TRENDING TAGS :
उत्तराखंड : जमरानी बांध के निर्माण के लिये एमओयू ड्राफ्ट स्वीकृत
ब्यूरो
उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के बीच जमरानी बांध के निर्माण के लिये एमओयू ड्राफ्ट स्वीकृत हो गया है। इसके अलावा सिंचाई मंत्री सतपाल महाराज ने कहा है कि पंचेश्वर बांध के विस्थापितों का पुनर्वास टाउनशिप विकसित करके किया जाएगा। कुल मिलाकर देखा जाए तो 46 साल से लटके जमरानी बांध के निर्माण का रास्ता साफ हो चला है। उत्तराखंड सरकार ने परियोजना में विस्थापित परिवारों को भूमि आवंटन व मुआवजा को लेकर रणनीति पर काम भी शुरू कर दिया है।
यह भी पढ़े : देहरादून में एक और हड़ताल की तैयारी, काम न करने का अच्छा बहाना
उधर पंचेश्वर बांध पर चर्चा के दौरान सिंचाई मंत्री ने निर्देश दिये कि परियोजना में विस्थापित परिवारों को भूमि आवंटन व मुआवजा आवंटित करते समय एकरूपता का ध्यान रखा जाए। मुआवजा से पूर्व विस्थापित परिवारों का चिह्नीकरण उचित ढंग से किया जाए तथा विस्थापितों का पुनर्वास टाउनशिप विकसित कर किया जाए। उन्होंने केन्द्रीय कपड़ा राज्यमंत्री अजय टम्टा से वार्ता कर सुझाव मांगे हैं। सिंचाई मंत्री ने त्यूनी-प्लासू जल विद्युत परियोजना, सौंग बांध पेयजल परियोजना, हरिपुरा एवं तुमरिया जलाशय के सोलर पावर प्रोजेक्ट पर चर्चा की तथा स्वीकृत सिंचाई योजनाओं को शीघ्रता से पूर्ण करने के निर्देश दिये।
हैरानी की बात ये है कि अब तक 4 सौ करोड़ के खर्च के बाद भी जमरानी बांध के लिए एक पत्थर भी नहीं लग पाया है। उत्तराखंड के नैनीताल जिले में बहने वाली बारह मासी गौला नदी के पानी को रोककर यहां बांध बनाने का वादा बीजेपी हो या कांग्रेस दोनों पार्टियां पिछले चालीस सालों से करती आ रही हैं। लेकिन बांध कहां बनेगा, उसकी दीवार कहां होगी ये अब तक स्पष्ट नहीं था। जमरानी बांध का फायदा उत्तराखंड के नैनीताल, उधम सिंह नगर जिले के अलावा यूपी के बरेली जिले को बिजली-पानी की सुविधाएं मुहैया करवाने के लिए होगा।
वर्ष 1971 में इसका प्रस्ताव तैयार हुआ, 26 फरवरी 1976 को केंद्र में तत्कालीन ऊर्जा सिंचाई मंत्री केसी पन्त और तत्कालीन मुख्यमंत्री एनडी तिवारी ने इसका शिलान्यास किया था। उस वक्त ये कहा गया कि तिवारी नहीं चाहते थे कि जमरानी बांध बने क्योंकि गौला नदी सरकार को रेता बजरी से करोड़ों का राजस्व और हज़ारों लोगों को रोजगार देती है। ये ही बड़ी वजह थी कि इस परियोजना को ठंडे बस्ते में डाले रखा गया। क्योंकि ये परियोजना 25 सौ करोड़ खर्च कर केवल 27 मेगावाट बिजली उत्पन्न करने की थी, इसीलिए ये घाटे का सौदा था। बीजेपी और कांग्रेस अब भावर में पानी की कमी को मुद्दा बनाते हुए जमरानी बांध की मांग तो करते हैं लेकिन हकीकत ये भी है कि इसके निर्माण में कई पेंच भी हैं।
जमरानी बांध परियोजना पर एक नजर
- बांध की ऊंचाई - 130.60 मीटर
- बांध के जलाशय की लंबाई - 9 किमी
- बांध की चौड़ाई - 1.5 किमी
- बांध की जलधारण क्षमता - 208.6 मिलियन घन मीटर
- बांध क्षेत्र में आ रही जमीन - 381.43 हेक्टेयर
- बांध के डेड स्टोरेज पानी की ऊंचाई - 81 मीटर
- बांध से मिलने वाला शुद्ध पेयजल - 52.93 मिलियन घन मीटर
- बांध क्षेत्र से बिजली उत्पादन लक्ष्य - 19.5 मेगावाट
- बांध के जलाशय से सिंचित होनो वाली भूमि - 57065 हेक्टेयर
- सिंचाई के लिए उत्तर प्रदेश को दिया जाने वाला पानी - 52 प्रतिशत
- सिंचाई के लिए तराई भाबर को दिया जाने वाला पानी - 48 प्रतिशत
- मत्स्य पालन, नौकायन, पर्यटन गतिविधियों का विस्तार भी शामिल
अब तक बांध न बनने के कारण
=शिवालिक की कच्ची पहाडिय़ां पानी के भार को सहन नहीं कर पायेगी।
=प्रस्तावित बांध स्थल के पास अमिया की पहाड़ी लगातार दरक रही है, जिसकी दरार गहरी और लंबी है
=गौला नदी में बहकर आने वाली रेता बजरी सिल्ट बांध में भर जाने का अंदेशा है।
= गौला नदी से हरसाल करीब 15 लाख ट्रक खनन सामग्री निकाली जाती है।
=बांध की लागत वर्तमान में 2500 करोड़ है और बिजली उत्पादन मात्र 27 मेगावाट होगा, इसलिए सरकार के लिए ये घाटे का सौदा है,क्योंकि बिजली लागत महंगी होगी और गौला खनन आय भी हाथ से जो जायेगी वो अलग।
=लंबे जन आंदोलन के बाद वर्ष 1975 में केंद्रीय जल आयोग से जमरानी बांध परियोजना को मंजूरी मिली थी। तब 61.25 करोड़ रुपये भी परियोजना के लिए स्वीकृत किए गए थे। इसके तहत 1981 में गौला बैराज और 40 किमी लंबी नहरों का निर्माण किया गया, जिसमें 24.59 करोड़ रुपये खर्च हुए। 1984 में परियोजना की पर्यावरणीय मंजूरी का प्रस्ताव भारत सरकार को भेज दिया गया। आज 28 वर्ष गुजर गए, परियोजना को केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय की मंजूरी नहीं मिली है।