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सोनभद्र : जिले की पहचान भले ही पॉवर हब के रूप में होती हो, लेकिन विकास के मामले में यह देश के सबसे पिछड़े जिलों में ही रहा है और आज भी है। जिसे नीति आयोग के अत्यंत पिछड़े जिले की सूची में भी देखा जा सकता है। मौजूदा समय में समय में 47 से 48 तक का तापमान झेल रहे सोनभद्र के कई गांव पानी के संकट से जूझ रहे हैं।
हालात इतने बदतर है कि ग्रामीणों को न सिर्फ तीन से चार किलोमीटर तक की दूरी तय करनी पड़ रही है, बल्कि हैंडपंप और कुओं के जवाब दे देने के कारण नालों के पानी से ही जीवन निर्वाह करना पड़ रहा है। सरकारी आंकड़ों को देखने पर तो लगता है हर तरफ हैंडपंप और टैंकरों से आपूर्ति है। लेकिन जमीनी हकीकत इससे कत्तई मेल नही खाती। ग्रामीणों की माने तो उनके लिए सरकारी व्यवस्था तो सिर्फ कागज़ों पर ही चली आ रही है। हां. इतना जरूर कहा जा सकता है कि प्रत्येक वर्ष जून के पहले सप्ताह में प्रशासन का एक नाटक जरूर शुरू होता है। जिसमें कुओं की सफाई, तालाबों की सिल्ट सफाई जैसे तमाम काम जो कुछ ही दिनों में बरसात शुरू होने के बाद कागज़ों से होते हुए जेब तक चला जाता है।
पेयजल संकट से कोई एक विशेष क्षेत्र नही कमोबेश पूरा जनपद चपेट में है। घोरावल क्षेत्र की तरफ बेलन नदी से लेकर लाइफ लाइन कही जाने वाली सोन को पैदल ही पार किया जा सकता है। इतना ही नहीं म्यूरपुर से लेकर बिहार की सीमा विंढमगंज में मलिया नदी भी किनारे बसे लोगो को पानी नही दे पा रही है।
बिहार सीमा पर जोरुखाड के सोननगर गांव की आबादी लगभग 1200 है। सोन नगर के 75 वर्षीय विफनी देवी की माने तो इस उम्र में भी उन्हें 3 किलोमीटर दूर नाले से पानी लेने जाना पड़ता है। वह भी घंटों की कड़ी मशक्कत के बाद उन्हें एक घड़ा पानी नसीब होता है।
55 वर्षीय बसमतिया देवी को भी पानी के लिए दिनभर मेहनत करनी पड़ रही है। गांव से सटे जंगल में एक दो जगह ही नाले में पानी बचा हुआ है। वह भी घंटों मेहनत करने के बाद एक घड़ा पानी निकलता है।
ग्रामीण राजेन्द्र प्रसाद के अनुसार ऐसा नहीं है कि पानी के लिए यहां के लोगों ने अधिकारियों से गुहार नहीं लगाया। पानी को लेकर डीएम सोनभद्र से भी मिले। लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई। गांव के लोग इस बात से काफी नाराज हैं कि चुनाव के समय सभी नेता पानी पहुंचाने के लिए वादा तो करते हैं। लेकिन चुनाव के बाद सब भूल जाते हैं।
इन हालातों के पीछे भी कई अन्य कारण दिखते है। ग्राम प्रधान बृजकिशोर चौरसिया ने कहा, दरअसल मलिया नदी के किनारे बसे इस सोन नगर गांव में एक भी हैंडपंप नहीं हैं और मलिया नदी बिल्कुल सूख चुकी है। वन विभाग वन भूमि बताते हुए यहां पर हैंडपंप लगने नहीं देता। ऐसे में पानी कहां से आए ? प्रशासन टैंकर से भिजवाने की बात करता है लेकिन बिजली के अभाव में टैंकर भरे कैसे ?
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