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बनारसी साड़ी: बुनकर, बिजली और सब्सिडी का खेल

raghvendra
Published on: 31 Aug 2018 9:11 AM GMT
बनारसी साड़ी: बुनकर, बिजली और सब्सिडी का खेल
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आशुतोष सिंह

वाराणसी: बनारसी साड़ी की धूम पूरी दुनिया में है। बनारसी सिल्क और उस पर उकेरी जाने वाली कढ़ाई, साड़ी के शौकीनों को अपनी ओर खींच लाती है। बनारसी साड़ी अपने आप में स्टेटस सिबंल भी मानी जाती है, लेकिन पिछले कुछ सालों से साड़ी की चमक फीकी पडऩे लगी है। कारोबार मंदा पड़ चुका है तो साड़ी बनाने वाले हुनर के हाथ अब खाली हैं। नोटबंदी और जीएसटी ने पहले ही बुनकरों की कमर तोड़ दी और अब रही सही कसर बिजली विभाग पूरी करने जा रहा है। बिजली विभाग और हथकरघा वस्त्रोद्योग विभाग के एक सर्वे से बुनकरों की नींद उड़ी हुई है।

केस नंबर-1

पीलीकोठी के रहने वाले अशफाक अंसारी के पास दो पावरलूम मशीनें हैं। किसी तरह रोजी-रोटी का जुगाड़ हो जाता है, लेकिन इन दिनों वो अपना काम छोडक़र हैंडलूम और बिजली विभाग के चक्कर काट रहे हैं। सरकार के एक सर्वे ने उनकी नींद उड़ा दी है। डर इस बात का है कि सरकार कहीं बिजली पर मिलने वाली सब्सिडी ना हटा दे।

केस नंबर-2

रेवड़ीतालाब के मेराज भी पावरलूम के सहारे परिवार का पालन करते हैं। बिजली बिल में मिलने वाली रियायत से कारोबार में सहूलियत रहती थी, लेकिन हाल के दिनों में उड़ी एक खबर ने उन्हें बेचैन कर दिया है। हैंडलूम और बिजली विभाग के अधिकारी आए दिन उनके कारखाने धमक जाते हैं और तरह-तरह के कागजात मांगते हैं। इससे ना सिर्फ रोजगार प्रभावित हो रहा है बल्कि उनके मन में एक डर भी समा गया है।

दरअसल बिजली सब्सिडी को लेकर बनारस के बुनकरों की मुसीबत बढऩे वाली है क्योंकि अब सब्सिडी राशि उनके बकाए बिजली बिल से नहीं घटेगी। इस राशि को गैस सिलेंडर की तर्ज पर डीबीटी के माध्यस से सीधे बैंक अकाउंट में भेजने की कवायद चल रही है। यह व्यवस्था अगले कुछ महीनों में शुरू हो जाएगी। बिजली विभाग के अधिकारियों की मानें तो सब्सिडी में पारदर्शिता लाने के लिए नई व्यवस्था लाई जा रही है। वहीं दूसरी ओर सरकार की इस मंशा के बाद बनारस के बुनकरों में हडक़ंप की स्थिति है।

सब्सिडी का हो रहा है गलत इस्तेमाल

बुनकरों की सेहत सुधारने के लिए राज्य सरकार ने बुनकरों को सब्सिडी पर बिजली देने का ऐलान किया था, लेकिन उनको मिलने वाली बिजली सब्सिडी का दुरुपयोग किए जाने की शिकायतें मिल रही हैं। यह बात सामने आने के बाद अब प्रदेश सरकार ने बुनकरों को मिलने वाली बिजली की जांच कराने का फैसला किया है और इसकी जिम्मेदारी हैंडलूम विभाग को सौंपी है। हैंडलूम विभाग के अधिकारियों के मुताबिक बनारस में बुनकरों को सब्सिडी पर मिलने वाली बिजली की बड़े पैमाने पर चोरी होने की शिकायतें मिली हैं। लिहाजा सरकार ने पावरलूम के नाम पर बिजली का दुरुपयोग करने वालों को चिह्निïत करने का फैसला किया है। यह कार्रवाई दो चरणों में पूरी होगी। अधिकारियों ने बताया कि ऐसे लोगों की पहचान की जाएगी जो पावरलूम के नाम पर कनेक्शन लेकर दूसरा काम करवा रहे हैं।

उनकी पहचान कर उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी। बिजली विभाग के अधिकारियों की मानें तो बुनकर सब्सिडी की राशि जरुरतमंद बुनकर तक पहुंच पा रही है या नहीं, इसकी जांच के लिए एक टीम तैयार की गई है। टीम के अधिकारी घर-घर जाकर सत्यापन का कार्य कर रहे हैं। अगर किसी के अवैध कनेक्शन या फिर सब्सिडी के दुरुपयोग का मामला सामने आया तो उसके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी।

पावरलूम की बिजली से चल रही चक्की

सब्सिडी के इस खेल में भ्रष्टाचार का आलम ये है कि कनेक्शन तो पावरलूम के नाम पर लिया गया है, लेकिन मौके पर पावरलूम के बजाय आटा चक्की या फिर दूसरे तरह के कारखाने चल रहे हैं। हैंडलूम विभाग के अधिकारियों के मुताबिक पिछले दस महीने के दौरान बनारस के 25 हजार बुनकरों के घरों का सत्यापन किया गया। इस दौरान कुछ चौंकाने वाले तथ्य भी सामने आए। इस दौरान करीब 150 ऐसे बुनकर मिले जिनके पास न तो पावरलूम था और न ही हथकरघा का काम मिला। ये लोग सब्सिडी का फायदा घरेलू या फिर कामर्शियल इस्तेमाल में उठा रहे थे। सब्सिडी का दुरुपयोग करने वालों की यह सुविधा खत्म करने के साथ ही ऐसे लोगों की रिपोर्ट हथकरघा वस्त्र उद्योग निदेशालय को भेजी जा रही है। सूत्रों के मुताबिक फर्जीवाड़े के इस खेल में स्थानीय बिजली विभाग के अधिकारियों की मिलीभगत होती है।

स्थानीय अधिकारियों को इस पूरे खेल का पता रहता है,लेकिन मोटी रकम के चक्कर में अधिकारी चुप्पी साधे रहते हैं। बनारस में हैंडलूम विभाग के सहायक निदेशक नितेश धवन के मुताबिक सरकार अब बिजली सब्सिडी के मामले में सख्त हो गई है। पूर्वाचल में बुनकरों की बहुत बड़ी संख्या है। ये बुनकर पर्याप्त बिजली के अभाव में अपने काम को अंजाम नहीं दे पाते हैं। बुनकरों को राहत देने के लिए ही राज्य सरकार ने सब्सिडी पर बिजली मुहैया कराने का फैसला किया था, लेकिन बुनकरों को मिलने वाली बिजली का लाभ बिचौलिये उठा रहे हैं। सरकार ने अब इस समस्या को दूर करने का फैसला किया है।

तमाम बुनकर सब्सिडी से वंचित होंगे

अगर सरकार की नई व्यवस्था लागू हुई तो बनारस के बहुत से बुनकरों को सब्सिडी से वंचित होना पड़ेगा। सब्सिडी में हो रहे खेल को रोकने के लिए सरकार कड़े कदम उठाने जा रही है। साथ ही उसकी मंशा है कि बिचौलियों पर नकेल कसी जाए। नए नियम के मुताबिक बिजली सब्सिडी लेने वाले बुनकरों का बैंक अकाउंट, आधार कार्ड और बुनकर कार्ड होना जरूरी कर दिया गया है। इनमें से अगर एक भी आईडी बुनकरों के पास नहीं होगी तो उन्हें ये लाभ नहीं मिलेगा। दरअसल अभी तक बुनकरों को सब्सिडी का लाभ उनके लोड के हिसाब से दिया जाता था। लोड के हिसाब से उनका रेट तय किया जाता था। अगर किसी पावरलूम बुनकर को एक किलोवाट बिजली की जरुरत है तो उससे एक फिक्स चार्ज लिया जाता था। फिलहाल एक किलोवाट बिजली के लिए बुनकरों को 147 रुपए चुकाना पड़ता है जबकि पांच किलोवाट बिजली के लिए 1029 रुपए चुकाने पड़ते हैं। अगर नई व्यवस्था लागू होती है तो बुनकरों को कामर्शियल रेट पर बिजली का बिल भरना पड़ेगा। इसके बाद सरकार सब्सिडी के तौर पर पैसे उनके खाते में भेजगी।

बिजली मीटर लगाने का हो रहा विरोध

शासन के निर्देश पर पूर्वांचल के कई जिलों में सभी पावरलूमों पर मीटर लगाने के फरमान जारी हो गए हैं, लेकिन सरकार का ये निर्देश बुनकरों को रास नहीं आ रहा है। बिजली की सब्सिडी बुनकरों के खाते में सीधे भेजे जाने को लेकर भी बुनकर नाराज हैं। बुनकर बाहुल्य इलाकों में मीटर लगाने पहुंच रहे बिजली विभाग के अधिकारियों का भारी विरोध हो रहा है। बुनकर किसी भी कीमत पर मीटर लगाने के पक्ष में नहीं है। उन्हें इस बात का डर सता रहा है कि डीबीटी का शिगूफा छोडक़र सरकार बिजली पर मिलने वाली सब्सिडी खत्म करने का प्लान बना रही है। बुनकरों की चिंता है कि अगर बिजली बिल का पूरा भुगतान करना पड़ा तो उनका धंधा चौपट हो जाएगा।

मसलन अगर एक बुनकर दो किलोवाट बिजली का कनेक्शन लेता है तो उसे कम से कम दो से ढाई हजार रुपए बिजली का बिल चुकाना पड़ेगा। सब्सिडी का पैसा कितने दिनों में आएगा, ये कहना मुश्किल है। बुनकरों के मुताबिक मीटर लगाने की आड़ में बिजली विभाग भी मनमानी करेगा। बुनकरों के मुताबिक कुछ लोग अगर गलत कर रहे हैं तो इसकी सजा पूरे समाज को क्यों दी जा रही है। सरकार के इस फरमान के खिलाफ बुनकरों ने आवाज उठानी शुरू कर दी है। हैंडलूम विभाग भी बुनकरों की इस मांग को व्यवहारिक मान रहा है।

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राघवेंद्र प्रसाद मिश्र जो पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद एक छोटे से संस्थान से अपने कॅरियर की शुरुआत की और बाद में रायपुर से प्रकाशित दैनिक हरिभूमि व भाष्कर जैसे अखबारों में काम करने का मौका मिला। राघवेंद्र को रिपोर्टिंग व एडिटिंग का 10 साल का अनुभव है। इस दौरान इनकी कई स्टोरी व लेख छोटे बड़े अखबार व पोर्टलों में छपी, जिसकी काफी चर्चा भी हुई।

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