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UP Politics:विपक्षी एकजुटता का यूपी में क्या होगा मतलब,सिर्फ अखिलेश व कांग्रेस की हिस्सेदारी,मायावती और जयंत चौधरी नदारद

लखनऊ: बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के न्योते पर आज विपक्षी दलों के नेताओं की पटना में महाजुटान हुई है। इस बड़ी बैठक में हिस्सा लेने के लिए समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव भी पटना पहुंचे हैं। नीतीश की पहल पर कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और पार्टी के वरिष्ठ नेता राहुल गांधी भी इस बैठक में प्रमुख भूमिका निभाएंगे।

Anshuman Tiwari
Published on: 23 Jun 2023 11:23 AM IST
UP Politics:विपक्षी एकजुटता का यूपी में क्या होगा मतलब,सिर्फ अखिलेश व कांग्रेस की हिस्सेदारी,मायावती और जयंत चौधरी नदारद
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Akhilesh yadav (social media)

लखनऊ: बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के न्योते पर आज विपक्षी दलों के नेताओं की पटना में महाजुटान हुई है। इस बड़ी बैठक में हिस्सा लेने के लिए समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव भी पटना पहुंचे हैं। नीतीश की पहल पर कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और पार्टी के वरिष्ठ नेता राहुल गांधी भी इस बैठक में प्रमुख भूमिका निभाएंगे। देश में अगले साल होने वाले लोकसभा चुनावों के मद्देनजर विपक्षी दलों की इस बैठक को काफी महत्वपूर्ण माना जा रहा है।
विपक्षी दलों की इस बैठक का उत्तर प्रदेश के नजरिए से आकलन करना भी जरूरी है क्योंकि उत्तर प्रदेश में लोकसभा की सर्वाधिक 80 सीटें हैं। उत्तर प्रदेश से विपक्ष के नाम पर सपा और कांग्रेस का प्रतिनिधित्व तो जरूर दिख रहा है मगर बसपा की मुखिया मायावती और राष्ट्रीय लोकदल के अध्यक्ष जयंत चौधरी बैठक से नदारद है। ऐसे में उत्तर प्रदेश में विपक्षी एकजुटता की इस मुहिम को लेकर सवाल उठने लगे हैं। उत्तर प्रदेश को लेकर विपक्ष की रणनीति काफी कमजोर मानी जा रही है।

पटना की बैठक पर मायावती का तंज

बहुजन समाज पार्टी को उत्तर प्रदेश में बड़ी ताकत माना जाता रहा है मगर बसपा मुखिया मायावती को इस बैठक के लिए आमंत्रित नहीं किया गया है। मायावती इन दिनों 'अकेला चलो' की रणनीति पर अमल करती हुई दिख रही हैं। उन्होंने लोकसभा चुनाव की तैयारियां शुरू कर दी हैं। इस सिलसिले में उन्होंने बुधवार को लखनऊ में प्रदेशभर के जिला अध्यक्षों और कोआर्डिनेटरों की बड़ी बैठक भी की थी। गुरुवार को उन्होंने विपक्षी की इस अहम बैठक को लेकर तंज भी कसा था।
उन्होंने कहा कि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की ओर से 23 जून को पटना में आयोजित से विपक्षी नेताओं की बैठक 'दिल मिले ना मिले, हाथ मिलाते रहिए' की कहावत को चरितार्थ करने वाली है। मायावती की इस टिप्पणी से साफ हो गया है कि वे विपक्ष की एकजुटता की इस मुहिम से पूरी तरह अलग खड़ी दिख रही हैं। 2024 के लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश की भूमिका सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण होगी और ऐसे में मायावती का रुख सियासी नजरिए से काफी अहम माना जा रहा है।

जयंत चौधरी ने किया बैठक से किनारा

राष्ट्रीय लोकदल के अध्यक्ष जयंत चौधरी ने भी विपक्षी दलों की महाबैठक से किनारा कर लिया है। उन्होंने पूर्व निर्धारित पारिवारिक कार्यक्रमों की वजह से बैठक में शामिल न होने का फैसला किया है। जयंत ने बैठक के आयोजक और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को अपने फैसले की जानकारी दे दी है। नीतीश कुमार को भेजे गए संदेश में उन्होंने बैठक की सफलता के लिए शुभकामनाएं तो दी हैं मगर इसके साथ ही बैठक में शामिल होने असमर्थता भी जता दी है।
जयंत चौधरी का यह कदम समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव और नीतीश कुमार दोनों के लिए बड़े झटके के रूप में देखा जा रहा है। हाल के दिनों में अखिलेश यादव से जयंत चौधरी के टकराव और खटपट की चर्चाएं सुनी जाती रही हैं। निकाय चुनाव के समय मेरठ में सपा की ओर से सीमा प्रधान को उतारे जाने से जयंत चौधरी काफी नाराज बताए जा रहे हैं। बाद में मुजफ्फरनगर लोकसभा सीट पर सपा मुखिया अखिलेश यादव की ओर से हरेंद्र मलिक को प्रभारी बनाए जाने से दोनों नेताओं के बीच टकराव और बढ़ गया है।

प्रदेश में विपक्षी एकजुटता की क्या है तस्वीर

2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान सपा ने बसपा से गठबंधन किया था। इस चुनाव के दौरान बसपा दस और सपा पांच सीटों पर जीत हासिल करने में कामयाब रही थी। बसपा ने 19.26 फ़ीसदी वोट हासिल किए थे। दूसरी ओर राष्ट्रीय लोकदल को दो फीसदी वोट ही हासिल हुए थे मगर पश्चिमी उत्तर प्रदेश में रालोद से गठबंधन करना सियासी फायदे का सौदा माना जाता रहा है। ऐसे में पटना की बैठक में बसपा और रालोद की नामौजूदगी को लेकर उत्तर प्रदेश में विपक्षी एकजुटता पर सवाल उठाए जा रहे हैं।
ऐसी भी चर्चाएं सुनी जा रही हैं कि रालोद मुखिया जयंत चौधरी सपा की अपेक्षा कांग्रेस से हाथ मिलाने की कोशिश में जुटे हुए हैं। सपा के साथ गठबंधन करने की स्थिति में उन्हें ज्यादा सीटें मिलने की गुंजाइश नहीं है मगर कांग्रेस के साथ हाथ मिलाने पर उन्हें पश्चिमी उत्तर प्रदेश की ज्यादा सीटों पर लड़ने का मौका मिल सकता है। बसपा के भी कांग्रेस से गठबंधन की सियासी हलकों में अटकलें सुनी जा रही हैं। ऐसे में सपा के छोटे दलों के साथ मिलकर चुनाव मैदान में उतरने की संभावना है।

भाजपा को कैसे हो सकता है फायदा

दूसरी ओर भाजपा भी विपक्षी दलों की चुनौतियों का सामना करने के लिए पूरी ताकत के साथ जुट गई है। पार्टी ने सबसे पहले ऐसी सीटों पर फोकस करना शुरू कर दिया है जिन सीटों पर 2019 में में पार्टी को हार का सामना करना पड़ा था। भाजपा भी छोटे दलों के साथ मिलकर विपक्ष की रणनीति को करारा जवाब देने की कवायद में जुटी हुई है। प्रदेश की सियासत में विपक्षी एकजुटता को लेकर तमाम तरह के सवाल उठाए जा रहे हैं। अब सबकी निगाहें पटना की बैठक पर लगी हुई हैं।
अब यह देखने वाली बात होगी कि पटना की बैठक से विपक्षी एकजुटता के संबंध में क्या संदेश निकलता है। वैसे मौजूदा माहौल में उत्तर प्रदेश की सियासत में भाजपा को चुनौती देना विपक्ष के लिए मुश्किल काम माना जा रहा है। यदि विपक्षी दल अपना अलग-अलग सुर अलापते रहे तो निश्चित तौर पर भाजपा 2014 और 2019 की तरह 2024 में भी बड़ी जीत हासिल करने में कामयाब हो सकती है।



Anshuman Tiwari

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