से कराए जाने का फैसला किया गया है।

उन्होंने बताया कि इस संबंध में सचिव कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग, कार्मिक लोक शिकायत एवं पेंशन मंत्रालय भारत सरकार और निदेशक सीबीआई को पत्र भेज दिया गया है। पत्र में प्रयागराज के कोतवाली में 26 अगस्त 2016 को दर्ज शिया सेंट्रल वक्फ बोर्ड और 27 मार्च 2017 को हजरतगंज कोतवाली में दर्ज मुकदमों की जांच सीबीआई से कराए जाने का अनुरोध किया गया है। इस पूरी कहानी में सबसे दिलचस्प बात यह है कि मोहसिन रजा और वसीम रिजवी दोनों ने ही सीबीआई जांच का स्वागत करते हुए कहा है कि सीबीआई जांच में दूध का दूध और पानी का पानी हो जायेगा।



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