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उत्तराखंड : लापरवाही की वजह से खतरे में राज्य पुष्प ब्रह्मकमल

raghvendra
Published on: 17 Feb 2018 11:09 AM GMT
उत्तराखंड : लापरवाही की वजह से खतरे में राज्य पुष्प ब्रह्मकमल
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देहरादून। उत्तराखंड का राज्य पुष्प ब्रह्मकमल पर ग्लोबल वॉर्मिंग, अत्यधिक दोहन और लापरवाही की वजह से इस फूल के अस्तित्व पर ही संकट आ गया है। लेकिन एक उम्मीद की किरण भी फूटी है केदारपुरी से। यहां पुलिसकर्मियों द्वारा बनाए गई ब्रह्म वाटिका में ब्रह्मकमल खिलने लगे हैं।

ब्रह्मकमल के पौधे में एक साल में सिर्फ एक बार ही फूल आता है और ये रात में खिलता है। बद्रीनाथ, केदारनाथ के साथ ही फूलों की घाटी, हेमकुंड साहिब, वासुकीताल, वेदनी बुग्याल, मद्महेश्वर, रूप कुंड, तुंगनाथ में ये फूल मिलता है। कहते हैं कि ब्रह्मकमल महादेव का प्रिय फूल है।

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धार्मिक और प्राचीन मान्यता के अनुसार ब्रह्मकमल को यह नाम उत्पत्ति के देवता ब्रह्मा के नाम पर मिला है। ये फूल हिमालय के उत्तरी और दक्षिण-पश्चिम चीन में होता है। सामान्य तौर पर ब्रह्मकमल हिमालय के बेहद ठंडे इलाकों में ही मिलता है। इसकी सुंदरता और औषधीय गुणों के कारण ही इसे संरक्षित प्रजाति में रखा गया है।

लेकिन हिमालयी क्षेत्रों में लोगों की बढ़ती आवाजाही और प्रदूषण ने इस फूल को बेहद नुक़सान पहुंचाया है। पर्यटक और श्रद्धालु जो कचरा छोड़ रहे हैं, उससे ब्रह्मकमल की जड़ों में गर्मी पैदा हो रही है, जिससे यह फूल नष्ट हो रहा है। पर्यटक कई बार यहां से इसका पौधा और फूल भी उखाड़ ले जाते हैं।

भक्ति का प्रदर्शन भी ब्रह्मकमल का दुश्मन बनता जा रहा है। देहरादून स्थित एक विश्वविद्यालय से ब्रह्मकमल पर पीएचडी कर रहे प्रभाकर सेमवाल ब्रह्मकमल को नुक़सान पहुंचने की कई वजहें बताते हैं। इनमें सबसे पहली है ग्लोबल वॉर्मिंग, इसके अलावा मंदिरों में चढ़ाए जाने के लिए अत्यधिक दोहन और पहाड़ों में रहने वाली जनजातियों का राज्य पुष्ट और सरंक्षित फूल के प्रति लापरवाही बरतना।

सेमवाल कहते हैं कि ग्लोबल वॉर्मिंग की वजह से मौसम बदल रहा है। बर्फ़ पिघल रही है तो यह फूल समय से पहले ही खिलने लगा है। पहले जून-जुलाई में बारिश के दौरान खिलने वाला फूल अब 15-20 दिन पहले ही खिलने लगा है। पहले खिलेगा तो पहले मुरझा भी जाएगा।

चिंता की बात यह है कि इससे फूल के गुणों में ही बदलाव आने की आशंका पैदा हो गई है। हालांकि सेमवाल कहते हैं कि इसके लिए अभी और शोध की ज़रूरत होगी कि ग्लोबल वार्मिंग का ठीक-ठीक इस फूल के गुणों पर क्या असर हुआ है।

ब्रह्मकमल को ख़तरा ऊंचे इलाकों में रहने वाली चरवाहा जातियों से भी है। सेमवाल के अनुसार इन चरवाहा जातियों को संभवत: ब्रह्मकमल के महत्व का पता ही नहीं है और इनकी भेड़-बकरियां घास की तरह ही इस सरंक्षित पुष्प के बर्ताव करती हैं। सेमवाल के अनुसार कुछ प्रयोगों के दौरान उन्होंने देखा कि केदारनाथ के ऊपर जहां प्राकृतिक रूप से ब्रह्मकमल होता है वहां इन चरवाहों की भेड़-बकरियां सारे ब्रह्मकमल चट कर गईं। कुछ भी नहीं छोड़ा उन्होंने।

ब्रह्मकमल को बचाना है तो इन जातियों को इसका महत्व बताया जाना ज़रूरी है। महादेव को प्रिय माना जाने वाला पुष्प देवताओं को चढ़ाने के प्रति अति उत्साह भी राज्य पुष्प का दुश्मन बनता जा रहा है। ब्रह्मकमल को केदारनाथ के अलावा त्रियुगीनारायण, रुद्रनाथ, तुंगनाथ, बदरीनाथ के साथ ही हेमकुंड साहिब में भी चढ़ाया जाता है।

प्रभाकर सेमवाल कहते हैं कि अपने प्रिय भगवान को प्रसन्न करने के लिए भी लोग ब्रह्मकमल का अंधाधुंध दोहन कर रहे हैं। वह कहते हैं कि ब्रह्मकमल को तोड़े जाने की सीमा तय कर देनी चाहिए। वरना लोग अपनी भक्ति दिखाने के लिए ज़्यादा से ज़्यादा ब्रह्मकमल तोड़ते रहेंगे और इस पुष्प को मुश्किल में डालते रहेंगे।

इस सब के बीच केदारपुरी से एक अच्छी ख़बर है। पिछले साल केदारनाथ में रहने वाले पुलिसकर्मियों ने एक केदारनाथ में ब्रह्मकमल उगाकर दिखा दिए हैं जो बाबा केदार के दर्शन करने आने वाले लोगों के लिए आकर्षण का केंद्र बने हुए हैं। इसका श्रेय जाता है केदारनाथ के चौकी इंचार्ज विपिन चंद्र पाठक को। उन्हें यह ब्रह्म कमल वाटिका तैयार करने में तीन साल लगे और पिछले साल जून में इस वाटिका में फूल भी आने लगे।

प्रभाकर सेमवाल के अनुसार ब्रह्मकमल कृत्रिम रूप से उगाने का संभवत: यह देश का अकेला प्रोजेक्ट है। वह कहते हैं कि ब्रह्मकमल को बेहद देखभाल की ज़रूरत होती है और स्थानीय लोगों की कोशिशें भी इससे पहले नाकाम रही थीं। लुप्त होने के ख़तरे को झेल रहे ब्रह्मकमल के लिए केदारनाथ की ब्रह्म वाटिका एक उम्मीद की किरण की तरह है जिसे पकड़ कर रखने की ज़रूरत है इससे सीखने की ज़रूरत है।

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राघवेंद्र प्रसाद मिश्र जो पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद एक छोटे से संस्थान से अपने कॅरियर की शुरुआत की और बाद में रायपुर से प्रकाशित दैनिक हरिभूमि व भाष्कर जैसे अखबारों में काम करने का मौका मिला। राघवेंद्र को रिपोर्टिंग व एडिटिंग का 10 साल का अनुभव है। इस दौरान इनकी कई स्टोरी व लेख छोटे बड़े अखबार व पोर्टलों में छपी, जिसकी काफी चर्चा भी हुई।

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