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चिन्मयानन्द केसः एसआईटी जांच प्रगति से कोर्ट संतुष्ट, पीड़िता मुश्किल में

प्रयागराज। इलाहाबद उच्च न्यायालय ने पूर्व गृह राज्य मंत्री चिन्मयानन्द पर विधि छात्रा से दुष्कर्म के आरोपों की जांच कर रही एसआईटी की विवेचना पर संतोष जताया है। कोर्ट ने कहा कि जांच सही दिशा में बढ़ रही है। कोर्ट ने पीडि़त छात्रा की ओर से चिन्मयानंद से 5 करोड़ की रंगदारी मांगने के मुकदमे में उसकी गिरफ्तारी पर रोक लगाने का आदेश देने से इंकार कर दिया है साथ ही 164 सीआरपीसी के तहत न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा दर्ज बयान फिर से कराने या उसमें संशोधन के अनुमति देने से भी इंकार कर दिया है।

राम केवी
Published on: 1 Jun 2023 1:23 AM IST (Updated on: 1 Jun 2023 1:10 AM IST)
चिन्मयानन्द केसः एसआईटी जांच प्रगति से कोर्ट संतुष्ट, पीड़िता मुश्किल में
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प्रयागराज। इलाहाबद उच्च न्यायालय ने पूर्व गृह राज्य मंत्री चिन्मयानन्द पर विधि छात्रा से दुष्कर्म के आरोपों की जांच कर रही एसआईटी की विवेचना पर संतोष जताया है। कोर्ट ने कहा कि जांच सही दिशा में बढ़ रही है। कोर्ट ने पीडि़त छात्रा की ओर से चिन्मयानंद से 5 करोड़ की रंगदारी मांगने के मुकदमे में उसकी गिरफ्तारी पर रोक लगाने का आदेश देने से इंकार कर दिया है साथ ही 164 सीआरपीसी के तहत न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा दर्ज बयान फिर से कराने या उसमें संशोधन के अनुमति देने से भी इंकार कर दिया है।

सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर जांच की मानिटरिंग कर रहे न्यायमूर्ति मनोज मिश्र और न्यायमूर्ति मंजू रानी चौहान की पीठ ने कहा कि याची के अधिवक्ता ऐसा कोई तथ्य नहीं दे सके जिससे कहा जा सके की मजिस्ट्रेट ने बयान रिकार्ड करने में प्रक्रिया का पालन नहीं किया। पीडि़ता के अधिवक्ता का कहना था कि बयान रिकार्ड करते समय वहां तीसरी महिला भी मौजूद थी जो अपने मोबाइल पर लगातार कुछ रिकार्ड कर रही थी। कोर्ट ने कहा इससे किसी प्रक्रिया के उल्लंघन का पता नहीं चलता है।

पीडि़ता की गिरफ्तारी पर रोक के मामले में कोर्ट का कहना था कि इस अदालत को सिर्फ विवेचना की मानिटरिंग का अधिकार है। पीडि़ता इसके लिए उचित अदालत में अर्जी दे सकती है। एसआईटी की और से शासकीय अधिवक्ता और अपर शासकीय अधिवक्ता ए.के. संड ने कोर्ट को बताया कि आरोपी चिन्मयानंद को गिरफ्तार किया जा चुका है। पीडि़ता और रंगदारी मांगने के आरोपी संजय के बीच 40200 बार मोबाइल पर बात हुई है। चिन्मयानंद और पीडि़ता के बीच भी मोबाइल पर काफी बात हुई है। संजय ने फर्जी नंबर से चिन्मयानंद के व्हाट्स एप पर मैसेज भेज कर रंगदारी मांगी।

शिक्षा सेवा ट्रिब्यूनल स्थापना मामले की सुनवाई अब 21 अक्तूबर को

शिक्षा सेवा अधिकरण सहित लखनऊ स्थित अन्य अधिकरणों को प्रयागराज में स्थापित करने की मांग में दाखिल जनहित याचिका की सुनवाई 21 अक्टूबर को होगी। प्रभाशंकर मिश्र की याचिका की सुनवाई मुख्य न्यायाधीश गोविन्द माथुर तथा न्यायमूर्ति विवेक वर्मा की खण्डपीठ कर रही है। राज्य सरकार के अपर महाधिवक्ता अजीत कुमार सिंह ने संक्षिप्त जवाबी हलफनामा दाखिल कर विस्तृत जवाब दाखिल करने के लिये समय मांगा। याचिका पर वरिष्ठ अधिवक्ता रविकान्त व राकेश पांडेय ने पक्ष रखा। याची की तरफ से प्रत्युत्तर हलफनामा भी दाखिल किया गया।

भारत सरकार की तरफ से सहायक सालीसिटर जनरल ज्ञान प्रकाश व भारत सरकार के अधिवक्ता राजेश त्रिपाठी ने पक्ष रखा। याचिका में हाई कोर्ट की प्रधान पीठ प्रयागराज में होने के नाते अधिकरणों की पीठ प्रयागराज में स्थापित होनी चाहिए। मामले की सुनवाई 21 अक्टूबर को होगी। अविनाश चन्द्र तिवारी की जनहित याचिका पर भी कोर्ट ने राज्य व केंद्र सरकार से जवाब माँगा है। याचिका में सभी अधिकरणों को प्रयागराज में स्थापित करने की मांग की गयी है।

नोएडा के मेसर्स ईटी इन्फ्रा डेवलपर्स के डायरेक्टर सुशान्त ने हाईकोर्ट से अग्रिम जमानत की अर्जी वापस ली

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मेसर्स ई टी इन्फ्रा डेवलपर्स प्रा लि नोएडा गौतमबुद्ध नगर के डायरेक्टर सुशान्त कुमार अग्रवाल की अग्रिम जमानत अर्जी वापस करते हुए खारिज कर दी है ।याची अधिवक्ता के अनुरोध को स्वीकार करते हुए न्यायमूर्ति राजुल भार्गव ने यह आदेश दिया है ।

याची पर कोर्ट का फर्जी आदेश पेश कर फायदा उठाने का आरोप है। मालूम हो कि 19अगस्त 19 नोएडा के सेक्टर 20 थाने में धोखाधड़ी के आरोप में प्राथमिकी दर्ज करायी गयी । आरोप है कि डायरेक्टर याची ने अपने खिलाफ वसूली पर रोक लगाने का 14 मार्च 19का एक फर्जी आदेश 20 जुलाई को नोएडा में जमा किया । कंपनी को 2010 में नोएडा में व्यावसायिक प्लाट दिया गया ।

ग्रीन ट्रिब्यूनल ने 17 सितम्बर को ओखला बर्ड सेन्च्युअरी के 10 कि मी के भीतर निर्माण पर रोक लगा दी । इस कारण कंपनी निर्माण नहीं कर सकी। नोएडा ने पालिसी जारी की कि यदि कब्जे पर रोक होगी तो यह अवधि जीरो पीरियड मानी जायेगी। कंपनी ने कोर्ट में याचिका दायर की । कोर्ट ने कोई अन्तरिम आदेश नहीं दिया फिर भी कंपनी ने आदेश पेश किया और फायदा उठाने की कोशिश की । जिस वकील पर आदेश दिलाने की जिम्मेदारी दी गयी उसने ऐसा करने से इन्कार किया है । अधीनस्थ कोर्ट ने अग्रिम जमानत अर्जी खारिज कर दी है । जिस पर यह अर्जी हाईकोर्ट में दाखिल की गई थी । कुछ खामियों के कारण अर्जी दुबारा दाखिल करने की शर्त पर वापस ले ली गयी।



राम केवी

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