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Joshimath Sinking: जोशीमठ के 'विनाश' ने कुरेदा टिहरी के विस्थापन का दर्द?..इसलिए 'न्यू जोशीमठ' के नाम सहमे हैं लोग
Joshimath Sinking: जोशीमठ के लोगों ने टिहरी विस्थापन को करीब से देखा है। सरकारी हीला-हवाली भी देखी है। इसलिए 'न्यू जोशीमठ' में बसाने के नाम से यहां के लोग सहमे हैं।
Joshimath Sinking: उत्तराखंड में जोशीमठ का दर्द नया नहीं है। इससे पहले भी 'देवभूमि' ने ये दर्द सहा है। 20 साल पहले टिहरी से लोगों का विस्थापन एक ऐसा ही नासूर है। दुनिया भूल गई, लेकिन उन टिहरी वासियों से पूछिए अपनी जड़ों से उखड़ने का दर्द क्या होता है? अपनी जगह से अलग होने का कष्ट उन्हें आज भी सालता है। टिहरी से जुड़ी यादें इसलिए अभी याद आ रही, क्योंकि जोशीमठ वही दंश झेल रहा है। उत्तराखंड की धामी सरकार जोशीमठ के आपदा वाले इलाके से लोगों विस्थापित कर 'न्यू जोशीमठ' बसाने की तैयारी में है।
आपको पता है, टिहरी से विस्थापित हुए लोग आज भी अपनी डूबी टिहरी के लिए रोते हैं। 20 वर्ष हो गए। मगर, वो दर्द पुरानी टिहरी के लोगों के लिए नासूर से कम नहीं है। आज भी उन्हें वो दर्द सालता है। रो लेते हैं। उनके लिए पुराना टिहरी अब बस यादों में है। जोशीमठ के लोगों के मन में यही सवाल कौंध रहा है, कहीं उन्हें भी टिहरी वासियों की स्थिति से न गुजरना पड़े।
टिहरी का दर्द, आज भी सालता
टिहरी (Tehri) से विस्थापित किए गए लोगों को उत्तराखंड के शहरों में बसाया गया था। उन्हें सरकारी मुआवजे भी दिए गए। लेकिन, क्या कोई मुआवजा शहर में टिहरी जैसी ठंडी हवा, चैन-सुकून और अपने घर-आंगन में काटी वो फुर्सत उन्हें दिला पाया? जवाब आएगा नहीं। बिल्कुल नहीं। टिहरी वाले अपने बचपन की कहानियां अब बच्चों को सुनते हैं। दादी-नानी की कहानियों में उनका दर्द झलकता है। एक बसा-बसाया शहर डूब गया। अब बस, सिसक गढ़वाली गीतों में रह गई है जिसे महिलाएं गुनगुनाती हैं। जोशीमठ के लोगों ने उस दर्द को महसूस किया है। इसलिए अब डरने की बारी उनकी है।
क्यों पड़ी विस्थापन की जरूरत?
सवाल उठता है टिहरी से लोगों को क्यों विस्थापित किया गया था? दरअसल, टिहरी विकास की भेंट चढ़ गया। एक परियोजना के लिए पुरानी टिहरी शहर को 'जलमग्न' होना पड़ा था। इसमें 125 गांवों पर असर पड़ा। इस दौरान 37 गांव पूरी तरह से डूब गए। जबकि, 88 गांव आंशिक रूप से प्रभावित हुए थे। इन इलाकों में रहने वाले लोगों को नई टिहरी (New Tehri) और देहरादून (Dehradun) के आस-पास के इलाकों में विस्थापित किया गया। साथ ही, कई ग्रामीण अभी भी अपने विस्थापन की लड़ाई लड़ रहे हैं।
टिहरी के बचे गांव में भी जोशीमठ जैसी स्थिति
टिहरी डैम के पानी के उतार-चढ़ाव के चलते झील के आसपास सटे 17 गांवों में भूस्खलन (landslide) और भू-धसाव हो रहा है। जिससे मकानों में दरारें आ चुकी हैं। कई मकान बल्लियों के सहारे टिके हैं। खेती लायक जमीन धंस चुकी है। इस समस्या की वजह से ग्रामीणों के सामने रोजी-रोटी का संकट पैदा हो गया है।
विकास के नाम पर 'विनाश' !
टिहरी बांध (Tehri Dam) से प्रभावित कई गांवों के लोग आज भी अपनी जमीन के बदले भूमि की आस लगाए बैठे हैं। विस्थापन के 20 साल बाद भी उनकी सुध लेने वाला कोई नहीं है। बता दें, टिहरी बांध एशिया का सबसे ऊंचा बांध (Asia's tallest dam) माना जाता है। इसकी ऊंचाई 835 मीटर से ज्यादा है। इस बांध के शुरू होने के इतने दिनों के बाद इसके डूब क्षेत्र में आने वाले आंशिक गांवों को अपने विस्थापन की आस है। हालांकि, उत्तराखंड सरकार ने इस बांध से प्रभावित गांवों के लोगों का विस्थापन किया। कुछ गांवों के किसानों को मुआवज़ा भी मिला। लेकिन, सरकार की 'विस्थापन नीति' की खामियों ने सब गुड़-गोबर कर दिया। विस्थापित ग्रामीण 'विस्थापन नीति' को दोषपूर्ण बताते हुए सालों से विरोध-प्रदर्शन करते रहे हैं। ग्रामीणों को लगता है कि सरकार ने बांध बनाते समय उनसे जो वादा किया था वो पूरा नहीं हुआ। उनके साथ धोखा हुआ। वे आज भी अपने लिए न्याय की मांग कर रहे हैं।
कागजों पर समाधान, हकीकत जुदा
समस्याओं का समाधान कई बार कागज़ों पर तो हो जाता है, मगर जमीनी हकीकत जुदा होती है। टिहरी डैम की झील से प्रभावित गांव वालों का हाल भी वैसा ही है। वर्ष 2005 से गांव के लोग विस्थापन की मांग करते रहे हैं। केंद्र सरकार की स्वीकृति मिलने के बावजूद विस्थापन के लिए टीएचडीसी (THDC) और पुनर्वास विभाग (Rehabilitation Department) के बीच तालमेल की कमी देखने को मिली। जिस कारण ग्रामीण विस्थापन की बाट जोह रहे हैं। गांव वालों के अनुसार, टीएचडीसी और पुनर्वास विभाग उन्हें लगातार गुमराह कर रहा है। नंदगांव (Nandgaon), भटकंडा (Bhatkanda), उठड़, पिपोला (Pipola), खांड, रौलाकोट सहित 17 गांव के ग्रामीण साल 2005 से विस्थापन की मांग कर रहे हैं। इस दौरान कई सरकारें आईं लेकिन ग्रामीणों की समस्या जस की तस है।
क्या है नई टिहरी?
21वीं शताब्दी की शुरुआत में टिहरी बांध के निर्माण के कारण पूरा टिहरी शहर जलमग्न हो गया। इस त्रासदी ने करीब 1 लाख लोगों को प्रभावित किया। उनके निवास के लिए तत्कालीन उत्तराखंड सरकार ने इस नगर की स्थापना की। इस नगर का निर्माण 90 के दशक में ही शुरू हो गया था। इसके लिए 3 गांवों और थोड़ी वन भूमि का अधिग्रहण किया गया। 2024 तक टिहरी नगर को पूरा खाली कर वहां के निवासियों को नई टिहरी में स्थानांतरित कर दिया गया था। पहाड़ों के बीच स्थित यह जगह बेहद खूबसूरत है। हर साल बड़ी संख्या में पर्यटक यहां घूमने आते हैं। ये जगह धार्मिक स्थल के रूप में काफी प्रसिद्ध है। यहां आप चम्बा (Chamba), बूढ़ा केदार मंदिर (Budha Kedar Temple), कैम्पटी फॉल (Kempty Falls), देवप्रयाग (Devprayag) आदि स्थानों में घूम सकते हैं। यहां की प्राकृतिक छटा पर्यटकों को अपनी ओर खिंचती है।
वही दर्द झेलने की कगार पर जोशीमठ
अब विस्थापन का वही दर्द झेलने की कगार पर जोशीमठ खड़ा है। जोशीमठ में भी भू-धसाव और इमारतों के दरकने का सिलसिला जारी है। 700 से ज्यादा पमकानों पर लाल निशान लगाए गए हैं। जोशीमठ में दरारों से लोगों के घरों से लेकर कारोबार, पितृ देव के मंदिर तक जर्जर हो गए हैं। पहाड़ों में जिंदगी पहले ही बेहद संघर्षपूर्ण होती है। यहां लोग अपनी छोटी सी दुनिया अपने हाथों से बनाते हैं। आज उनकी वही दुनिया आंखों के सामने उजड़ रही है, तो दर्द छलककर बाहर आ रहे हैं।
टिहरी की तर्ज पर बनेगा 'न्यू जोशीमठ?
उत्तराखंड की पुष्कर सिंह धामी सरकार टिहरी (Tehri News) की तर्ज पर 'न्यू जोशीमठ' (New Joshimath) बनाने पर विचार कर रही है। लेकिन, स्थानीय लोग इसके लिए तैयार नहीं हैं। जोशीमठ निवासी यहीं रहना चाहते हैं। वो कहीं अन्य जाने को तैयार नहीं हैं। धामी सरकार ने जोशीमठ की आबादी को 'शिफ्ट' करने के लिए तीन स्थानों का चयन किया है। इसमें एक जोशीमठ की जेपी कॉलोनी (Jaypee Colony Joshimath) के पास उद्यान विभाग की जमीन है। दूसरा, पीपलकोटी (Pipalkoti) और तीसरा गौचर (Gauchar) के पास जमीन पर लोगों को शिफ्ट करने की योजना बनाई जा रही है। लेकिन, जोशीमठ के स्थानीय निवासी अन्यत्र जाना नहीं चाहते हैं।