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उत्तराखंड : पंचेश्वर बांध को आगे बढ़ाएगी नेपाल की नयी सरकार
रामकृष्ण वाजपेयी
देहरादून : पंचेश्वर बांध काली नदी पर बनना है जो उत्तराखंड के साथ नेपाल का कुछ हिस्सा भी कवर करेगा। यह उत्तराखंड के पिथौरागढ़, चंपावत और अल्मोड़ा के कुछ हिस्से को कवर करेगा। 1954 में जवाहर लाल नेहरू ने पंचेश्वर बांध की बात कही थी। तब से अलग-अलग स्तर पर इसे बनाने को लेकर बातें होती रही हैं। डिटेल प्रॉजेक्ट रिपोर्ट के मुताबिक, 2018 से बांध का काम शुरू हो जाएगा और साल 2026 तक काम पूरा करके बांध में पानी भरना शुरू हो जाएगा। पानी पूरा भरने में 2 साल लगेंगे और 2028 तक यह पूरा हो जाएगा। पंचेश्वर बांध के साथ ही एक और छोटा बांध रुपाली गाड़ बांध भी बनना है।
एमाले के दामोदर भंडारी समर्थन में : नेपाल के बैतड़ी प्रतिनिधि सभा (संसदीय सीट) से विजयी एमाले उम्मीदवार दामोदर भंडारी ने पंचेश्वर बांध के विरोध की तमाम अटकलों को खारिज करते हुए भरोसा दिलाया है कि वह इस परियोजना को आगे बढ़ाने के लिए भरपूर प्रयास करेंगे। उन्होंने कहा कि प्रतिनिधि सभा के पहले ही सत्र में पंचेश्वर बांध परियोजना को आगे बढ़ाने के लिए आवाज उठाई जाएगी। दामोदर भंडारी ने कांग्रेस उम्मीदवार नरबहादुर चंद को पराजित किया है। नेपाल में एमाले ने सबसे बड़ी पार्टी के रूप में जीत दर्ज की है।लोगों में आशंका थी कि वामदल की सरकार आने के बांध पंचेश्वर बांध परियोजना में अड़ंगा लग सकता है। लेकिन भंडारी ने कहा है कि जब पूर्व में नेपाल में केपी ओली की सरकार थी तब भी इस परियोजना को आगे बढ़ाने का कार्य किया गया।
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डूब क्षेत्र का विकास करने की उठी मांग : पंचेश्वर बांध परियोजना को निरस्त कर उस पैसे से 188 किलोमीटर लंबे डूब क्षेत्र का विकास करने की मांग उठने लगी है। इसी के तहत झूलाघाट के सैकड़ों लोगों ने प्रधानमंत्री को पत्र भेजा है। बांध का विरोध कर रही समिति ने भी प्रधानमंत्री को पत्र भेजा है। बांध का क्षेत्र के लोगों ने नए सिरे से विरोध करने का ऐलान किया है। इसी के तहत झूलाघाट में पंचेश्वर बांध विरोध संघर्ष समिति ने विरोध की रणनीति बनानी शुरू कर दी है।
लोगों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र के माध्यम से बांध का प्रस्ताव तुरंत निरस्त कर महाकाली नदी के किनारे बसे 188 किलोमीटर लंबे क्षेत्र के 120 से भी अधिक गांवों को देश का सबसे विकसित गांव बनाने की सलाह दी है। लोगों की मांग है कि इस इलाके में रेलवे लाइन, महाकाली नदी के किनारे फोरलेन सडक़, बेहतर संचार सेवा, 24 घंटे बिजली, पानी और बेहतरीन सुविधा और नदी पर आधारित उद्योगों को लगाया जाए, ताकि देश का राजस्व बढ़ सके और स्थानीय स्तर पर रोजगार पैदा हो सकें। साथ ही समिति के संयोजक हरिबल्लभ भट्ट ने प्रधानमंत्री को लिखे पत्र में कहा है कि जहां देश के पर्यावरणविद् बड़े बांध का विरोध कर रहे हैं, विश्व के अनेक देश बड़े बांध तोडक़र छोटे बांध बनाने जा रहे हैं, ऐसे में यहां के लोगों पर बड़ा बांध थोपना उचित नहीं है। उन्होंने कहा कि बांध को लेकर यदि सरकार मनमानी करती रही तो इसका परिणाम भुगतने की लिए तैयार रहे। यह पत्र प्रधानमंत्री को भेजा जा चुका है।
बांध निर्माण से सधेंगे किसके हित : बांध से पूरे उत्तराखण्ड के विकास की उम्मींदें लगाए लोग विद्युत के इतने कम उत्पादन को देख हतप्रभ हैं। सवाल यह भी है कि टिहरी बांध के नाकाम हो जाने के बाद अब भी बांधों के लिए लालायित हो रही नौकरशाही व नेतृत्व के कौन से हित हैं जो अब पंचेश्वर बांध के लिए मंसूबे बांधे बैठे हैं। क्या इसमें सिर्फ पैसे की बंदरबांट है। या नेताओं के अधभरे पेट भरने की कवायद।
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बांध निर्माण की दिशा में अबतक क्या हुआ : यह सही है कि नेपाल-उत्तराखण्ड के बीच बहने वाली काली नदी पर टिहरी से तीन गुना बड़े पंचेश्वर बांध (पंचेश्वर बहुउद्देश्यीय परियोजना) पर सरकारी तौर पर सहमति नजर आ रही है। भारत-नेपाल का 230किमी. का सीमांकन करती महाकाली नदी पर पंचेश्वर में बनने वाले इस बांध के प्रस्ताव ‘भारत-नेपाल महाकाली संधि’ पर 12 फरवरी 1996 को दोनों देशों के हस्ताक्षर हो चुके हैं। नवम्बर 1999 में काठमांडू में एक संयुक्त परियोजना प्राधिकरण (जेपीओ) गठित की गई। इसके द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट को नेपाल में उस समय विपक्षी दल नेकपा (एमाले) ने संसद में पास नहीं होने दिया था। यह जेपीओ भी 2002 में रद्द कर दिया गया। 2005 में नेपाल में हुए चुनावों में सीपीएन (माओवादी) को अच्छी बढ़त मिली थी और पुष्पकमल दहल ‘प्रचण्ड’ प्रधानमंत्री बने थे। प्रधानमंत्री बनने के एक दिन पूर्व एक साक्षात्कार में बड़े बांधों के प्रति प्रचंड ने नकारात्मक रवैया दिखाया था।
भंडारी की सहमति में क्या निहित है नेपाल की रजामंदी : अब एक बार फिर भंडारी के बयान से एमाले के बांध के प्रति सकारात्मक रुख की उम्मीद बंधी है परोक्षत: उन्होंने कह दिया है कि ‘‘हम इस बांध के पूर्णतया समर्थन में हैं। पार्टी विकास के विरोध में नहीं हो सकती। लेकिन इस बात का पूरा खयाल रखा जाएगा कि बांध से प्रभावित होने वाले क्षेत्र की जनता के पुनर्वास और मुआवजे की पूरी व्यवस्था हो और उनके हकों के साथ खिलवाड़ न हो।’’ नेकपा (माओवादी) कुछ समय पहले तक यह मानती आई है कि ‘भारत-नेपाल महाकाली संधि’ भारत और नेपाली जनता की संधि न होकर नेपाल की राजशाही द्वारा भारत और अमेरिका के दबाव में की गई संधि थी। लेकिन अब उनका रुख कुछ बदला है और इससे पंचेश्वर बांध निर्माण पर पुनर्विचार की संभावनाओं पर विराम लगता दिख रहा है। लेकिन असल सवाल यह है कि क्या इसे नेपाल की जनता की रजामंदी माना जा सकता है।
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विश्व का दूसरा सबसे बड़ा बांध बनेगा : पंचेश्वर बांध 315 मी. ऊं चा विश्व में दूसरा सबसे बड़ा बांध होगा। इस बांध की क्षमता 6,480 मेगावाट आंकी जा रही है। इस परियोजना पर दो चरणों में काम होना है। पहले 315 मीटर ऊं चा बांध पंचेश्वर में महाकाली और सरयू नदी के संगम से 2 किमी नीचे बनना है। दूसरे चरण में 145 मीटर ऊं चाई वाला बांध इससे नीचे महाकाली की अग्रगामी शारदा नदी पर पूर्णागिरी में।
उत्तराखंड का डूबेगा 120 किमी क्षेत्र : बांध की इस बहुउद्देश्यीय परियोजना में भारत और नेपाल का 134 वर्ग किमी क्षेत्र डूब जाना है। इसमें भी 120 वर्ग किमी का क्षेत्र उत्तराखण्ड का है। सिर्फ 14 वर्ग किमी का क्षेत्र नेपाल का डूबेगा। दोनों ही ओर महाकाली और सहायक नदियों की उपजाऊ तलहटी में बसे प्रमुखत: कृषि पर जीवनयापन करने वाले 115 गांवों के 11,361 परिवार प्रभावित होंगे।
बांध की उम्र केवल 25 से 30 साल : बांध विशेषज्ञों का मानना है कि बड़े बांधों की उम्र लम्बी नहीं है। इसीलिये इन पर किए जा रहे बड़े निवेशों का कोई भविष्य नहीं है। पंचेश्वर बांध के लिए बनाई गई रिपोर्ट में इसकी उम्र 100 वर्ष आंकी गई है। लेकिन कुछ विशेषज्ञ मानते हैं कि यह बांध केवल 25 से 30 वर्षों में ही नदी के साथ बहकर आने वाले गाद के चलते बेकाम हो जाएगा। ऐसी स्थिति में सैकड़ों वर्षों से नदियों के किनारे बसे हिमालयी समाज को विस्थापित कर दिया जाना जायज नहीं ठहराया जा सकता।
खटाई में पड़ जाएगी टनकपुर बागेश्वर रेल लाइन : यदि बांध का निर्माण शुरू हुआ तो टनकपुर-बागेश्वर रेल लाइन खटाई में पड़ जाएगी। जिसके लिए आंदोलन जोर पकड़े हुए है और लाइन बिछाने की मांग जोर पकड़ती जा रही है। इस रेल लाइन से पूरे कुमाऊं क्षेत्र में नई आर्थिक लहर पैदा होने की उम्मीद की जा रही है। बांध से इस रेल लाइन का भविष्य अंधकारमय हो जाएगा। टनकपुर से जौलजीवी रेल लाइन के सर्वेक्षण को इस रेल बजट में हरी झण्डी मिली है। यह रेल लाईन महाकाली नदी के किनारे ही बननी है। इसे भारत-नेपाल के सीमावर्ती गांवों के साथ भारत के लिए सामरिक महत्व का भी माना जा रहा था।
पंचेश्वर बांध का उद्देश्य : पंचेश्वर बहुउद्देश्यीय परियोजना मुख्यत: विद्युत उत्पादन के अतिरिक्त, सिंचाई, पेयजल और बिहार व उत्तर प्रदेश में आने वाली बाढ़ पर नियंत्रण के उद्देश्य के लिए बनाई गई है। उत्तराखण्ड का एक बड़ा क्षेत्रफल इस परियोजना के तहत डूब जाना है और एक बड़ी आबादी इससे प्रभावित भी होनी है। ऐसे में परियोजना से कितना फायदा उत्तराखण्ड को मिलेगा यह एक महत्वपूर्ण मसला है।
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कितनी बिजली देगा बांध : परियोजना से उत्पादित होने वाली विद्युत का 12 प्रतिशत हिस्सा उत्तराखण्ड को मिलना है। टिहरी बांध में निर्धारित 2,400 मेगावाट से सिर्फ 1,000 मेगावाट ही विद्युत उत्पादन हो पा रहा है। ऐसे में पंचेश्वर से भी तकरीबन 2,000 मेगावाट के करीब की उम्मींद की ही जा सकती है। तो यहां उत्तराखण्ड को मिलने वाली 12 प्रतिशत बिजली क्या यहां डूबने वाले 120 वर्ग किमी और होने वाली विस्थापन की त्रासदी की सही कीमत है?
पूंजी के खेल में हित किसका : इस सब के बीच दोनों ही देशों की नौकरशाही और नेतृत्व के इस परियोजना के प्रति अति उत्साह को भी परखने की भी जरूरत है। दरअसल इस परियोजना में तकरीबन 22 हजार करोड़ रुपये खर्च होने हैं। पूंजी के इस बड़े खेल में दोनों देशों के परियोजना में विशेष रुचि रखने वालों के हितों को समझा जा सकता है।
टिहरी बांध का सबक : वर्तमान में उत्तराखण्ड में सबसे बड़ा बांध टिहरी बांध है। बांध निर्माण के पिछले चार वर्षों से इस पर बनी जलविद्युत परियोजना के जो परिणाम आ रहे हैं, उससे उत्तराखण्ड सरकार की ऊर्जा नीति सवालों के घेरे में आ गई है। दावा था कि टिहरी बांध 2,400 मेगावाट विद्युत का उत्पादन करेगा। लेकिन पिछले चार सालों से टिहरी जल विद्युत परियोजना सिर्फ 1,000 मेगावाट विद्युत का उत्पादन ही कर पा रही है। ऐसे में सैकड़ों गांवों, हजारों लोगों के विस्थापन के साथ उत्तराखंड की एक महत्वपूर्ण नागर सभ्यता को झील में डुबो देने वाले इस बांध का औचित्य क्या है इस पर सवाल उठने शुरू हो गए हैं ऐसे में पंचेश्वर बांध का विरोध भी समझ में आ रहा है।
टिहरी बांध का सबक : वर्तमान में उत्तराखण्ड में सबसे बड़ा बांध टिहरी बांध है। बांध निर्माण के पिछले चार वर्षों से इस पर बनी जलविद्युत परियोजना के जो परिणाम आ रहे हैं, उससे उत्तराखण्ड सरकार की ऊर्जा नीति सवालों के घेरे में आ गई है। दावा था कि टिहरी बांध 2,400 मेगावाट विद्युत का उत्पादन करेगा। लेकिन पिछले चार सालों से टिहरी जल विद्युत परियोजना सिर्फ 1,000 मेगावाट विद्युत का उत्पादन ही कर पा रही है। ऐसे में सैकड़ों गांवों, हजारों लोगों के विस्थापन के साथ उत्तराखंड की एक महत्वपूर्ण नागर सभ्यता को झील में डुबो देने वाले इस बांध का औचित्य क्या है इस पर सवाल उठने शुरू हो गए हैं ऐसे में पंचेश्वर बांध का विरोध भी समझ में आ रहा है।