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BSP-SP Alliance: क्या 2027 से पहले सपा-बसपा का होगा गठजोड़: दोनों दलों में क्या बनेगी बात, क्या फिर गठबंधन की राह अपनाएगी बीएसपी

साल 1995 गेस्ट हाउस कांड के बाद सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव और बसपा सुप्रीमो मायावती के बारे में राजनीतिक गलियारों में यह कहा जाता रहा है कि सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव और मायावती कभी भी एक मंच पर साथ नहीं आ सकते हैं।

Virat Sharma
Published on: 17 March 2025 9:31 PM IST
Lucknow News
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Lucknow News: Photo-Social Media

Lucknow News: क्या 2027 में बहुजन समाज पार्टी और समाजवादी पार्टी एक साथ एक मंच पर आएंगे। सूत्र का मानना है कि समाजवादी पार्टी के कुछ नेता चाहते हैं कि बीएसपी से गठबंधन हो जाए और बीएसपी के गठबंधन के साथ ही 2027 लड़ा जाए। वैस मौजूदा समय में बसपा प्रमुख मायावती भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस पर कुछ ज्यादा ही मुखर होकर बोलती हैं। और अब वह समाजवादी पार्टी पर कुछ कम ही निशाना साधती हैं। वहीं इससे पहले बीएसपी सुप्रीमो मायावती के निशाने पर सबसे पहले समाजवादी पार्टी ही रहा करती रही है। तो वहीं बीएसपी को बीजेपी की बी टीम का भी लगातार आरोप लगते रहे हैं।

गौरतलब है कि समाजवादी पार्टी में सभी बड़े फैसले पर अखिलेश यादव की मुहर लगती है, तो वहीं बहुजन समाज पार्टी में सभी महत्वपूर्ण फैसले सिर्फ मायावती ही लेती हैं। मायावती उत्तर प्रदेश की चार बार मुख्यमंत्री रह चुकी हैं, और सपा भी सूबे में 4 बार सरकार बना चुकी है। वहीं सपा के एक धड़ा ये चाहता है कि 2027 से पहले बीएसपी से गठबंधन हो जाए। और ​एक बार फिर से सपा-बसपा का तालमेल हो जाए। वहीं बता दें कि साल 2019 के लोकसभा चुनाव में सपा-बसपा का पहले भी गठबंधन हो चुका है। और दोनों पार्टियों की खींचातानी के बीच यह गठबंधन अधिक समय तक नहीं चल पाया और दोनों दलों की राहें अगल हो गई।

सपा-बसपा दोनों दलों में पहले भी हो चुका है गठबंधन

साल 1995 गेस्ट हाउस कांड के बाद सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव और बसपा सुप्रीमो मायावती के बारे में राजनीतिक गलियारों में यह कहा जाता रहा है कि सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव और मायावती कभी भी एक मंच पर साथ नहीं आ सकते हैं। पर यह मिथ्या टूटकर साल 2019 लोकसभा चुनाव में दोनों प्रमुख नेता एक साथ मंच पर नजर आए जहां डिंपल यादव ने मंच पर मायावती के पैर छूकर आर्शिवाद लिया था। तो क्या इस बार भी 2027 विधान सभा चुनाव से पहले दोनों दल आपस में गठबंधन करेंगे। सवाल बड़ा है पर कहा जाता है कि राजनीति में कोई परमानेंट दोस्त और दुश्मन नहीं होता है।

सपा और कांग्रेस ने बिगाड़े 2024 में बीजेपी के राजनीतिक समीकरण

वहीं हाल में ही सबसे बड़े सूबे यूपी के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस और सपा ने मिलकर भारतीय जनता पार्टी की सारे समीकरण बिगाड़ दिए थे। इसी का नतीजा रहा कि भाजपा 2024 में सत्ता पर अपने दम पर नहीं पहुंच पाई और सहयोगी दलों के सहारे सरकार बनानी पड़ी। वहीं सपा 37 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी, कांग्रेस एक सीट से बढ़कर 6 पर पहुंच गई। और अखिलेश का पीडीए फार्मूला हिट साबित हो गया। तो वहीं कुछ महीने के बाद बदले हुए सियासी माहौल में कांग्रेस और सपा के बीच सियासी दूरियां बढ़ने लगी है। ऐसे में समाजवादी पार्टी और कांग्रेस का गठबंधन टूटता है तो सियासी लाभ बहुजन समाज पार्टी को मिलने की उम्मीद है। वहीं अगर कांग्रेस और सपा का गठबंधन टूटता है तो यूपी की सियासत एक नई करवट ले सकती है।

लोकसभा चुनाव में संविधान और आरक्षण के मुद्दे पर कांग्रेस-सपा के साथ आए दलित और मुस्लिम वोटों को अपने पाले में करने की कवायद चुनाव के बाद से ही मायावती ने शुरू कर दी है। साल 2024 में खाता नहीं खोलने वाली मायावती बसपा के खिसके जनाधार को वापस लाने की हरसंभव कोशिश में हैं। आरक्षण के वर्गीकरण का मुद्दा हो या फिर संभल समेत अन्य की घटनाओं में मायावती ने खुलकर अपनी बात रखी है। इसके अलावा बसपा छोड़कर जाने वाले दलित-पिछड़े और मुस्लिम नेताओं की घर वापसी का प्लान मायावती के प्रमुख एजेंडे में शामिल है।

बसपा को अकेले चुनाव लड़ना पड़ रहा महंगा

वहीं जानकार बताते हैं कि यूपी की सियासत में बीएसपी को एक के बाद एक चुनाव में मिल रही हार से बसपा सुप्रीमो मायावती हताश हैं। अभी हाल के दिनों जैसे मायावती ने अपने भतीजे आकाश आनंद को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया। तो वहीं बसपा से खिसके सियासी जनाधार को दोबारा से पाने का मायावती का फार्मूला फेल होता जा रहा है। बसपा को अकेले चुनाव लड़ना भी महंगा पड़ रहा है। माना जा रहा है कि सपा-कांग्रेस का गठबंधन टूटता है तो सबसे ज्यादा खुशी बसपा को होगी। इसके चलते यूपी में नए गठबंधन का विकल्प भी खुल जाएगा। यूपी में 2007 का चुनाव छोड़ दें तो बसपा दूसरे दलों के सहारे की सरकार बनाती रही है।

वहीं बीएसपी सुप्रीमो मायावती ने गठबंधन में जब-जब चुनाव लड़ा है, उसे फायदा ही मिला है। बसपा का अकेले चुनाव लड़ने का दांव भी लगातार यूपी में उलटा पड़ता जा रहा है। साल 2022 विधानसभा चुनाव में पार्टी को सिर्फ बलिया की रसड़ा विधानसभा सीट पर जीत मिली थी। वहीं साल 2024 के लोकसभा चुनाव में एक भी सीट नहीं जीत सकी और उपचुनाव में बसपा का खाता खुलना दूर की बात है, उसका अपना सियासी जनाधार भी खिसक गया है।

मायावती और अखिलेश लंबे समय से सत्ता से बाहर

उत्तर प्रदेश में गठबंधन से बसपा को भले ही सत्ता हासिल न हो सके, पार्टी के सियासी अस्तित्व बचाने के लिए सांसद और विधायक मिल सकते हैं। मौजूदा दौर में बिना गठबंधन के बसपा का सियासी उभार आसान नहीं है। बीजेपी और सपा जैसी पार्टियां गठबंधन करके राजनीति कर रही हैं तो बसपा को अपना स्टैंड बदलना पड़ेगा। मायावती के अगर अपना जनाधार और बसपा के सियासी अस्तित्व के बचाए रखना है तो गठबंधन की राजनीति पर लौटना पड़ेगा, नहीं तो आगे की राह काफी मुश्किल भरी हो सकती है।

वहीं मायावती और अखिलेश यादव दोनों ही लंबे समय से सत्ता से बाहर हैं, और दोनों का एक ही लक्ष्य है कि भारतीय जनता पार्टी को सत्ता से हटना फिलहाल अभी दोनों दलों की ओर से ऐसा कुछ देखने को नहीं मिल रहा है। पर कयास लगाए जा रहे हैं कि अखिलेश का पीडीए और मायावती का दलित वोट बैंक एक हो जाए तो यूपी की राजनीति की बिसात ही बदल सकने की संभावना है। वहीं सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अध्यक्ष अखिलेश यादव लगातार जातिगत जनगणना का मुद्दा उठाते रहे हैं। लोकसभा चुनाव के दौरान भी अखिलेश इस मुद्दे को जमकर उठाया जिसका लाभ भी देखने को मिला और सपा बड़ी जीत हासिल करने में कामयाब हुई।

Virat Sharma

Virat Sharma

Lucknow Reporter

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