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Joshimath Sinking: आखिर क्यों धंस रहा है खूबसूरत शहर जोशीमठ? वजह जान चौंक जाएंगे आप
Joshimath Sinking: जोशीमठ में जमीन धंसने से लोग सहमे हैं। कई बड़े होटलों और अधिकांश घरों में दरारें पड़ गई हैं। जानिए आखिर क्यों बिगड़े जोशीमठ के हालात?
Joshimath Sinking : 'देवभूमि' उत्तराखंड का चमोली शहर भारतीय सीमा के पास बसा है। चमोली का जोशीमठ (Joshimath) इन दिनों सुर्ख़ियों में है। दरअसल, जल निकासी (Water Drainage) की कोई उचित व्यवस्था ना होने के कारण जोशीमठ में जमीन धंस रही है। आलम ये है कि अब जोशीमठ के लोग गांवों से पलायन को मजबूर हो गए हैं। एक तरफ, पानी के निकासी की उचित व्यवस्था न होना तो दूसरी ओर अलकनंदा नदी (Alaknanda River) से कटाव तथा अनियंत्रित निर्माण कार्य की वजह से 32 गांव खतरे में हैं। हालांकि, जोशीमठ एकमात्र शहर भी नहीं है, जहां ये हालात हैं।
चमोली जिले (Chamoli district) में फिलवक्त 584 मकान और होटल इसकी जद में आ चुके हैं। वहीं, आपदा प्रबंधन के सचिव रंजीत सिन्हा, ने बताया कि जोशीमठ की स्थिति चिंताजनक है। जोशीमठ का निरीक्षण कर लौटी टेक्निकल टीम ने कई सुझाव दिए हैं। उन पर तत्काल अमल करने की जरूरत है। निरीक्षण करने वाली टीम ने जमीन धंसने की सबसे बड़ी वजह जोशीमठ में पानी निकासी की कोई व्यवस्था न होना बताया है। आईये जानते हैं आखिर जोशीमठ जैसे खूबसूरत शहर की ये हालत क्यों है?
नवंबर 2021 से ज्यादा बिगड़े हालात
चमोली का जोशीमठ (Joshimath) उत्तराखंड के खूबसूरत शहरों में से एक है। ये शहर इन दिनों खतरे की जद में है। पहाड़ी पर बसा ये शहर धीरे-धीरे कर नीचे जमीन में धंसता जा रहा है। जोशीमठ में बने अधिकतर मकानों में दरारें (Cracks) पड़ने लगी हैं। कई घरों के आंगन जमीन के अंदर धंसने शुरू हो गए। शहर की सड़कें भी जगह-जगह धंस गई हैं। बता दें, ये हालात ताजा नहीं हैं। नवंबर 2021 से ऐसे हालात बनने शुरू हुए थे। जमीन धंसने से स्थानीय लोगों के भीतर खौफ है। कई लोग पलायन कर रहे हैं, जबकि कई दरारों और टूटे मकानों में रहने को विवश हैं।
जुगाड़ के सहारे गुजर रही जिंदगी
जोशीमठ शहर में कई घर पूरी तरह क्षतिग्रस्त हैं। दीवारों में दरारें पड़ चुकी हैं। घरों के आंगन की जमीन धंस चुकी है। शुरुआत में लोगों ने उसे पत्थर रखकर दोबारा भर दिया। घरों के लेंटर को थामने के लिए लोगों ने लकड़ी की बल्लियां आदि लगा दी है। ताकि लेंटर नीचे ना जाए। जोशीमठ में अधिकतर घरों के यही हालात हैं। सभी लोग जुगाड़ के सहारे अपने घरों में रह रहे हैं।
आखिर क्यों धंस रहा जोशीमठ?
सवाल अब ये उठता है कि आखिर जोशीमठ क्यों धंस रहा है? इसका जवाब पर्यावरणविद अतुल सती ने मीडिया को दिया। उन्होंने बताया, कि 1970-71 की बाढ़ के बाद जोशीमठ में भूस्खलन (landslide in joshimath) की घटनाएं बढ़ने लगी। तब उत्तराखंड अलग राज्य नहीं था। बल्कि ये यूपी का ही हिस्सा था। तत्कालीन उत्तर प्रदेश सरकार ने एक कमेटी गठित की थी। उस समय गढ़वाल (Garhwal) के कमिश्नर महेश चंद्र मिश्रा की अध्यक्षता में भूगर्भीय अध्ययन (Geological Studies) के लिए एक कमेटी बनाई गई। कमेटी ने अध्ययन में पाया कि जोशीमठ ग्लेशियर (Glacier) द्वारा लाई गई मिट्टी पर बसा है। लिहाजा ये बहुत अधिक मजबूत चट्टान नहीं है। ये भूस्खलन वाला क्षेत्र ही है। उस वक्त ये कहा गया था कि यदि जोशीमठ को स्थाई रखना है, तो जोशीमठ में चट्टानों के साथ छेड़छाड़ न की जाए। जोशीमठ में भारी निर्माण कार्य न किए जाएं। साथ ही, भूस्खलन की घटनाओं को रोकने के लिए ढलानों पर पौधरोपण की जाए।
सिफारिशें नजरअंदाज, बिगड़े हालात
पर्यावरणविद बताते हैं कि 1976 के बाद से जोशीमठ को लेकर जितनी सिफारिशें की गई उन पर कोई अमल नहीं हुआ। कुछ ही जगहों पर वृक्षारोपण हुए हैं। जहां वृक्षारोपण हुए, वहां भूस्खलन (Landslide) थम गया। 90 के दशक में जोशीमठ के निचले इलाके में जयप्रकाश कंपनी ने काम शुरू किया। एक सड़क का निर्माण किया गया। तब भी सिफारिशों में कही गई बातों को नजरअंदाज किया गया। 90 के दशक में इसी निर्माण कार्य के बाद से समस्याएं शुरू हुई। इसके बाद एनटीपीसी की जल विद्युत परियोजना (NTPC Hydro Power Project) शुरू हुई। तपोवन विष्णुगढ़ परियोजना भी शुरू हुई। वर्ष 2010 में जब सुरंग में एक मशीन फंस गई तब उस सुरंग से 600 लीटर पानी प्रति सेकंड निकलने लगा। जिसके बाद पर्यावरण वैज्ञानिकों ने कहा कि जोशीमठ में इस सुरंग से असर पड़ रहा है।