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सावधान: सोनभद्र में हर साल दो से तीन मीटर कम हो रहा जलस्तर, हालात खस्ता

Sonbhadra News: सोनभद्र में लगभग 25 वर्ष सेे जल प्रदूषण गंभीर मसला बना हुआ है। जहां लगभग 26 गांव पिछले 20 साल से फ्लोरोसिस जनित दिव्यांगता विकलांगता से गंभीर रूप से पीड़ित हैं।

Kaushlendra Pandey
Report Kaushlendra PandeyPublished By Deepak Kumar
Published on: 21 March 2022 11:04 PM IST
Water level slipping two to three meters every year in Sonbhadra News
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सोनभद्र में हर साल दो से तीन मीटर खिसक रहा जलस्तर।

Sonbhadra News: पूर्वांचल का बुंदेलखंड कहे जाने वाले सोनभद्र में आजादी के 75 वर्ष बाद भी यहां की एक बड़ी आबादी के लिए शुद्ध पेयजल की उपलब्धता चुनौती बनी हुई है। कई ब्लाकों के जलस्तर में प्री-पोस्ट मानसून में दो से तीन मीटर की गिरावट सामने आई है। जल प्रदूषण के अहम कारक जलस्तर में आती गिरावट को रोकने के लिए दस से 15 वर्ष के भीतर काम के बदले अनाज योजना, भूमि संरक्षण योजना, मनरेगा, लघु सिंचाई, ग्राम पंचायत निधि से सैकड़ों चेकडैमों-तालाबों के निर्माण और गहरीकरण के कार्य किए गए। कई अफसरों ने इसको लेकर अपनी पीठ भी थपथपवाई। बावजूद पेयजल की उपलब्धता और जलस्तर में साल दर साल आती कमी, सोनभद्र के हालात क्रिटिकल बनाए हुए हैं। दस ब्लाकों वाले जिले में दो ब्लाकों की स्थिति ज्यादा गंभीर बताई जा रही है।

सोनभद्र (Sonbhadra News) में लगभग 25 वर्ष सेे जल प्रदूषण गंभीर मसला बना हुआ है। जहां लगभग 26 गांव पिछले 20 साल से फ्लोरोसिस जनित दिव्यांगता विकलांगता से गंभीर रूप से पीड़ित हैं। वहीं आयरन, फ्लोराइड, नाइट्रेट, मरकरी जैसे रासायनिक तत्वों की अधिकता जिला मुख्यालय सहित जिले के बड़े हिस्से में शुद्ध पेयजल की उपलब्धता को लेकर संकट खड़ा किए हुए हैं। इसको लेकर एनजीटी की तरफ से कई निर्देश जारी हैं। जलस्तर सुधारने और जल प्रदूषण में कमी लाने के लिए ढेरों प्रयास भी हो रहे हैं, हालात में कुछ सुधार भी देखने को मिले हैं लेकिन अभी तक की जो स्थिति है, उससे हालात चिंताजनक बने हुए हैं। बता दें कि विश्व जल दिवस प्रतिवर्ष 22 मार्च को मनाया जाता है। इसका उद्देश्य स्वच्छ एवं सुरक्षित जल की उपलब्धता सुनिश्चित करवाना और जल संरक्षण के महत्व पर ध्यान केंद्रित कराना है।


5000 चेकडैमों-तालाबों के निर्माण-गहरीकरण का हो चुका है कार्य

जिले में लगभग 20 साल से जल संरक्षण को लेकर तेजी से चल रहे कार्य पर नजर डालें तो अब तक जहां लगभग एक हजार चेकडैमों-तालाबों-बाउलियों का निर्माण कराया जा चुका है। वहीं, लगभग चार हजार तालाबों-बाउलियों के गहरीकरण, चेकडैमों के जीर्णोद्धार, नदी-नालों के गहरीकरण का भी कार्य कराया जा चुका है। बावजूद जिले के कई ब्लाकों में अच्छी बरसात की दशा में जहां भूजल की अच्छी रिचार्जिंग सामने नहीं आ रही है। वहीं, तपिश के समय जलस्तर में आती गिरावट भी चिंता का कारण बनी हुई है।

नए हैंडपंप, अंधाधुंध रिबोर भी बिगाड़ रहे हालात

जिले के हालात को देखते हुए, जल संकट वाले इलाकों में नए हैंडपंप-बोरिंग पर रोक लगाए जाने की मांग कई बार की जा चुकी है। बावजूद अभी भी पेयजल उपलब्धता के लिए हैंडपंपों की स्थापना और रिबोर ही बड़ा माध्यम बना हुआ है। जिले में कई पेयजल योजनाएं भी संचालित की जा रही हैं लेकिन उनकी धीमी गति और बीच-बीच में फंसते पेंच, एक बड़ी जनसंख्या को पेयजल के आसान पहुंच से दूर किए हुए है।

पहले दुद्धी ब्लाक था क्रिटिकल, अब नगवां भी शामिल

जिले में पहले दुद्धी ब्लॉक (Duddhi Block) को ही सेमी क्रिटिकल ब्लाक का दर्जा हासिल था लेकिन अब 2019-2020 से अब इस सूची में नगवां का भी नाम जुड़ गया है। शेष ब्लाकों में जलस्तर की स्थिति को अभी सेफजोन में माना जा रहा है लेकिन जिस तरह से सभी ब्लाकों में धीरे-धीरे प्रदूषण का दायरा बढ़ रहा है, उससे लोगों की चिंता बढ़ती जा रही है।

आरओ प्लांट के जरिए रोजना हजारों लीटर पानी बर्बाद

प्रदूषण प्रभावित इलाकों में लोगों को शुद्ध पेयजल उपलब्ध कराने के लिए जहां पोल्यूटेड पे फार्मूला के तहत 90 बड़े आरओ प्लांट लगाए गए हैं। वहीं स्कूलों एवं अन्य गांवों में सरकारी मद से डेढ सौ से अधिक छोटे-बड़े आरओ प्लांटों की स्थापना की गई है। इन आरओ प्लांटों का जुड़ाव अब तक इंटीग्रेटेड पाइपलाइन से न होने के कारण, भूगर्भ से निकलने वाला हजारों लीटर पानी बहकर बर्बाद हो रहा है। इसके अलावा व्यवसायिक उपयोग के लिए बैठाए गए दर्जनों वाटर प्लांटों से भी प्रतिदिन हजारों लीटर पानी बर्बाद हो रहा है। जबकि एनजीटी इसके लिए निर्देश भी दे चुका है। बता दें कि आरओ से एक लीटर शुद्ध पानी निकालने में तीन से चार लीटर पानी व्यर्थ बह जाता है। अगर इस पानी को पाइपलाइन के जरिए नजदीकी घरों में पहुंच बना दी जाए, तो पीने के अलावा अन्य कार्यों में इसका उपयोग कर, एक बड़ी जलराशि संरक्षित की जा सकती है।

आंकड़ों से जानिए, सोनभद्र मे क्या हैं भूजल स्तर की स्थिति

2019-2020 के आंकड़े बताते हैं कि बभनी ब्लाक में 2019 में प्री मानसून जलस्तर 8.30 मीटर नीचे पाया गया। वहीं 2020 में जलस्तर खिसककर 9.79 मीटर नीचे चला गया। महज एक साल की अवधि में लगभग डेढ़ मीटर की गिरावट दर्ज हुई। इसी तरह 2019 में मानसून के बाद का जलस्तर 5.10 मीटर नीचे पाया गया था। 2020 में यह गिरकर 5.99 पर पहुंच गया। यहां लगभग एक मीटर की गिरावट सामने आई। चतरा ब्लाक की स्थिति ठीक रही। चोपन ब्लाक के जलस्तर में 2019 के मुकाबले 2020 में लगभग आधा मीटर तक गिरावट देखने को मिली। दुद्धी में इस अवधि में प्री मानसून में गिरावट का आंकड़ा सवा मीटर से लेकर ढाई मीटर से अधिक (2.61 मीटर) तक पहुंच गया।

घोरावल में मानसून के बाद के जलस्तर में 2.94 मीटर गिरावट देखने को मिली। म्योरपुर ब्लाक में भी मानसून बाद की गिरावट लगभग दो मीटर के करीब सामने आई। इस अवधि में नगवां ब्लाक की स्थिति कुछ संतोषजनक रही लेकिन पहले से कम जलस्तर और मानसून बाद गिरावट का क्रम बना रहने से, इस ब्लाक को सेमी क्रिटिकल की सूची में शामिल कर लिया गया। राबटर्सगंज ब्लाक में प्री मानसून जलस्तर में सुधार देखने को मिला लेकिन मानसून के बाद में लगभग दो मीटर की गिरावट बनी हुई है।

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Deepak Kumar

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