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लखनऊ के महान गीतकार योगेश, आज भी दिल को छू लेते हैं गीत
महान गीतकार योगेश का जन्म उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में 19 मार्च 1943 को हुआ था। और मात्र 16 साल की उम्र में वह मुंबई चले गए इसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा।
रामकृष्ण वाजपेयी
लखनऊ: शायद ही किसी को पता हो की सर्वश्रेष्ठ हिन्दी फिल्मों में गिनी जाने वाली आनंद के कालजयी गीतों कहीं दूर जब दिन ढल जाए... और जिंदगी कैसी है पहेली... से सजाने वाले महान गीतकार योगेश का जन्म उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में 19 मार्च 1943 को हुआ था। और मात्र 16 साल की उम्र में वह मुंबई चले गए इसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। इसके अलावा रिमझिम गिरे सावन... बातों बातों में से मन नहीं कहो... आज भी जब कहीं सुनाई देता है तो लोग गुनगुना उठते हैं।
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जब टूटा मुसीबतों का पहाड़
योगेश ने हजारों ने फिल्मी गीत लिखे। उन्हें दादा साहब फाल्के पुरस्कार के अलावा यश भारती सम्मान भी मिला। उन्होंने बतौर लेखक कई धारावाहिक सीरियल्स में भी काम किया।
जानकारों के मुताबिक योगेश के पिता उत्तर प्रदेश पीडब्ल्यूडी विभाग में इंजीनियर थे। बचपन में उन्हें अभावों की परछाईं भी नहीं छूई लेकिन पिता के अचानक निधन से उनके ऊपर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा। उनके ऊपर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा। रिश्तेदारों ने नजरें फेर लीं। अंत में उन्होंने मुंबई जाने का फैसला किया।
फोटो-सोशल मीडिया
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गीत लिखने का पहला काम
योगेश को मुंबई में स्थापित करने में अपने रिश्तेदार बृजेंद्र गौड़ से मदद की बहुत उम्मीद थी लेकिन उन्होंने नकारात्मक भूमिका निभाई। योगेश को मुंबई में स्थापित करने में उनके मित्र सत्यप्रकाश ने अहम भूमिका अदा की। उन्होंने खुद नौकरी की और योगेश की मदद की।
मात्र 19 साल की उम्र में उन्हें गीत लिखने का पहला काम बॉलीवुड फिल्म सखी रॉबिन में मिला उन्होंने इसके छह गीत लिखे जिसमें तुम जो आ गए.. प्रमुख था। इसे मन्ना डे ने आवाज दी थी। इस सुपरहिट गीत से ही योगेश की शुरुआत हुई। इसके बाद उन्होंने हृषिकेश मुखर्जी व बासु चटर्जी जैसे दिग्गज निर्देशकों के साथ काम किया।
इस महान गीतकार का 77 वर्ष की आयु में मुंबई में 29 मई 2020 को निधन हुआ। योगेश ने अपने गीतों से लोगों को जीने का संदेश दिया। वह दुखी मन को मरहम लगाते थे। अंधेरे में रोशनी की किरण दिखाते थे।
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