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हरिद्वार के जलभराव से निपटने के लिए हर साल करोड़ों की बंदरबांट

raghvendra
Published on: 15 Dec 2017 8:13 AM GMT
हरिद्वार के जलभराव से निपटने के लिए हर साल करोड़ों की बंदरबांट
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रामकृष्ण वाजपेयी

हरिद्वार। हरिद्वार में बीसों साल से जलभराव की समस्या है। हां यह समस्या तब नहीं थी जब हरिद्वार सिर्फ हरि का द्वार था यानी बद्रीनाथ का प्रवेश द्वार या फिर हर का द्वार था यानी केदारनाथ का प्रवेश द्वार इसी तरह गंगोत्री व यमनोत्री का प्रवेश द्वार। अलबत्ता कनखल विश्व का अकेला ऐसा स्थान जिसके नाम पर कहीं कोई मोहल्ला, शहर प्रदेश या देश आपको नहीं मिलेगा। यह अखिल ब्रह्माण्ड में अकेला है भगवान शिव की ससुराल है। जो कि अपने साथ तमाम पौराणिक बातों को समेटे है। हरिद्वार चारों ओर से पहाड़ों से कुछ इस तरह घिरा हुआ है कि आप यदि चंडी देवी या मनसा देवी की पहाड़ी पर एकांत में खड़े हों तो आपके कानों से पहाड़ों से टकराकर गुजरती हवा शंख ध्वनि करती प्रतीत होगी। खैर हम बात कर रहे हैं जलभराव की।

आज जब लक्सर लेकर देहरादून तक कब हरिद्वार खत्म हुआ कब देहरादून शुरू हुआ या कब हम रुडक़ी पहुंच गए। जानना मुश्किल हो गया है। जनसंख्या का दबाव बेतहाशा बढ़ रहा है तो डूब के तमाम क्षेत्रों में घर बन गए हैं तब जलभराव की समस्या का विकट होना लाजमी था और वह हो भी गई है। जब उत्तराखंड उत्तर प्रदेश का हिस्सा था उस समय कहा जाता था कि यह क्षेत्र उपेक्षित है। सरकार ध्यान नहीं देती लेकिन उत्तराखंड बने 17 साल बीतने के बाद भी जलभराव से निपटने के लिए देश की दो बड़ी राजनीतिक पार्टियां भी सत्ता में रहने के बावजूद हल नहीं निकाल सकीं। या ये कहें कि किसी ने इस समस्या का हल निकालना नहीं चाहा क्योंकि यदि यह समस्या खत्म हो जाती तो हर साल राहत कार्य के नाम पर होने वाली कमाई बंद हो जाने का खतरा जो था। इस बार भी जलभराव का पानी निकालने के लिए 21 करोड़ लेकर खर्च करने की तैयारी है। और साल का यह करोड़ों का खर्च कब रुकेगा इस पर कोई बात नहीं कर रहा।

शहरी विकास मंत्री की सक्रियता

जलभराव के अगले ही दिन शहरी विकास मंत्री मदन कौशिक के निर्देश महापौर मनोज गर्ग, जिला प्रशासन और भेल प्रशासन के अधिकारी शहर को जलभराव से निजात दिलाने के लिए जलनिकासी का रूट तय करने के लिए मौके पर जा पहुंचे। भगत सिंह चौक, भेल सेक्टर एक, शिवमंदिर, भेल के प्रशासनिक भवन के आसपास के क्षेत्रों का निरीक्षण कर जलनिकासी के रूट पर मंथन किया गया। इससे पूर्व शहरी विकास मंत्री ने जिला प्रशासन, बीएचईएल, अमृत योजना एवं एनएचएआइ के अधिकारियों के साथ बैठक की। इसमें भेल क्षेत्र एवं बरसात के सीजन में पहाड़ी क्षेत्रों से शहर में आने वाले जल की निकासी के लिए महापौर की अध्यक्षता में समिति को रूट तय करने का निर्देश दिया गया। इसी महापौर मनोज गर्ग संग अधिकारियों ने निरीक्षण किया। भेल के पीछे पहाड़ से आने वाले पानी से होने वाले जलभराव के अलावा बरसात में कड़च्छ नाले, चंद्राचार्य चौक के नालों के पानी के ओवरफ्लो होने से लगने वाले जलभराव को रोकने के हर उपाय पर स्थलीय निरीक्षण के बाद बैठक कर मंथन किया। इसमें शिव मंदिर के पास पंपिंग स्टेशन,पांडेवाला, कड़च्छ की ओर से आने वाले पानी के ठहराव के लिए दो-दो तालाब बनाने पर चर्चा हुई। शहरी विकास मंत्री के निर्देश पर दिल्ली स्थित हेड ऑफिस से जल निकासी की कार्ययोजना के लिए 10 दिन में एनओसी मंगाने की तैयारी है।

क्या है बनी है योजना

अमृत योजना के अधिशासी अभियंता संजय सिंह ने बताया कि भेल क्षेत्र एवं बरसात के सीजन में पहाड़ी क्षेत्रों से शहर में आने वाले जल की निकासी के लिए भगत सिंह चौक पर जल एकत्रित कर उसे रानीपुर से सूखी नदी में छोड़े जाने की जो योजना बनी है। उस पर जल्द ही सहमति से कार्ययोजना बनाकर शहरी विकास मंत्री को सौंप दिया जाएगा। इस दौरान भाजपा नेता नरेश शर्मा, अमृत योजना के जेई, भेल के अन्य अधिकारी, जल संस्थान के एई के अलावा दिल्ली की एक कंस्टलटेंट एजेंसी के एमडी शरत जैन आदि भी उपस्थित रहे। समिति के अध्यक्ष महापौर मनोज गर्ग ने बताया कि शहरी विकास मंत्री के निर्देशानुसार समिति विभिन्न पहलुओं पर मंथन कर रही है। जल्द ही पूरी रिपोर्ट तैयार कर दे दी जाएगी। वहीं लोक निर्माण विभाग के अधिकारी आशुतोष पुरोहित ने बताया एक्कड़ कला से सुभाषगढ़-लक्सर जा रहे मार्ग पर टूटे रपटे की जल्द मरम्मत कराई जाएगी। रपटा बनने से ग्रामीणों को राहत मिल सकेगी।

कहां होता है जलभराव

अभी हाल में जरा सा पानी का क्या बरसा जलभराव की समस्या हो गई। ज्वालापुर से लेकर हरिद्वार के आगे तक देहरादून के रास्ते में रेल ट्रैक के नीचे तमाम अंडर पास बने हुए हैं। बारिश के दौरान पहाड़ों से इन जगहों पर पानी भर जाता है। यह पानी इतना ज्यादा होता है कि आदमी क्या, किसी वाहन के भी पूरी तरह डूब जाने का खतरा रहता है। इनमें रानीपुर मोड़, पथरी के दो अंडरपास, मोती बाजार, बड़ा बाजार, विष्णु घाट खडख़ड़ी, भूपतवाला, ज्वालापुर, विष्णुलोक आदि प्रमुख स्थान हैं जहां जलभराव होता है। जरा सी बारिश होने वाले जलभराव से स्थानीय लोगों को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। अगर भारी बारिश हो जाए तो शहर में जगह-जगह पानी भर जाता है, सडक़ें नहरें बन जाती हैं, बस अड्डा तालाब और रेलवे ट्रैकों पर पानी भरा होने की वजह से ट्रेनें स्टेशन के बाहर ही रोकनी पड़ जाती हैं, पानी ओवरफ़्लो होने से कई इलाकों में लोगों के घरों में भी घुस जाता है। एक बार तो हालात इस कदर बिगड़े कि तत्कालीन मेयर की नाराज लोगों ने पिटाई तक कर दी। लेकिन शासन या प्रशासन आज तक शहर के लोगों को इस समस्या से निजात नहीं दिला पाया है। वही स्कूली छात्र-छात्राओं का कहना है कि जलभराव से उनकी पढाई प्रभावित होती है और उन्हें स्कूल और ट्यूशन आने-जाने में काफी परेशानी होती है। पथरी क्षेत्र में दो मार्ग रेलवे अंडरपास में जलभराव होने से बंद हो जाते हैं। इससे एक दर्जन से अधिक गांवों की आवाजाही बंद हो जाती है। गांव एक्कड़ कला, एक्कड़ खुर्द, इब्राहिमपुर जाने वाले मुख्य मार्ग पर रेलवे ट्रैक पड़ता है । इस पर फाटक लगते थे। बार-बार फाटक बंद होने से मार्ग पर जाम लगता था। ग्रामीणों की समस्या को देखते हुए कुछ दिन पहले फाटक हटाकर अंडर पास बनाए गए लेकिन अब यही अंडरपास ग्रामीणों के लिए मुसीबत का कारण बन गए हैं। अंडर पास में कई फीट ऊपर तक बरसात का पानी भर जाता है। इसके चलते धनपुरा, बहादरपुर जट, पथरी अम्बूवाला, झाबरी, सुगरासा, घिससुपुरा आदि गांवों का संपर्क एक्कड़ कला से कट जाता है। ग्रामीणों को एक्कड़ कला, इब्राहिमपुर जाने के लिये ज्वालापुर से होकर जाना पड़ रहा है। रेलवे लाइन के नीचे से बनाये गए रास्ते में पानी की निकासी का कोई भी इंतजाम नहीं है। ग्रामीणों की मांग है कि रेलवे अंडरपास में पानी की निकासी की व्यवस्था को दुरुस्त किया जाए।

क्या कहना कांग्रेस के नेता अम्बरीश कुमार का

कांग्रेस के नेता अम्बरीश कुमार का कहना है कि मंत्री मदन कौशिक ने मध्य हरिद्वार में रेलवे लाइन के पीछे के हिस्से में होने वाले जिस जलभराव पर अधिकारियों की बैठक बुलाकर चर्चा की है और जिस योजना को वह बना रहे हैं वह अप्राकृतिक और अव्यवहारिक है। भगत सिंह चौक और उस जगह के लेबल में सात मीटर यानी करीब 28 फीट का फर्क है। जहां पानी डालना है। इतनी ऊंचाई पर पानी चढ़ाने के लिए कितनी पावर खर्च होगी मतलब यह कि यह फीजिबल है ही नहीं, दूसरी बात यह है कि रावत जी के समय में जो पंप लगे, व्यवस्था की गई उसमें इन्हें क्या कमी नजर आयी। तीसरी बात यह है कि पहाड़ से जो पानी आ रहा है उसको रोकने की क्या व्यवस्था हो। हाल यह है कि चोर से कहा जा रहा है कि तुम आओ चोरी करो, हम दरख्वास्त लेकर कार्रवाई करेंगे। ऐसा काम क्यों। पहाड़ पर वाटरशेड बनते हैं उनसे ही तो पानी रुकता है। तत्कालीन डीएम केएन सिंह ने एक रिपोर्ट बनाकर दी थी मैने रावत जी को दी। रावत जी ने सीडीओ को दी। अब सीडीओ बताए उस रिपोर्ट का क्या हुआ। जब वाटरशेड बन जाएंगे तो पहाड़ से पानी नीचे नहीं आएगा तब समस्या कहां रह जाएगी। इन्होने मोतीबाजार, बड़ा बाजार, विष्णुघाट खडख़ड़ी भूपतवाला ज्वालापुर सबको पीछे छोड़ दिया। पिछली बार बहादराबाद से पानी आया तो पुलिया बह गई। पावरहाउस में दरार आ गई आप क्षेत्र की बात करें केवल मोहल्ले की बात न करें। इसी तरह बीएचईएल के पीछे पहाड़ से पानी आता है हम कहें कि बीएचईएल से पानी आता है तो यह अन्याय होगा। तो इलाज पूरे का करना चाहिए नहीं करोगे तो हम कहेंगे आप का इलाज जरूरी है। उन्होंने कहा कि हर बार करोड़ों रुपए सिर्फ पानी निकालने के लिए खर्च करना उचित नहीं है।

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राघवेंद्र प्रसाद मिश्र जो पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद एक छोटे से संस्थान से अपने कॅरियर की शुरुआत की और बाद में रायपुर से प्रकाशित दैनिक हरिभूमि व भाष्कर जैसे अखबारों में काम करने का मौका मिला। राघवेंद्र को रिपोर्टिंग व एडिटिंग का 10 साल का अनुभव है। इस दौरान इनकी कई स्टोरी व लेख छोटे बड़े अखबार व पोर्टलों में छपी, जिसकी काफी चर्चा भी हुई।

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