TRENDING TAGS :
तीन दिवसीय संस्कृति संसद में राम मंदिर का निर्माण आवश्यक क्यों? विषय पर हुई चर्चा
इस अवसर पर गंगा महासभा के संगठन महामंत्री गोविंद शर्मा प्रयागराज के महामंत्री देवेंद्र तिवारी ,कार्यक्रम संयोजक विनय तिवारी, कार्यक्रम सहसंयोजक अजय उपाध्याय, युवा संस्कृति संसद के संयोजक राजन भारद्वाज, मयंक कुमार गोकुल, शिवराज यादव एवम मनोज कुमार ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
प्रयागराज: कुंभ क्षेत्र के सेक्टर 14 स्थित गंगा महासभा का शिविर में तीन दिवसीय संस्कृति संसद आज संपन्न हुआ। इस कार्यक्रम के आखिरी दिन आयोजित प्रथम सत्र में "राम मंदिर निर्माण में रुकावटें श्री राम मंदिर का निर्माण आवश्यक क्यों" विषय पर विश्व हिंदू परिषद के अंतरराष्ट्रीय उपाध्यक्ष चंपत ने कहा कि जैसे मिंटो ब्रिज का नाम शिवाजी ब्रिज किया गया वेलिंगटन अस्पताल का नाम श्रीराम मनोहर लोहिया अस्पताल रखा गया ,औरंगजेब रोड का नाम एपीजे अब्दुल कलाम रोड रखा गया। उसी तरह बाबरी मस्जिद की जगह राम मंदिर बनेगा क्योंकि यह केवल मंदिर निर्माण का सवाल नहीं है यह हमारे गौरव का सवाल है।
रूस ने जब पोलैंड पर हमला किया और वहाँ रूसी चर्च स्थापित हुआ। फिर आजादी मिलने के बाद पोलैंड ने पहला काम उस चर्च को गिराने का किया क्योंकि वह अपने गुलामी के प्रतीक को अपने भविष्य का हिस्सा नही बनाना चाहता था जबकि रूस और पोलैंड दोनों ही देश ईसाई धर्म को मानने वाले थे। किसी के लिए यह प्रॉपर्टी का विवाद हो सकता है लेकिन रामजन्म स्थान तो एक ही है। अयोध्या में लगभग एक हजार के आसपास राम मंदिर है परंतु जन्म भूमि के नाम से एक ही मंदिर था और वह मंदिर कहां गया यह हम हिंदू समाज के लोगों को सोचना होगा। मंदिर बनेगा यह राजनीतिक नहीं बल्कि सामाजिक सवाल ज्यादा है।
क्या हमारे समाज पर मंदिर बनाने का धुन सवार है?
क्या हमारे समाज पर मंदिर बनाने का धुन सवार है? अगर ऐसा है तो फिर उस समाज को मंदिर बनाने से कोई नहीं रोक सकता। क्योंकि संसद समाज से बाहर नहीं जा सकती और इससे ऊपर कोई नहीं है। आजकल अयोध्या पर काफी खर्च किया जा रहा है परंतु जब तक राम मंदिर नहीं बनेगा भारत के पूरी बजट भी वहाँ लगा दिया जाए हम हिंदुओं को संतुष्टि प्राप्त नहीं होगी।
सत्र के संचालक प्रो सीपी सिंह ने कहा आजादी के 70 सालों बाद भी अदालत द्वारा मामला नहीं निपटाए जाने के बाद यह तय हो गया है मंदिर निर्माण का मामला अब सड़क पर तय होगा ना की संसद में। क्योंकि संसद का रास्ता जनता के बीच से जाने वाली सड़क से निकलता है। कुछ वैसा ही जैसे 1986 में शाहबानो के केस में सुप्रीम कोर्ट को फैसले को राजीव गांधी की प्रचंड बहुमत वाली सरकार ने कोर्ट का निर्णय पलट कर मुस्लिम पर्सनल लॉ की सुविधा के अनुसार कर दिया था।
दूसरे सत्र "हिंदू धार्मिक परंपराओं में सरकारी हस्तक्षेप औचित्य और सीमा" विषय पर बोलते हुए अखिल भारतीय संत समिति के महामंत्री पूज्य स्वामी जितेंद्रानन्द सरस्वती जी ने कहा कि मंदिर तीर्थ स्थल होते हैं पर्यटन स्थल नहीं होते। मंदिर जाने के कुछ कायदे कानून होते हैं जैसे किसी अन्य धर्मस्थल के होते हैं। मंदिरों में भी 3 तरह के मंदिर होते हैं एक निजी मंदिर होते हैं जिसमें उस परिवार संस्था के लोग ही जा सकते हैं। दूसरे तांत्रिक मंदिर होते हैं जहां उस तंत्र के नियमों के अनुसार ही उस मंदिर में जाया जा सकता है। तीसरे मंदिर जन सामान्य के होते हैं जहां कोई भी जा सकता है।
सबरीमाला मंदिर के मामले में खास नियमों के तहत जहां जाया जाता है उसे जन सामान्य मंदिर के रूप में लेकर कोर्ट ने या तो अपनी अज्ञानता का परिचय दिया है या फिर हठधर्मिता का। हिंदू धर्म को छोड़कर किसी भी धर्म स्थल पर सरकार हस्तक्षेप नहीं कर सकती। आजादी के बाद संविधान के नियम का हवाला देते हुए बिना कारण बताए हिंदू धर्म स्थल का अधिग्रहण हो सकता है। उसके पैसे का हिसाब देने के लिए सरकार बाध्य नहीं है।
अगर सेकुलरिज्म सरकारी हस्तक्षेप को मना करता है तो फिर यह दोहरा मानदंड क्यों? चर्च, मंदिर और मस्जिद में अंतर क्यों। राष्ट्रवादी चिंतक श्रीमती मोनिका अरोड़ा ने कहा कि भारत के संविधान में जो विषय वस्तु है वह विदेशों से ली गई है। इसमें सिर्फ जिल्द हमारा है। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार ने कहा कि जो राम जन्मभूमि मंदिर के आसपास जमीन अधिग्रहित की है।
चर्च, मंदिर और मस्जिद में अंतर क्यों?
सबरीमाला मंदिर के मामले में उन्होंने कहा कि केरल में भगवान अय्यप्पा के हजार मंदिर है उसमें से 999 मंदिरों में महिलाओं का प्रवेश है सिर्फ एक में नहीं है क्योंकि वह स्वामी अय्यप्पा के निर्देशानुसार परम्परा रूप से वर्जित है। अगर यह सवाल पूछा गया होता तो फिर नर और नारी के बीच विभेद का मामला उठता है तो कितने ऐसे मंदिर है जहां सिर्फ महिलाओं का प्रवेश है पुरुष का प्रवेश वर्जित है। इस लिहाज़ से क्या पुरुषों को अदालत में जाकर उसमें प्रवेश मांगना चाहिए? दुर्गा पूजा के समय जो कन्या पूजन होता है क्या उसमें भी लिंगभेद खोजा जाए और लड़के कहें कि कन्या पूजन के साथ बालक पूजन भी किया जाए।
तीसरे और अंतिम सत्र में ज्योतिष पीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी वासुदेवानन्द सरस्वती ने कहा कि समस्त संसार की उतपत्ति चेतन ब्रह्म से हुई है। धर्म वह है जो ब्यवहार है।धैर्य धारण करना धर्म है और धैर्य न धारण करना अधर्म है। मनुस्मृति दुनिया का पहला संविधान है। भारत के संविधान की पुनर्ब्याख्या आवश्यक है। सत्र का संचालन श्री कमलेश कमल जी ने किया।
इस अवसर पर गंगा महासभा के संगठन महामंत्री गोविंद शर्मा प्रयागराज के महामंत्री देवेंद्र तिवारी ,कार्यक्रम संयोजक विनय तिवारी, कार्यक्रम सहसंयोजक अजय उपाध्याय, युवा संस्कृति संसद के संयोजक राजन भारद्वाज, मयंक कुमार गोकुल, शिवराज यादव एवम मनोज कुमार ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।