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जानिए आखिर क्यों फटता है बादल

ऊपरी तापमान के कम होने और नीचे की हवा से बनने वाले दबाव की वजह से यह बादल बरसने के बजाय एक साथ फट जाते हैं।

Deepika Jaiswal
Written By Deepika JaiswalPublished By Shreya
Published on: 11 May 2021 5:35 PM GMT (Updated on: 11 May 2021 5:37 PM GMT)
जानिए आखिर क्यों फटता है बादल
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आसमान से फटता हुआ बादल (फोटो साभार- सोशल मीडिया)

देवप्रयाग: उत्तराखंड के टिहरी जिले के देवप्रयाग में मंगलवार को शाम 5:00 बजे, बादल फटने की वजह से भारी नुकसान हुआ है। बादल फटने की वजह से सरकारी नगरपालिका की बिल्डिंग टूट गई। इसके साथ ही बिजली और पाइप की लाइनें भी ध्वस्त हो गई। अच्छी खबर तो यह है कि किसी के जीवन की हानि की कोई घटना घटित नहीं हुई।

बादल क्यों फटते हैं? बादल की फटने के कारण का पता लगाने से पहले हम यह जानते हैं कि बादल क्या है और यह कितने प्रकार के होते है?

बादल

पृथ्वी पर मौजूद जल सूर्य की मौजूदगी में वाष्पित होकर वायुमंडल में पहुंचता है तो तापमान के कम होने की वजह से यह पानी की बूंदे संघनित होकर ठंडी होकर बादलों में परिवर्तित होकर बारिश के रूप में फिर से जल धरती पर बरसाते हैं।

बादल के प्रकार

विश्व मौसम विज्ञान संगठन विश्व क्लाउड अटलस के अनुसार, बादलों के प्रकार निम्न है,

अल्ट्रौ स्ट्रेट्स क्लाउड-

यह पृथ्वी की सतह से 2000 से 6000 फीट की ऊंचाई पर करते हैं। यह बादल बहुत ही तेज गति से तैरते हैं और अपना आकार बहुत ही जल्दी बदल लेते हैं और बहुत ही जल्दी बरस जाते हैं।

अल्टो क्यूमलास क्लाउड-

यह मध्यम ऊंचाई पर पाए जाने वाले बादल होते हैं जो की लहरों के रूप में वायुमंडल में तैरते रहते हैं।यह भी 6000 फीट तक वायुमंडल में तैरते रहते हैं लेकिन यह छोटे और सुनहरे किनारे वाले होते हैं जो कि ,सूर्य की किरणें पड़ने पर बड़े आकर्षित लगते हैं।

साइरस क्लाउड-

इस प्रकार के बादल वायुमंडल में 4000 फीट से 18000 फीट की ऊंचाई पर करते रहते हैं । इनका आकार पूंछ के जैसा होता है। यह कम घने होते हैं ,जिसके कारण सूर्य के प्रकाश को परिवर्तित करने की क्षमता इन में पाई जाती है।

सिएरो क्यूमलस क्लाउड-

इस प्रकार का बादल 20000 फीट की ऊंचाई पर वायुमंडल में तैरते रहते हैं। इनका आकार बिखरी हुई लहरों की तरह दिखता है। इनका आकार छोटा होता है जिसकी वजह से यह छोटे-छोटे बादल मिलकर एक बादलों का बड़ा समूह बना लेते हैं।

सिरोसटेटस क्लाउड्स-

इस प्रकार का बादल वायुमंडल में 18000 फीट से 50000 फीट के ऊंचाई पर करते हैं यह बहुत ही घने और फैले हुए होते हैं इन बादलों के घेराव की वजह से वायुमंडल में काले रंग का प्रभाव प्रदर्शित होता है मौसम विभाग इन बादलों के अनुसार मूसलाधार बारिश की आशंका की गणना करती है।

क्योंमोलोनिमबश क्लाउड्स

बादल वायुमंडल में 50000 से 70000 फीट की ऊंचाई में तैरते रहते हैं। इन बादलों की वजह से मौसम विभाग बिजली ,तूफान जैसे मौसमी घटना का पता लगाते हैं।

कुछ ऐसे बादल भी होते हैं जो बहुत ही नीचे होते हैं और इन्हें हम आसानी से छू सकते हैं। जिन्हें बादल का ही रूप समझा जाता है इस प्रकार के बादल कोहरा या धुंध कहा जाता है। मैदानी इलाकों या पर्वतीय इलाकों में छाए जाने वाले कोहरे और धुंध को बादल का रूप ही समझा जाता है।

बादलों के फटने का कारण

बादलों के फटने की ज्यादातर घटना पहाड़ी इलाकों में देखी गई हैं। जिसकी वजह से पहाड़ी इलाकों में भारी जान और माल का नुकसान होता है। पहाड़ी क्षेत्रों में पहाड़ों से टकराकर हवा ऊपर की ओर वायुमंडल में जाती है और अपने साथ कोहरे के रूप में बादलों को भी ऊपर ले जाती है। जैसा कि हम जानते हैं कि अत्यधिक ऊंचाई पर तापमान कम होता है, इस तापमान के कम होने की वजह से ऊपरी हवा का दबाव और ठंड इन बादलों को बेहद घना बना देती है।

वहीं दूसरी ओर नीचे से आने वाली हवा इन बादलों को बरसने नहीं देती और इस संघर्ष में लगातार इन बादलों में पानी वाषिपत होकर घूमने लगता है और बर्फ में परिवर्तित होता जाता है जब यह बादल संघनित होकर अपना घनत्व बढ़ाते हैं जिसकी वजह से यह भारी हो जाते हैं और बर्फ और पानी को बड़े पैमाने में संग्रहित करते हैं। ऊपरी तापमान के कम होने और नीचे की हवा से बनने वाले दबाव की वजह से यह बादल बरसने के बजाय एक साथ फट जाते हैं।

जो बादल महीनों या सप्ताह में बरसने वाले थे ,वह एक साथ बरसते हैं जिसके वजह से बादलों के फटने पर बाढ़ जैसी स्थिति आ जाती है यह ज्यादातर पहाड़ी इलाकों में यह घटना प्रभावित करती है।

उत्तराखंड और बादल फटने का इतिहास

1952 पौड़ी जिला-

जब बादल के फटने की वजह से इस जिले के दुधातौली कस्बा भारी बारिश की वजह से नायर नदी में जल का बहाव अधिक होने से जलमग्न हो गया था। जिसकी वजह से कई बसें और कई लोगों की जान गई थी।

1954 रुद्रप्रयाग-

इस वर्ष उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग में बादल फटने की वजह से ददुआ गांव मूसलाधार बारिश होने की वजह से भूस्खलन हुआ था। जिसमें पूरा गांव दब गया था।

1975 से बादल के फटने जैसी भौगोलिक क्रियाएं उत्तराखंड में बढ़ती जा रही हैं।

उत्तराखंड वानिकी एवं औद्यानिकी विश्वविद्यालय के पर्यावरण विभाग के अनुसार बादल के फटने जैसी भौगोलिक घटनाओं का एकमात्र कारण ग्लोबल वार्मिंग बताया जाता है।

पहाड़ी क्षेत्रों में मूसलाधार बारिश होने की एकमात्र वजह मैदानी और पर्वतीय इलाकों में वन क्षेत्रों का असमानीकरण वितरण होना है।

Shreya

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