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चार साल बीतने के बाद भी मुआवजे को कलपते आपदा पीडि़त

raghvendra
Published on: 19 Jan 2018 3:52 PM IST
चार साल बीतने के बाद भी मुआवजे को कलपते आपदा पीडि़त
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देहरादून। उत्तराखंड में 2013 के आपदा पीडि़तों की स्थिति आज भी तक जस की तस है। मतलब ये है कि आपदा के चार साल बीतने के बाद भी उन्हें कंपनी से कोई मुआवजा नहीं मिल सका है। इस मामले में कोर्ट के आदेश भी बेअसर साबित हो हुए हैं क्योंकि प्रशासनिक तंत्र ने काम कर रही कंपनी पर मुआवजा जमा कराने के लिए सख्ती की ही नहीं।

अब सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर श्रीनगर जल विद्युत परियोजना से प्रभावित परिवारों के मुआवजे के मामले में राज्य के मुख्य सचिव को हलफनामा जमा करने का नोटिस जारी किया है। मामला वर्ष 2013 में आई आपदा में जलमग्न हुए श्रीनगर के भक्तियाना क्षेत्र का है। एनजीटी ने अलकनंदा हाइड्रो पावर कंपनी को प्रभावितों को मुआवजा देने के निर्देश दिए थे, जबकि परियोजना कंपनी ने एनजीटी के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। वर्ष 2013 की आपदा में श्रीनगर का भक्तियाना क्षेत्र जलमग्न हो गया था।

श्रीनगर बांध प्रभावित संघर्ष समिति का कहना है कि अलकनंदा हाइड्रो पावर कंपनी (एचपीसी) इस हादसे के लिए जिम्मेदार थी। समिति का कहना है कि परियोजना कंपनी की ओर से अलकनंदा नदी किनारे डंप लाखों टन मलबा बह गया था। इस मलबे के कारण शहर के निचले हिस्सों में पानी भरने से मलबा भी आवासीय भवनों और सरकारी, गैर सरकारी इमारतों में घुस गया। आठ फुट से अधिक तक मिट्टी इन घरों में भर गई थी।

श्रीनगर बांध आपदा संघर्ष समिति व माटू संगठन ने वर्ष 2013 में राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण (एनजीटी) में बांध परियोजना कंपनी की ओर से मुआवजा दिए जाने के लिए वाद दायर किया था। एनजीटी ने 19 अगस्त 2016 को समिति को सही ठहराते हुए 9 करोड़ 27 लाख का मुआवजा मंजूर किया था। एनजीटी के फैसले के खिलाफ परियोजना कंपनी सुप्रीम कोर्ट चली गई थी।

सुप्रीम कोर्ट ने प्रभावितों को अपने दावे एसडीएम के पास जमा करने और एसडीएम को उस पर रिपोर्ट कोर्ट में दाखिल करने का आदेश दिया था। प्रभावितों के वकील संजय पारिख ने कोर्ट में बताया कि प्रभावित अपने विस्तृत दावे 2016 में एसडीएम के समक्ष दायर कर चुके हैं, लेकिन राज्य सरकार ने अभी तक अपनी रिपोर्ट दाखिल नहीं की है। अब सुप्रीम कोर्ट ने राज्य के मुख्य सचिव को अपना शपथ पत्र दाखिल करने को कहा है। मामले में अब अगली सुनवाई के लिए छह सप्ताह बाद की तिथि नियत की गई है।

क्या है मामला

श्रीनगर में श्रीनगर जल विद्युत परियोजना का निर्माण करवा रही जीवीके कंपनी ने डैम साइट कोटेश्वर से किलकिलेश्वर तक नदी किनारे लाखों ट्रक मिट्टी डंप की थी। इस कारण नदी की चौड़ाई भी कम हो गई थी। 2013 के जून महीने में जब बाढ़ आयी तो उसने इस मिट्टी को काटना शुरू कर दिया। जिससे नदी का जलस्तर अचानक से करीब दो मीटर तक बढ़ गया। इसी के चलते अलकनन्दा नदी में आई विनाशकारी बाढ़ ने श्रीनगर में अपना तांडव दिखाया।

नगर के एक बड़े हिस्से को पूरी तरह से बर्बाद कर दिया। बाढ़ से एसएसबी अकादमी का परिसर, आईटीआई परिसर बुरी तरह तबाह हो गया। 70 आवासीय भवनों में रहने वाले सौ से अधिक परिवार बेघर हो गए हैं। इन मकानों में दस से बारह फीट तक मिट्टी भर गई। घर का कोई भी सामान काम का नहीं रह गया। जब बाढ़ का पानी उतरा तो लोगों के होश उड़ गए। 70 आवासीय भवन, एसएसबी अकादमी का आधा क्षेत्र, आईटीआई, खाद्य गोदाम, गैस गोदाम, रेशम फार्म में 12 फीट तक मिट्टी जमा थी।

कई आवासीय भवन तो छत तक मिट्टी में समा गए थे। इन घरों में रहने वाले लोगों की जीवन भर की पूंजी जमीदोज हो गई थी। एससबी अकादमी के निदेशक एस. बंदोपाध्याय ने उस समय कहा था कि अकेले अकादमी को लगभग सौ करोड़ का नुकसान हुआ है। इस हिसाब से देखा जाए तो श्रीनगर क्षेत्र में कुल नुकसान का आंकड़ा तीन सौ करोड़ पहुंच रहा था। इसके अलावा देवप्रयाग में भी जलविद्युत परियोजनाओं की मिट्टी से कई सरकारी एवं आवसीय भवन अट गये थे। वहां रह रहे तमाम लोगों की जिंदगी भर की कमाई दफन हो गई थी और अब उनको मुआवजा भी मिलने में लाले लग रहे हैं।



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राघवेंद्र प्रसाद मिश्र जो पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद एक छोटे से संस्थान से अपने कॅरियर की शुरुआत की और बाद में रायपुर से प्रकाशित दैनिक हरिभूमि व भाष्कर जैसे अखबारों में काम करने का मौका मिला। राघवेंद्र को रिपोर्टिंग व एडिटिंग का 10 साल का अनुभव है। इस दौरान इनकी कई स्टोरी व लेख छोटे बड़े अखबार व पोर्टलों में छपी, जिसकी काफी चर्चा भी हुई।

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