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उत्तराखंड: बागी हो जाएंगे त्रिवेंद्र सिंह रावत? सल्ट उपचुनाव पर होगा असर
उत्तराखंड के पूर्व सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत को सल्ट विधानसभा उपचुनाव के लिए स्टार प्रचारक की सूची में शामिल किया गया
रामकृष्ण वाजपेयी
विद्रोही तेवर अख्तियार कर रहे उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत को सल्ट विधानसभा उपचुनाव के लिए आखिरकार स्टार प्रचारकों की सूची में शामिल कर ही लिया गया लेकिन क्या इससे त्रिवेंद्र संतुष्ट हो जाएंगे। क्या संघ का यह खांटी कार्यकर्ता अपने विरोधियों को धूल चटाने की मंशा पर काबू रख पाएगा। ये सवाल इन दिनों पहाड़ पर बहुत तेजी से उठ रहा है। खासकर ऐसे माहौल में जबकि उनकी सरकार द्वारा किये गए फैसलों को मीन मेख निकाल कर लगातार पलटा जा रहा है।
किया गया छल !
त्रिवेंद्र सिंह रावत मुख्यमंत्री पद से हटने के बाद सहज नहीं हो पा रहे हैं। उन्हें लग रहा है कि अभिमन्यु की तरह घेरकर उन्हें छल से मारा गया है। उनकी पीड़ा शब्दों में व्यक्त होनी शुरू हो गई है। पहले जहां यह कहा जा रहा था कि विरोध को देखते हुए वह खुद मुख्यमंत्री पद से हटे और अपनी सहमति से मुख्यमंत्री पद नये उत्तराधिकारी का चयन करवाया वहीं अब खुद रावत यह कह रहे हैं कि उन्हें नहीं मालूम, उन्हें क्यों हटाया गया।
बागी हो रहे रावत ?
त्रिवेंद्र सिंह रावत ने तो यहां तक कह दिया, 'जब अभिमन्यु को कौरवों द्वारा छल से मारा जाता है तो मां द्रौपदी शोक नहीं करती हैं। मां द्रौपदी हाथ खड़े करके बोलती हैं, इसका प्रतिकार करो पांडवों। क्या रावत बागी हो रहे हैं। अब जबकि 2022 के राज्य विधानसभा चुनाव में एक साल से भी कम समय बचा है रावत का अपने समर्थकों से प्रतिकार का आह्वान क्या पहाड़ में एक नई लड़ाई शुरू होने का संकेत है।
राजनीतिक दिग्गज उनके शब्दों के निहितार्थ निकालने में जुटे हैं। कहा यह भी जा रहा है कि पहले उन्हें स्टार प्रचारकों में रख कर और फिर शामिल करके भाजपा नेतृत्व ने अपनी गलती सुधारने की कोशिश की है। अगर रावत अपने समर्थकों को गोलबंद करके बगावत पर उतर आते हैं तो इसका पार्टी को भारी नुकसान हो सकता है। इसके अलाव तीरथ सिंह रावत सरकार जिस तरह से त्रिवेंद्र सरकार के निर्णयों को पलट रही है वह आग में घी का काम कर रहा है। लोग यह भी कह रहे हैं कि भाजपा नेतृत्व पहाड़ में जल्द से जल्द त्रिवेंद्र सिंह रावत की छाया से बाहर आना चाहता है।
उत्तराखंड की राजनीति उठापटक आसार
ऐसे में जबकि अल्मोड़ा में सल्ट विधानसभा के उपचुनाव विधानसभा चुनाव का लिटमस टेस्ट माने जा रहे हैं। भाजपा के इस क्षत्रप का रूठना शुभ संकेत नहीं है। आने वाले कुछ महीनों में उत्तराखंड की राजनीति काफी उठापटक हो सकती है। गौरतलब है कि मुख्यमंत्री पद से हटने के बाद भाजपा के कई नेता बगावती रुख अपना चुके हैं इनमें गुजरात के केशुभाई पटेल से लेकर मध्य प्रदेश की उमा भारती और यूपी के कल्याण सिंह तक के उदाहरण दिये जा रहे हैं।