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Sunderlal Bahuguna: सुंदरलाल बहुगुणा का राजनीति से चिपको आंदोलन तक ऐसा रहा सफर

Sunderlal Bahuguna: बहुगुणा ने साल 1970 में गढ़वाल हिमालय में पेड़ों को काटने के खिलाफ आंदोलन शुरू किया था।

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Newstrack NetworkPublished By Dharmendra Singh
Published on: 21 May 2021 1:21 PM GMT (Updated on: 22 May 2021 7:07 AM GMT)
Sunderlal Bahuguna
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धूप में बैठे सुंदरलाल बहुगुणा और उनके साथ एक व्यक्ति (फाइल फोटो: सोशल मीडिया)

Sunderlal Bahuguna: कोरोना वायरस की दूसरी लहर का कहर जारी है। आए दिन कोई ना कोई बुरी खबर सामने आ रही हैं। अब इस बीच पर्यावरण को बचाने के लिए प्रसिद्ध चिपको आंदोलन के नेता सुंदरलाल बहुगुणा का शुक्रवार को कोरोना वायरस से निधन हो गया। कोरोना संक्रमित होने के बाद उनकी तबियत बिगड़ गई थी जिसके बाद उनको एम्स ऋषिकेश में एडमिट कराया गया था यहीं पर उनका इलाज चल रहा था।

एम्स ऋषिकेश में भर्ती सुंदरलाल बहुगुणा ने शुक्रवार को दोपहर 12 बजे अंतिम सांस ली। पर्यावरणविद् सुंदरलाल बहुगुणा का जन्म 9 जनवरी 1927 (
Sunderlal Bahuguna Age)
को सिलयारा, उत्तराखंड में हुआ था। बहुगुणा एक प्रसिद्ध पर्यावरणविद् और चिपको आंदोलन के प्रमुख नेता थे। उन्होंने पर्यावरण को बचाने के लिए चिपको आंदोलन से लेकर किसान आंदोलन तक रास्ता तय किया।

राजनीतिक सफर (Sunderlal Bahuguna Kaun Hai)

पर्यावरणविद् सुंदरलाल बहुगुणा राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के अनुयायी थे। उन्होंने 13 साल की छोटी सी में उम्र में ही राजनीतिक करियर की शुरुआत की थी। साल 1949 में मीराबेन व ठक्कर बाप्पा से बहुगुणा मिले थे। इसके बाद उन्होंने आंदोलन (Sunderlal Bahuguna Chipko Andolan) का सफर शुरू किया। बहुगुणा ने मंदिरों में दलितों को प्रवेश का दिलाने के अधिकार के लिए आंदोलन शुरू किया।
पर्यावरणविद् सुंदरलाल बहुगुणा की साल 1956 में शादी हुई। इसके बाद उन्होंने समाज की सेवा करने के लिए राजनीति से संन्यास ले लिया और अपनी पत्नी विमला नौटियाल (Sunderlal Bahuguna Wife) की मदद से उन्होंने पर्वतीय नवजीवन मंडल का गठन किया। पर्यावरणविद् सुंदरलाल बहुगुणा पत्नी विमला बहुगुणा, बेटे राजीव नयन बहुगुणा, प्रदीप बहुगुणा, बेटी मधु पाठक समेत भराभूरा परिवार अपने पीछे छोड़ गये हैं। (Sunderbahu Guna Family)

चिपको आंदोलन की शुरुआत (Sunderlal Bahuguna Biography)

पर्यावरणविद् सुंदरलाल बहुगुणा मानते थे कि पेड़ों को काटने की जगह उन्हें लगाना चाहिए यह जीवन के लिए अधिक महत्वपूर्ण है। इसलिए बहुगुणा ने साल 1970 में गढ़वाल हिमालय में पेड़ों को काटने के खिलाफ आंदोलन शुरू किया था। इस आंदोलन में ''क्या है इस जंगल के उपकार, मिट्टी पानी और बयार, मिट्टी, पानी और बयार जिंदा रहने के आधार' नारा दिया गया था। साल 1971 में सुंदरलाल बहुगुणा ने शराब की दुकानों को खोलने के खिलाफ 16 दिन तक अनशन किया।

पेड़ों को काटने पर रोक (Sunderlal Bahuguna is Famous For Which Andolan)

पेड़ों को काटने के खिलाफ शुरू हुआ विरोध प्रदर्शन धीरे-धीरे देशभर में फैल गया। 26 मार्च 1974 में उत्तराखंड चमोली जिले में ठेकेदार पेड़ों को काटने के लिए पहुंचे उस दौरान गांव की महिलाएं पेड़ों से चिप्पकर खड़ी हो गईं। इसके बाद आंदोलन को देखते हुए तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 15 वर्ष के लिए पेड़ों के काटने पर रोक लगा दी। चिपको आंदोलन (Chipko Andolan) के कारण बहुगुणा दुनियाभर में वृक्षमित्र के नाम प्रसिद्ध हो गए।

टिहरी बांध का किया था विरोध

पद्मविभूषण से सम्मानित बहुगुणा ने टिहरी बांध के निर्माण का भी विरोध किया था। उन्होंने इस बांध के खिलाफ 84 दिन लंबा अनशन रखा था। टिहरी बांध के विरोध में बहुगुणा ने एक बार अपना सिर भी मुंडवा लिया था। पर्यावरणविद् सुंदरलाल बहुगुणा टिहरी बांध के निर्माण का आखिरी चरण तक विरोध करते रहे। टिहरी बांध के जलाशय में उनका अपना घर भी समा गया।
बहुगुणा ने टिहरी राजशाही के खिलाफ भी विरोध किया था। इसके लिए उनको जेल भी जाना पड़ा था। बहुगुणा हिमालय में होटलों और लक्जरी टूरिज्म का विरोध करते थे। महात्मा गांधी को अनुयायी मानने वाले बहुगुणा ने हिमालय और पर्यावरण संरक्षण के लिए लोगों को जागरूकता फैलाने के लिए कई पदयात्राएं भी कीं।

इन पुरस्कारों से किया गया सम्मानित (Sunderlal Bahuguna Awards )

पर्यावरण के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान के लिए सुन्दरलाल बहुगुणा को साल 1981 में पद्मश्री पुरस्कार दिया गया, लेकिन उन्होंने यह पुरस्कार लेने से इंकार कर दिया। उन्होंने कहा कि जब तक पेड़ काटे जाते रहेंगे, तब तक मैं इस पुरस्कार को स्वीकार नहीं कर सकता।

सुंदरलाल बहुगुणा को साल 1985 में जमनालाल बजाज पुरस्कार से सम्मानित किया गया। इसके बाद साल 1986 में रचनात्मक कार्य के लिए जमनालाल बजाज पुरस्कार दिया गया। 1987 में चिपको आंदोलन के लिए राइट लाइवलीहुड पुरस्कार से नवाजा गया। साल 1987 में शेर-ए-कश्मीर पुरस्कार, वर्ष 1987 में सरस्वती सम्मान, साल 1989 में आइआइटी रुड़की ने सामाजिक विज्ञान के डॉक्टर की मानद उपाधि दी। साल 1998 में पहल सम्मान, 1999 में गांधी सेवा सम्मान, 2000 में सांसदों के फोरम ने सत्यपाल मित्तल पुरस्कार से सम्मानित किया। 2001 में पद्म विभूषण सम्मान दिया गया।

प्रधानमंत्री मोदी ने जताया दुख

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सुंदरलाल बहुगुणा के निधन पर शोक जताया है। उन्होंने बहुगुणा के निधन को देश के लिए बहुत बड़ा नुकसान बताया। पीएम मोदी ने कहा कि सुंदरलाल बहुगुणाजी का निधन देश के लिए एक बहुत बड़ा नुकसान है।


Dharmendra Singh

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