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World Turtle Day 2022: कछुओं की तस्करी का सबसे बड़ा नेटवर्क है इटावा

World Turtle Day 2022: चम्बल सेंचुरी में विलुप्त प्रजाति के कुल 7 प्रकार के कछुये मिलते हैं।

Sandeep Mishra
Published on: 23 May 2022 10:19 AM IST
World Turtle Day 2022
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कछुओं की तस्करी का सबसे बड़ा नेटवर्क है इटावा 

World Tourle Day 2022: जनपद की दुर्गम चम्बल नदी के जंगलों में स्थित चम्बल सेंचुरी क्षेत्र में विशेष प्रजाति के कछुओं की तस्करी आज भी जारी है। तस्करी कर विलुप्त प्रजाति के कछुओं को कोलकाता, वहां से वेस्ट बंगाल के रास्ते से पश्चिम बंगाल व मलेशिया व थाईलैंड में तस्करी कर भेजा जाता है।

इटावा का चम्बल नदी सेंचुरी क्षेत्र संरक्षण का प्रमुख स्थान

आजकल चम्बल नदी में विलुप्त प्रजाति के कछुओं को छोड़ने में आने वाले बजट में विभाग कुछ कम्पनियों के माध्यम से जमकर चुना लगाने में लगा है। इटावा व उत्तराखंड के वन्य जीव जंतु विशेषज्ञ राजीव चौहान का कहना है कि इटावा में कछुओं की तस्करी का दब धंधा अलग चल रहा है।जबकि कछुआ संरक्षण दूसरी वन विभाग सरकार के बजट में चुना लगाने की दृष्टि से चला रही है।उन्होंने कहा कि जनपद की अन्य नदियों में विलुप्त प्रजाति के कछुओं की सुरक्षा के बारे में वन विभाग कतई ध्यान नहीं देता है।उन्होंने बताया कि चम्बल नदी के सिर्फ सेंचुरी इलाके में वन विभाग कछुआ संरक्षण के दावे करता है।जबकि इस स संरक्षण की कोई भी मोनिटरिंग विभाग की तरफ से नहीं की जाती है।


विलुप्त प्रजाति के कछुये छोड़ने की महज नाटक किया गया है

वन्य जीव जंतु विशेषज्ञ राजीव चौहान का सीधा सवाल किया कि कितने कछुये नदी में छोड़े गए?, नदी के किनारे रखे अंडों को उठाते वक्त कितने अंडे खराब हो गए हैं? इन सब की विभागीय मोनिटरिंग तो अब होती नहीं है।कछुओं की विलुप्त प्रजाति के संरक्षण के लिये आने वाले सरकारी बजट का कोई असिसमेन्ट करने वाला नहीं है।

ईस्ट इंडिया की तरह कम्पनियां सरकारी बजट हड़पने में लगीं हुई हैं

बताया यह जा रहा है कि चम्बल सेंचुरी क्षेत्र में जो कम्पनियां इस समय विलुप्त प्रजाति के कछुओं के संरक्षण के लिये काम कर रहीं हैं, इन कम्पनियों ने ईस्ट इंडिया कम्पनी की तरह इटावा की चम्बल सेंचुरी क्षेत्र को घेर लिया है।इन कम्पनियों का सिर्फ एक ही टारगेट है कि विभाग से साठगांठ कर कछुआ संरक्षण के नाम पर सरकार के बजट को कैसे हजम किया जाए।

इतना बजट खर्च फिर संरक्षित कछुये कहाँ चले जाते हैं

वन्य जीव जंतु विशेषज्ञ राजीव चौहान ने जब इतने संरक्षित कछुये नदी में छोड़े जा रहे हैं, आखिर इसका अंत मे रिजल्ट क्या है? इतनी मात्रा में छोड़े जाने वाले कछुये अचानक नदी से कहाँ गायब हो जाते हैं?बड़े होने पर बस एक्का दुक्का ही संरक्षित कुछए ही चम्बल नदी में दिखाई पड़ते हैं।बाकी के विलुप्त प्रजाति के यह कछुये कहाँ गायब हो जाते हैं?जबकि छोड़े गए कछुये नदी में ही रहने चाहिए।इटावा चम्बल सेंचुरी क्षेत्र विलुप्त प्रजाति के कछुओं व घड़ियालों के संरक्षण की सम्पूर्ण जिम्मेदारी वन विभाग की है उसके बावजूद भी हर वर्ष इन विलुप्त प्रजाति के कछुओं की वो संख्या नदी में नहीं मिलती जितनी संख्या में नदी में कछुओं के शिशु छोड़े जाते हैं।बताया यह जाता है कि संरक्षित कछुओं के लिये आने वाले बजट में कम्पनियों व विभाग के बीच लंबा बंदरबांट होता है।इसके पीछे का एकमात्र कारण यह भी है नदी में छोड़े जाने कछुओं का आंकड़ें रखना सरल नहीं होता है लेकिन विभाग के पास सरकार को बताने का कागजी लेखा जोखा पक्का रहता है।कुल मिलाकर इटावा के चम्बल सेंचुरी क्षेत्र में विलुप्त प्रजाति के कछुओं के शिशुओं को नदी में छोड़ा तो हर बार जाता है नदी इनकी संख्या बडे होने पर नगण्य ही मिलती है।

1979 में चम्बल सेंचुरी क्षेत्र घोषित किया गया था

विभाग के लोगों ने जानकारी दी है कि गत 1979 में चम्बल नदी के 425 किलोमीटर क्षेत्र को चम्बल सेंचुरी क्षेत्र घोषित किया गया था।इस सेंचुरी क्षेत्र में बिलुप्त प्रजाति के कछुओं की नस्ल, घड़ियालों व डॉल्फिन का संरक्षण किया जाता है।

विलुप्त प्रजाति के कछुये

  • इटावा के चम्बल सेंचुरी क्षेत्र में विलुप्त प्रजाति के कुल 7 प्रकार के कछुये पाए जाते हैं।
  • इटावा के चम्बल सेंचुरी क्षेत्र में 7 प्रजाति के कछुये मुख्य तौर पर पाये जाते हैं।
  • (1)बटाकुर कछुआ, (2) पलसुरा टैकटा,(3) जिओ किलमिस हेमेलटोनआई,(4)-निलसोनिया गैंगटिक्स(5)निल सोनिया हिरोम(6), चित्रा इंडिका(7)रिसिमत पण्टाटा यह सबसे ज्यादा पकड़ा जाता है।और इन सभी कछुओं की कथित तस्करी होने से इंकार नहीं किया जा सकता।

कछुआ तस्करों की स्थिति

ज्यदातर तस्कर सर्दी में नदी किनारे अधिक सक्रिय होते हैं। हालांकि गर्मियों में भी तस्कर सक्रिय रहते हैं लेकिन गर्मियों में बड़े कछुओं का शिकार अधिक होता है।कछुओं की तस्करी इसलिये अधिक होती है क्योंकि कछुओं से कामोत्तेजना बढ़ाने वाली दवाई बनाई जाती है।इटावा के आसपास कछुआ तस्करों का लगभग 50 आदमियों का गैंग है।जिनकी संख्या बाद में बढ़कर 100 के आसपास हो जाती है।पहले कछुओं की तस्करी में जिले की कंजर बिरादरी के लोग ही शामिल रहते थे लेकिन अब जिले की अन्य जातियों के लोग भी कछुये की तस्करी में शामिल होने लगे हैं।

इटावा कछुआ तस्करों का सबसे बड़ा नेरवर्क

चम्बल सेंचुरी क्षेत्र व अन्य नदियों से विलुप्त प्रजाति के कछुये तस्करी कर कोलकाता ले जाये जाते हैं। वहाँ कोलकाता से यह कछुये वेस्ट बंगाल के जिला चौबीस परगना में ले जाकर वहीं से ये कछुये बंग्लादेश में भेजे जाते हैं।फिर बंगला देश से ये कछुये मलेशिया, थाईलैंड भी भेजे जाते हैं।

डीएफओ ने बताया

इटावा के डीएफओ ने बताया कि जनपद के चम्बल सेंचुरी क्षेत्र में जल जीवों के संरक्षण में किसी तरह की भी लापरवाही नहीं बरती जा रही हैं।कछुआ तस्करों के खिलाफ भी विभागीय टीम समय समय पर कड़ी के कानूनी कार्रवाही अमल लाती रहती है।



Ragini Sinha

Ragini Sinha

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