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Zila Panchayat Election UP 2021: जिला पंचायत अध्यक्ष चुनाव का विधानसभा चुनाव पर कितना पड़ेगा असर?
राजनीति के जानकार समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष के इस निर्णय को जल्दबाजी में उठाया गया अदूरदर्शी और बड़ा कदम बताते हुए मान रहे हैं कि इससे आने वाले विधानसभा चुनाव में पार्टी को नुकसान हो सकता है।
Zila Panchayat Election UP 2021: यूपी में विधानसभा चुनाव के पहले सेमीफाइनल कहे जा रहे जिला पंचायत अध्यक्ष के चुनाव में जिस तरह से भाजपा की ताकत बढ़ती दिख रही है उससे विपक्ष का, खास तौर पर समाजवादी पार्टी का निराश होना स्वाभाविक है। पर चुनाव प्रक्रिया शुरू होते ही मुख्य विपक्षी दल समाजवादी पार्टी का अपने 11 जिलाध्यक्षों को उनके पदों से हटाने के फैसले को किसी भी तरह से उचित नहीं कहा जा रहा है।
अब इसे समाजवादी पार्टी का कुप्रबन्धन कहा जाए या कुछ और? क्योंकि 11 जिलों में उनके प्रत्याशियों ने अपना नामांकन ही नहीं किया। इसके बाद ही गोरखपुर, मुरादाबाद, झांसी, आगरा, गौतमबुद्व नगर, मऊ, बलरामपुर, श्रावस्ती, भदोही, गोण्डा और ललितपुर के जिलाध्यक्षों को उनके पद से हटा दिया गया। यह पहली बार हुआ है जब एक साथ इतने जिलाध्यक्षों के खिलाफ अनुशासनहीनता के चलते इतनी बड़ी कार्रवाई की गयी हो। वरना इस तरह की कार्रवाई अबतक केवल बहुजन समाज पार्टी में ही हुआ करती थी।
अदूरदर्शी और बड़ा कदम
राजनीति के जानकार समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष के इस निर्णय को जल्दबाजी में उठाया गया अदूरदर्शी और बड़ा कदम बताते हुए मान रहे हैं कि इससे आने वाले विधानसभा चुनाव में पार्टी को नुकसान हो सकता है। अब इस पूरे घटनाक्रम पर भाजपा बेहद खुश है। उसे लग रहा है कि पार्टी की रणनीति पूरी तरह से कामयाब हो गयी है। इसका लाभ उसे विधानसभा चुनाव में मिल सकता है। समाजवादी पार्टी की तरफ से की गई इस कार्रवाई के बाद भाजपा की तरफ से कहा गया है कि समाजवादी पार्टी अपनी हार से बौखला गयी है। जनता की तरफ से नकारे जाने के बाद अब वह अर्नगल आरोप लगा रही है। इसलिए समाजवादी पार्टी को अब जमीनी हकीकत स्वीकार लेनी चाहिए।
भाजपा की जीत सुनिश्चित
अब तक चुनाव आयोग की तरफ से औपचारिक तौर पर परिणामों की घोषणा नहीं की गयी है लेकिन जिला पंचायत अध्यक्षों के चुनाव में 17 जिलों में विपक्ष की तरफ से कोई नामांकन न होने के कारण यहां पर भाजपा की जीत सुनिश्चित कही जा रही है।
दरअसल, भाजपा अपनी स्थापना काल से शहरों की पार्टी कही जाती रही है। उसका गांव देहातों में जनाधार कभी मजबूत नहीं रहा। पर मोदी इफेक्ट के चलते 2014 के बाद से भाजपा ने गांवों में अपनी पैठ बनाने का काम किया है। विधानसभा चुनाव के पहले वह गांवों में अपनी और मजबूती करना चाह रही है। इसलिए इस चुनाव में उसने हर तरह के हथकंडे अपनाने की रणनीति तैयार की। अब यह रणनीति उसको विधानसभा चुनावों में कितनी सफलता दिला पाती है। यह तो आने वाला समय ही बताएगा। पर इतना साफ होता दिख रहा है कि भाजपा और सपा के टकराव में सत्ताधारी दल अपनी रणनीति में सफल हो गयी है।