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Mainpuri By Election 2022: क्या मैनपुरी बढ़ रही है कांटे की टक्कर की और, जानें सैफई परिवार के 'अति सक्रियता' की वजह

Mainpuri By Election 2022: मैनपुरी उप चुनाव के लिए यादव परिवार की सक्रियता अलग ही संदेश दे रही है। अखिलेश यादव इस पैतृक सीट को बचाने की कवायद में जुटे हैं।

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Written By aman
Published on: 29 Nov 2022 2:20 PM IST
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अखिलेश यादव परिवार के साथ (Social Media)

Mainpuri By Election 2022: मैनपुरी में लोकसभा का उप चुनाव होने जा रहा है। समाजवादी पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव (Mulayam Singh Yadav) के निधन की वजह से ये सीट रिक्त हुई है। सपा ने 'नेताजी' की बहू और पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव की पत्नी डिंपल यादव (Dimple Yadav) को चुनाव मैदान में उतारा है। इस लिहाज से सपा के इस 'अभेद्य किले' को बचाने का दारोमदार पूरी तरह डिंपल के कंधों पर है। उनका मुकाबला बीजेपी के रघुराज सिंह शाक्य से है।

मैनपुरी उप चुनाव को लेकर पूरा यादव परिवार लामबंद है। ऐसे में एक सवाल ये भी उठता है कि, क्या मैनपुरी में अखिलेश यादव को हार का डर सता रहा है? क्योंकि, इस चुनाव के लिए पूरा यादव परिवार जिस तरह एकजुट दिखा रहे हैं, वो कई सवाल भी खड़े करते हैं। क्या आजमगढ़ और रामपुर लोकसभा सीट की हार ने यादव परिवार को एकजुट होने पर मजबूर किया है? क्या नेताजी के निधन के बाद सपा को ये डर है कि कहीं मैनपुरी सीट भी उनके हाथ से न निकल जाए।

यादव परिवार उप चुनाव को इतनी गंभीरता से क्यों ले रहा ?

अखिलेश यादव और उनके चाचा शिवपाल यादव का मनमुटाव जगजाहिर है। कई बार सार्वजनिक मंच से भी दोनों की कड़वाहट दिखती रही है। मगर, मैनपुरी उप चुनाव से पहले सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने पहल की। वो चाचा शिवपाल के घर गए। उनके पांव छुए और मनाया। नतीजा, चाचा शिवपाल घर-घर घूम कर 'बहू' के लिए वोट मांग रहे हैं। अब तक खिलाफत और बगावत का झंडा बुलंद करने वाले शिवपाल, डिंपल के प्रचार में पसीना बहा रहे हैं। इसके अलावा, रामगोपाल यादव, चचेरे भाई तेज प्रताप यादव सहित यादव परिवार के अन्य सदस्य भी पूरी ताकत झोंके हैं। मैनपुरी उपचुनाव को सपा ने प्रतिष्ठा का सवाल बना लिया है। हालत ये है कि अब तक किसी उपचुनाव में प्रचार न करने वाले अखिलेश यादव खुद भी मैनपुरी की गलियों में पत्नी डिंपल के लिए वोट मांगते नजर आ रहे हैं। सवाल वही है कि, आखिर मैनपुरी उपचुनाव को सपा और सैफई का यादव परिवार इतनी गंभीरता से क्यों ले रहा है?

1996 से यादव परिवार का रहा है 'अभेद्य किला'

मैनपुरी लोकसभा सीट को लंबे समय से मुलायम सिंह परिवार की पैतृक सीट कहा जाता रहा है। साल 1996 के बाद से इस सीट पर सपा को छोड़कर किसी और पार्टी ने जीत दर्ज नहीं की है। यूपी के पूर्व सीएम मुलायम सिंह ने जब विधानसभा को छोड़ पार्लियामेंट जाने की सोची तो, उन्होंने मैनपुरी सीट को चुना। सपा संरक्षक 1996 में पहली बार मैनपुरी सीट से ही लोकसभा के लिए चुने गए थे। हालांकि, मुलायम संभल और आजमगढ़ लोकसभा सीट (Azamgarh Lok Sabha Seat) का भी प्रतिनिधित्व कर चुके थे। लेकिन, जब आजमगढ़ और मैनपुरी में एक चुनने की बारी आई तो नेताजी ने इस सीट को ही चुना। अपने अंतिम कार्यकाल के वक्त भी नेताजी मैनपुरी से ही सांसद थे। मैनपुरी से मुलायम सिंह के अलावा उनके करीबी उदय प्रताप सिंह (Uday Pratap Singh), भतीजे धर्मेंद्र यादव (Dharmendra Yadav) और पोते तेज प्रताप यादव (Tej Pratap Yadav) भी चुनाव जीत चुके हैं। जिस पर मुलायम सिंह का हाथ रहा, वो मैनपुरी सीट से जीता। मगर, अब वो हाथ नहीं रहा। इस बात की खबर सपा को भी है और बीजेपी को भी।

जानें मैनपुरी में वोटों का गणित

मैनपुरी के इस 'युद्ध' को समझने के लिए आपको वोटों के गणित को भी समझना होगा। लोकसभा सीट के लिए यहां करीब 17 लाख मतदाता हैं। जिनमें सबसे अधिक ओबीसी वोट है। मैनपुरी में ओबीसी वोट 45 प्रतिशत के करीब है। इसमें भी सबसे ज्यादा यादव वोट बैंक है। यादव मतदाताओं की संख्या 4 लाख 30 हजार के आसपास है। इसके बाद, मुस्लिम वोटर्स लगभग 70 हजार के करीब हैं। याद करें तो समाजवादी पार्टी मुस्लिम-यादव समीकरण को लेकर चलती है जो इस सीट पर विजयी रहने के लिए मुफीद है। इन दोनों वोट बैंक के आधार पर सपा अपने पक्ष में 5 लाख वोट मान रही है। यादव के बाद यहां सबसे ज्यादा शाक्य बिरादरी के वोटर्स हैं। बीजेपी ने इस बार इसी रणनीति पर काम किया है।

बीजेपी ने रघुराज सिंह शाक्य (Raghuraj Singh Shakya) को अपना प्रत्याशी घोषित किया है। यहां शाक्य वोट करीब 2 लाख 90 हजार से भी अधिक हैं। जबकि, क्षत्रिय मतदाताओं की संख्या 2 लाख के आसपास है। एक लाख ब्राह्मण वोटर भी हैं। ऐसे में ये संख्या बढ़कर 6 लाख तक हो जाती है। ये सभी बीजेपी के कोर वोट बैंक माने जाते रहे हैं। यहां हमें लोधी और वैश्य वोटर को नहीं भूलना चाहिए। इस सीट पर इनकी संख्या लगभग 1 लाख 70 हजार है। ये भी बीजेपी के पक्षधर माने जाते रहे हैं। बस, इसी गणित ने सपा को 'असुरक्षित' कर दिया है। मगर, सबसे ज्यादा खेल दलित वोट बैंक कर सकता है। जिसकी संख्या लगभग 1 लाख 80 हजार है। कहा जा रहा है, कि ये वोट बैंक जिस करवट बैठेगा, इस बार चुनाव में वो पार्टी बाजी मारेगी।

नेताजी 94 हजार वोटों से हुए थे विजयी

2019 लोकसभा चुनाव पर नजर डालें तो मैनपुरी लोकसभा सीट से विजयी रहे मुलायम सिंह यादव को कुल 524926 वोट मिले थे। जबकि, उनके प्रतिद्वंद्वी बीजेपी के प्रेम सिंह शाक्य को 430537 मत प्राप्त हुए थे।नेताजी ने तब करीब 94 हजार वोटों से जीत हासिल की थी। बीजेपी इस बार मतों के इसी अंतर को पाटने की कोशिश कर रही है। सपा भी इस बात को समझ रही है।

अखिलेश द्वारा इतनी मेहनत क्यों?

पिछले इतिहास को देखने तो मैनपुरी सीट से डिंपल यादव को जीतने में दिक्कत नहीं आनी चाहिए थी। लेकिन, जिस तरह यादव परिवार इस उपचुनाव के लिए एकजुट नजर आ रहा है वो उसकी असुरक्षा को जाहिर कर रहा है। साथ ही, अखिलेश यादव जिस तरह मैनपुरी में कैंप किए हुए हैं उससे लगता है कि इस सीट पर डिंपल की राह उतनी भी आसान नहीं है। डिंपल की जीत के लिए सपा सभी जतन कर रही है। अखिलेश ने चाचा शिवपाल को चुनाव प्रचार के लिए मनाया। उनके साथ मंच भी साझा कर रहे हैं। मतदाताओं में कोई ऐसा संदेश देना नहीं चाह रहे हैं जिससे कोई भ्रम की स्थिति पैदा हो।

सपा की इस सीट के लिए गंभीरता का अंदाजा आप इसी से लगा सकते हैं कि, अखिलेश यादव मैनपुरी से बाहर निकल ही नहीं पा रहे हैं। मैनपुरी के साथ-साथ रामपुर और खतौली विधानसभा सीट के लिए भी उप चुनाव होने हैं, मगर अखिलेश वहां किसी प्रकार की गतिविधि करते नजर नहीं आ रहे। वो चुनाव प्रचार तक में नहीं गए हैं। बता दें, रामपुर में समाजवादी पार्टी जबकि खतौली में राष्ट्रीय लोक दल का प्रत्याशी मैदान में है।



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अमन कुमार - बिहार से हूं। दिल्ली में पत्रकारिता की पढ़ाई और आकशवाणी से शुरू हुआ सफर जारी है। राजनीति, अर्थव्यवस्था और कोर्ट की ख़बरों में बेहद रुचि। दिल्ली के रास्ते लखनऊ में कदम आज भी बढ़ रहे। बिहार, यूपी, दिल्ली, हरियाणा सहित कई राज्यों के लिए डेस्क का अनुभव। प्रिंट, रेडियो, इलेक्ट्रॉनिक और डिजिटल मीडिया चारों प्लेटफॉर्म पर काम। फिल्म और फीचर लेखन के साथ फोटोग्राफी का शौक।

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