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PUROLA Assembly Seat: इस विधानसभा क्षेत्र के मतदाता हर बार विपक्षी उम्मीदवार को देते हैं अपना आर्शीवाद, जानें इस बार क्या है समीकरण
PUROLA Assembly Seat: उत्तराखंड का हिमाचल प्रदेश की सीमा से लगा हुआ उत्तरकाशी जिले का यह पुरोला विधानसभा सीट (Purola assembly seat) हर बार अपने विधायक बदलता है, जो राज्य में सत्ता बदलने की रवायत से जुड़ा हुआ है।
Uttarakhand News: उत्तराखंड में विधानसभा चुनाव (Uttarakhand Assembly Elections 2022) को लेकर सियासी सरगर्मी तेज है। राज्य के दो प्रमुख दल बीजेपी (BJP) और कांग्रेस (Congress) ने अपने सभी उम्मीदवारों का ऐलान कर दिया है। ऐसे में 70 विधायकों वाली उत्तराखंड विधानसभा की कुछ ऐसी सीटें हैं जिनके परिणाम पर सबकी नजरें हैं। उसमें पुरोला विधानसभा सीट (Purola assembly seat) भी शामिल है। हिमाचल प्रदेश की सीमा से लगा हुआ उत्तरकाशी जिले का यह सीट हर बार अपने विधायक बदलता है जो राज्य में सत्ता बदलने की रवायत से जुड़ा हुआ है।
सियासी पृष्ठभूमि
उत्तराखंड के गठन के बाद पुरोला सीट पर पहली बार 2002 में विधानसभा चुनाव हुए थे। पहली बार इस सीट पर बीजेपी कमल खिलाने में कामयाब रही। तब भाजपा विपक्ष में बैठी थी। भाजपा के मालचंद ने कांग्रेस के राजेश जुठाठा को हराकर विधानसभा में अपनी सीट पक्की की। इसके बाद 2007 में हुए विधानसभा चुनाव के दौरान ये समीकरण पलट गया। 2002 में हारने वाले राजेश इस बार बीजेपी के मालचंद पर भारी पड़े और उन्होंने चुनाव में जीत हासिल की। हालांकि राज्य में कांग्रेस सत्ता से बेदखल हो चुकी थी। फिर आया साल 2012 इस दौरान एकबार फिर बीजेपी (BJP) के मालचंद मैदान में थे और उन्होंने कांग्रेस से ये सीट छिन ली। लेकिन राज्य में बीजेपी अपनी सरकार नहीं बचा सकी।
2017 का रिजल्ट
2017 के विधानसभा चुनाव में एकबार फिर मालचंद बीजेपी के टिकट पर मैदान में थे। इस दौरान प्रदेश में बीजेपी की लहर चल रही थी। लेकिन इस लहर में भी मालचंद अपनी सीट नहीं बचा पाए और कांग्रेस उम्मीदवार राजकुमार के हाथों पराजित हुए।
सामाजिक समीकरण
हिमाचल प्रदेश की सीमा से सटे इस विधानसभा क्षेत्र में यूं तो हर जाति वर्ग के लोग निवास करते हैं। लेकिन पिछड़ा वर्ग के साथ साथ एससी और एसटी मतदाता यहां निर्णायक भूमिका में है।
ऐसे में इस बार पुरोला के सिय़ासी इतिहास (Political History of Purola) को देखते हुए सियासी जानकार यहां फिर से बदलाव होने की बात कह रहे हैं। इसी के साथ देखने वाली बात होगी कि क्या एकबार फिर जनता यहां विपक्ष में बैठने जा दल के उम्मीदवार को चुनती है या सत्ता में बैठने जा रहे दल के उम्मीदवार को। दरअसल राज्य में हर पांच साल में सत्ता परिवर्तन की रवायत रही है। इस हिसाब से इस बार कांग्रेस की बारी है। हालांकि ये सब कयास है असली नजीते तो चुनाव परिणाम के दिन ही पता चलेगा।
वहीं सत्ताधारी बीजेपी यहां दोबारा चुनाव जीतकर उस मिथ्य को तोड़ना चाहती है जो उत्तराखंड के अलग राज्य बनने के बाद से इस पर चस्पा हो गया है। बीजेपी ने इस बार अपने पांच साल के कार्य़काल में तीन बार मुख्यमंत्री बदले। बीजेपी का ये प्रयोग कितना सफल होता है ये देखने वाली बात होगी। बता दें कि 14 फरवरी को यहां एक चरण में मतदान होने जा रहा है। वहीं 10 मार्च को अन्य चार राज्यों के साथ चुनाव परिणाम आएंगे।