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उत्तराखंड : लगातार कम होती जा रही है बेटियां पैदा होने की संख्या

raghvendra
Published on: 28 Feb 2018 10:19 AM GMT
उत्तराखंड : लगातार कम होती जा रही है बेटियां पैदा होने की संख्या
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देहरादून। उत्तराखंड में बेटियां पैदा होने की संख्या लगातार कम हो रही है। नीति आयोग की हाल ही में जारी ‘स्वस्थ राज्य, प्रगतिशील भारत’ की रिपोर्ट से एक बार फिर ये बात स्पष्ट हो गई है। स्थिति ये है कि बेटियां पैदा होने के मामले में उत्तराखंड से आगे सिर्फ हरियाणा है। ये अंतर भी मात्र 13 अंक का है। यानी उत्तराखंड की यही स्थिति रही तो जल्द ही हरियाणा भी पीछे छूट जाएगा।

नीति आयोग की रिपोर्ट बताती है कि उत्तराखंड में जन्म के समय लिंगानुपात (प्रति हजार बालकों पर बालिकाओं की संख्या) में 27 अंक की गिरावट दर्ज की गई है। रिपोर्ट में जन्म दर को आधार बनाते हुए आधार वर्ष 2012-14 घोषित किया गया है। 2013-15 को संदर्भ वर्ष के तौर पर अपनाया गया है।

हालांकि जन्म दर से इतर जनगणना 2011 में किए गए विस्तृत सर्वे की बात करें तो 0-6 वर्ष तक की आयु में लिंगानुपात 886 था। जबकि, इस सर्वे के आधार वर्ष 2012-14 में यह संख्या 871 पर खिसक गई। उत्तराखंड में जन्म के समय लिंगानुपात 1 हजार लडक़ों पर 844 लड़कियों का है, जबकि साल 2011 की जनगणना के मुताबिक राज्य में कुल लिंगानुपात 1 हजार लडक़ों पर 963 लड़कियां थी। मात्र दो से तीन वर्ष में उत्तराखंड में लिंगानुपात सुधरने के बजाय और बदतर हो गया।

इस अंतराल में ही 15 अंक की गिरावट आ गई। यानी 2011 के आंकड़ों से सबक लेने के बजाय स्थिति और उलटती चली गई। इससे ये भी स्पष्ट हो जाता है कि लड़कियों को लेकर चलाई जा रही तमाम सरकारी योजनाएं महज नारे भर हैं। बेटी पढ़ाओ बेटी बचाओ जैसे अभियान का उत्तराखंड में कोई असर होता नहीं दिख रहा।

नीति आयोग की रिपोर्ट में उत्तराखंड समेत देश के 17 राज्यों में लिंगानुपात में गिरावट आई है। नीति आयोग की रिपोर्ट के अनुसार जन्म के समय लिंगानुपात मामले में 10 या उससे ज्यादा प्वाइंट्स की पर्याप्त गिरावट होने वाले राज्यों में से एक गुजरात में प्रति 1,000 पुरुषों पर 907 महिलाओं के अनुपात से गिरकर अब 854 हो गया है। यहां साल 2012-14 ( आधार वर्ष) से 2013-15 (संदर्भ वर्ष) के बीच 53 प्वाइंट्स की गिरावट हुई है।

गुजरात के बाद हरियाणा का स्थान है। यहां 35 प्वाइंट्स की गिरावट दर्ज हुई है। इसके बाद राजस्थान (32 प्वाइंट्स), उत्तराखंड (27 प्वांइट्स), महाराष्ट्र (18 प्वाइंट्स), हिमाचल प्रदेश (14 प्वाइंट्स), छत्तीसगढ़ (12 प्वाइंट्स) और कर्नाटक (11 प्वाइंट्स) की गिरावट हुई है। नीति आयोग ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि लिंगानुपात में गिरावट जन्म के लिए पुरुष या कन्या भ्रूण के चयन को दर्शाता है।

कन्या भ्रूण का गर्भपात कराया जाता है। जन्म के समय लिंगानुपात 21 में से 17 बड़े राज्यों में प्रति हजार लडक़ों पर 950 लड़कियों से भी कम है। इसके साथ ही ज्यादातर राज्यों में 2012-14 के आधार वर्ष और 2013-15 के संदर्भ वर्ष में जन्म के समय लिंगानुपात में गिरावट आई है। इस मामले में सिर्फ बिहार, पंजाब और उत्तर प्रदेश ही बेहतर हैं और जम्मू-कश्मीर में ये संख्या बराबरी पर है। जिन राज्यों में आधार वर्ष और संदर्भ वर्ष में दस से अधिक अंकों की गिरावट आई है उनमें छत्तीसगढ़, कर्नाटक, हिमाचल प्रदेश, आसाम, महाराष्ट्र, राजस्थान, गुजरात, उत्तराखंड और हरियाणा हैं।

नीति आयोग ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि यह स्पष्ट है कि इन राज्यों में पीसीपीएनडीटी एक्ट 1994 को सख्ती से लागू करने और कन्या जन्म को प्रोत्साहित करने की जरूरत है। ये स्थिति तब है जब उत्तराखंड में केंद्र और राज्य सरकार मिल कर बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ नाम से कई अभियान चला रहे हैं। सडक़-चौराहों पर बेटी पढ़ाओ बेटी बचाओ के स्लोगन लिखे दिख जाएंगे।

पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने नीति आयोग की रिपोर्ट पर कहा कि सरकार को इस दिशा में गंभीरता से सोचना होगा। इस संबंध में राज्य सरकार को विशेष कदम उठाने की जरूरत है। रावत ने कहा कि अपने कार्यकाल के दौरान उन्होंने गर्भवती महिलाओं को लिए पौष्टिक आहार योजना और दुग्ध पोषण योजना शुरू की थी, लेकिन मौजूदा सरकार ने उन योजनाओं को बंद कर दिया, जिसकी वजह से ये समस्या बढ़ी है।

उत्तराखंड के संदर्भ में बेटियों के कम होने की बात थोड़ी हैरान करने वाली भी है। इस राज्य को नारी शक्ति का राज्य कहते हैं। यहां की आर्थिकी की रीढ़ महिलाएं हैं। उत्तराखंड राज्य आंदोलन में महिलाओं की सक्रिय भूमिका रही। चिपको जैसे आंदोलन महिलाओं के खड़े किए गए आंदोलन है। लेकिन अब उत्तराखंड बेटियां पैदा करने में पिछले पायदान पर खड़ा है।

शिक्षा विभाग की सेवानिवृत्त डिप्टी डायरेक्टर कमला पंत भी नीति आयोग की रिपोर्ट पर चिंता जताती हैं। कमला कहती हैं कि ये कानून का मसला नहीं है बल्कि समाज और विचार का मसला है। सवाल ये है कि हम अपनी मानसिकता को कैसे बदलें। कमला पंत के मुताबिक पिथौरागढ़ कभी उन जिलों में शुमार होता था जहां प्रति हजार पुरुषों पर महिलाओं की संख्या 1100 हुआ करती थी। तब पुरुष फौज में ज्यादा जाते थे।

पिथौरागढ़ में हर तरफ महिलाएं ही दिखती थीं। आज पिथौरागढ़ लिंगानुपात के मामले में देश के सबसे पिछड़े जिलों में आ गया है। विश्व स्तर पर ये लक्ष्य रखा गया है कि 2022 तक प्रति हजार लडक़ों पर लड़कियों की संख्या बराबर हो जाए। भारत को यदि ये लक्ष्य हासिल करना है तो लड़कियों के प्रति संवेदनशील बनना होगा।

मैं नीति आयोग की रिपोर्ट का अध्ययन करूंगी और इस मसले पर और अधिक तेजी के साथ कार्य करूंगी। इससे पहले 2011 की जनगणना के आंकड़ों में उत्तराखंड के पिथौरागढ़ की स्थिति बेहद चिंताजनक थी। यहां प्रति हजार लडक़ों पर 6 वर्ष तक के आयु वर्ग में 812 लड़कियां थीं। चंपावत, हरिद्वार, देहरादून, टिहरी में प्रति हजार लडक़ों पर लड़कियों की संख्या राज्य के अन्य जिलों की तुलना में अपेक्षाकृत कम थी। मैें अभी तक इन पांच जिलों पर फोकस कर रही थीं। नतीजतन पिथौरागढ़ जो देश के दस शीर्ष जिलों में शुमार हो गया था, जहां प्रति हजार लडक़ों पर लड़कियों की संख्या सबसे कम थी, अब वहां हालात बदल गए हैं। अब पिथौरागढ़ में प्रति हजार बालकों पर 934 बालिकाओं के रिकॉर्ड आने शुरु हो गए हैं। मैं नीति आयोग की रिपोर्ट पर काम करूंगी और देखुंगी कि लिंगानुपात में कमी क्यों आ रही है। कई बार जन्म के समय बच्चियों की मौत हो जाती है, इस ओर भी सरकार ध्यान दे रही है।

रेखा आर्य

महिला सशक्तिकरण और बाल विकास मंत्री

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राघवेंद्र प्रसाद मिश्र जो पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद एक छोटे से संस्थान से अपने कॅरियर की शुरुआत की और बाद में रायपुर से प्रकाशित दैनिक हरिभूमि व भाष्कर जैसे अखबारों में काम करने का मौका मिला। राघवेंद्र को रिपोर्टिंग व एडिटिंग का 10 साल का अनुभव है। इस दौरान इनकी कई स्टोरी व लेख छोटे बड़े अखबार व पोर्टलों में छपी, जिसकी काफी चर्चा भी हुई।

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