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पानी बचाने को गांधीगिरी टीम की अनोखी मुहिम

raghvendra
Published on: 30 Aug 2019 9:51 AM GMT
पानी बचाने को गांधीगिरी टीम की अनोखी मुहिम
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संदीप अस्थाना

आजमगढ़: आजमगढ़ में पानी बचाने के लिए एक नई मुहिम की शुरूआत हुई है। यह मुहिम शुरू की है गांधीगिरी टीम ने। यह टीम पहले से ही सामाजिक सरोकारों को लेकर जनजागरूकता अभियान चला रही है। एक दौर वह भी आया था जब विश्वपटल पर आजमगढ़ की पहचान अपराध और आतंकवाद की नर्सरी के रूप में हो गयी थी। इसके विपरीत इस सच को समाज कभी नहीं नकार सका है कि आजमगढ़ जिले ने हमेशा देश और समाज को दिशा देने का काम किया है।

उर्दू साहित्य के नामचीन शायर इकबाल सुहेल की लाइनों-इस खित्तये आजमगढ़ पे मगर फैजाने तजल्ली है यक्सर, जो जर्रा यहां से उठता है वो नैय्यरे आजम होता है, को यहां के लोग हकीकत में जीते चले आ रहे हैं। लोगों को सुनने में अजीब जरूर लगेगा मगर यह सच है कि इस समय यहां के लोग गांधीगिरी को जी रहे हैं और गुलाब आंदोलन चला रहे हैं। इस आंदोलन को भरपूर जनसमर्थन भी मिल रहा है। इसी कारण इस आंदोलन को चलाने वाले लोगों का हौसला बुलन्द है और वे कह रहे हैं कि गांधीगिरी के माध्यम से वे इस समाज को एक नया स्वरूप देने में निश्चित रूप से कामयाब होंगे।

रंगकर्मी के दिमाग की उपज है गांधीगिरी

गांधीगिरी की सोच एक रंगकर्मी के दिमाग की उपज है। इस रंगकर्मी का नाम है विवेक पांडेय। आजमगढ़ जिले के सदर तहसील क्षेत्र के जहानागंज थानान्तर्गत सुम्भी गांव के रहने वाले विवेक पांडेय ने जिले को एक नया आयाम देने का सपना देखा।

इस सपने को मूर्त रूप देने के लिए ही गांधीगिरी की उपज हुई। विवेक पांडेय ने भले ही अकेले इस आंदोलन को शुरू किया मगर जल्द ही उनके चार साथी आशीष उपाध्याय, ऋषभ उपाध्याय, प्रीतेश अस्थाना व अखंड प्रताप दूबे उनके साथ जुड़ गए। फिर तो यह कारवां बनता ही चला गया। आज इस गांधीगिरी को व्यापक जनसमर्थन मिल रहा है।

एक घटना से मिली प्रेरणा

इस तरह की सोच मन में कैसे आयी, इस बाबत पूछने पर विवेेक ने कहा कि बात उस समय की है, जब वह चौथी कक्षा के विद्यार्थी थे। अचानक बीमारी के दौरान झोलाछाप डाक्टर ने उन्हें इंजेक्शन लगाया। उस जगह पर पक गया और फोड़ा हो गया। इसी के बाद चौथी कक्षा के इस विद्यार्थी ने झोलाछाप डाक्टर नाम से नाटक लिखा।

इस नाटक को उसने अपने साथियों के साथ मिलकर कई स्थानों पर प्ले किया। यह नाटक लोगों को काफी पसंद आया। इससे विवेक का हौसला बढ़ा। उसी दिन विवेक ने यह फैसला लिया कि अगर समाज में बेहतर काम किया जाए तो उसे प्रोत्साहित करने वाले लोगों की इस समाज में कोई कमी नहीं है। साथ ही समाज को बदला जा सकता है और समाज की कुरीतियों को खत्म किया जा सकता है। इस सोच ने ही विवेक को रंगकर्म की तरफ आकर्षित किया और वह लम्बे समय तक रंगकर्मी के रूप में समाज को बदलने का प्रयास करते रहे।

बच्चों की ली मदद

गांधीगिरी टीम ने बच्चों की मदद लेेने की योजना बनाई। टीम के लोग बच्चों से मिले। उन्हें अपने तरीके से प्रभावित किया और उन्हें इस बात के लिए तैयार कर लिया कि अगर घर में उनके पापा गंदगी फैला रहे हैं तो वह अपने पापा से यह कहें कि पापा, प्लीज गंदगी मत फैलाइए।

इस टीम के लोगों का यह मानना था कि अगर बच्चे अपने पापा को स्वच्छता के प्रति सचेत करेंगे तो उसका अलग असर होगा। साथ ही पापा के साथ-साथ परिवार के सभी लोग स्वच्छता के प्रति सचेष्ट होंगे और देश स्वच्छ होगा। गांधीगिरी टीम को इस अभियान में सफलता भी मिली और लोगों ने उनके इस प्रयास को भी सराहा। टीम के सदस्यों ने भी आम लोगों को गुलाब भेंट करके गंदगी न फैलाने की अपील की।

अब पानी बचाने की मुहिम

स्वच्छता आंदोलन की सफलता से उत्साहित गांधीगिरी टीम के सदस्य अब पानी बचाने की मुहिम चला रहे हैं। जहां भी कोई इनको पानी बर्बाद करते दिखलायी पड़ता है, यह लोग उसे गुलाब भेंट करके पानी बचाने की अपील करते हैं।

गांधीगिरी टीम के लोग जब भी अपना कोई आंदोलन चलाते हैं तो लोगों से मिलकर उन्हें गुलाब का एक फूल भेंट करते हैं और उस आंदोलन के प्रति आगाह करते हुए जागरूक करते हैं।

जब इस टीम के लोगों ने स्वच्छता अभियान चलाया तो उस दौरान जब कोई गंदगी फैलाता नजर आया तो इस टीम के लोगों ने उन्हें गुलाब भेंट कर स्वच्छता के प्रति जागरूक किया। ऐसी स्थिति में गंदगी फैलाने वालों के मन में झेप महसूस हुई। यही वजह रही कि उनके साथ लोग जुड़ते चले गए। अब उसी तरह से जब इस टीम के लोग पानी बचाने की मुहिम चलाए हुए हैं तो जहां भी कोई पानी बर्बाद करते दिखलायी पड़ रहा है तो उसे भी लोग गुलाब भेंट करके जागरूक कर रहे हैं।

क्या कहते हैं गांधीगिरी टीम के लोग

गांधीगिरी टीम के लोगों ने अभी तक अपना कोई संगठन नहीं बनाया है जबकि इसके सदस्यों की संख्या हजारों में हो चुकी है। इस टीम के लोगों का मानना है कि वह समाज की हर कुरीति के खिलाफ आंदोलन करेंगे। यह अलग बात है कि हमेशा उनका आंदोलन अहिंसात्मक ही होगा। जल्द ही उन्होंने परिषदीय प्राथमिक विद्यालयों की बेहतरी, नशामुक्ति, शौचालय व हेलमेट को लेकर लोगों को जागरूक करने का मन बनाया है। इस टीम के लोग वास्तविकता के धरातल पर काम कर रहे हैं और उन्हें व्यापक जनसमर्थन भी मिल रहा है। गांधीगिरी आंदोलन के अगुवा विवेक पांडेय का कहना है कि वे लोग किसी मुद्दे को लेकर उग्र आंदोलन नहीं करेंगे। उनका कहना है कि उनका हर विरोध अहिंसात्मक होगा और वह लोग इसी बिन्दु पर काम करेंगे। इसके अलावा उनके पास विरोध का कोई एजेंडा नहीं होगा। इस टीम का मिशन पाश्चात्य संस्कृति की खिलाफत करना भी है। टीम के लोग पूरी तरह से आश्वस्त हैं कि वे समाज को बदलने में निश्चित रूप से कामयाब होंगे। विवेक का कहना है कि पूरी दुनिया में पानी का संकट है। वह दिन दूर नहीं जब पानी के लिए विश्वयुद्ध होगा। ऐसे में पानी बचाना हम सभी की जिम्मेेदारी है। इसी वजह से हम इस एजेंडे पर काम कर रहे हैं।

स्वच्छता मिशन के लिए भी किया काम

देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जब स्वच्छता का नारा दिया तो यह अभियान विवेक पांडेय को काफी प्रभावित किया। विवेक की नजर शहर के नरौली पुल के पास पालिका प्रशासन की ओर से जमा किए जाने वाले कचरे पर गयी। इसके खिलाफ इस गांधीगिरी टीम ने गांधीवादी आंदोलन चलाया। आजमगढ़ के साथ-साथ लखनऊ में जाकर प्रदर्शन किया। डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य के साथ-साथ इस जिले से सम्बन्धित अधिकारियों से मिले। वहां लोगों से बातचीत की और कहा कि उनको कुछ नया करना है। इसके बाद जिले में आकर यहां के तत्कालीन डीएम चन्द्रभूषण सिंह से मिले। स्वच्छता के बाबत उनसे बातचीत की। फिर गांधीगिरी की शुरुआत की और पहला मिशन स्वच्छता को बनाया।

अच्छे परिवारों के हैं आंदोलन चलाने वाले

गांधीगिरी आंदोलन चलाने वाले लोग अच्छे परिवारों से ताल्लुक रखते हैं। इस आंदोलन के अगुवा विवेक पांडेय जहां खुद एक सम्पन्न किसान परिवार के हैं वहीं उनके साथ मजबूती से कंधे से कंधा मिलाकर चल रहे आशीष उपाध्याय एमटेक की डिग्री लेने के बाद आईटी का बिजनेस कर रहे हैं। ऋषभ उपाध्याय एमसीए के बाद अपना खुद का कम्प्यूटर संस्थान चला रहे हैं। प्रीतेश अस्थाना ने बीटेक के बाद एमएसडब्लू किया है और अखंड प्रताप दूबे पेशे से शिक्षक हैं। यही वजह है कि जब यह लोग समाज के सामने गांधीगिरी का अपना मिशन लेकर जा रहे हैं तो लोग इन्हें सहज रूप में स्वीकार कर रहे हैं। लोग यह सोचने को मजबूर हो रहे हैं कि जब ये नौजवान समाज के लिए इतना बेहतर काम कर रहे हैं तो क्यों न वह उनके इस अभियान के सारथी बने।

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राघवेंद्र प्रसाद मिश्र जो पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद एक छोटे से संस्थान से अपने कॅरियर की शुरुआत की और बाद में रायपुर से प्रकाशित दैनिक हरिभूमि व भाष्कर जैसे अखबारों में काम करने का मौका मिला। राघवेंद्र को रिपोर्टिंग व एडिटिंग का 10 साल का अनुभव है। इस दौरान इनकी कई स्टोरी व लेख छोटे बड़े अखबार व पोर्टलों में छपी, जिसकी काफी चर्चा भी हुई।

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