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सिद्धार्थनगर के डुमरियागंज में आजीविका समूह की महिलाओं ने किया कमाल, मधुमक्खी पालन से संवार रही जिंदगी

शहद के सहारे आत्मनिर्भरता: डुमरियागंज में आजीविका समूह की महिलाएं यूरोपियन, एपिस मेलिफेरा प्रजाति की पहाड़ी मधुमक्खियां पाल रही हैं। शहद के सहारे आत्मनिर्भरता की ओर कदम बढ़ाया है।

Intejar Haider
Published on: 5 July 2022 12:38 PM GMT
Women of Aajeevika Group did wonders in Dumariaganj of Siddharthnagar, living life with beekeeping
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 सिद्धार्थनगर: आजीविका समूह की महिलाएं मधुमक्खी पालन से संवार रही जिंदगी

Siddharthnagar News: सिद्धार्थनगर ज़िले के डुमरियागंज में आजीविका समूह की महिलाएं यूरोपियन, एपिस मेलिफेरा प्रजाति की पहाड़ी मधुमक्खियां पाल रही हैं। इससे निकलने वाले शहद के सहारे आत्मनिर्भरता की ओर कदम बढ़ाया है। पहाड़ी मधुमक्खी (Bee keeping) को चार से पांच फ्रेम वाले लकड़ी के डब्बे में पाला जाता है जिसमें लार्वा, मक्खी मोम आिद के लिए अलग प्रखंड होते हैं। इस प्रजाति की मक्खियों का एक समूह वर्ष भर में 12 से 15 किलो शहद उत्पादन करता है।

समूह को इस प्रजाति की मक्खियां काश्मीर एक्सपोर्ट लिटिल बी इंपैक्स (Kashmir Export Little Bee Impax) नाम की संस्था उपलब्ध करा रही है, इसकी शाखाएं हिमांचल प्रदेश व उत्तराखंड में भी है। पिछले वर्ष 70 न्यूक्लियस मंगाए गए थे। एक की कीमत 5400 रुपये पड़ी थी। न्यूक्लियस मधुमक्खियों का एक छोटा समुदाय है, जो मजबूत कालोनी के समान होता है लेकिन इसमें मधुमक्खियों की संख्या कम होती है। इनकी संख्या 18 दिन के अंतराल पर दोगुनी हो जाती है। एक माह के अंतराल पर इनके समूह को विभाजित कर दूसरे बाक्स में डाल दिया जाता है जिससे प्रत्येक बाक्स में मक्खियों की संख्या समान रूप से बनी रहे।

महिलाएं और पुरुष मधुमक्खी पालन से जुड़े

ग्राम पंचायत कैथवलिया रेहरा में समूह अध्यक्ष नीलम श्रीवास्तव, कोषाध्यक्ष सरिता पाठक व सचिव विमलावती की अगुवाई में 10 महिलाएं इस समूह से जुड़कर काम कर रही हैं। इन्होंने पहले वर्ष दस ऐसे पुरुषों को भी रोजगार दिया जो मधुमक्खी के डब्बों को खेत व बागीचे के आसपास रखने तथा शहद निकालने का कार्य करते हैं। अध्यक्ष ने बताया कि पहले वर्ष उन्हें अभी खास फायदा नहीं हुआ, लेकिन जमा पूंजी का 89 हजार रुपया निकल गया।

सितंबर से अक्टूबर के महीने में शहद बनना शुरू होता है

इस समय गर्मी के मौसम में शहद का उत्पादन बंद है, लेकिन सितंबर से अक्टूबर के महीने से शहद बनना फिर से तैयार हो जाएगा। सदस्य रोहिणी ने बताया कि इस समय लू से मक्खियों को बचाना सबसे बड़ा चुनौतीपूर्ण कार्य है। एक सप्ताह पहले तक मक्खियों के डब्बों को बस्ती जनपद स्थित शिवघाट जंगल में रखा गया था। वापस लाने के बाद इन्हें पोखरे के चारो तरफ रखवाया गया है।


सोहना कृषि विज्ञान केंद्र के विज्ञानी डा. मारकंडेय सिंह ने बताया कि इस शहद में फ्लेवोनाइड्स और फेनोलिक नामक यौगिक और एंटीआक्सीडेंट्स होते हैं। यह हमारे शरीर को फ्री रेडिकल्स से लड़ने में मदद करता है और कोशिका को क्षति होने से बचाता है। इसके अलावा भी यह शहद सामान्य शहद की तुलना में अधिक लाभकारी है।

अन्य क्रियाशील समूहों को इनसे सीख लेने की जरूरत

बीडीओ, डुमरियागंज, अमित कुमार सिंह ने बताया कि कैथवलिया रेहरा में समूह की महिलाएं एडीओ आइएसबी शिवबहादुर, मिशन मैनेजर मनीष पांडेय व प्रमोद मिश्रा के मार्गदर्शन में बेहतर कार्य कर रही हैं। अन्य क्रियाशील समूहों को इनसे सीख लेने की जरूरत है।

Shashi kant gautam

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