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अंग्रेजों के जुल्म के खिलाफ ग्रामीणों ने इस कोठी में लगायी थी आग, अब फहरता है तिरंगा

Anoop Ojha
Published on: 14 Aug 2018 7:07 AM GMT
अंग्रेजों के जुल्म के खिलाफ ग्रामीणों ने इस कोठी में लगायी थी आग, अब फहरता है तिरंगा
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कानपुर: एक खंडहर जिसमें अंग्रेजों के जुल्म की दास्तान दफन है। 76 साल पहले जब अत्याचार सहन से बाहर हो गया तो ग्रामीणों ने डट कर मुकाबला किया और इस कोठी को आग के हवाले कर दिया। देखते ही देखते आलीशान कोठी एक खंडहर में बदल गयी। इस कोठी ने ग्रामीणों के साथ की गयी क्रूरता ,जुल्म और उनकी चीखों को सुना है। कोठी के आस पास अंग्रेज अफसरों के रहने के लिए बने क्वार्टरों को भी ग्रामीणें नहीं बक्शा। सभी अंग्रेज अपनी जान बचा कर भागे।

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रात बीती और सूरज निकलते ही अंग्रेज पुलिस फ़ोर्स के साथ अफसर गाँव में आ धमके। ग्रामीणों को घरों से निकाल-निकाल कर जमकर पिटाई की। चार सौ ग्रामीणों के खिलाफ मुकदमा दर्ज हुआ था और 11 माह की जेल हुई थी।

अंग्रेजों के जुल्म के खिलाफ ग्रामीणों ने इस कोठी में लगायी थी आग, अब फहरता है तिरंगा

स्वतंत्रता आंदोलन का साक्षी यह स्थल घाटमपुर थाना क्षेत्र स्थित गंग नहर किनारे मोहम्मदपुर गाँव है। गाँव से बाहर नहर किनारे 19 वी शताब्दी में बनी अंग्रेजों की कोठी है। इस कोठी में नहर विभाग ,तार बाबू ,पुलिस अफसर अपने क्षेत्र का काम काज करते थे। इस कोठी के चारो तरफ अफसरों के रहने के लिए कमरे ,बने थे ,कुआ और प्रार्थना के लिए चर्च नुमा सभागार भी थ। इस कोठी से बैठकर अंग्रेज लगान वसूलने का काम करते थे। लगान नहीं देने वालों को टार्चर किया जाता था और उनके खेतों पर कब्ज़ा किया जाता था।

अंग्रेजों के जुल्म से त्रस्त ग्रामीणों ने 15 अगस्त सन 1942 में एक दर्जन से अधिक ग्रामीणों ने मिलकर कोठी में आग लगाने की योजना बनायीं। योजना के तहत ग्रामीणों ने 23 अगस्त की रात कोठी पर हजारों ग्रामीणों ने हमला कर दिया। अंग्रेजों की इस कोठी को आग के हवाले कर दिया। दरसल अंग्रेजों के मुखबिरों ने अंग्रेज अफसरों को इस बात की सूचना देदी थी कि हजारों ग्रामीण कोठी में आग लगाने आ रहे है तो अंग्रेज अफसर पहले ही भाग गए थे।

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स्थानीय ग्रामीण भूषण बाबू के मुताबिक हमारे बाबा बताते थे कि टाडेल और ओवर सराय नाम के अंग्रेज अधिकारी बहुत ही क्रूर थे। यदि किसी भी ग्रामीण का जानवर ने नहर से पानी पी लिया तो उस जानवर को पकड़कर कांजी हाउस भिजवा देते थे। उसके बदले में उस जानवर के मालिक से टैक्स वसूलते थे टैक्स नहीं देने पर कोड़ो की बरसात की जाती थी। ग्रामीण बिना अंग्रेज अफसरों को जानकारी दिए अपना अनाज नहीं बेच सकते थे। ग्रामीणों को सजा के तौर पर पकड़ कर ले आते थे उनसे कई-कई दिनों तक कोठी का काम कराते थे।

अंग्रेजों के जुल्म के खिलाफ ग्रामीणों ने इस कोठी में लगायी थी आग, अब फहरता है तिरंगा

उन्होंने अंग्रेजो की और कहानी बताई जो गाँव में बहुत प्रचलित है। अंग्रेज अफसर अक्सर पार्टिया भी किया करते थे। अंग्रेजों ने बिरहर गाँव की नृत्य करने वाली महिला को पार्टी में नृत्य के लिए बुलाया था। लेकिन किन्हीं कारणों से उसने आने से इंकार कर दिया। अंग्रेजों ने कुछ दिन बाद उस नृत्य करने वाली महिला को नहर से पानी लेते हुए देख लिया। अंग्रेज अफसर उसे पकड़कर कोठी ले आये ,और उस पर 500 बीघे खेत की सिचाई का लगान लगा दिया। जब वो इतना नहीं दे पाई तो उसे जेल भेज दिया गया।

बुजुर्ग गहलोद सिंह बताते है कि बिरहर के जंगलों में रात के वक्त ग्रामीणों ने 15 अगस्त 1942 में अंग्रेजों की कोठी में आग लगाने की योजना बनायीं गयी थी। इस योजना के बाद 23 अगस्त की रात को दर्जनों गाँव के ग्रामीणों ने मिलकर एक साथ कोठी पर हमला कर दिया था। जब कोठी पर हमला किया गया तो अंग्रेज फायरिंग करते हुए जान बचा कर भाग निकले थे।

Anoop Ojha

Anoop Ojha

Excellent communication and writing skills on various topics. Presently working as Sub-editor at newstrack.com. Ability to work in team and as well as individual.

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