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Uttarakhand Election 2022: उत्तराखंड बनने के बाद पहली बार विधानसभा में नहीं दिखेंगे हरक सिंह रावत,अब अपना दर्द छुपाने की कोशिश
Uttarakhand Election 2022: हरक सिंह गढ़वाल की किसी भी सीट से चुनाव लड़ने के लिए तैयार थे मगर कांग्रेस नेतृत्व की ओर से उनके दावे की अनदेखी की गई।
Uttarakhand Election 2022: उत्तराखंड की सियासत के कद्दावर नेता माने जाने वाले हरक सिंह रावत को आखिरकार कांग्रेस से टिकट नहीं मिला। कांग्रेस में शामिल होने के बाद रावत लगातार टिकट पाने की कोशिश में जुटे हुए थे मगर कांग्रेस नेतृत्व ने उन्हें निराश कर दिया। हालांकि हरक सिंह अपनी पुत्रवधू अनुकृति गुसाईं (Anukriti Gusain) को टिकट दिलाने में कामयाब रहे मगर पहली बार उन्हें खुद के टिकट के लिए तरसना पड़ा।
हरक सिंह गढ़वाल की किसी भी सीट से चुनाव लड़ने के लिए तैयार थे मगर कांग्रेस नेतृत्व की ओर से उनके दावे की अनदेखी की गई। हालांकि रावत यह कहकर अपना दर्द छिपाने की कोशिश कर रहे हैं कि इस बार मेरी विधानसभा चुनाव लड़ने की इच्छा नहीं थी मगर माना जा रहा है कि चुनाव मैदान में न उतरने से उनकी भावी सियासत को करारा झटका लगा है। अब यह तय हो गया है कि उत्तराखंड के गठन के बाद यह पहला मौका होगा जब इस कद्दावर नेता का चेहरा विधानसभा में नहीं दिखेगा।
बहू को टिकट और खुद बेटिकट
भाजपा में हरक सिंह रावत तीन टिकट के लिए ताल ठोक रहे थे मगर कांग्रेस में शामिल होने के बाद वे खुद ही बेटिकट रह गए। भाजपा नेतृत्व को हरक सिंह के दिल्ली जाकर कांग्रेस में शामिल होने की कोशिशों की भनक लग गई थी और इसी कारण उन्हें 12 जनवरी को धामी मंत्रिमंडल से बर्खास्त करने के साथ ही पार्टी से भी 6 साल के लिए निष्कासित कर दिया गया था। इस कदम के जरिए पार्टी ने बगावत की कोशिश में जुटे नेताओं को बड़ा सियासी संदेश देने की कोशिश की थी।
कांग्रेस में शामिल होने के लिए हरक सिंह जैसे कद्दावर नेता को भी 6 दिन तक इंतजार करना पड़ा क्योंकि पार्टी के वरिष्ठ नेता और राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत उनका विरोध कर रहे थे। उनका कहना था कि 2016 में की गई गलती के लिए हरक सिंह को कांग्रेस नेतृत्व से माफी मांगनी चाहिए। माफी मांगने के बाद ही हरक सिंह को पार्टी में एंट्री मिल सकी।
इसके बाद माना जा रहा था कि हरक सिंह कांग्रेस में बड़ी भूमिका निभाएंगे। कांग्रेस की दूसरी सूची में उनकी पुत्रवधू अनुकृति को लैंसडाउन से टिकट मिल गया मगर हरक सिंह टिकट का इंतजार ही करते रह गए। उन्हें डोईवाला या चौबट्टाखाल से टिकट मिलने की उम्मीद जताई जा रही थी मगर उनकी यह उम्मीद पूरी नहीं हो सकी।
उत्तराखंड बनने के बाद लगातार जीते चुनाव
उत्तराखंड के गठन के बाद यह पहला मौका होगा जब विधानसभा में हरक सिंह रावत का चेहरा नहीं दिखेगा। उत्तराखंड के गठन के बाद 2002 में हुए पहले चुनाव में हरक सिंह ने लैंसडोन सीट से जीत हासिल की थी और उन्हें एनडी तिवारी के मंत्रिमंडल में मंत्री बनने का मौका भी मिला था। 2007 में भी उन्होंने इस सीट पर अपनी जीत का सिलसिला जारी रखा और उन्हें नेता प्रतिपक्ष की जिम्मेदारी सौंपी गई थी।
2012 के चुनावों में हरक सिंह ने अपनी सीट बदलकर रुद्रप्रयाग सीट से चुनाव लड़ने का फैसला किया था। इस चुनाव में भी रावत ने एक बार फिर अपनी सियासी पकड़ कायम रखते हुए जीत हासिल की थी। 2016 के विधानसभा चुनाव में हरक सिंह ने कांग्रेस के 9 विधायकों के साथ पाला बदलकर भाजपा का दामन थाम लिया था।
2017 के विधानसभा चुनाव में पार्टी ने उन्हें कोटद्वार विधानसभा सीट से चुनाव मैदान में उतारा था और इस चुनाव में भी हरक सिंह रावत विजयी रहे थे। कोटद्वार में मेडिकल कॉलेज की मांग को लेकर ही उन्होंने भाजपा नेतृत्व पर हमले शुरू किए थे।
सियासत के धुरंधर खिलाड़ी
वैसे हरक सिंह को सियासत का धुरंधर खिलाड़ी माना जाता रहा है और वे उत्तराखंड के गठन से पहले भी विधानसभा का चुनाव जीतते रहे हैं। 1991 में उन्होंने भाजपा के टिकट पर पौड़ी सीट पर जीत हासिल की थी और उन्हें प्रदेश सरकार में पर्यटन राज्य मंत्री भी बनाया गया था।
1993 के चुनाव में भी उन्होंने इसी सीट से जीत हासिल की थी। 1998 के चुनाव में भाजपा की ओर से उन्हें टिकट नहीं दिया गया था जिससे नाराज होकर उन्होंने बसपा का दामन थाम लिया था। बाद में उत्तराखंड के गठन के बाद 2002 से वे लगातार चुनाव जीते थे रहे हैं मगर अब पांचवीं विधानसभा में उत्तराखंड के इस कद्दावर नेता का चेहरा नहीं दिखेगा।