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महिला दिवस: इनकी आवाज़ से होती थी शाही दरबार गुलजार, आज इलाज के लिए पैसों की मोहताज

aman
By aman
Published on: 8 March 2018 5:58 PM IST
महिला दिवस: इनकी आवाज़ से होती थी शाही दरबार गुलजार, आज इलाज के लिए पैसों की मोहताज
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Womens Day Special: 'अवध की शान' मुफलिसी में, सरकार की चुप्पी मार ना डाले

मनोज द्विवेदी मनोज द्विवेदी

लखनऊ: राजधानी में गुरुवार (08 मार्च) को 'अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस' पर एक तरफ सीएम योगी आदित्यनाथ महिला सरपंचों को सम्मानित कर रहे थे, तो वहीं दूसरी तरफ 5 दशकों तक अवध की शान रहीं गजल गायिका ज़रीना बेगम सरकार से सहारा मांग रही थीं। ज़रीना बेगम अवध शाही दरबार की अंतिम गजल गुलज़ार हैं। ज़िन्दगी के आखिरी लम्हों में ज़रीना बेगम पाई-पाई की मोहताज़ हैं।

newstrack.com आज आपको बता रहा है बीमार और बिस्तर पर मौत से जंग लड़ रही ज़रीना बेगम की पूरी दास्तान :

कौन हैं ज़रीना बेगम?

अवध के शाही दरबार में गजल की महफ़िल जमती और जो पुरनम आवाज दीवारों से टकराकर लोगों के जेहन तक में उतर जाती उस आवाज की मलिका रही हैं ज़रीना बेगम। 20 साल की उम्र में जब उनसे गजल गायकी और बड़े घराने में शादी करके सेटल होने के बीच चयन करने के लिए कहा गया तो उन्होंने अपने जुनून को चुना और जमींदार घराने में शादी से इंकार कर दिया। आज लखनऊ के निजी अस्पताल में बिस्तर पर बिना दवाइयों के वक्त गुजार रहीं ज़रीना बेगम की आंखों ने कहीं ना कहीं शायद उस फैसले से जुड़े आंसू दिखते हैं। उन आंखों में एक मलाल झलकता है कि क्यों उन्होंने रईसी वाली जिंदगी नहीं चुनी। हालांकि, उनके परिवार के लोग कहते हैं कि ज़रीना को अब इस उम्र में भी गजल और महफ़िलों के आलावा कुछ भी याद नहीं रहता। यह वह जुनून है जिसने शायद इस महान शख्सियत को इस मुफलिसी के दौर में भी जिन्दा रखा है।

कैसी है उनकी हालत?

ज़रीना बेगम की हालत का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि लखनऊ शहर में एक किराए के मकान के आलावा इनके पास कोई पूंजी नहीं है और अब वह भी दवाओं के उधार की भेंट चढ़ने वाला है। पिछली सरकार ने उनकी दवा का खर्च और परिवार के भरण-पोषण के लिए इलेक्ट्रिक रिक्शा देने का वादा किया था लेकिन मिला कुछ भी नहीं। ज़रीना की बेटी का दर्द भी उनकी हालत देखकर छलक जाता है। वे कहती हैं, कि हमारे पास एक साथ 1,000 रुपए भी नहीं होते कि इनकी सही तरह से दवा-इलाज करा सकें। हमने सरकार से अपील की थी, कि एक नौकरी या ई-रिक्शा ही मिल जाए जिससे हम गुज़ारा कर सकें लेकिन वह भी नहीं मिला।

ज़रीना बेगम जब तक ठीक रहीं गाती रहीं। उनकी गायकी से आयोजकों ने खूब पैसा कमाया। उन्हें अवध की शान भी कहा गया। लेकिन इन हालातों में कोई साथ देने वाला नहीं दिख रहा।



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अमन कुमार - बिहार से हूं। दिल्ली में पत्रकारिता की पढ़ाई और आकशवाणी से शुरू हुआ सफर जारी है। राजनीति, अर्थव्यवस्था और कोर्ट की ख़बरों में बेहद रुचि। दिल्ली के रास्ते लखनऊ में कदम आज भी बढ़ रहे। बिहार, यूपी, दिल्ली, हरियाणा सहित कई राज्यों के लिए डेस्क का अनुभव। प्रिंट, रेडियो, इलेक्ट्रॉनिक और डिजिटल मीडिया चारों प्लेटफॉर्म पर काम। फिल्म और फीचर लेखन के साथ फोटोग्राफी का शौक।

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