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उत्तराखंड : गंगा और सहायक नदियों में उत्खनन पर प्रतिबंध
रामकृष्ण वाजपेयी
देहरादून। उत्तराखंड सरकार ने गंगा और इसकी सहायक नदियों में उत्खनन पर प्रतिबंध लगा दिया है। यह प्रतिबंध एनजीटी के अंतरिम आदेश के मद्देनजर लगाया गया है और यह तब तक प्रभावी रहेगा जबतक कि प्राधिकरण से अंतिम आदेश नहीं आ जाता है। उत्खनन व्यवसाय से हजारों लोगों की आजीविका जुड़ी हुई है। उत्तराखंड में उत्तराखंड वन विकास निगम (यूएफडीसी), कुमाऊं मंडल विकास निगम (केएमवीएन) और गढ़वाल मंडल विकास निगम (जीएमवीएन) उत्खनन संबंधी कार्यों की इजाजत देने वाली तीन एजेंसियां हैं।
गौरतलब है कि हरिद्वार स्थित सामाजिक कार्यकर्ता विजय वर्मा की शिकायत के बाद एनजीटी ने 16 फरवरी को गंगा और इसकी सहायक नदियों में उत्खनन पर रोक लगाई थी। एनजीटी ने पर्यावरण और वन मंत्रालय पर पर्यावरण और स्थानीय पारिस्थितिकी पर उत्खनन के प्रभाव के संबंध में एक रिपोर्ट का संज्ञान लिया। यह रिपोर्ट 10 मंत्रालयों की टीम द्वारा प्रस्तुत की गई थी।
राज्य में उत्खनन के लिए वन विकास निगम द्वारा जारी किए गए सातों परमिट रद्द कर दिए गए हैं और सभी 10 गेट जहां से सामान की ढुलाई होती थी एनजीटी के आदेश के तुरंत बाद बंद कर दिये गए हैं। इससे पहले, मातृ सदन आश्रम के मुखिया स्वामी शिवानंद सरस्वती और ब्रह्मचारी आत्मबोधनंद के साथ जुड़े दो संतों ने हरिद्वार में उत्खनन पर रोक लगाने की मांग की थी।
स्वामी शिवानंद ने जिले में उत्खनन की अनुमति देने में प्रशासन की भूमिका पर सवाल उठाये थे, जिससे गंगा के विस्तार और स्थानीय पारिस्थितिकी को बड़े पैमाने पर नुकसान हुआ है। शिवानंद ने कहा कि वह नैनीताल उच्च न्यायालय में अदालत की अनदेखी करने और हालिया में उत्खनन पर रोक लगाने के बारे में एनजीटी के निर्देशों को निलंबित करने के लिए जिला अधिकारियों के खिलाफ एक मुकदमा दायर करेगा।
स्वामी शिवानंद का कहना है कि इस प्रकार की अनुमति दिये जाने से ही हिमालय के ऊपरी भाग से कोई पत्थर ऊपरी धारा से हरिद्वार के मैदानों तक नहीं आते हैं। एनजीटी ने पहले ही वन अनुसंधान संस्थान, देहरादून में विशेषज्ञों को निर्देशित कर दिया है कि वे इस पहल पर व्यापक शोध करें। इसके लिए विशेषज्ञों ने न्यूनतम 3 साल का समय मांगा है। इसका मतलब है कि इस रिपोर्ट से पहले उत्खनन में निषिद्ध होगा।
खनन समर्थक संघ समिति के जिला प्रमुख लोकेश कुमार ने कहा है कि पर्यावरण के नाम पर इस प्रकार की रोक का शिकार होने के कारण हजारों परिवार प्रभावित हो जाएंगे, इसलिए एनजीटी को अपने फैसले पर पुनर्विचार करना चाहिए। हम चाहते हैं कि उत्खनन पर प्रतिबंध हटा दिया जाए और हजारों लोगों को बेरोजगार न बनाया जाए। खनन चुगान संघर्ष समिति के प्रतिनिधि रोहताश सिंह ने कहा, यदि आवश्यकता हो, तो हम मौत के लिए अनिश्चितकालीन उपवास करेंगे।
सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद शुरू हुआ था खनन का कारोबार
अप्रैल 2017 में उत्तराखंड में खनन कारोबार से जुड़े लोगों को राहत देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने खनन पर लगे प्रतिबंध को हटा लिया था। सुप्रीमकोर्ट ने राज्य में खनन पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने वाले हाईकोर्ट के आदेश पर अंतरिम रोक लगा दी थी। इसके साथ ही सुप्रीमकोर्ट ने हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती देने वाली उत्तराखंड सरकार की याचिका पर नवीन चंद्र पंत और मनोज चंद्र पंत को नोटिस जारी किया था।
इससे पहले राज्य के नैनीताल स्थित उत्तराखंड हाईकोर्ट ने बागेश्वर जिले के रहने वाले नवीन चंद्र पंत और मनोज चंद्र पंत की जनहित याचिका पर गत 28 मार्च 2017 को पूरे उत्तराखंड में चार महीने के लिए खनन पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया था। हाईकोर्ट ने खनन से पर्यावरण और पारिस्थितिक संतुलन के खतरे को देखते हुए खनन के प्रभाव का आंकलन के लिए एक उच्च स्तरीय समिति भी गठित की थी। हाईकोर्ट ने समिति से खनन जारी रखने या रोकने पर चार सप्ताह में अंतरिम रिपोर्ट मांगी थी और तब तक के लिए राज्य में खनन रोक लगा दी थी। राज्य सरकार ने आदेश को सुप्रीमकोर्ट में चुनौती दी थी।
राज्य सरकार का तर्क था कि हाईकोर्ट ने बगैर किसी पर्याप्त सामग्री के खनन पर रोक लगा दी है। खनन पर रोक से विकासशील राज्य उत्तराखंड का विकास रुक जाएगा। राज्य ने वैसे भी 2013 में आपदा झेली है। उनका कहना था कि नदी से रेत आदि हटाना जरूरी है ताकि नदी में प्राकृतिक प्रवाह कायम रहे। इसके अलावा खनन से विकास कार्य के लिए जरूरी कच्चा माल मिलता है जो कि ढांचागत विकास के लिए जरूरी है।
इसके बाद सितंबर 2017 में उच्च न्यायालय ने गंगा नदी के पांच किलोमीटर के दायरे में स्टोन क्रशर और खनन कार्य पर रोक लगाने संबंधित अपने आदेश को पलट दिया है। उच्च न्यायालय ने रोक हटाते हुए सरकार से कहा है कि वह प्रदेश की खनन नीति के तहत ही खनन कराए। मामले की सुनवाई मुख्य न्यायाधीश केएम जोसेफ और न्यायमूर्ति आलोक सिंह की खंडपीठ के समक्ष हुई थी।
हरिद्वार निवासी पवन कुमार सैनी ने उच्च न्यायालय में जनहित याचिका दायर कर कहा था कि गंगा नदी के पांच किलोमीटर के दायरे में खनन कार्य करने और स्टोन क्रेशर लगाने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए। पूर्व में कोर्ट ने हरिद्वार में रायपुर से लेकर जगजीतपुर तक गंगा नदी के किनारे लगे स्टोन क्रेशर बंद करने और खनन न होने देने का आदेश जारी किया था। याची का कहना था कि सरकार ने इस आदेश का पालन नहीं किया। तीन मई 2017 को केंद्रीय प्रदूषण बोर्ड ने इस आदेश का पालन कराने के लिए मुख्य सचिव को कहा था।
बताया गया कि इसके बाद भी उच्च न्यायालय के आदेश का पालन नहीं किया गया। एनजीटी का आदेश आने तक उत्तराखंड में चालू वित्तीय वर्ष में तमाम अवरोधों के बावजूद खनन विभाग को बीते सालों की अपेक्षा अधिक राजस्व हासिल होने की उम्मीद थी। विभाग को उम्मीद थी कि इस वित्तीय वर्ष की समाप्ति तक वह राजस्व लक्ष्य 550 करोड़ के करीब पहुंचने में कामयाब हो जाएगा लेकिन सरकार के प्रयासों को इससे तेज झटका लगा है।
प्रदेश में आबकारी के बाद खनन राजस्व प्राप्ति का सबसे बड़ा स्रोत बनकर उभर रहा था। प्रदेश में उप-खनिज बालू, बजरी, बोल्डर, सोप स्टोन, मैग्नेसाइट, लाइम स्टोन, स्टोन क्रेशर, स्क्रीनिंग प्लांट, प्लवराईजर प्लांट, उपखनिज भंडारण के 1,217 पट्टे, लाइसेंस आवंटित किये गए थे।
पहली बार खनन विभाग इस दिशा में अच्छे राजस्व के साथ आगे बढ़ता हुआ दिखाई दे रहा था जबकि बीते सालों में अवैध खनन, रवन्ने की ठोस प्रक्रिया न होने के चलते अपेक्षित राजस्व हासिल नहीं किया जा सका था। वित्तीय वर्ष 2016-17 में खनन विभाग ने कुल 325 करोड़ का राजस्व हासिल किया, जिसमें 15 फरवरी तक मात्र 263 करोड़ राजस्व ही हासिल हो पाया था।
वर्तमान वित्तीय वर्ष के लिए खनन विभाग को 550 करोड़ का टारगेट मिला था इसमें इस माह 15 फरवरी तक खनन विभाग 322 करोड़ का राजस्व प्राप्त कर चुका है। ये राजस्व पिछले वर्ष की अपेक्षा 59 करोड़ अधिक था। खनन विभाग इसे मैनुअल रवन्ना खत्म कर ई-रवन्ना शुरू करने का परिणाम बता रहा था।
कहां तो सोचा यह जा रहा था कि 31 मार्च को खनन विभाग जब इस वित्तीय वर्ष में प्राप्त राजस्व का आंकलन कर रहा होगा, तो आंकड़े पिछले 17 सालों में खनन से मिलने वाले सर्वाधिक राजस्व को दर्शा रहे होंगे। लेकिन एनजीटी के आदेश के बाद लाइसेंसों के निरस्त होने से सबकुछ गड़बड़ा गया है।